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नए विचार, नया व्यापार, विरासत के नए सूत्रधार

विदेशी डिग्री और वैश्विक दृ‌ष्टिकोण के साथ बदल रहा पारंपरिक व्यापार
पूरी तैयारी से ः गोदरेज परिवार की अगली पीढ़ी

भारतीय फैमिली बिजनेस की दुनिया बदलाव के दौर से गुजर रही है। फैमिली बिजनेस में बेहतरी के लिए कई युवा पीढ़ी नए रास्ते तलाश रही हैं। वे आंत्रप्रेन्योर बने हैं और उन्होंने सफलता का स्वाद चखा है। यह फैमिली बिजनेस में दिलचस्प मोड़ है, जो भारत में लगभग 90 प्रतिशत व्यवसायों के लिए जिम्मेदार है-स्थानीय किराना दुकानों से लेकर कृषि और बहुराष्ट्रीय कंपनियों तक।

आखिर इस बदलाव में क्या है? व्यापक रूप से बात करें तो, स्टार्ट-अप में तेजी, नई प्रौद्योगिकी का आगमन, कभी-कभी अवसरों का विस्तार, वैश्विक व्यापार संस्कृति और विदेशों में शिक्षा, ऐसे कुछ उत्प्रेरक शामिल हैं जो इन परिवर्तनों के लिए जिम्मेदार हैं। लेकिन क्या पारंपरिक फैमिली बिजनेस नए कारोबार के लिए अनुकूल लगता है? क्या ये अकेले चल सकने योग्य हैं? परिवार में और दूसरे कौन से बदलाव हो रहे हैं?

आइआइएम-कोलकाता में ऑर्गनाइजेशनल बिहेवियर के प्रोफेसर विद्यानंद झा बताते हैं कि फैमिली बिजनेस एक विशाल श्रेणी है, जिसमें कारोबार और लाभ उद्यम के विभिन्न पैमाने शामिल हैं। इस पैमाने से इतर बात की जाए तो, नई पीढ़ी के पास अधिक औपचारिक शिक्षा है, विशेष रूप से विदेश से डिग्री है, जो उन्हें दूसरे देश और अलग कार्य संस्कृति का अनुभव देती है।

ये युवा कुछ समय के लिए फैमिली बिजनेस के बाहर काम करना पसंद करते हैं। झा कहते हैं, “कई युवा नए क्षेत्रों में जा रहे हैं, कई ऐप्स या ई-कॉमर्स या स्टार्ट-अप के साथ कुछ ज्यादा करना चाहते हैं, जो किसी को भी उभरता हुआ दिलचस्प क्षेत्र लग सकता है। यदि यह छोटा कारोबार है तो वे पूरी तरह से फैमिली बिजनेस से बाहर हो सकते हैं। यदि नहीं, तो वे खुद को साबित करने के लिए नए क्षेत्र के लिए उत्सुक होते हैं। प्रोफेसर जोर देकर पैकेजिंग फूड बिजनेस का हवाला देते हुए कहते हैं कि आरपी-एसजी ग्रुप की नई पीढ़ी ने अपने को साबित करने के लिए गिल्टफ्री इंडस्ट्रीज नाम से पैकेज्ड फूड का कारोबार शुरू किया।

कई फैमिली बिजनेस बच्चों को अपना खुद का काम शुरू करने का अवसर देने में विश्वास करते हैं। उनमें से कुछ युवाओं को इस खेल में जी जान लगा देने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। ताकि वे सीखें कि नया व्यवसाय शुरू करने के लिए क्या करना होता है और कैसे इसे सफलता की ओर ले जाना है। सीखने का यह मोड़ बहुत बड़ा है, यूं कहें कि आत्मविश्वास को बढ़ावा देने वाला। पिछले दो दशकों में कई फैमिली बिजनेस के लिए “मेंटॉर” रहे बिजनेस एंड फैमिली कंसल्टेंट्स के अनिल सैनानी कहते हैं, “आज की तकनीक और स्टार्ट-अप के दौर में, कुछ कंपनियों ने अपने व्यापार संहिता में लिखा है कि जब बच्चे कॉलेज में होते हैं तब उन्हें एक्सपेरिमेंट के लिए पैसा दिया जाना चाहिए।”

लगभग 20 फीसदी प्रगतिशील परिवार अपने बच्चों को उद्यमी बनाने के लिए बहुत छोटी उम्र से, कहें तो स्कूल के दिनों में ही प्रोत्साहित करने लगते हैं। तमाम तरह के सहयोग के अलावा परिवार नए वेंचर में पैसा भी लगाता है। विशेषज्ञ कहते हैं कि यदि जोखिम को सीमित करने के लिए, जब नया व्यवसाय समूह के मूल हित से संबंधित नहीं होता, तो परिवार से निवेश आम तौर पर पर्याप्त नहीं होता। उदाहरण के लिए, डालमिया समूह के पुनीत डालमिया, जो सॉफ्टवेयर या इंटरनेट में नहीं थे, ने जॉब्सअहेड के साथ केवल दो करोड़ रुपये में संयुक्त उद्यम स्थापित किया था। मार्केट रिपोर्ट के मुताबिक, जॉब्सअहेड को बाद में यूएस की Monster.com को 40 करोड़ रुपये में बेचा गया। इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस के थॉमस श्मिडिनी सेंटर फॉर फैमिली एंटरप्राइज की एसोसिएट डायरेक्टर नुपूर पवन बंग कहती हैं, “युवा पीढ़ी द्वारा लाए गए बाहरी दृष्टिकोण न केवल व्यापार करने के तरीकों में बदलाव के वाहक साबित हो रहे हैं, बल्कि व्यवसायों की प्रकृति में भी बदलाव कर रहे हैं।”

वास्तव में, युवा, बेहतर वैश्विक दृष्टिकोण और परिवर्तन करने वालों को साबित कर दिखा रहे हैं जिसमें पारिवरिक व्यवसाय में “व्यावसायिकता” भी शामिल है। कैप्रिहंस इंडिया लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर रॉबिन बनर्जी कहते हैं, “परिवर्तन सकारात्मक रहा है क्योंकि ज्यादा परिवार अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा दे रहे हैं। बीस या तीस साल पहले ऐसी प्रवृत्ति नहीं थी। यदि आप बजाज या किर्लोस्कर्स की दुनिया देखें तो पाएंगे कि इसमें शामिल होने वाले बच्चे अधिक शिक्षित हैं। इसलिए, अब जबकि वे गैर-पारिवारिक व्यवसायों में नहीं आते तो भी परिवार बहुत बेहतर तरीके से शिक्षित होता है।”

शिक्षा और वैश्विक अनुभव के अलावा, एक और बड़ा परिवर्तन संयुक्त परिवारों का टूटना और एकल परिवारों का उदय है। इसके अलावा, एक या दो बच्चों के साथ घटते परिवार के आकार से प्रेरित, पितृसत्तात्मक व्यापार वातावरण में महिलाओं की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। व्यवसाय चलाने के बारे में महिलाओं पर संदेह रहता था, भले ही वे नौकरी के लिए अत्यधिक योग्य थीं, जैसी धारणा तेजी से लुप्त हो रही है।

एचसीएल इंटरप्राइज की रोशनी नाडार, सुंदरम क्लेटॉन की लक्ष्मी वेणु और गोदरेज समूह की तान्या अरविंद दुबाश इस बदलती मानसिकता के अच्छे उदाहरण हैं। और इनमें से कई ने विदेश में पढ़ाई की है।

बंग कहती हैं, “बीते जमाने में व्यापार में महिलाओं की भूमिका फैमिली फाउंडेशन और एचआर तक ही सीमित थी। लेकिन अब महिलाओं के पास वित्त से लेकर रणनीति तक की भूमिकाएं हैं। और नेतृत्व की भूमिका भी। अतीत में कई उदाहरण हैं कि महिलाओं के पास विरासत में कंपनी के शेयर रहते थे पर वे कंपनी में काम नहीं करती थीं। खैर, यह सब अतीत में हुआ था। अब विरासत कानून भी बदल गए हैं। अब महिलाएं पारिवारिक व्यवसायों और संपत्तियों में वारिस होती हैं। यह बदलते दृष्टिकोण पर असर डालता है।”

पारिवारिक व्यवसाय का ढांचा आसान नहीं हुआ है। इसके बजाय वे इस तथ्य का संज्ञान ले रहे हैं कि वे स्थायित्व के लिए हैं और स्वामित्व संरचना को ऐसा बना रहे हैं कि इससे कोई फर्क न पड़े कि कौन सी पीढ़ी या बेटा या बेटी किस काम को चला रही है। वे व्यक्तिगत स्वामित्व या हिंदू अविभाजित परिवार के माध्यम से होल्डिंग कंपनियों या ट्रस्ट के माध्यम से शेयरों को रखने का विकल्प चुन रहे हैं।

सैनानी रेखांकित करते हैं कि हालांकि टाटा और बिड़ला जैसे ट्रस्ट या होल्डिंग कंपनियां बनाने की अवधारणा दशकों पुरानी हो सकती है लेकिन वे कम प्रचलित हो गई थीं। आर्थिक उदारीकरण समाज के बाद कई नए परिवार समूह अस्तित्व में आ गए हैं। उनमें से कुछ ने शुरुआत में एक भी होल्डिंग स्ट्रक्चर नहीं बनाया था, लेकिन अब व्यवसाय को विभाजित करने से बचाने के लिए ऐसा कर रहे हैं, जो किसी व्यापार को विभाजित कर सकता है। इसका एक फायदा यह है कि यह किसी भी सब्सिडियरी के लिए पूंजी जुटाने में मदद कर सकता है और फिर भी नियंत्रण बनाए रख सकता है।

ट्रस्ट का निर्माण ज्यादातर अमेरिका जैसे देशों में मदद करता है, जहां उच्च विरासत कर होता है। भारत में इस तरह के कर को फिर से लागू करने का एक प्रस्ताव रहा है, जिससे कई कंपनियां देयता को मुक्त करने के लिए प्रेरित करती हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि किसी भी परिवार के सदस्य के खिलाफ एक बाहरी व्यक्ति को कंपनी में हिस्सेदारी बेचने के विरुद्ध ट्रस्ट की सुरक्षा होती है। ट्रस्ट इस प्रकार कंपनी के व्यावसायिक हितों की रक्षा करता है। बंग के मुताबिक ट्रस्ट स्थापित करने का एक और फायदा यह है कि यह लाभार्थियों के बारे में नियमों और विनियमों को तैयार करने में मदद करता है, जिसमें अगली पीढ़ी और वंशानुत सदस्य शामिल हैं। यह स्पष्ट करता है कि लाभांश या कमाई के मामले में किसे क्या मिलेगा। यह जिम्मेदारियों और पारिवारिक सदस्यों के विरासत अधिकारों के संदर्भ में स्पष्टता भी प्रदान करता है।

शराब कारोबारी विजय माल्या, रिलायंस और रैनबैक्सी से जुड़े कई मामलों के चलते भारत में फैमिली बिजनेस के नियम कायदे की अवधारणा बढ़ रही है, जहां पारिवारिक व्यवसाय टूट रहे हैं या उनमें गिरावट हो रही है। बंग कहती हैं, “जबकि बिजनेस गवर्नेंस के मुद्दों के मामले में सेबी, शेयर बाजार और कुछ हद तक विश्लेषकों और बाहरी हितधारकों द्वारा बिजनेस गवर्नेंस के मुद्दों पर बहुत अधिक ध्यान दिया जाता है, इसे परिवार द्वारा ही प्रबंधित किया जाना चाहिए। इसका मतलब है, सभी परिवार के सदस्यों को कुछ दिशानिर्देशों का पालन करना होगा। यह एक कानूनी दस्तावेज नहीं है बल्कि बेहतरीन कार्यप्रणाली का संग्रह है, जिस पर परिवार सोचता है कि सभी सदस्यों को इसका पालन करना ही चाहिए।”

ऐसे संचालन नियम पारिवारिक मूल्यों को संस्थागत बनाने में मदद करते हैं और संचालन के लिए स्पष्ट मानदंड बताते हैं-जैसे, व्यापार, कर्तव्यों और जिम्मेदारियों और विशेषाधिकारों में शामिल होने के लिए वांछित योग्यताएं। एक उदाहरण मुरुगप्पा समूह हो सकता है, जिसमें पारिवारिक संहिता है जो समग्र शासन का हिस्सा है। संविधान स्पष्ट रूप से सूचीबद्ध कंपनियों में शामिल होने के लिए आवश्यक योग्यता बताता है।

एसपी मंडाली के प्रिन एल.एन. वेलिंगकर इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट डेवलपमेंट एंड रिसर्च (वीस्कूल) के ग्रुप डायरेक्टर, प्रोफेसर उदय सालुंके का कहना है कि “हर पीढ़ी विचार प्रक्रियाओं को फिर से परिभाषित और तैयार करती है। साथ ही, माहौल में भी बदलाव करती है। इससे पहले, अगली पीढ़ी कंपनी में काम करना शुरू कर देगी और निश्चित रूप से अपने परिवार के कारोबार का नेतृत्व करेगी। अब मसला यह नहीं है। अगली पीढ़ी के कुछ नेतृत्वकर्ता व्यवसाय प्रबंधन / वित्त में स्नातकोत्तर की डिग्री का लक्ष्य रखते हैं और नेटवर्किंग में माहिर होते हैं।”

बड़ी संख्या में मौजूद बी-स्कूलों में से आइआइएम, आइएसबी, वीस्कूल ऐसे हैं, जो एमबीए स्तर पर फैमिली बिजनेस प्रोग्राम चलाते हैं ताकि आने वाली पीढ़ी के उद्यमी सीख सकें, पुराने को भूल सकें और फिर से सीखें। इन संस्थानों में इस कोर्स में न सिर्फ युवा बल्कि बहुत से फैमिली बिजनेस के वरिष्ठ सदस्य भी इस शॉर्ट टर्म कोर्स में दाखिला लेते हैं।

अब व्यवसाय में ऐसे नई पीढ़ी के ऐसे बच्चों को खोजना जरा भी असामान्य नहीं है जो बेहतर तरीके से व्यापार समझने और सीढ़ियां चढ़ने के लिए नीचे से शुरुआत करने में विश्वास करते हैं। कुछ हैं जो अपने फैमिली बिजनेस से बाहर काम कर रहे हैं, भारत में या भारत से बाहर।

अब तक अधिकांश पारिवारिक व्यवसायों में प्रवृत्ति है कि बुजुर्ग अपना कारोबार खुद चलाते हैं। वे लोग प्रोफेशनल्स पर भरोसा नहीं करते। कुछ हैं जो पेशेवरों को लाने के इच्छुक हैं। आइआइएम-कोलकाता के झा कंपनियों की प्रवृत्ति को इंगित करते हैं कि वे बड़ी कंपनी की तरह बढ़ना नहीं चाहतीं या सूचीबद्ध होना नहीं चाहतीं और स्टेकहोल्डर्स के प्रति जवाबदेह नहीं होना चाहतीं। वह कहते हैं, “तब वे क्यों लुप्तप्राय संस्था बन नहीं जातीं तो क्या वे नियंत्रण के लिए व्यापार करती हैं। यहां तक कि अगर वे बढ़ती हैं, तो अपने श्रम का पूरा फल चाहती हैं। वे अपने हित में काम करने के लिए प्रबंधकों के इरादे पर भी अविश्वास करती हैं।”

पिछले साल जारी क्रेडिट सुईस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 108 पब्लिक लिस्टेड कंपनियां हैं, जिन पर मालिकाना अधिकारा परिवारों के पास है। यह चीन और अमेरिका के बाद दुनिया में तीसरी सबसे ज्यादा कंपनियां हैं। हाल ही में, रिपोर्ट आई है कि भारत में कुछ कंपनियां खुद को डी-लिस्ट करना चाहती हैं।

यह परिवार के बाहर हितधारकों को नियंत्रित करने के कारण है। सैनानी के अनुसार इसके अलावा अन्य कारणों में कई मझोले फैमिली बिजनेस को प्राइवेट ही बनाए रखना पसंद करते हैं और दबाव और खींचतान को सामने लाना नहीं चाहते। जहां लिस्टेंड कंपनियों को हर तिमाही में नतीजे दिखाने होते हैं, जबकि फैमिली बिजनेस के मामले में ऐसा नहीं करना पड़ता है। सलाहकार कहते हैं, “इसलिए उनके फैसले दीर्घकालिक हितों से प्रेरित होते हैं।”

नई चुनौतियों और व्यवसायों पर उनके प्रभाव को देखते हुए, फैमिली बिजनेस वाली कई कंपनियां बाहरी लोगों की मदद ले रही हैं। इससे यहां अधिक पेशेवर मैनेजेर्स की मांग पैदा हो रही है। हालांकि, कई बार उन्हें बिना वजह भी सवालों का जवाब देना पड़ता है।

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