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नई पीढ़ी की बदलती पसंद ने खड़ा कर दिया है नया बाजार

वेंचर कैपिटलिस्ट अब एफएमसीजी स्टार्टअप में कर रहे हैं ज्यादा निवेश
बेहतर की तलाशः युवाओं की पसंद बदलने से उनके चयन का दायरा भी बदल रहा है

आज से चार साल पहले वरुण अलघ और उनकी पत्नी को पहली बार माता-पिता बनने का सुख मिला था। वह उस वक्त को याद करते हुए कहते हैं कि उस समय वह और उनकी पत्नी कोई भी बच्चों का प्रोडक्ट खरीदते थे, तो काफी बारीकी से उसकी पड़ताल करते थे। साथ ही कई बार उन्हें इस बात की निराशा भी होती थी, कि वह जैसा प्रोडक्ट अपने बच्चे के लिए चाहते हैं वैसा नहीं मिल पा रहा है। आज चार साल बाद वरुण ने उस जरूरत को बिजनेस के रूप में स्थापित कर लिया है। वह ‘मम्माअर्थ’ नाम से अपना बेबी केयर ब्रांड चलाते हैं। उनकी कंपनी इस समय करीब 50 प्रमाणित उत्पाद बेच रही है, जिसके तहत वे लोशन, वॉशेज, शैंपू, डायपर रैश क्रीम की बिक्री करते हैं। साथ ही, ये उत्पाद पूरी तरह से टॉक्सिन फ्री भी हैं। जिस तरह से भारत की युवा पीढ़ी की पसंद बदल रही है और उसके सेलेक्शन का दायरा बढ़ा है, उनके लिए ये उत्पाद काफी उपयोगी हैं। नई पीढ़ी को अगर उसके मन के मुताबिक उत्पाद मिलें तो वह पैसे खर्च करने में भी पीछे नहीं रहती है। फिलहाल, उनका बेस्ट सेलिंग उत्पाद मस्कीटो  रिपेलेंट, 10 साल एवं उससे छोटे बच्चों के लिए फ्लोराइड मुक्त टूथपेस्ट और शिशुओं के लिए टमी रोल ऑन हैं। बिजनेस स्कूल से स्नातक के बाद एफएमसीजी कंपनियों में काम कर चुके 35 वर्षीय वरुण कहते हैं, “उपभोक्ताओं का एक बड़ा वर्ग साफ तौर पर स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहतर और प्राकृतिक उत्पादों का विकल्प तलाश रहा है और उन लोगों तक हमें पहुंचने की जरूरत है। बेशक, यह हमारे लिए एक बड़ा कदम था।”

मम्माअर्थ की कहानी संगठित रिटेल और ई-कॉमर्स सेक्टर में हो रहे बड़े बदलाव को बयां करती है, जिसके जरिए युवा कारोबारी एफएमसीजी सेक्टर की दिग्गज कंपनियों को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। निवेश करने के लिए प्राइवेट इक्विटी फंड की पहली पसंद हमेशा से बड़ी कंपनियां रही हैं। लेकिन अब बदलते परिदृश्य में वेंचर कैपिटलिस्ट टेक कंपनियों के अलावा दूसरी कंपनियों में भी निवेश करने को तैयार हैं।

वरुण बताते हैं कि निश्चित रूप से दस साल पहले की स्थिति ऐसी तेजी से विकास करने वाली कंपनियों के लिए मुफीद नहीं थी। तब यह निश्चित  फॉर्मूले की तरह गुड़गांव के एक स्थानीय स्टार्ट अप ब्रांड की तरह था। “आज यह सब पूरी तरह से बदल गया है...गुड़गांव से बाहर बैठकर हम देश के 150 से अधिक शहरों में कारोबार करने में सक्षम हैं।” मम्माअर्थ ने हाल में स्टेलारिस वेंचर पार्टनर्स जैसे कुछ निवेशकों से 40 लाख डॉलर की फंडिंग जुटाई है।

पिछले तीन साल में पेपरबोट, एपिगेमिया, लिकिअस, योग बार और मम्माअर्थ में निवेश करने वाले निवेशक कंवलजीत सिंह कहते हैं, “मुझे लगता है कि अगले एक-दो दशक में यह देखना बेहद दिलचस्प होगा कि भारत कैसे इस तरह के रोचक ब्रांडों के लिए हॉटबेड बनता है। मुझे एहसास हुआ कि ब्रांड का यह बाजार नई पीढ़ी के लिए तैयार हो रहा है।

तभी मैंने आगे बढ़ने का फैसला किया और शुरुआती दौर में ही फंड जुटाया, जो इस क्षेत्र पर ही केंद्रित था।” सिंह बताते हैं कि उन्होंने 2015 में 340 करोड़ रुपये के फंड से ‘फायरसाइड वेंचर्स’ की शुरुआत की और अभी तक दर्जनों उपभोक्ता ब्रांडों में निवेश कर चुके हैं। सिंह कहते हैं, “वास्तव में बाजार में ब्रांडों की संख्या ज्यादा नहीं है। मेरा मतलब है कि आप सिंगापुर या थाईलैंड या इंडोनेशिया के सुपर मार्केट में जाइए और देखिए। फिर यूरोप और अमेरिका में आपको ब्रांडों की भरमार मिल जाएगी, जो कि भारत में फिलहाल उनके आसपास भी नहीं दिखता है।”

टेक रॉ प्रेसरी 2013 से ही कोल्ड प्रेस्ड फल और सब्जियों के जूस बेच रही है और हर साल इसकी आय दोगुनी हो रही है। दोहा और अबूधाबी के अलावा इस ब्रांड की बिक्री देश के 14 शहरों में लगभग 2,000 जगहों पर होती है। इसके संस्थापक अनुज राकयान कहते हैं, “अभी भी कई आधुनिक बिजनेस के अवसर हैं।” फिलहाल भारत के शीर्ष 12-15 शहर मुंबई स्थित कंपनियों की वृद्धि दर को बढ़ा रहे हैं और उनका प्राथमिक उपभोक्ता लक्ष्य 18-40 वर्ष की आयु वाला वर्ग है। राकयान कहते हैं, “सबसे पहले, यह कैलोरी, वसा और चीनी का मामला था। अब आर्गेनिक का दौर है। या यूं कहें कि कौन से उत्पाद प्रिजरवेटिव या चीनी से मुक्त हैं।

इसलिए उपभोक्ता पूछता है: क्या आपका सामान वैसा है, जैसे मैं घर पर बनाता या बनाती हूं? और, घर पर जो कुछ भी मैं बनाता हूं क्या वह उसकी तरह स्वच्छ और स्वास्‍थ्यवर्धक और पौष्टिक है? हमने पिछले 4-5 सालों में ऐसे बड़े बदलाव देखे हैं।” रॉ प्रेसरी की नजर अब बादाम के दूध पर है और डेयरी उत्पादों के क्षेत्र में कदम रखना चाहता है।

पॉपकॉर्न बनाने वाली कंपनी पॉपीकॉर्न, सैनेटरी नैपकिन ब्रांड नुआ वुमन सहित कई ब्रांड में निवेश करने वाली कंपनी केई कैपिटल के प्रबंध निदेशक नवीन होनागुड़ी कहते हैं, “हर साल उपभोक्ता ब्रांड में  वेंचर कैपिटलिस्ट का निवेश बढ़ रहा है।  पिछले दो वर्षों से काय कैपिटल हर साल दो ब्रांड में निवेश करता आ रहा है। वह कहते हैं, “हम यह रफ्तार बनाए रखने की उम्मीद करते है।” उनका कहना है कि मुद्दा यह है कि ऐसी कंपनियां बनाई जा रही हैं, जो पूरी तरह से आधुनिक व्यापार के लिए उपयुक्त हैं और आमतौर पर इनकी कीमत सामान्य किराना स्टोर्स की तुलना में थोड़ी अधिक होती हैं। “आज आधुनिक व्यापार और सुविधा स्टोर को ध्यान में रखते हुए एक बड़ा ब्रांड बनाना मुमकिन है। 10 साल पहले ऐसा संभव नहीं था।”

होनागुड़ी कहते हैं कि उनकी फर्म आमतौर पर सबसे पहले तीन से चार करोड़ रुपये निवेश करती है। फिर समय के साथ यह राशि 18-20 करोड़ रुपये तक पहुंच जाती है। काय कैपिटल फिलहाल 53 मिलियन डॉलर का फंड निवेश कर रही है।

सुला वाइन बनाने वाली कंपनी और सत्यपॉल डिजाइन जैसे उपभोक्ता ब्रांड में शुरुआती निवेश करने वाली सामा कैपिटल के सह-संस्थापक ऐश लिलानी कहते हैं कि वह निवेश के मामले में अनुशासन बनाए रखने को लेकर बिलकुल स्पष्ट हैं। वह कहते हैं, “हम सिर्फ इसलिए इसके पीछे नहीं हैं कि लोग इसे सही मानते हैं।” सामा ने रॉ प्रेसरी, गोवा ब्रीओंइंग कंपनी, प्राकृतिक टॉक्सिन फ्री  शिशु उत्पाद फर्म द मॉम्स कंपनी, सॉस निर्माता वीबा और चाय प्वाइंट जैसी फर्म में निवेश किया है। इसने इस साल 100 मिलियन डॉलर का फंड जुटाया है। लिलानी कहते हैं, “ऐसा नहीं है कि हम अधिक कंपनियों में निवेश करने जा रहे हैं, हमने अभी भी उतनी ही कंपनियों में निवेश किया है, जितना हमने पिछली बार किया था।

एकमात्र अंतर यह है कि हमने सीखा है कि जब आप एफएमसीजी कंपनियों में निवेश करते हैं, तो पहले तीन वर्षों में आप 2-3 कंपनियों की पहचान करते हैं, जो बहुत तेजी से वृद्धि कर रही हैं और उनमें एक में तेजी से कामयाब होने की संभावना होती है। इसलिए हम उन कंपनियों में दोगुना निवेश करेंगे।” स्टार्टअप कंपनियों पर नजर रखने वाली फर्म ट्रैकसन के अनुसार, इस साल वेंचर कैपिटल फर्म ने भारतीय एफएमसीजी क्षेत्र में 34 राउंड में 152 मिलियन डॉलर का निवेश किया है। जबकि 2017 में उन्होंने 240 मिलियन डॉलर का निवेश किया था। बड़ी एफएमसीजी कंपनियों के साथ निवेश करने से हमेशा दांव सफल होने की उम्मीद रहती है। बाजार के जानकार मारिको पुरुषों के सौंदर्य ब्रांड बियरडू में निवेश करने या प्रताप स्नैक्स की पब्लिक लिस्टिंग में निवेश करना फायदेमंद मानते हैं। कंवलजीत सिंह कहते हैं कि वह अधिकांश बड़ी कंपनियों का अधिग्रहण करने के लिए उसके न्यूनतम आकार और स्केल को देखते हैं। फिर अपनी ताकत से उसे बड़े स्तर तक ले जाते हैं। “एक निवेशक के रूप में मुझे पता है कि मेरे पास एक निश्चित आकार और समय सीमा के भीतर कंपनी से बाहर निकलने की क्षमता है।” उदाहरण के तौर पर विदेशों में पिछले 7-8 सालों से उपभोक्ता ब्रांड का काफी विस्तार हुआ है। मम्माअर्थ के वरुण अलघ कहते हैं, “निवेशकों ने विकसित बाजार में स्पष्ट रूप से एग्जिट देखा है। इसी से उन्हें भरोसा मिला है।”

हालांकि, अलघ के पास अभी बहुत सारे काम हैं। वह कहते हैं, “हम फिलहाल 500 स्टोर्स में पहले से मौजूद हैं और अगले एक साल में हमारा इरादा 5,000 स्टोर्स तक पहुंचने का है। परिवारों के पास अब कम बच्चे हैं और उनकी बढ़ती आय से पता चलता है कि वे बच्चों पर समय और पैसे अधिक खर्च कर रहे हैं।” वह कहते हैं, “ऐसा न सिर्फ उच्च आय वाले वर्ग में हुआ है, बल्कि समाज के निचले स्तर पर भी हुआ है। इसलिए वे अपने बच्चों के लिए बेहतर विकल्प मुहैया कराना चाहते हैं।” लेकिन इस तरह की चीजें हर क्षेत्र में हो रही हैं। यहां तक कि बियर में भी। एक हफ्ता या उससे पहले की बात है जब, सूरज शेनई की गोवा ब्रूविंग कंपनी ने बोतलबंद क्राफ्ट बियर गोवा के सुपर मार्केट में लॉन्च की तो वह पांच दिनों में ही बिक गई। शेनई कहते हैं, “हमें वास्तव में ऐसी प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं थी।”

समय के साथ, वह इसे देश के अन्य बड़े शहरों में बेचने के बारे में सोच रहे हैं। वह कहते हैं, “अभी हमारा ध्यान यह सुनिश्चित करने पर है कि हम हर ब्रू के साथ जो बियर बनाते हैं, उसकी गुणवत्ता अच्छी बनी रहे।” रॉ प्रेसरी के अनुज राकयान कहते हैं, “लोग तरक्की कर रहे हैं, कीमत के हिसाब से मूल्यों का बढ़ना समझ में आता है।” उद्यमियों का तर्क होगा कि अलग-अलग समय पर कीमतों को लेकर जागरूक भारतीय उपभोक्ता मूल्यों को लेकर भी जागरूक होंगे। अच्छी बात है कि निवेशक इसे समझते हैं। यह बस शुरुआत भर है। 

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