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देस हो या परदेस, बेकरी वाला बादशाह

मैनेजमेंट गुरु एम. महादेवन के नुस्खों ने बाजार में जमाई ऐसी धाक कि दुनिया भर के दो सौ रेस्तरां से जुड़ गया हॉट ब्रेड्स का नाम
हॉट ब्रेड्स ः एम. महादेवन ने 1989 में पिज्जा उपलब्ध कराने वाली बेकरी से की शुरुआत

परंपरागत नारियल चटनी और सांभर के साथ नरम और स्वादिष्ट डोसा अब भी एम. महादेवन का पसंदीदा खाना है, भले ही यह रेस्तरां कारोबारी कई तरह के व्यंजनों की अनोखी शैली के लिए देश ही नहीं, विदेश में भी अपनी धाक जमा रहा है।

दुबई में जब वे बेकरी चेन हॉट ब्रेड्स का आउटलेट खोलने जा रहे थे तो केवल एक साउथ इंडियन रेस्तरां ही था जहां डोसा और सांभर मिलता था और वो भी उडुपी शैली में जो कर्नाटक में ज्यादा पसंद किया जाता है। इसका मतलब है कि सांबर न केवल पतला था, बल्कि गुड़ के कारण मीठा भी था, जो तमिलनाडु के गाढ़े गरमागरम मसालेदार सांभर से काफी अलग था। उन्होंने बताया, “निजी फायदे की सोच को पीछे छोड़ जब मैंने दुबई में आउटलेट सर्वनन भवन खोलने का फैसला किया तो लोगों ने उदासीनता दिखाई। लेकिन, मेरे पसंदीदा डोसा के साथ परंपरागत चटनी और सांभर मिलते ही सर्वणन भवन को पहली बार अंतरराष्ट्रीय आधार मिला। रेस्तरां इतना सफल रहा कि जल्द ही पूरे मध्य-पूर्व और अमेरिका से डिमांड आने लगे।”

1989 में चेन्नै में पिज्जा मुहैया कराने वाली बेकरी से हॉट ब्रेड्स (एचबी) की सफल शुरुआत हुई और इतनी तेजी से इसका विस्तार हुआ कि आज ‘हॉट ब्रेड्स’ महादेवन के नाम का पर्याय बन चुका है। फिलहाल भारत में एचबी के 30 और विदेश में 22 आउटलेट हैं। मार्केटिंग और मैनेजटमेंट के पूर्व प्रोफेसर महादेवन (63) के करीब 285 पाटर्नर हैं। दुनिया भर में करीब 200 रेस्तरां से ‘हॉट ब्रेड्स’ का नाम जुड़ा हुआ है।  

महादेवन की प्रभावशली कामयाबी का राज उनकी विविध पाक शैली में छिपा है। चाहे पूर्वोत्तर की प्राचीन पाक शैली पर आधारित भोजन परोसने वाले कास्केड, बेंजरोंगे, टेपन और वांग्स किचन जैसे रेस्तरां हों, साउथ इंडियन सीफूड परोसने वाली मेरिना, केरल के व्यंजन का स्वाद मुहैया कराने वाली के लिए एंते केरलम, बॉम्बे ब्रैसरी और कॉपर चिमनी के उत्तर भारतीय व्यंजन, तमिल शाकाहारी व्यंजन परोसने वाला अंतरराष्ट्रीय रेस्तरां अंजापार, कैलाश पर्बत का सिंधी खाना या फिर सर्वणन भवन का पारंपरिक दक्षिण भारतीय शाकाहारी भोजन। चेन्नई का पहला रेस्तरां-बार जारा भी 90 के दशक में उन्होंने ही शुरू किया था।

इस कारोबार को शुरू करने का आइडिया कैसे आया? महादेवन ने बताया, “असल में मैंने जरूरत को भांप लिया। बाजार की जरूरतों ने मुझे रास्ता दिखाया।” कुछ सुझाव ऐसे होते हैं जो अमूमन कर्मचारियों से आपको मिलते हैं। जब उन्होंने पॉश इलाके पोएस गार्डेन में फ्रेंच रेस्तरां खोला तो शराब परोसने का लाइसेंस नहीं मिला। उन्होंने बताया, “फ्रेंच रेस्तरां में शराब नहीं परोसा जाना अजीब था। इसलिए मेरे शेफ ने सुझाव दिया, ‘क्यों न केरल का खाना परोसा जाए’ और एंते केरलम पैदा हुआ। यहां तक कि ओणम के दौरान शुद्ध शाकाहारी व्यंजन बनाने के लिए केरल के उन्नीकृष्णन नंबूदिरी भी मिल गए। इस खाने की एडवांस बुकिंग पहले ही दिन बंद हो जाती है। केरल का पारंपरिक खाना पकाने के लिए केवल एक जरूरत थी- सप्ताह भर के लिए अलग रसोई और बर्तन। साल के अन्य दिनों में यह खाना उपलब्ध नहीं होने के बावजूद हमने ऐसा किया।”

इसी तरह दुबई में जिस जगह वे हॉट ब्रेड्स का पहला आउटलेट खोलने वाले थे, उसके सामने की पार्किंग एक इमारत बनाने के लिए ले ली गई। महादेवन ने देखा कि असवाक सुपरमार्केट उस जगह के ठीक सामने है। उन्होंने प्रमोटर को बेकरी खोलने के लिए करीब 200 वर्ग फीट किराए पर देने के लिए यह कहते हुए राजी किया कि उनके ग्राहक ताजा बेक्ड ब्रेड भी खरीद पाएंगे। आज दुबई में असवाक चेन में हॉट ब्रेड्स के 16 आउटलेट हैं।

उनकी नवीनतम शुरुआत राइटर्स कैफे पुनर्विचार और पुनर्निर्माण को प्रोत्साहित करने की समझ की उपज है। यह कैफे ऐतिहासिक सत्यम सिनेमाज के करीब है और चेन्नै के सबसे पुराने बुक स्टोर हिगिनबोथम्स में इसकी शाखा है। दीवारें किताबों से सजी हैं और टेबल पर युवाओं का जमावड़ा लगा रहता है जो बातचीत या लैपटॉप पर अपना प्रोजेक्ट पूरा करने में मशगूल रहते हैं। किताब और कॉफी के सफल कॉम्बो की ओर इशारा करते हुए महादेवन बताते हैं, “उन्हें यहां देर तक बैठने की छूट होती है। वे मनोरम और दोस्ताना माहौल का लुत्फ उठाते हैं। हम कॉफी, पिज्जा और पेस्ट्री बेचते हैं, जबकि हिगिनबोथम्स की किताबों और स्टेशनरी की मासिक बिक्री पांच लाख रुपये तक पहुंच चुकी है।”

महादेवन का सामाजिक दायरा बढ़ाने में भी राइटर्स कैफे एक महत्वपूर्ण पड़ाव बनकर उभरा है। तेजाब हमले और आग से झुलसी 21 महिलाएं यहां काम करती हैं। एक विशेष प्रशिक्षण केंद्र में बेकिंग और आइसक्रीम बनाने की ट्रेनिंग इन्हें मुफ्त में स्टाइपेंड के साथ दी गई और उसके बाद उन्हें राइटर्स कैफे में नौकरी मिली। यहां तक कि हिगिनबोथम्स के मुनाफे में उनका जो हिस्सा है वह हॉस्टल फीस, उनके बच्चों की फीस और स्वास्थ्य की देखभाल पर खर्च किया जाता है।

एक दशक पहले स्कूल की पढ़ाई बीच में छोड़ने वाले बच्चों को बेकिंग का प्रशिक्षण देने के लिए महादेवन ने चेन्नै कॉरपोरेशन के साथ मिलकर निगम की दुकानों में ‘विनर्स’ बेकरी की शुरुआत की। वे बताते हैं, “इन बच्चों को न केवल रोजगार मिल रहा है बल्कि कौशल भी प्रदान किया जाता है। वे किसी दूसरे रेस्तरां या पिज्जा आउटलेट में भी जाकर काम कर सकते हैं। राइटर्स कैफे की महिला कर्मियों को भी यह आजादी है। यदि कोई होटल उनके हुनर का लाभ लेने के लिए ज्यादा पैसा दे तो वे वहां काम करने के लिए जा सकती हैं।”

महादेवन का फलसफा साधारण है- भारत से बाहर नया आउटलेट शुरू करने में चाहे सर्वणन भवन, अंजापार या कैलाश पर्बत हो- वे अपनी पूंजी लगाने के बाद ही साझेदारी करते हैं। वे कहते हैं, “इससे लोगों में बिजनेस के सफल होने का भरोसा पैदा होता है। और जब बाजार में विस्तार करना चाहते हैं तो वे अपने दोस्तों या रिश्तेदारों को साझेदारी के लिए लेकर मेरे पास आते हैं।” महादेवन ने बताया कि नए रेस्तरां का कारोबार जमने तक वे सलाह देते हैं। वे कहते हैं, “फूड बिजनेस रिमोट कंट्रोल से नहीं चलाया जा सकता।” यानी, जब से रेस्तरां कारोबारी के तौर पर उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है, वे पूरी दुनिया में घूम-घूम कर यह सुनिश्चित करने में लगे हैं कि उनके रेस्तरां में लोगों को स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्द्धक खाना मिले। उन्होंने बताया, “जब मैं इन जगहों पर जाकर खाने को चखता हूं तो हमेशा उसके लिए जिम्मेदार व्यक्ति को ही प्रतिक्रिया देता हूं। उसके पीछे कुछ नहीं कहता। यही कारण है कि ज्यादातर अच्छे शेफ मेरे साथ दशकों से हैं। जिस इंडस्ट्री में इतनी प्रतिस्पर्धा हो वहां यह एक बड़ी उपलब्धि है।”

खुद के साथ ही प्रतिस्पर्धा में भी महादेवन का यकीन है। हॉट ब्रेड्स का जमा-जमाया कारोबार होने के बावजूद उन्होंने एक और बेकरी चेन फ्रेंच लोफ शुरू की है। उत्कृष्टता की तलाश को मूलमंत्र बताते हुए वे कहते हैं, “बेल्जियम चॉकलेट जैसे पदार्थों के साथ हम उत्पादों को बेहतर बनाना चाहते हैं, लेकिन इसके लिए हॉट ब्रेड्स की कीमत नहीं बढ़ा सकते। इसलिए फ्रेंच लोफ ज्यादा कीमतों के साथ शुरू की है। बाजार भी बढ़ रहा था और कुछेक अन्य ब्रांड्स के लिए जगह भी थी, इसलिए कोई अन्य शुरुआत करे उससे पहले हमने खुद से मुकाबले का फैसला किया।”

इडली को नया रूप देने वाला

दक्षिण भारतीय इडली को संजीदगी से लेते हैं। सफेद, गोलाकार, गरम और नरम इडली के साथ चटनी, सांभर और उस पर तिल के तेल से सना मसालेदार मिर्च पाउडर। आर.यू. श्रीनिवास की कोशिश से पहले इडली की यही पहचान थी।

चेन्नै में एक बीपीओ का सीईओ रहते 120 दिन से अधिक की विदेश यात्रा करने वाले श्रीनिवास (52) इडली के लिए परेशान रहे। उन्होंने बताया, “बिजनेस क्लास में यात्रा के दौरान भी मैं उन्हीं चीजों को खाने के लिए मजबूर था जो एयरलाइंस मुहैया कराती थी। एक बार दिल्ली-चेन्नै एयर इंडिया की उड़ान के दौरान मुझे लच्छा पराठा के साथ नवरत्न कोरमा दिया गया। दक्षिण भारतीय स्वाद की अभ्यस्त जीभ की पीड़ा का आप अनुमान लगा सकते हैं।”

इसने उन्हें डिब्बाबंद ताजा भोजन की संभावना टटोलने के लिए प्रेरित किया। इसके लिए, श्रीनिवास ने अपनी दादी मां के उस नुस्खे को आजमाया जिसका इस्तेमाल वह पारिवारिक यात्राओं के दौरान करती थीं। दर्जनों इडली पर मसालेदार मिर्च पाउडर और तिल के तेल के पेस्ट की मोटी लेप लगाकर उसे केले के पत्ते और अखबारों में लपेट देना। इससे इडली एक दिन और कभी-कभी दो दिन तक भी खराब नहीं होती थी।

इस नुस्खे को आजमाने के बाद श्रीनिवास ने पाया कि गोल इडली की पैकिंग मुनासिब नहीं है। उन्होंने इसका रूप बदलने का फैसला किया और आयताकार इडली सामने आई। ऐसे छह इडली को स्कूल ले जाने वाले कैमलिन ज्योमिट्री बॉक्स के आकार वाले कार्डबोर्ड में रखा जा सकता है। बॉक्स में रखे सामान को लेकर उत्सुकता पैदा करने के लिए उन्होंने इसे ‘मद्रास बार्स’ नाम दिया और 2014 में आइटी कंपनियों की कैंटीन और एयरपोर्ट फूड काउंटर के कुछ आउटलेट से इसकी शुरुआत की।

जब हिंदू के मेट्रो प्लस में उनकी इडली की कहानी छपी तो परपंरावादियों ने इसे इडली के साथ खिलवाड़ बताते हुए विरोध किया। लेकिन, सुविधाजनक होने के कारण गृहणियों को यह भा गई, क्योंकि उन्हें स्कूल बैग में अब केवल मद्रास बार्स का एक डब्बा रखने की जरूरत थी।

आज छह इडली वाला मद्रास बार्स का एक पैक 90 रुपये में मिलता है। जब श्रीनिवास ने देखा कि रेल यात्रियों को यह पसंद आ रही है तो उन्होंने छोटे साइज की पांच इडली का 25 रुपये का पैक शुरू किया। मद्रास बार्स के डिब्बे में प्रिजरवेटिव्स का इस्तेमाल नहीं करने को लेकर श्रीनिवास की सोच बिलकुल साफ थी। उन्होंने तिल के तेल के पतले पेस्ट और मिर्च पाउडर का प्रिजरवेटिव के तौर पर इस्तेमाल किया। इस तरह की इडली गैर-वातानुकूलित वातावरण (चाय की दुकान) में यदि एक दिन भी खराब नहीं होती तो वह काफी था, क्योंकि वे हर दिन फ्रेश इडली बनाकर बाजार में भेजने में सक्षम थे। “खुदरा विक्रेताओं से बचा हुआ माल वापस लेकर उसे फेंक देते थे।”

ओकलाहोमा स्टेट यूनिवर्सिटी से एमबीए श्रीनिवास ने बताया कि वे दक्षिण भारतीय भोजन को अन्य एफएमसीजी उत्पादों की तरह आसानी से उपलब्ध कराना चाहते हैं। इसमें एकमात्र बड़ी चुनौती इडली को ज्यादा समय तक ठीक बनाए रखना है। वे कहते हैं, “मैं प्रिजरवेटिव के इस्तेमाल के शॉर्टकर्ट के बजाय पैकेजिंग टेक्नोलॉजी में निवेश करना चाहता हूं।” उन्होंने भोजन को संरक्षित करने के लिए नवीनतम रीटॉर्ट प्रक्रिया आजमाया (पेस्टराइजेशन की तरह), लेकिन इससे इडली का टेक्सचर प्रभावित हो गया। फिर भी प्रयोग करना उन्होंने छोड़ा नहीं है।

मित्रों और परिवार से मिले 2.5 करोड़ रुपये की पूंजी से उनकी इडली फैक्ट्री केवल 15 कर्मचारियों के साथ माइलापोर के एक घर से चलती है। श्रीनिवास ने बताया, “एक दिन में हम 4,000 इडली बनाते हैं। पैक कर स्विगी ऑर्डर से उसकी आपूर्ति करते हैं। हमारा कारोबार अभी भी चेन्नै तक सीमित है। इसका विस्तार करने के लिए इडली को ज्यादा समय तक ठीक रखने का नुस्खा खोजने की जरूरत है। इसके लिए मुझे वहां पहुंचना होगा जहां कोई दादी मां नहीं पहुंचीं।”

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