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आस्था के आसरे पहाड़ी रणनीति

लोकसभा चुनावों में प्रदेश में कांग्रेस की कमजोरी का फायदा उठाने की कोशिश में भाजपा, विकास के बजाय आस्था के जरिए चुनावी बैतरणी पार करने की मुहिम पर जोर, कई पुराने नेता बदले जाएंगे
सियासी संदेशः देहरादून में पार्टी के कार्यक्रम के दौरान भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह (बीच में)

आगामी लोकसभा चुनाव में पांच लोकसभा सीटों वाले उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य से भाजपा देश भर में धर्म के नाम पर बड़ा संदेश देने की तैयारी में है। विकास के एजेंडे को आस्था के पथ पर दौड़ाने के लिए ही केदारनाथ धाम पुनर्निर्माण का काम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में है। हर महीने होने वाली वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में प्रधानमंत्री की दिलचस्पी केदारनाथ पुनर्निर्माण की प्रगति में जरूर रहती है। केंद्र ने इसके लिए भारी भरकम धनराशि का प्रावधान तो किया ही है, इसके अलावा जिंदल ग्रुप, ओएनजीसी जैसे बड़े कॉरपोरेट अपने सीएसआर से केदारनाथ धाम के पुनर्निर्माण के कार्यो में सरकार के साथ कदमताल कर रहे है।

चार धाम (केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री) को जोड़ने और यात्रा सुगम करने के लिए 13 हजार करोड़ रुपये से ऑल वेदर रोड का निर्माण हो रहा है। इसके अलावा 22 हजार करोड़ रुपये के नेशनल प्रोजेक्ट ऋषिकेश-कर्ण प्रयाग रेल लाइन पर काम शुरू हो चुका है। जून में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर प्रधानमंत्री ने देहरादून में योग कार्यक्रम में हिस्सा लिया और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पिछले तीन महीनों में दो बार देहरादून आ चुके हैं। ये गतिविधियां बताती हैं कि उत्तराखंड का राजनीतिक महत्व बढ़ रहा है।

यदि सियासी दमखम की बात की जाए तो इस समय सभी लोकसभा सीटों के लिए भाजपा के पास मजबूत प्रत्याशियों की फौज खड़ी है। लेकिन इतना तय माना जा रहा है कि भाजपा कम से कम तीन सीटों पर प्रत्याशी बदलेगी। ऐसे में बड़े-बड़े धुरंधरों के नाम सामने आ रहे हैं। अगर सीटवार बात करें तो उम्र मसले के कारण पुराने चेहरे की जगह कुछ नए चेहरे अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। इनमें ब्यूरोक्रेट और टेक्नोक्रेट के भी नाम शामिल हैं। 

पौड़ी गढ़वाल लोकसभा सीट से फिलहाल पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री भुवनचंद्र खंडूड़ी सांसद हैं। लेकिन उम्रदराज होने के कारण वह इस बार दौड़ से बाहर होंगे। उनके नजदीकी लोगों का मानना है कि 85 साल की उम्र हो चुकी है और स्वास्थ्य भी साथ नहीं दे रहा है। ऐसे में इस सीट पर कई दिग्गजों के नाम सामने हैं। लेकिन प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के बेटे शौर्य डोभाल की दावेदारी मजबूत मानी जा रही है। उनके समर्थकों को लगता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के पुत्र होने का फायदा उन्हें मिलेगा। इस समय वह अपने इंडिया फाउंडेशन के जरिए क्षेत्र में सक्रिय हैं। इसके अलावा वर्तमान सेनाध्यक्ष बिपिन रावत के नाम की भी पौड़ी से चुनाव लड़ने की अटकलें हैं। हालांकि, रावत के कार्यकाल को खत्म होने में अभी एक साल से भी ज्यादा समय बचा है। पिछले दिनों जब जनरल रावत घर बनाने के लिए पौड़ी जिले में जगह देखने आए तो इन चर्चाओं को और बल मिला। पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री और मौजूदा राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज भी गंभीर दावेदार हैं। वह खुद को राज्य सरकार में फिट महसूस नहीं कर रहे हैं, इसलिए फिर से लोकसभा जाना चाहते हैं।

पौड़ी के बाद नैनीताल लोकसभा सीट सबसे हॉट है। यहां से पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी भाजपा के सांसद हैं। वह करीब दो साल पहले घोषणा कर चुके हैं कि 2019 में सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लेंगे। कोश्यारी इस पर अभी भी कायम हैं। ऐसे में उनकी पसंद माने जाने वाले और खटीमा विधानसभा सीट से दूसरी बार विधायक पुष्कर सिंह धामी प्रबल दावेदार हैं। प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट को भी लोकसभा जाना है, क्योंकि वह मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे। लेकिन चुनाव हारने के बाद वह चूक गए। पूर्व सांसद बलराज पासी भी यहां से चुनाव लड़ना चाहते हैं। धर्म के नाम पर हरिद्वार को भाजपा के लिए बहुत ही मुफीद सीट माना जाता है। अभी वहां से पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ सांसद हैं। उनके समर्थकों का मानना है कि पार्टी उन्हें पौड़ी भेज सकती है। लेकिन हरिद्वार शहर से चौथी बार विधायक और दूसरी बार सरकार में मंत्री मदन कौशिक भी इस बार कोई कसर बाकी नहीं रखना चाहते हैं। उत्तराखंड में केदारनाथ पुनर्निर्माण समेत धार्मिक व विकास की कई परियोजनाओं पर सीधी नजर रखने और दिलचस्पी लेने के कारण पार्टी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भी हरिद्वार से चुनाव लड़ने के कयास लगाए जा रहे हैं।

अल्मोड़ा लोकसभा सीट सुरक्षित है। इस सीट से अजय टम्टा सांसद हैं और केंद्रीय राज्यमंत्री हैं। लेकिन उन्हें ड्रॉप करने को लेकर तमाम चर्चाएं हैं। हालांकि, भगत सिंह कोश्यारी और खंडूड़ी को दरकिनार कर टम्टा को इसलिए मंत्री बनाया गया था कि वह दलित चेहरे के तौर पर पार्टी के भीतर स्थापित होंगे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। ऐसे में इस बार सोमेश्वर से विधायक और उत्तराखंड सरकार में राज्यमंत्री रेखा आर्य को आगे किया जा सकता है।

वहीं, टिहरी से राजघराने की माला राज्यलक्ष्मी शाह सांसद हैं। लेकिन इस बार इस सीट को टिहरी राजघराने की जद से बाहर निकाला जा सकता है। यहां से पार्टी विधायक मुन्ना सिंह चौहान पर दांव खेल सकती है। वह पहले भी बसपा की टिकट पर टिहरी से 2009 में लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं।

पार्टी पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के पुत्र साकेत बहुगुणा को भी मैदान में उतार सकती है। क्योंकि विजय बहुगुणा इस सीट से सांसद रहे हैं और कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आने के बाद उनका राजनीतिक पुनर्वास भी नहीं हुआ है। इसलिए उन्हें साधने के लिए पुत्र साकेत को टिकट दिया जा सकता है।

अगर कांग्रेस की बात करें तो उसके पास हरिद्वार से ले-देकर एक नाम हरीश रावत का ही है। टिहरी से पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय, वर्तमान अध्यक्ष प्रीतम सिंह, प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकान्त धस्माना के नाम दावेदारों की सूची में हैं। पौड़ी गढ़वाल सीट पर पूर्व मंत्री सुरेंद्र सिंह नेगी और राजेंद्र सिंह भंडारी, सुरक्षित अल्मोड़ा से पूर्व सांसद प्रदीप टम्टा और महिला के नाम पर गीता ठाकुर का नाम चल रहा है। लेकिन कांग्रेस में नैनीताल सीट पर लंबी फेहरिस्त है, जिनमें कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत, नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश, पूर्व में तीन बार सांसद रहे केसी सिंह बाबा समेत कई दिग्गज तगड़े दावेदार हैं।

प्रदेश में कांग्रेस की कमजोर हालत को देखते हुए भाजपा को यह भरोसा है कि वह इस बार भी पांचों सीटों पर जीत दर्ज करेगी। उसका यह भरोसा कितना खरा उतरता है, यह तो वक्त ही बताएगा।

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