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किसकी छतरी तले गेमचेंजर

2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में निर्णायक बनकर उभरे छोटे दल, इन्हें साधने के लिए पक्ष-विपक्ष दोनों लगा रहे जोर
कार्यकर्ताओं के साथ निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद

दर्जनों ऐसे दल और संगठन लगभग हर हिस्से में होते हैं जो अपने अकेले दम पर कोई चुनावी सीट शायद न निकाल पाएं या ऐसा कोई करिश्मा कभी-कभार ही दिखा पाते हों, मगर मुख्‍यधारा की बड़ी पार्टियों के उम्मीदवारों की जीत-हार तय करने में अमूमन अहम हो जाते हैं। कांटे की लड़ाइयों में उनकी अहमियत बढ़ जाती है। 2019 में ऐसी ही लड़ाई आसन्‍न है, सो, उनकी पूछ भी बढ़ गई है। उत्तर प्रदेश में 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में भी ऐसे कुछ दल निर्णायक बनकर उभरे थे। अपना दल, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी जैसे दलों, जिनकी खास इलाके और जाति में पैठ है, से गठबंधन कर भाजपा ने इन चुनावों में जबर्दस्त सफलता हासिल की। विपक्षी दलों ने इसी फॉर्मूले को आजमाते हुए गोरखपुर, फूलपुर और कैराना लोकसभा उपचुनाव के दौरान निषाद पार्टी, पीस पार्टी और रालोद को साथ जोड़ा तो भाजपा को शिकस्त झेलनी पड़ी। यही कारण है कि अगले लोकसभा चुनाव से पहले छोटे दलों को नए सिरे से साधने के लिए पक्ष-विपक्ष दोनों जोर लगा रहे हैं।

सपा और बसपा के बीच गठबंधन होने पर साथ आने वाले छोटे दलों को सपा अपने कोटे से सीट देगी। बसपा से गठबंधन नहीं होने पर सपा इन दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी। पीस पार्टी, निषाद पार्टी और अपना दल के कृष्णा पटेल गुट से सपा का गठबंधन करीब-करीब तय माना जा रहा है।

पीस पार्टी के मुखिया डॉ. अयूब ने आउटलुक को बताया, “गोरखपुर उपचुनाव से ही सपा के साथ हमारा गठबंधन चल रहा है। आम चुनावों में पार्टी कितने सीटों पर लड़ेगी और कौन प्रत्याशी होगा यह गठबंधन तय करेगा।” डॉ. अयूब का संतकबीरनगर से चुनाव लड़ना तय माना जा रहा है। वहीं, गोरखपुर से सपा सांसद प्रवीण निषाद का कहना है कि लोकसभा चुनाव में बसपा, सपा, पीस पार्टी, रालोद और निषाद पार्टी का गठबंधन तय है। उन्होंने बताया कि अपने समाज की हिस्सेदारी के आधार पर निषाद पार्टी चार सीटें मांग रही है। अपना दल के राष्ट्रीय प्रवक्ता आरबी सिंह पटेल का कहना है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष कृष्णा पटेल महागठबंधन के कोटे की सीट से चुनाव लड़ेंगी, लेकिन सीट कौन सी होगी, यह अभी तय नहीं है। अगर महागठबंधन नहीं बना तो पार्टी नौ सीटों मिर्जापुर, प्रतापगढ़, फूलपुर, फतेहपुर, राबर्ट्सगंज, सुल्तानपुर, गोंडा, सीतापुर, लखीमपुर खीरी में प्रत्याशी उतारेगी।

वैसे, जातीय समीकरणों के लिहाज से कई सीटों पर गेमचेंजर की भूमिका निभाने वाले छोटे दलों को अमूमन सफलता तभी मिल पाती है जब वे बड़े दल के साथ गठजोड़ करते हैं। 2014 और 2017 के नतीजों से यह साफ है। इन चुनावों से पहले 2012 के विधानसभा चुनाव में 112 छोटे दलों ने किस्मत आजमाई थी। लेकिन, कामयाबी केवल पांच सीटों पर मिली। लोकतांत्रिक कांग्रेस, भारतीय जनशक्ति, जनमोर्चा, राष्ट्रीय स्वाभिमान पार्टी और उत्तर प्रदेश यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट को एक-एक सीट मिली थी। वहीं, आंबेडकर क्रांति दल, आदर्श लोकदल, ऑल इंडिया माइनॉरिटीज फ्रंट, भारतीय नागरिक पार्टी, जनसत्ता पार्टी, विकास पार्टी और मॉडरेट पार्टी जैसे दलों को वोट एक फीसदी से भी कम मिले थे, लेकिन कई सीटों पर बड़े दलों के समीकरण इनके कारण बिगड़ गए।

निषाद पार्टी ः 2013 में गठित निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. संजय निषाद राजनीति में दो दशक से सक्रिय हैं। यूपी में इस जाति की आबादी तीन से चार फीसदी है और 152 विधानसभा सीटों पर इस जाति के मतदाता प्रभावशाली स्थिति में हैं। 2017 के चुनाव में निषाद पार्टी ने पीस पार्टी के साथ गठबंधन कर एक सीट जीती थी। पनियरा, कैम्पियरगंज, सहजनवा, खजनी, भदोही, चंदौली जैसी सीटों पर उसे दस हजार से अधिक वोट मिले थे। डॉ. निषाद खुद गोरखपुर ग्रामीण सीट से चुनाव लड़े, लेकिन 34,869 वोट पाकर हार गए। गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव में सपा के टिकट पर उनके बेटे प्रवीण निषाद चुनाव जीतने में कामयाब रहे। निषाद पार्टी के कार्यकर्ता और समर्थक दर्जनों वॉट्सऐप ग्रुप चलाते हैं। एकलव्य मानव संदेश न्यूज नाम से वेबसाइट और यूट्यूब चैनल चलाया जाता है, जिस पर निषाद समाज की खबरें और संजय निषाद के ‘संदेश’ प्रसारित होते हैं।

अपना दल ः बसपा से अलग होकर डॉ. सोनेलाल पटेल ने 1995 में अपना दल की स्थापना की थी। कुर्मी वोटरों पर अपना दल की पकड़ मानी जाती है। राज्य में कुर्मी करीब पांच फीसदी हैं। पूर्वांचल के देवरिया, कुशीनगर, महाराजगंज, गोरखपुर, संतकबीरनगर, सिद्धार्थनगर, बस्ती, वाराणसी, मिर्जापुर, प्रतापगढ़, फूलपुर, फतेहपुर, राबर्ट्सगंज, सुल्तानपुर, गोंडा, सीतापुर, लखीमपुर खीरी समेत कई जिलों में जातिगत आधार पर अपना दल की पकड़ मजबूत है। फिलहाल अपना दल पर दावे को लेकर सोनेलाल पटेल की पत्नी और राष्ट्रीय अध्यक्ष कृष्णा पटेल और अपना दल (एस) की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल के बीच अदालत में जंग चल रही है।

पीस पार्टी ः पीस पार्टी की स्थापना फरवरी 2008 में पेशे से सर्जन डॉ. अयूब ने की थी। पिछड़े मुसलमानों को लेकर बनाई गई इस पार्टी की गोरखपुर और बस्ती मंडल में कई सीटों पर अच्छी पकड़ है। पार्टी ने पहली बार 2009 में लोकसभा चुनाव लड़ा। इक्कीस सीटों पर उम्मीदवार उतारे, जिनमें से कई 75 हजार से एक लाख तक वोट लाने में सफल रहे। 2012 में अपना दल के साथ गठबंधन कर विधानसभा का चुनाव लड़ा और चार सीटों पर पीस पार्टी को जीत मिली। बीते साल विधानसभा चुनाव में एक फीसदी से भी कम वोट मिले और पार्टी का खाता नहीं खुला। गोरखपुर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में पार्टी ने सपा के प्रत्याशी का समर्थन किया था।

भीम आर्मी ः सहारनपुर में जातीय हिंसा से चर्चा में आए भीम आर्मी का गठन 2015 में दलितों के हितों की रक्षा और दलित समुदाय के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने के मकसद से किया गया। संगठन के सहारनपुर, मुजफ्फरनगर और बिजनौर जिले में कई स्कूल चल रहे हैं। पश्चिमी यूपी के सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, उत्तराखंड के हरिद्वार समेत कई जिलों में दलितों में इस संगठन का असर बन रहा है। बीते साल सहारनपुर में हुए जातिगत संघर्ष के बाद से जेल में बंद भीम आर्मी के अध्यक्ष चंद्रशेखर उर्फ रावण को हाल ही में राज्य सरकार ने रिहा किया है। कैराना लोकसभा और नूरपुर विधानसभा उपचुनाव के दौरान चंद्रशेखर ने जेल से पत्र जारी कर महागठबंधन प्रत्याशी के लिए अपील की थी।

शिवपाल में कितना दम

सपा में उपेक्षा से नाराज समाजवादी सेकुलर मोर्चा का गठन करने वाले शिवपाल सिंह यादव भी छोटे दलों को साथ जोड़ने की बात कर रहे हैं। ऐसा हुआ तो सपा को नुकसान उठाना पड़ सकता है। लेकिन, शिवपाल के लिए इतने कम समय में मोर्चे को जिला और बूथ स्तर तक पहुंचाना आसान नहीं होगा।

भाजपा भी लेगी साथ

भाजपा ने अपना दल से गठबंधन कर 2014 का चुनाव लड़ा। 2017 में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (भासपा) सहित कुछ और छोटे दलों को साथ जोड़ा। फिलहाल, अपना दल (एस) और भासपा उसके साथ हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय ने बताया कि कुछ और छोटे दलों के साथ गठबंधन पर विचार किया जा रहा है।

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