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आंकड़ों से आगे भागे महंगाई

आंकड़ों में नदारद मगर जेब पर भारी पड़ती कीमतों का आइए जाने रहस्य, चुनावी वर्ष में तेल के चढ़ने और रुपये के गिरने से आम आदमी पर कितना बोझ बढ़ा
मिला मुद्दाः 10 सितंबर 2018 को विपक्ष का दिल्‍ली में महंगाई विरोधी प्रदर्शन

हर रोज पेट्रोल, डीजल और गैस की बढ़ती कीमतों पर भले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर उनके वित्त मंत्री अरुण जेटली तक चुप्पी साध लें लेकिन यह आम आदमी की जेब में बड़ा छेद करने लगी है। मगर आंकड़ों में सब कुछ जैसे छुप जाता है। इस बीच लगातार टूटता रुपया और भारी गिरावट का गवाह बनता सेंसेक्स कुछ ऐसा कह रहा है जिसे सरकार अनसुना नहीं कर सकती है।

आर्थिक मोर्चे के इस घटनाक्रम के बीच ही दुनिया के सबसे बड़े और निवेश के फैसलों के माहिर माने जाने वाले वारेन बफे की कंपनी गोल्डमैन सॉक्स ने ऐसे ही भारतीय शेयर बाजार की रेटिंग कम नहीं की। उसकी ठोस वजहें हैं जिसके चलते उसने कहा है कि यह बाजार अपनी हैसियत से काफी ऊपर चल रहा है। यही नहीं, फॉरेन पोर्टफोलियो इनवेस्टर्स ने रिकॉर्ड स्तर पर भारतीय स्टॉक्स और डेट मार्केट से पूंजी निकाली है। साथ ही घटते निर्यात और बढ़ते आयात के चलते कुछ माह के भीतर ही देश के विदेशी मुद्रा भंडार में करीब 26 अरब डॉलर की कमी आई है। ऐसी हालत कई बरस बाद नमूदार हुई है।

मगर सरकार के लिए शायद सब कुछ सामान्य है। पेट्रोल के दाम 90 रुपये प्रति लीटर को पार कर गए और सरकार कहती है कि हमारे हाथ में कुछ भी नहीं है। प्रधानमंत्री आर्थिक स्थिति की समीक्षा करते हैं और बैठकों के बाद वित्त मंत्री उनकी संतुष्टि की बात तो करते हैं लेकिन आम आदमी जिस महंगाई से लड़ रहा है उस पर वह कोई बयान ही नहीं देते। यही नहीं, भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में चुनाव जीतने की रणनीति पर तो चर्चा होती है लेकिन तेल की कीमतों और गिरते रुपये जैसे तीखे मसलों पर कोई चर्चा नहीं होती है। सरकार और पार्टी के इस रुख से लोगों की धारणा नहीं बदलती है और वह इस दिक्कत के हल की उम्मीद लगाए बैठा है।

असल में सरकार भूल रही है कि हिंदुस्तान की सियासत में महंगाई ने राजनीतिक मोर्चे पर कई बार उथल-पुथल मचाई है। प्याज की तेज कीमतों ने तो कई कीर्तिमान बनाए हैं। हालांकि, इस बार प्याज तो शांत है लेकिन उसकी जगह पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस ने ले ली है। इसलिए कहा जा रहा है कि कहीं ये सब सरकार के लिए प्याज मोमेंट तो नहीं बन जाएंगे। दिलचस्प हकीकत यह रही है कि जिस पार्टी या गठजोड़ की सरकार को प्याज की बुरी नजर लग जाती है, उसके लिए लंबे समय तक सत्ता नसीब नहीं होती। करीब चार दशक पहले 1980 में केंद्र की सत्ता में इंदिरा गांधी की वापसी में प्याज की बढ़ती कीमतों ने बड़ी भूमिका निभाई थी और विपक्ष लंबे समय तक वापसी नहीं कर पाया था। फिर दिल्ली में सुषमा स्वराज की अगुआई में 1998 में भाजपा की सरकार को प्याज के आंसू ने ऐसे रुलाया कि वह आज तक लौट नहीं पाई। ऐसी और भी सियासी मिसालें हैं।  

लेकिन इस सरकार के लिए सुकून की बात है कि प्याज की कीमतें तो फिलहाल कुछ काबू में हैं। ज्यादातर दूसरे खाद्य पदार्थों की कीमतें भी बहुत हद तक स्थिर बनी हुई हैं। तो, फिर आम आदमी के पसीने क्यों छूट रहे हैं? वह क्या है जो उसकी जेब खाली कर रहा है और विपक्ष को हमलावर बनने का मुद्दा थमा रहा है? क्यों तमाम बड़े अर्थशास्‍त्री कहने लगे हैं कि अगर पेट्रोल डीजल के दाम इसी तरह बढ़ते रहे तो यह मोदी सरकार का प्याज मोमेंट साबित हो सकता है?

इसमें दो राय नहीं कि थोक मूल्य सूचकांक (डब्लूपीआइ) या खुदरा मूल्य सूचकांक (सीपीआइ) के आंकड़े बता रहे हैं कि महंगाई काबू में है, बल्कि इन पर यकीन करें तो कुछ कमी ही आई है। अभी हाल में आए आंकड़े बताते हैं कि खुदरा महंगाई दर अगस्त में 3.69 फीसदी के स्तर पर आ गई है। लेकिन ये आंकड़े न्यू इंडिया के इस दौर में भ्रामक तस्वीर पेश करते हैं। अब महंगाई बेचारा प्याज तो देर से लाता है, वह तो अब पेट्रोल-डीजल से आती है। पेट्रोल और खासकर डीजल की चढ़ती कीमतें यातायात महंगा करने लगी हैं जिसका जरूरी जिंसों के दाम पर स्वाभाविक फर्क दिखने लग सकता है। रुपये के टूटने से आयात महंगा होने का भी असर दिखने ही लगा है। इससे आम आदमी की जेब कई मदों में हल्की होने लगी है।

पिछले छह महीने में आपके आने-जाने और बातचीत का खर्च 106 फीसदी, रसोई गैस या दूसरे ईंधन का खर्च 48 फीसदी, पढ़ाई पर खर्च 32 फीसदी, घर की जरूरत की चीजों का खर्च 13 फीसदी, इलाज का खर्च 11 फीसदी तक बढ़ गया है (ये सभी आंकड़े खुदरा महंगाई के हैं, जिनकी मार्च 2018 से अगस्त 2018 की तुलना की गई है)। फिर भी सरकारी आंकड़े महंगाई घटने का दावा कर रहे हैं।  तो, क्या यह सवाल नहीं उठता है कि ऐसा कैसे हो सकता है? जब हम रोज उस बढ़ती महंगाई को झेल रहे हैं तो, ये आंकड़े कैसे ऐसी बात बता रहे हैं। दरअसल, यही न्यू इंडिया और उसकी चुभती महंगाई है, जो आंकड़ों में बयां नहीं होती है।

तेजी से बढ़ी पेट्रोल-एलपीजी की महंगाई

जुलाई 2018 की थोक महंगाई दर में पेट्रोल और एलपीजी के आंकड़ों में असर भी दिखने लगा है। अगर फरवरी 2018 की थोक महंगाई दर से जुलाई 2018 की तुलना की जाय, तो पेट्रोल 2.52 फीसदी से बढ़कर 20.75 फीसदी पर पहुंच गया है। इसी तरह एलपीजी यानी रसोई गैस 8.50 फीसदी से बढ़कर 31.68 फीसदी तक पहुंच गई है।

बिगड़ रहा है घर का बजट

गाजियाबाद निवासी सोनल शर्मा के अनुसार रसोई गैस महंगी होने से सीधे तौर पर घर का बजट बिगड़ा है। इसके अलावा रोजमर्रा के सामान भी महंगे हुए हैं। इसकी वजह से मिडिल क्लास फैमिली पर सीधा असर हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तुरंत राहत देने के कदम उठाने चाहिए, जिससे कि हमारे घर का बजट संभल सके। पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ने से लोकल ट्रांसपोर्ट पर भी असर पड़ रहा है। हम तो यही चाहते हैं कि अच्छे दिन वास्तव में आएं। जब पड़ोसी देशों में भारत से पेट्रोल सस्ता है, तो अपने देश में पेट्रोल सस्ता क्यों नहीं हो सकता है। नेपाल जहां भारत से पेट्रोल जाता है वहां भी लोगों को सस्ता पेट्रोल मिल रहा है। कुल मिलाकर हम जैसे लोगों को राहत चाहिए। भाजपा ने 2014 में अच्छे दिन लाने का वादा किया था। लेकिन पता नहीं क्यों सरकार राहत नहीं दे रही है। उसे एक्साइज ड्यूटी में कटौती करनी चाहिए। सरकार खुद अपनी जेब भर रही है और हमारी जेब खाली कर रही है। इस तरह की उम्मीद हमें इस सरकार से नहीं थी।

खेती हुई महंगी

नौकरी पेशा की तरह खेती-बाड़ी करने वाले किसान का भी कुछ ऐसा ही हाल है। उत्तर प्रदेश के शामली में रहने वाले किसान जितेंद्र सिंह हुड्डा का कहना है, डीजल की कीमतें लगातार बढ़ने से खेती और उससे जुड़े काम महंगे हो गए हैं। किसान के लिए ट्रैक्टर न केवल खेती में काम आता है बल्कि पशु के चारे और खेती से जुड़े ट्रांसपोर्टेशन में भी काम आता है। डीजल के दाम बढ़ने से हमें जो एमएसपी बढ़ने से थोड़ी उम्मीद बढ़ी थी, वह खत्म हो गई है। इसके अलावा जिन किसानों के पास खुद के ट्रैक्टर नहीं हैं, उनके लिए उसका किराया भी महंगा हो गया है। पिछले 6-7 महीने में किराया 40-50 फीसदी तक बढ़ गया है। कुल मिलाकर हमारे लिए खेती महंगी हो गई है। अभी कुछ दिनों में जुताई का सीजन शुरू होने वाला है। उस समय हम जैसे किसानों पर डीजल की बढ़ोतरी का और बोझ बढ़ेगा। किसान पहले से ही बाजार में फसलों की कीमत कम मिलने से परेशान है। नई महंगाई इस परेशानी को और बढ़ाने वाली है। सरकार को तुरंत कुछ कदम उठाना चाहिए।

नौकरीपेशा की परेशानी

नोएडा में एक एमएनसी में काम करने वाले निरंजन प्रजापति का कहना है कि पहले उनकी कार पर महीने का खर्च 7000-8000 रुपये आता था, जो अब बढ़कर 11000-12000 रुपये पहुंच गया है। प्रजापति के अनुसार इनकम तो बढ़ी नहीं ऐसे में हम दूसरे जरूरी खर्च में कटौती कर रहे हैं, जिससे घर का खर्च चलाया जा सके। सरकार को एक्साइज ड्यूटी घटा कर थोड़ी राहत जरूर देनी चाहिए। अगर एक झटके में केवल आने-जाने का खर्च 40 से 50 फीसदी बढ़ जाएगा तो हमारा पूरा मैनेजमेंट ही डांवाडोल हो जाएगा। सरकार एक्साइज लगाकर अपनी जेब भर रही है। राज्य सरकारें भी वैट के जरिए कमाई कर रही हैं लेकिन हमारे बारे में कोई नहीं सोच रहा। राहत नहीं मिलने से हमें कई ऐसे खर्चों में कटौती करनी पड़ेगी, जिनके बिना गुजारा संभव नहीं है। कुल मिलाकर बड़े शहरों में रहने वाला नौकरीपेशा पिस रहा है। वह इनकम टैक्स भी ईमानदारी से भरता है, साथ ही सरकार द्वारा लगाए गए दूसरे टैक्स भी भरता है। फिर भी उस पर महंगाई की मार जारी रहती है।

फिर आंकड़ों में क्यों नहीं दिखती महंगाई

एक तरफ हर वर्ग बढ़ती महंगाई से परेशान हो रहा है। लेकिन फिर भी हर महीने आने वाले आंकड़ों में वह दिखाई नहीं दे रही है। जनवरी से अगस्त तक खुदरा महंगाई दर लगातार गिर रही है। इस मामले पर वित्त मंत्रालय के पूर्व आर्थिक सलाहकार और वरिष्ठ अर्थशास्‍त्री मोहन गुरुस्वामी का कहना है कि महंगाई तो बढ़ रही है। पर उसका आंकड़ों में असर इसलिए नहीं है क्योंकि खुदरा महंगाई दर आंकने का जो पैमाना है उसमें खाने-पीने की चीजों की हिस्सेदारी ज्यादा है। खुदरा महंगाई की गणना में 54.18 फीसदी हिस्सेदारी खाने-पाने की चीजों की है। जिसकी वजह से दूसरी बढ़ी कीमतों की रियल तस्वीर आंकड़ों में सामने नहीं आ रही है।

पेट्रोल देश में कई जगहों पर 90 रुपये प्रति लीटर का स्तर छूने लगा है। और अगर यह सैकड़ा पर पहुंच जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए क्योंकि मोदी जी चुप हैं और वित्त मंत्री अरुण जेटली का  कहना है कि सरकार को कुछ करने की जरूरत नहीं है। उनके कई मंत्री कह चुके हैं कि पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर सरकार का कोई वश नहीं है।

असल में गड़बड़ाते राजकोषीय वित्तीय संतुलन ने सरकार के हाथ बांध दिए हैं और इसके लिए वह खुद और उसकी नीतियां ही दोषी हैं। कच्चे तेल की बढ़ती वैश्विक कीमत और कमजोर होता रुपया ऐसा दुष्चक्र बना गया है कि सरकार को इस चक्रव्यूह से निकलने का रास्ता नहीं सूझ रहा है। तमाम दावों के बावजूद जीएसटी से राजस्व नहीं बढ़ रहा है और उसके चलते सरकार के हाथ से पेट्रोलियम उत्पादों पर उत्पाद शुल्क कम करने का विकल्प भी निकलता जा रहा है। ऊपर से कमजोर निर्यात और बढ़ते चालू खाता घाटे के चलते रुपया नीचे की ओर जा रहा है। इसका सीधा असर तेल आयात को महंगा कर रहा है। रिजर्व बैंक भी रुपये को बचाने के लिए करीब 26 अरब डॉलर बेच चुका है और यही वजह है कि कई साल में पहली बार विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ने के बजाय घटा है। वैश्विक कारण इतने हावी हैं कि सरकार के हाथ से सभी विकल्प छूटते जा रहे हैं। लेकिन इस बात को कोई कैसे स्वीकार करे कि इतनी मजबूत सरकार भी संतुलन नहीं बैठा पा रही है। तो फिर कौन हालात बदलेगा।

यही तो न्यू इंडिया की नई महंगाई है जो राजनीतिक मोर्चे पर सरकार की मुश्किलें बढ़ा रही है। लेकिन राजनीतिक रूप से तपन झेल रही भाजपा और केंद्र की मोदी सरकार इस पर बात ही नहीं करना चाहती। यही वजह है कि प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आर्थिक मोर्चे पर दो दिन की उच्चस्तरीय बैठक होती है, तो वित्त मंत्री तेज विकास दर की तो बात करते हैं और प्रधानमंत्री के अर्थव्यवस्था के हालात पर संतुष्ट होने का बयान देते हैं लेकिन आम आदमी को असंतुष्ट कर रही पेट्रोल-डीजल की कीमतों से लेकर कमजोर होते रुपये के चलते तमाम तरह के उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी व महंगे होते कर्ज जैसे मुद्दों पर कोई बयान नहीं देते हैं। हालांकि, 2014 के लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी के लिए समर्थन जुटाने वाले योग गुरु रामदेव भी बयान देने लगे हैं कि पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों पर कुछ तो होना चाहिए।

आगे बढ़ेगा खतरा

क्रिसिल के अर्थशास्‍त्री डी.के.जोशी के अनुसार, रुपये के लगातार कमजोर होने और पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतें अच्छे संकेत नहीं हैं। अगर यह स्थिति जारी रहती है, तो निश्चित तौर पर सभी के लिए परेशानी खड़ी हो जाएगी। साथ ही जो आंकड़े अभी महंगाई दर में नहीं दिख रहे हैं। वह भी बढ़ते हुए दिखने लगेंगे। इसका असर महंगे कर्ज आदि के रूप में भी दिखेगा। भारतीय रिजर्व बैंक पहले से ही इस अंदेशे को जता चुका है। जिस कारण उसने कर्ज की दरों (रेपो रेट) में बढ़ोतरी करनी भी शुरू कर दी है।

75 तक जा सकता है रुपया

एमके ग्लोबल रिसर्च फर्म की रिपोर्ट के अनुसार, जिस तरह से सरकार का चालू खाता घाटा बढ़ रहा है, वह उसके लिए अच्छे संकेत नहीं हैं। वैश्विक स्तर पर मौजूद फैक्टर भी रुपये को सपोर्ट नहीं कर रहे हैं। इसकी वजह से रुपया डॉलर के मुकाबले 75 के लेवल तक पहुंच सकता है। रिपोर्ट के अनुसार, साल 2017-18 में चालू खाता घाटा जीडीपी के मुकाबले 1.9 फीसदी था। वह साल 2018-19 में 2.8 फीसदी के स्तर पर पहुंच सकता है। यहीं नहीं सरकार के पास विदेशी मुद्रा भंडार भी गिर रहा है। अगस्त 2018 तक करीब 26 अरब डॉलर घटकर विदेशी मुद्रा भंडार 400 अरब डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है। इन सब परिस्थितियों को देखते हुए आरबीआइ इस साल अभी कम से कम दो बार और कर्ज महंगा कर सकता है।

मनमोहन-मोदी की उम्र में फंसा रुपया

साल 2013 में भाजपा के चुनावी अभियान की अगुआई कर रहे नरेंद्र मोदी ने रुपये को लेकर एक अहम बयान दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि गिरता रुपया प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के उम्र के बराबर के स्तर पर पहुंच जाएगा। उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की उम्र 80 साल के करीब थी और रुपया डॉलर के मुकाबले 68 के स्तर को पार कर गया था। अब यही बयान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भारी पड़ रहा है। रुपया अपने ऐतिहासिक गिरावट के स्तर पर है। वह डॉलर के मुकाबले 72 के स्तर तक पहुंच गया है। गिरते रुपये पर कांग्रेस ने भी वार किया है। जब रुपया 70 के स्तर पर पहुंचा था तो कांग्रेस नेता अहमद पटेल ने ट्वीट करते हुए कहा कि भाजपा सरकार ने वह कर दिखाया जो पिछले 70 साल में किसी ने नहीं किया। खास तौर पर जब हम 71वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं। इसी तरह कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी का एक वीडियो शेयर किया, जिसमें मोदी ने गिरते रुपये पर चिंता जताई थी और मनमोहन सिंह सरकार पर सवाल खड़े किए थे।

विदेशी निवेशक निकाल रहे हैं पैसा

एसबीआइ के चीफ इकोनॉमिस्ट डॉ. सौम्य कांति घोष द्वारा रुपये की गिरावट पर तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार, जब भी डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर होता है तो विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से पैसे निकालते हैं। इस बात के ट्रेंड पिछले 10 साल से लगातार देखे जा रहे हैं। फरवरी 2018 से लेकर अगस्त 2018 के बीच डॉलर के मुकाबले रुपया 64.4 से गिरकर 69.4 के स्तर पर पहुंच गया था। इस दौरान विदेशी पोर्टफोलियो निवेश 884.7 करोड़ डॉलर घटा है।

बढ़ेगा तेल आयात बिल

एसबीआइ के अनुसार, रुपया जिस तरह से गिर रहा है उसकी वजह से तेल आयात बिल 4,226 अरब रुपये तक पहुंच सकता है। रिपोर्ट के अनुसार, अगर साल 2018 की दूसरी छमाही में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें 76 डॉलर प्रति बैरल तक रहती हैं, तो 4,227 अरब रुपये तक तेल आयात बिल पहुंचने की संभावना है। वहीं, कीमतें 74.24 डॉलर प्रति बैरल तक रहती हैं, तो तेल आयात बिल 4,036 अरब रुपये तक पहुंचने की संभावना है। इसका सीधा असर चालू खाते के संतुलन पर पड़ सकता है।

इलेक्ट्रॉनिक सामान भी बने परेशानी

जुलाई 2018 तक व्यापार घाटा करीब 18 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। इसकी प्रमुख वजह लगातार घटता निर्यात और बढ़ता आयात है। कच्चे तेल के साथ-साथ इलेक्ट्रॉनिक सामान का बढ़ता आयात भी सरकार के लिए लगातार परेशानी खड़ी कर रहा है। जुलाई 2018 में 12.4 अरब डॉलर का तेल आयात हुआ था। इसी तरह इलेक्ट्रॉनिक आयटम्स का आयात 31.4 अरब डॉलर हो गया था, जो कि तेल की तुलना में कहीं ज्यादा था।

बिजनेस में कमाई घटी

हरियाणा चैम्बर ऑफ कॉमर्स के वाइस प्रेसिडेंट और स्टील मैन्युफैक्चरर ए.एल.अग्रवाल के अनुसार, छोटे कारोबारियों पर लगातार महंगाई का बोझ बढ़ता जा रहा है। पिछले छह महीने में लांग स्टील के दाम 38,000 रुपये प्रति टन से बढ़कर 47,000 रुपये प्रति टन तक पहुंच गए हैं। इसके बाद हर रोज बढ़ते डीजल के दाम से ट्रांसपोर्टेशन लागत 20 फीसदी तक बढ़ी है। पहले चंडीगढ़ से मध्य प्रदेश प्रति किलो ट्रांसपोर्टेशन लागत तीन रुपये थी। जो बढ़कर 3.60 रुपये पहुंच गई है। इसके अलावा प्रोडक्शन लागत 10-15 फीसदी तक बढ़ी है। देश में 90 फीसदी छोटे कारोबारी हैं। इसका उनके मार्जिन पर सीधे असर पड़ रहा है। कंपनियों से हमारे पास 3-4 महीने के एडवांस ऑर्डर होते हैं। ऐसे में, सीधे तौर पर कमाई पर असर पड़ रहा है। हम कीमत में भ्‍ाी बढ़ाेतरी नहीं कर सकते, क्योंकि इससे ऑर्डर कैंसिल होने का डर रहता है। ऐसे में हम छोटे कारोबारी दोनों तरफ से पिस रहे हैं। सरकार को फौरी राहत देनी चाहिए। पहले से ही जीएसटी की मार पड़ी है।

एक्साइज ड्यूटी बनी सरकार का सहारा

इस बढ़ते खतरे को देखते हुए वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के तरफ से 4 सितंबर 2018 को बयान आया था कि एक्‍साइज ड्यूटी में कटौती नहीं की जाएगी। इस मामले में योजना आयोग के पूर्व सदस्य और अर्थशास्‍त्री प्रणब सेन का कहना है कि एक्साइज ड्यूटी से सरकार को अच्छी-खासी कमाई होती है। ऐसे में उसमें कटौती करना आसान नहीं है खास तौर पर तब, जब उसके सामने चालू खाता घाटा बढ़ने का खतरा है।

राज्यों को 22,700 करोड़ अतिरिक्त

केंद्र सरकार की तरह राज्य सरकारों के लिए पेट्रोल-डीजल पर वैट लगाकर कमाई करना अच्छा जरिया है। इसी वजह से अकेले पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ने से देश के प्रमुख 19 राज्यों को 22,700 करोड़ रुपये का अतिरिक्त रेवेन्यू आएगा। इस बात का आकलन एसबीआइ की रिपोर्ट में किया गया है। राज्यों के लिए कीमतें बढ़ना इसलिए ज्यादा फायदेमंद है क्योंकि वैट रेट पेट्रोल-डीजल के बेस प्राइस पर लगता है। यानी जब-जब कीमतें बढ़ेंगी, वैट रेट के आधार पर टैक्स राशि बढ़ जाएगी। जबकि केंद्र द्वारा लगाई जाने वाली एक्साइज ड्यूटी फिक्स होती है।

इसीलिए केंद्र सरकार अपनी कमाई बढ़ाने के लिए एक्साइज ड्यूटी में बढ़ोतरी करती रहती है। पिछले चार साल में सरकार द्वारा 11 बार एक्साइज ड्यूटी बढ़ाकर 105 फीसदी तक पेट्रोल पर ड्यूटी बढ़ाई है। इसी तरह डीजल में करीब 300 फीसदी एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई गई है।

पाकिस्तान-नेपाल में सस्ता पेट्रोल-डीजल

भारत से अगर पड़ोसी देशों की तुलना की जाय, तो पेट्रोल-डीजल सभी प्रमुख देशों में सस्ता है। भारत में पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका सभी जगहों से महंगा है। वहीं पाकिस्तान से अकेले तुलना की जाय तो भारत में करीब 28 रुपया पेट्रोल महंगा है।

प्याज मोमेंट का डर

एचडीएफसी बैंक के मुख्य अर्थशास्‍त्री अभीक बरुआ और वरिष्ठ अर्थशास्‍त्री तुषार अरोड़ा के अनुसार ये सबको पता है कि प्याज के दाम सरकारों पर भारी पड़ते रहे हैं। बीस साल पहले भाजपा ने ये महसूस किया, जब प्याज के दाम बढ़ने की वजह से वह दिल्ली में विधानसभा चुनाव हार गई थी। 1980 में भी जनता पार्टी के साथ यही हुआ था जब प्याज के दामों को लेकर लोग शिकायत कर रहे थे। अब 2018 में पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ रहे हैं और मोदी सरकार के लिए ये ओनियन प्राइस मोमेंट हो सकता है। हालांकि, ये समझना जरूरी है कि पेट्रोल-डीजल को छोड़कर दूसरी कई कैटेगरी में महंगाई की स्थिति अब ठीक है। इसे रोकने की जरूरत है, इससे पहले कि ये कभी न रुकने वाला चक्र बन जाए और रुपया फ्री फॉल की स्थिति में आ जाए। इसके लिए पहला चरण है समस्या को पहचानना। अगर सरकार और रिजर्व बैंक अपना मन बदल लें और रुपये की गिरावट को एक संकट की तरह देखें जिसे दूर किए जाने की जरूरत है तो ही चीजें बदल सकती हैं।

 सरकार भी घबराई

भले ही वित्त मंत्री अरुण जेटली बार-बार यह कह रहे हैं कि इकोनॉमी की स्थिति अच्छी है, कोई घबराने की बात नहीं है। लेकिन अंदर की कहानी कुछ और है। सरकार के अंदर इस बात को लेकर काफी चिंता है कि कैसे गिरते रुपये और तेल की बढ़ती कीमतों को काबू किया जाय। इसी के मद्देनजर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद दो बार अहम बैठक कर चुके हैं। चुनावी साल में जिस तरह से कांग्रेस महंगाई और रोजगार की कमी को मुद्दा बना रही है, वह मोदी सरकार के लिए आने वाले दिनों में काफी चुनौती खड़ी कर सकते हैं। लेकिन मोदी सरकार के हालिया बयानों और बैठकों से इसका कोई हल निकलता नहीं दिख रहा है।

केंद्र सरकार भी बढ़ती महंगाई पर चिंता तो जताती है, पर उसे रोकने के लिए कोई कदम उठाने से अपने को लाचार बताती है। वह ऐसा करें भी क्यों? उसे तो अकेले पेट्रोल-डीजल पर लगे एक्साइज ड्यूटी के रूप में एक दुधारू गाय मिल गई है। इससे पिछले चार साल में मोदी सरकार को दोगुनी कमाई हो चुकी है। सरकार 2014-15 में पेट्रोल-डीजल पर लगने वाली एक्साइज ड्यूटी से जहां केवल 99,184 करोड़ रुपये कमाई कर रही थी, वह बढ़कर 2017-18 में 2,29,019 करोड़ रुपये हो गया है। केंद्र की तरह राज्य सरकारें भी वैट लगाकर अच्छी खासी कमाई कर रही हैं। पिछले चार साल में उनकी कमाई भी 35 फीसदी बढ़ गई है। सरकारें अपनी कमाई बढ़ाने के ‌लिए आंकड़ों में जितना ही छिपाएं मगर महंगाई डायन के डंक से बच नहीं पाएंगी।

 

तब  

जिस प्रकार से पेट्रोल के दाम बढ़ा दिए गए हैं, ये दिल्ली सरकार की शासन चलाने की नाकामियों का जीता-जागता सबूत है

-2012 में गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी का बयान

अब

पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से लेकर बाबा रामदेव तक चिंता जता चुके हैं। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ भी कहने से दूरी बना रखी है

 तब

तेल की इस प्रकार कीमत बढ़ जाए तो स्वाभाविक है कि इसका असर सभी वस्तुओं की कीमतों पर होगा। आधे से ज्यादा तेल की कीमत टैक्स के रूप में जा रही है। हम अपेक्षा करेंगे जनता के ऊपर जो बोझ डाला है उसे कम किया जाय

- 2012 में अरुण जेटली, राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष थे

 अब

भारत कच्चे तेल के आयात पर पूरी तरह निर्भर है, ऐसे में जब अस्थायी तौर पर कीमतें बढ़ती हैं, तो उसका नकारात्मक असर पड़ता है, जिसकी वजह पूरी तरह बाहर के फैक्टर हैं

-‌सितंबर 2018 में वित्त मंत्री अरुण जेटली का प्रेस कॉन्फ्रेंस में बयान 

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