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ऐलान खूब, नतीजा सिफर

फंड और महकमों में आपसी समन्वय की कमी से पूरी तरह सिरे नहीं चढ़ पा रहीं गोवंश से जुड़ी योजनाएं
कब बहुरेंगे दिनः लखनऊ का लक्ष्मण गोशाला

गायों से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का लगाव छिपा नहीं। बीते साल सत्ता में आते ही उन्होंने बूचड़खानों पर सख्ती की। निराश्रित और बेसहारा गोवंश की सेवा के लिए नियम-कायदे बनाए। प्रदेश के हर जिले, नगर निगम, नगर पालिका, नगर पंचायत और यहां तक कि जेलों में भी गोशाला खोलने की घोषणा की। लेकिन, पैसे की कमी और विभागों में आपसी समन्वय के अभाव के कारण तमाम घोषणाएं जमीनी हकीकत बनने से कोसों दूर हैं। एक ओर, बीते 15 महीने में राज्य में चल रहे छोटे-बड़े सभी 135 सरकारी स्लॉटर हाउस बंद हो चुके हैं। जो 41 निजी स्लॉटर हाउस चल रहे हैं उनमें से भी किसी की क्षमता बीते डेढ़ साल में नहीं बढ़ी है। दूसरी ओर, गायों की देखभाल की तमाम योजनाओं को रफ्तार नहीं मिल पा रही। गोशाला निर्माण के लिए तीन सरकारी महकमे पंचायती राज, पशुधन एवं विकास और नगर विकास विभाग कार्य कर रहे हैं। कान्हा गोशाला एवं बेसहारा पशु आश्रय योजना नगर विकास विभाग के जिम्मे है। लेकिन, 653 नगर निकायों में से अब तक केवल 106 में ही इसकी पहल हो पाई है।

17 नगर निगमों में से केवल लखनऊ का कान्हा उपवन ही पूरी तरह से संचालित है। गोरखपुर, वाराणसी, मथुरा, शाहजहांपुर, सहारनपुर, फिरोजाबाद, झांसी और मुरादाबाद को पहली किस्त के रूप में 40 करोड़ रुपये मिले हैं। अन्य निकायों की ओर से भी प्रस्ताव भेजे गए हैं, लेकिन किसी भी निकाय का एस्टीमेट दो करोड़ रुपये से कम का नहीं है। गाजियाबाद ने तो 25 करोड़ रुपये का प्रस्ताव भेजा था। गोशाला निर्माण के लिए 89 नगर पालिका और नगर पंचायतों को पहली किस्त के रूप में 80 करोड़, 35 नगर पालिका और नगर पंचायतों को दूसरी किस्त के रूप में 35 करोड़ रुपये अब तक मिल चुके हैं। लेकिन, कहीं पर भी पूर्ण रूप से गोशाला का संचालन शुरू नहीं हो पाया है। नगर विकास विभाग को वित्तीय वर्ष 2016-17 में 80 करोड़, 2017-18 में 40 करोड़ और 2018-19 में 75 करोड़ रुपये मिले थे। अनुपूरक बजट में गोशाला के लिए 20 करोड़ और पंचायती राज विभाग को जिला पंचायतों में कांजी हाउस के लिए 10 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए हैं।

राज्य के सभी 68 जिलों में एक करोड़ 20 लाख रुपये की लागत से एक-एक वृहद गोसंरक्षण केंद्र बनाने की भी योजना है। इसके लिए सभी जिलों को 50-50 लाख रुपये दिए गए हैं। राज्य के प्रमुख सचिव पशुधन डॉ. सुधीर एम बोबड़े ने बताया कि जिलों में बनने वाले गो-संरक्षण केंद्रों के मानक निर्धारित कर दिए गए हैं। जिलाधिकारी अन्य योजनाओं मसलन मनरेगा, वित्त आयोग, पंचायतों की निधियां आदि की राशि का इस्तेमाल भी इसके लिए कर पाएंगे।

भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता डॉ. चन्द्रमोहन ने आउटलुक को बताया कि गोवंश के संरक्षण के लिए गंभीर प्रयास शुरू किए गए हैं। गायों की नस्ल सुधारने और बेसहारा गोवंश का अवैध व्यापार रोकने के लिए लगातार कदम उठाए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि पानी की कमी से जूझ रहा बुंदेलखंड इलाका सरकार की प्राथमिकता में है। प्रदेश सरकार 10 करोड़ रुपये से अधिक की राशि से बुंदेलखंड इलाके में पंजीकृत गोशालाओं का सुदृढ़ीकरण करने जा रही है। चारे के अभाव में किसान जानवरों को खुला छोड़ देते हैं। इसे देखते हुए सरकार ने विशेषकर सूखा प्रभावित क्षेत्रों में राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत अतिरिक्त चारा विकास कार्यक्रम की भी शुरुआत की है। लघु और सीमांत किसानों को हरे चारे के लिए मुफ्त बीज और खाद मुहैया कराई जाएगी।

अलीगढ़ में आगरा रोड स्थित श्री राधारमण गोशाला में 347 गोवंश हैं। गोशाला के उपाध्यक्ष अशोक चौधरी ने बताया कि वे 10 साल से इसका संचालन कर रहे हैं। लेकिन, पहली बार सरकार की ओर से बीते साल उन्हें करीब 12 लाख और इस साल चार लाख 38 हजार रुपये मिले हैं। उन्होंने बताया कि सरकार की ओर से गोशाला प्रस्ताव बनाकर मंडी समिति को भेजा जाता है। लेकिन, समिति के पास पर्याप्त फंड नहीं होने के कारण गोशालाओं को जरूरत के मुताबिक पैसे नहीं मिल रहे। 

 गड़ब‌ड़ियों का पुलिंदा

चारागाह भूमि की तो स्थिति और भी खराब है। चारागाह की कुल संख्या 79,758 और रकबा 61,154.282 हेक्टेयर है। इनमें से 11,196 चारागाह यानी 7,377.24 हेक्टेयर जमीन पर कब्जा है। 7,868 चारागाह यानी 5,568.73 हेक्टेयर भूमि अब तक कब्जा-मुक्त हो पाई है। बड़े अवैध कब्जों और उन पर बने निर्माण अभी भी खाली या ध्वस्त नहीं किए गए हैं। यह काम कब तक पूरा होगा,  इसकी भी कोई समयसीमा नहीं है। कब्‍जा हटाने के लिए बनाया गया एंटी भूमाफिया पोर्टल भी ज्यादा कारगर नहीं साबित हो रहा।  इतना ही नहीं राजस्व विभाग ने चारागाह भूमि से कब्जा हटाने की जो सूची बनाई है, उसमें भी तमाम त्रुटियां हैं। मसलन, अमेठी जिले में 3,394 चारागाह भूमि में से 941 पर अवैध कब्जा पाया गया। लेकिन, सूची में 1036 चारागाह भूमि से कब्जा हटावाने का दावा किया  गया है। इसी तरह इलाहाबाद जिले में 28 चारागाह भूमि पर कब्जा मिलने की बात सूची में कही गई है, लेकिन  दावा 710 चारागाह भूमि खाली कराने का किया गया है।

राजस्व विभाग की सूची के मुताबिक सबसे ज्यादा कानपुर नगर जिले में 6,251 चारागाह की भूमि है। इसमें से 142 पर कब्जा मिला और 134 भूमि खाली कराई जा चुकी है। हरदोई जिले में 4,673 चारागाह में से 527 पर अवैध कब्जा पाया गया। लेकिन, 290 भूमि ही खाली कराई जा सकी है। रायबरेली जिले में 4,176 भूमि में 620 पर अवैध कब्जे मिले, जिसमें से 290 भूमि को खाली कराया गया है। पशुधन मंत्री एसपी सिंह बघेल की अध्यक्षता में हाल ही में हुई बैठक में गोचर भूखण्डों और अन्य रिक्त राजकीय भूखण्डों पर चारा विकास का कार्य कराने का दायित्व जिले के मुख्य विकास अधिकारी को दिया गया और मुख्य पशु चिकित्साधिकारी को नोडल अधिकारी नामित किया गया। पशुधन मंत्री के पूछने पर पंचायतीराज विभाग के प्रतिनिधि ने बताया कि प्रदेश में 770 कांजी हाउस हैं, जो निष्क्रिय हैं। इन्हें क्रियाशील करने के लिए पंचायती राज विभाग की ओर से 154 करोड़ रुपये का बजट प्रस्ताव तैयार किया गया है।

गो-सेवा आयोग भी लाचार

संसाधनों के अभाव में उत्तर प्रदेश गो-सेवा आयोग भी लाचार है। न खुद का कार्यालय है और न कर्मचारी। लखनऊ के इंदिरा भवन में दसवें तल पर दो कमरों का दफ्तर है। पर्याप्त जगह नहीं होने के कारण सदस्यों को अध्यक्ष के कमरे में ही बैठना पड़ता है। कार्यालय और अन्य सुविधाएं मुहैया कराने की आयोग कई बार मांग कर चुका है। आयोग के अध्यक्ष राजीव गुप्ता का कार्यकाल 19 जुलाई को समाप्त हो गया है और अभी तक न ही उनका रिन्यूअल हुआ है, न ही नए अध्यक्ष की नियुक्ति हुई है।

गो-सेवा आयोग के सदस्य डॉ. संदीप पहल का कहना है कि सरकारी तंत्र गायों के प्रति किसी भी कार्य में रुचि नहीं लेता है। बैठकों और पत्रावलियों तक ही मामला सीमित रह जाता है। ज्यादातर अधिकारियों को न तो जमीनी स्थिति का पता है और न ही वे पता करना चाहते हैं। आयोग की आखिरी बैठक 19 जून को हुई थी। इसमें नौ बिंदुओं पर चर्चा होनी थी। लेकिन, कई विभागों के प्रतिनिधियों के नहीं पहुंचने के कारण एजेंडा परवान नहीं चढ़ पाया।

घोषणाओं के लिहाज से मौजूदा सरकार गायों को लेकर काफी संजीदा दिखती है। लेकिन, जिस तेजी से योजनाओं के परवान चढ़ने की उम्मीद थी, वह फिलहाल दूर की कौड़ी ही लगती है।

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