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राजस्थान में फिर हुंकार की तैयारी

गुर्जर कर रहे हैं पिछड़ा वर्ग आरक्षण में श्रेणी विभाजन की मांग, लेकिन पिछड़े वर्ग में शामिल प्रभावशाली जातियां कर रही हैं विरोध
टकरावः मांगें नहीं माने जाने पर गुर्जर नेता किरोड़ी सिंह बैंसला ने दी वसुंधरा राजे की गौरव यात्रा रोकने की चेतावनी

राजस्थान में अनुसूचित जनजाति वर्ग के तहत आरक्षण की मांग को लेकर गुर्जर फिर एक बार आंदोलन की तैयारी में हैं। गुर्जर समाज ने पिछले तेरह साल में कई मर्तबा रेल और राजमार्ग रोके और आंदोलन किए, जिसमें 70 से ज्यादा लोगों की जान चली गई। इसके बावजूद वे वही खड़े हैं, जहां से कभी चले थे। अब फिर आरक्षण को लेकर आंदोलन की हुंकार भरने वाले गुर्जर समुदाय के विजय बैंसला कहते हैं कि हमारे साथ नाइंसाफी हुई है। गुर्जर अब पिछड़ा वर्ग आरक्षण में अन्य राज्यों की तरह श्रेणी विभाजन की मांग पर जोर दे रहे हैं। लेकिन पिछड़े वर्ग में शामिल कुछ प्रभावशाली जातियां इसका विरोध कर रही हैं। राजस्थान जाट महासभा के अध्यक्ष राजाराम मील कहते हैं, “यह मुमकिन नहीं है। यह हो ही नहीं सकता। अगर ऐसा हुआ तो हम पुरजोर विरोध करेंगे।” राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार की भी इस पर नजर है। सरकार ने अभी यह कह कर मोहलत ली है कि पूरे मामले में केंद्र सरकार ने रोहिणी आयोग गठित कर दिया है। आयोग इस मामले में अध्ययन कर रहा है। सरकार और राजनैतिक दलों को भी ठीक लगा कि आरक्षण में वर्गीकरण का मुद्दा कुछ समय के लिए टल गया। लेकिन गुर्जर आरक्षण समिति के हिम्मत सिंह कहते हैं, “जब उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ऐसा कर सकती है तो राजस्थान में उसी पार्टी की सरकार क्यों नहीं कर सकती है? मील कहते हैं, “पिछड़ा वर्ग आरक्षण में पहले ही ‘क्रीमी लेयर’ का प्रावधान है, तो फिर वर्गीकरण की बात ही क्यों की जा रही है।”

मील कहते हैं, “जब गुर्जर पहली बार अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर निकले, तो जाट समाज ने उनका समर्थन किया था। अब हम हरगिज उनका समर्थन नहीं करेंगे।” इसके पहले पूर्वी राजस्थान में धौलपुर और भरतपुर के जाट समाज ने कई बार आंदोलन किया और अपने क्षेत्र के जाट समुदाय को पिछड़ा वर्ग में शामिल करने की मांग की, क्योंकि उन्हें यह कहकर आरक्षण से इनकार कर दिया गया था कि भरतपुर और धौलपुर में जाट शासक वर्ग में रहे हैं। लेकिन, सरकार ने कुछ महीने पहले एक अधिसूचना जारी कर उन्हें भी पिछड़ा वर्ग में शामिल कर लिया। जाट महासभा के अध्यक्ष मील को लगता है कि कुछ राजनैतिक ताकतें पिछड़े वर्ग में झगड़ा कराना चाहती हैं। मील कहते हैं, “किसी का सियासी मंसूबा हो सकता है कि पिछड़े वर्ग में शामिल समूह एक-दूसरे में ही उलझते रहें।”

लगभग तीन महीने पहले जब गुर्जर सड़कों पर आए तो सरकार हरकत में आई और गुर्जर नेताओं को जयपुर बुलाकर समझौता किया। 19 मई को सरकार और गुर्जर नेताओं ने एक समझौते पर दस्तखत किए। एक बार फिर वे सड़कों पर उतरने की बात करने लगे हैं। यह ऐसा समय है जब मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे गौरव यात्रा पर सवार होकर राज्य में चुनाव प्रचार के लिए निकली हैं। गुर्जर समाज ने अपने प्रभाव क्षेत्र में इस गौरव यात्रा को रोकने का ऐलान किया है। इस मुहिम का नेतृत्व कर रहे कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला ने करौली जिले में पंचायत की और कहा कि अगर हमारी मांगें नहीं मानी गईं, तो गौरव यात्रा का विरोध किया जाएगा।

गुर्जर समाज और उनकी हमराह कुछ छोटी जातियों के लिए अभी एक प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है। सरकार ने जब-जब गुर्जर समुदाय के लिए आरक्षण का प्रावधान किया, तो कोर्ट ने रोक लगा दी, क्योंकि इससे राजस्थान में आरक्षण की सीमा बढ़कर 54 फीसदी हो गई। सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की सीमा 50 फीसदी तय कर रखी है। राजस्थान में अभी अनुसूचित जाति वर्ग के लिए 16, जनजाति के लिए 12 और पिछड़े वर्ग के लिए 21 फीसदी आरक्षण का प्रावधान है। सरकार ने पिछड़ा वर्ग आरक्षण में पांच फीसदी की बढ़ोतरी की। इससे इस वर्ग के लिए आरक्षण 26 फीसदी हो गया, जिसे अदालत ने रद्द कर दिया। विजय बैंसला पूछते हैं, “जब सुप्रीम कोर्ट के एससी/एसटी एक्ट में फैसले पर कानूनी रास्ता निकाला जा सकता है, तो गुर्जर आरक्षण में क्यों नहीं?” हिम्मत सिंह कहते हैं कि सरकार ईमानदार नहीं है, भर्ती में उनके बच्चे पीछे छूट रहे हैं।

गुर्जर मांग कर रहे हैं कि उनके आरक्षण को संविधान की नौवीं अनुसूची में डाला जाए, ताकि अदालत में चुनौती न दी जा सके। जब केंद्र में कांग्रेस और राज्य में भाजपा सरकार थी, तो भाजपा ने केंद्र के पाले में गेंद डालकर पल्ला झाड़ लिया। अब दोनों जगह भाजपा की ही सरकार है। इसलिए आरक्षण फिर अहम मुद्दा बन गया है। 

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