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उत्कल का मसीहा

नवीन पटनायक की यह राजनैतिक जीवनी वह वृतांत है कि राज्य में आए एक महा चक्रवात ने कैसे समूची राजनैतिक बिरादरी की साख लूट ली और ओडिया लोगों को कैसे बीजू बाबू के इस वारिस में मसीहा का रूप दिखने लगा
शिखर पर अकेलेः भुवनेश्वर के अपने सरकारी निवास में ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक

मैदानों, घाटियों और पहाड़ियों की चोटी के ऊपर होते हुए दो इंजनों वाला हेलीकॉप्टर नीचे ही उड़ा जा रहा था। राजधानी भुवनेश्वर से उड़ान भरकर यह राज्य के कस्बे ठाकुरमुंडा की ओर जा रहा था। इस ऊंचाई से नीचे फैले मैदानों की खूबसूरती देखने लायक है। पेड़ों के झुरमुट से पटे इन मैदानों को बीच-बीच में नदियां काटती हुई-सी दिखाई देती हैं और फिर इसी भूल-भुलैया में कहीं खो जाती हैं। पहाड़ियों की शृंखलाएं घाटियों को जन्म देती हैं, जिनके दूसरी ओर फिर अन्य पहाड़ियां शुरू हो जाती हैं। इस तरह यह क्रम चलता रहता है। इन्हीं मैदानों में बनी गरीबों की झोपड़ियों की छतें, जिनमें तमाम छेद हैं, सूरज की रोशनी में एक आकर्षक चमक पैदा कर रही हैं।

इस लैंडस्केप पर संकरे रास्ते अपना अलग जादू बिखेर रहे हैं। गांवों के झुरमुटों में तलाब और उनके इर्द-गिर्द बिखरे पेड़ों का घेरा और उसके आस-पास चरते जानवर अपने आप में एक अद्‍भुत आनंद दे रहे हैं। ओडिशा में देश की 3.47 फीसदी आबादी रहती है, जबकि देश में इसका कुल क्षेत्रफल 4.8 फीसदी है। हेलीकॉप्टर से दिख रहे इन शानदार नजारों में ओडिशा के लोगों के जीवन में आई उस उथल-पुथल को नजरअंदाज नहीं कर सकते जो उन्होंने पिछले महीनों में झेली है। अक्टूबर 1999 में आए एक भीषण चक्रवात ने 10,000 लोगों की जान ले ली थी और अपने रास्ते में आने वाली चीजों को तहस-नहस कर दिया था। 1936 से अस्तित्व में आया ओडिशा भारत के गरीब राज्यों में से एक है। हालांकि, सांस्कृतिक दृष्टि से देखा जाए तो राज्य बेहद समृद्धशाली है- होम ऑफ टेंपल्स के नाम से विख्यात इस धरती के वस्‍त्र उद्योग, भितरकणिका के मैंग्रोव वन जैसे पर्टयन स्थल, ओडिसी नृत्य आदि शायद ही कभी मीडिया के लिए आकर्षण का विषय बनते हैं। इसके बजाय समय-समय पर आने वाली भुखमरी की खबरें या तबाही लाने वाले चक्रवातों की घटनाएं ही मीडिया में सुर्खियां बन कर राज्य का नाम शेष भारत तक पहुंचाती हैं। साल 2000 के उस दिन जब हेलीकॉप्टर उड़ रहा था, नीचे जमीन पर स्थिति यादों में सबसे बुरी थी। ऐसा नजारा शायद 1866 में आए ‘ना-अंक’ अकाल के दौरान देखा गया था, जिसने यहां की लगभग एक-तिहाई जनसंख्या को निगल लिया था। उस दौर में प्राकृतिक आपदाएं जब प्रशासनिक नाकारेपन से मिलीं तो दोनों ने मिलकर राज्य और इसके लोगों को पंगु बना दिया था। चक्रवात के समय नेताओं के आपसी झगड़ों ने प्रशासन को मानो बंधक बना लिया था। जिस समय अयोग्य कांग्रेसी मुख्यमंत्री को कुछ सूझ नहीं रहा था, उस वक्त उनके साथी और वरिष्ठ नेता आपदा से उपजी उथल-पुथल में मौका पाकर अपना राजनीतिक हित साधने और नेतृत्व बदलने के लिए दिल्ली की दौड़ लगा रहे थे। राज्य के प्रशासन को आपदा की विनाशलीला का ठीक-ठाक अंदाजा तक नहीं था, परिणामस्वरूप पीड़ितों तक समय से राहत नहीं पहुंच पाई और हजारों लोग इस आपदा से मारे गए। सरकार ने अपने कर्तव्य पालन की इतिश्री कर ली थी और इससे भी बढ़कर इस विषय को ही छोड़ दिया था।

ऐसे में राजनीति सबसे आगे थी और लोग, जिनको अपने भाग्य पर छोड़ दिया गया था, ईश्वरीय मदद के लिए आसमान में टकटकी लगाए देख रहे थे कि तभी हेलीकॉप्टर ने नीचे आना शुरू किया। उम्र के पांचवें दशक में प्रवेश कर चुका, शरीर से दुबला-पतला एक व्यक्ति हेलीकॉप्टर में पायलट के बगल वाली सीट पर चुपचाप बैठा था। यात्रा के आरंभ में होने वाली कुछ नियमित गपशप के बाद अब एक तरह की शांति थी। सफेद कुर्ता-पायजामा में बैठा यह व्यक्ति शायद ही कभी अपने पांव को

आराम देने के लिए पसारता। यह व्यक्ति अपने सामने फैली विभी‌षिका को देखकर शांत था।

नवीन पटनायक इस तरह गहन चिंता में डूबे थे, तो उसके कारण भी थे। ऐसी स्थिति में वे बाहरी थे क्योंकि वयस्क होने के बाद उन्होंने अपना अधिकतर समय ओडिशा के बाहर ही बिताया था। वे न तो ओडिया बोलते थे, न यहां के इतिहास से परिचित थे, न संस्कृति से, न परंपराओं से और न इस तरह की और चीजों से। फिर भी वे एक अभियान पर निकले थे, इस उम्मीद के साथ कि आपदा के कारण संकट से गुजर रहे राज्य में वे भी मुख्यमंत्री बन सकते हैं। प्रतिष्ठित दून स्कूल में पढ़े और संजय गांधी के सहपाठी रहे नवीन घर में भी पश्चिमी लहजे में बोली जाने वाली अंग्रेजी के अभ्यस्त थे। उनको डनहिल सिगरेट के कश पसंद थे और हर शाम फेमस ग्रॉस व्हिस्की का आनंद लेना सुहाता था। ये उनकी ऐसी आदतें हैं, जिनके बारे में उनके निजी सहायक कहते हैं कि उन्होंने यह सब अभी भी छोड़ी नहीं हैं। अभी तीन साल पहले ही तो वे दिल्ली में होने वाली खासम-खास पार्टियों में प्रायः शामिल होते और शक्तिशाली लोगों से कंधे से कंधा मिलाते हुए दिख जाते थे। अपने युवा दिनों में नवीन पटनायक दिल्ली के ओबरॉय होटल से ‘साइकेदेल्ही’ नाम से बुटीक चलाते थे जिसके ग्राहकों में बीटल्स जैसे नामी-गिरामी ग्रुप शामिल थे।

उनके मित्र पूरे दुनिया में फैले हैं और किताबों और फिल्मों में उनकी रुचि ने 1988 में आई मर्चेंट आईवरी की एक एडवेंचर फिल्म ‘द डिसाइवर्स’ में एक छोटा सा रोल दिला दिया। इस फिल्म में पियर्स ब्रॉसनन और सईद जाफरी

मुख्य भूमिका में थे। 1997 में एक के बाद एक घटी कुछ घटनाओं ने नवीन पटनायक को जींस-टीशर्ट छोड़कर कुर्ता-पायजामा पहनने पर मजबूर कर दिया और वे उस यात्रा की ओर बढ़ चले जो उनके पिता बीजू पटनायक के रास्ते पर ले जाने वाली थी।

पिता की मृत्यु के बमुश्किल एक महीने के अंदर ही नवीन पटनायक ने अस्का संसदीय क्षेत्र से उपचुनाव लड़ा। मृत्यु से पहले बीजू इसी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते थे। जनता दल से लड़े गए इस उपचुनाव को उन्होंने बड़ी आसानी से जीत लिया। जीत के बाद नवीन पटनायक ने इंडिया टुडे पत्रिका से बड़ी विनम्रता से कहा था “मैंने अपने पिता से विशेषाधिकार नहीं बल्कि जिम्मेदारियां ग्रहण की हैं।” 1997 के दिसंबर में जब उन्होंने क्षेत्रीय दल बीजू जनता दल का गठन किया तो उनका कहना था कि परिवार के एक सदस्य को तो सामाजिक उत्तरदायित्व की उनकी (बीजू पटनायक) विरासत को आगे बढ़ाना ही था।

1998 और 1999 में वे फिर से लोकसभा के लिए चुने गए। इस समय अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में राजग (एनडीए) की सरकार बन चुकी थी। नवीन पटनायक वाजपेयी के सहयोगी बने और इसी सरकार में वे स्टील और खनन मंत्री पद से नवाजे गए।

नवीन पटनायक जब ओडिशा की राजनीति में गए तो वे उन लोगों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे थे, जो जमीनी जुड़ाव के अलावा अपने राज्य के निवासियों से और कोई समानता नहीं रखते थे। लेकिन फिर भी ओडिशा के लीजेंडरी नेता बीजू पटनायक के पुत्र होने के नाते और जैसा राज्य की नियति में लिखा था, नवीन पटनायक राज्य के एकमात्र उद्धारक थे। राज्य में नेताओं द्वारा एक-दूसरे को नीचा दिखाने की राजनीति से ऊबकर तमाम लोगों ने नवीन पटनायक को पसंद किया, इस तथ्य के वाबजूद कि उन्हें ओडिया नहीं आती थी।

बीजू पटनायक के पुत्र होने के अलावा लोग उन्हें शायद ही किसी अन्य वजह से जानते थे। लेकिन इतिहास से उनके अलगाव ने उन्हें जांचने- परखने की प्रक्रिया से बचा लिया।

ऐसे समय में जब लगभग पूरा राजनीतिक वातावरण बदनामी के दलदल में धंस रहा था, नवीन पटनायक ताजा हवा के झोंके की तरह आए। कुछ मायनों में हम उन्हें उस समय का अरविंद केजरीवाल मान सकते हैं, जो एक बाहरी के तौर पर राजनीति में बड़े ही शानदार ढंग से सर्जरी को अंजाम देने आए थे। जैसे साल 2015 में अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में अभूतपूर्व जीत से सबका ध्यान खींचा, उसी तरह नवीन पटनायक ने समूचे ओडिशा में अपना जादू बिखेरा था।

इस उदाहरण को देखिए... भुवनेश्वर से सुदूर उत्तर में तटीय कस्बे बालासोर को जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग पर पनीकोइली में नवीन पटनायक ने एक रैली को संबोधित किया। उस मार्ग पर लंबी यात्रा कर कोलकाता जाने वालों के लिए पनीकोइली एक विश्रामस्थल था। यहां के ढाबे और उनमें मिलने वाला गर्मागरम स्वादिष्ट खाना हर किसी के आकर्षण का केंद्र थे।

जनता दल ने यहां एक एंटी-कांग्रेस रैली आयोजित की थी। पार्टी के टिकट पर नए चुने गए सांसद के तौर पर नवीन पटनायक को इस रैली में भाषण करना था। इस रैली में पार्टी के वरिष्ठ नेता जैसे श्रीकांत जेना, जो न सिर्फ बीजू पटनायक के घनिष्ट सहयोगी रहे थे, बल्कि इंद्र कुमार गुजराल सरकार में मंत्री भी रह चुके थे, भी बोलने वालों में शामित थे। बीजू पटनायक की मृत्यु के बाद जेना राज्य में अपने लिए संभावनाएं तलाश रहे थे। लेकिन जब जेना ने बोलना शुरू किया, भीड़ ने उनकी ओर जूते-चप्पल उछालना शुरू कर दिया। एक परिपक्व नेता के तौर पर जेना ने अपना भाषण जारी रखा लेकिन भीड़ गुस्से से बेकाबू होती जा रही थी। ऐसे में मंच पर मौजूद अन्य नेताओं में खलबली मचना स्वाभाविक था। उन्होंने जेना का कुर्ता खींचना शुरू कर दिया कि वे तुरंत अपने भाषण का अंत करें। इसके बाद नवीन पटनायक की बारी आई। अपने स्थान से उठकर नवीन ने सबसे पहले जनता का अभिवादन स्वीकार किया। जनता का गुस्सा एक क्षण में उल्लास में बदल गया। उसके करीब तीन साल बाद, ठाकुरमुंडा की ओर हेलीकॉप्टर से जाते हुए नवीन जान गए थे कि वे पहले के मुकाबले अधिक लोकप्रिय हो चुके हैं। जानलेवा चक्रवात ने समुद्र को इस कदर बढ़ा दिया था कि साल 1999 में यह लगभग 22 किमी. मुख्य भूमि में अंदर तक पहुंच गया था।

जब जलस्तर कुछ कम हुआ, एक नई लहर पैदा हो रही थी। यह लहर नवीन पटनायक की थी। नजरों के सामने कस्बा दिखाई देने लगा तो नवीन पटनायक ने अपनी जेब से एक पर्चा निकाला, जो उनके सहयोगी ने उन्हें दिया था। इस पर अंग्रेजी में बड़े-बड़े अक्षरों से लिखा था ‘ठाकुरमुंडा’ नवीन ने इसे बार-बार दोहराया, जब तक उन्हें यह याद नहीं हो गया।

राज्य में एक कट्टर हिंदू दारा सिंह द्वारा ऑस्ट्रेलियन मिशनरी और उसके दो बच्चों की हत्या की खबर ने देश-दुनिया की मीडिया में खुर्खियां बटोरी थी। कस्बे में बाहरी लोगों की मौजूदगी ने, जिसमें पत्रकार और राजनेता थे, लोगों को बड़ी तादाद में बाहर लाया। क्या महिलाएं और क्या बच्चे, सभी बड़ी संख्या में राज्य के ‘लोकप्रिय-पुत्र’ की ओर आशा भरी निगाहों से देख रहे थे, जो उनके लिए उम्मीद की आखिरी किरण के समान थे।

नवीन ने उन्हें निराश नहीं किया। वे मंच की ओर बढ़े और फिर माइक अपने हाथ में लिया। विनम्रता से नमस्कार किया और फिर बोले-“मेरे पिता जी को ठाकुरमुंडा बहुत प्यारा था।” उनकी आवाज में बेहद शालीनता थी, लेकिन इसका प्रभाव बिजली की तरह चमकने वाला था।

लोगों की खुशी का ठिकाना न रहा। वे जान गए कि बीजू बाबू ने उनके कस्बे के बारे में अपने बेटे को बहुत पहले बता दिया था। सामूहिक उत्साह ने भीड़ में एक अजीब उल्लास भर दिया और वातावरण ‘नवीन पटनायक जिंदाबाद’ के नारे से गुंजायमान हो गया। इसके बाद नवीन बाबू ने आगे कहा- “मेरे पिता जी ने कहा था, ठाकुरमुंडा जरूर जाना।” इतना सुनते ही भीड़ की खुशी दो गुनी हो गई। इसके बावजूद कि नवीन पटनायक हिंदी में बोल रहे थे। इसके बाद नवीन ने बहुत अधिक नहीं बोला। वे लोगों को अपने जादू से मंत्रमुग्ध कर चुके थे। संक्षेप में उन्होंने चुनाव में किए गए वादों से संबंधित कुछ बातों को छुआ।

भाषण समाप्ति पर अभिवादन स्वीकार करने के लिए उन्होंने भीड़ की तरफ अपना हाथ हिलाया और फिर केंद्रपाड़ा में होने वाली एक अन्य सभा में जाने के लिए हेलीकॉप्टर में सवार हो गए। हर जगह यही चीजें दोहराई गईं। जैसे ही हेलीकॉप्टर उतरने को होता, नवीन अपनी जेब से पर्चा निकालते और उस जगह का नाम याद करने लगते।

जब उनके बोलने की बारी आई, उन्होंने फिर कहा-“मेरे पिता जी को केंद्रपाड़ा बहुत प्यारा था।” उनके इन शब्दों का वही असर हुआ जो ठाकुरमुंडा में हुआ था। फिर अगली लाइन-“मेरे पिता जी ने बोला था केद्रपाड़ा जरूर जाना।” भीड़ ऐसी बेकाबू हुई कि जन-सैलाब को संभालने के लिए पुलिस को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। काम पूरा हुआ, नवीन ने सत्यबाड़ी के लिए उड़ान भरी। ओडिया गौरव के लिए महत्वपूर्ण सत्यबाड़ी पुरी जनपद में पड़ता है। राज्य के अग्रणी स्वतंत्रता सेनानियों में शामिल गोपाबंधु दास, जिन्हें ‘उत्कलमणि’ के नाम से जाना जाता है, यहां रहे हैं। उन्होंने इसे धर्म यात्रा स्थल के रूप में प्रसिद्धि दिलाई।

अब नवीन पटनायक के भाषण में ठाकुरमुंडा और केंद्रपाड़ा का स्थान सत्यबाड़ी ने ले लिया। स्थानीय लोग इतना सुनते ही गर्व से भर जाते थे कि वे (लोग) इतने अंदर तक नवीन पटनायक के मन में समाए हुए हैं। उनकी प्रतिक्रिया लगभग वही रही जो पिछले दो जगहों पर थी। बीजू बाबू के उत्तराधिकारी को उन्होंने अपने हाथों से खिलाया था। यह ऐसी प्रतिक्रिया थी, जिसके लिए नेता मरे जाते हैं।

लेकिन नवीन की तो मानो गोद में यह सब डाल दिया गया था। उन्होंने बड़ी आसानी से पूरे राज्य में जीत दर्ज कर ली। इस प्रकार की शुरुआत नेताओं के अन्य पुत्रों को भी मिली है, जिसमें राजीव गांधी भी शामिल हैं। लेकिन कम ही लोग ऐसे होते हैं, जिन्हें बिना सवाल-जवाब किए इस तरह का प्यार और अपनापन नसीब होता है।

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