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काट-छांट के दायरे के बाहर

सेक्रेड गेम्स डिजिटल संसार में अभिव्यक्ति की आजादी की शक्ति और रचनात्मकता को रेखांकित करता है
सेक्रेड गेम्सः इस सीरिज के एक दृश्य में नवाजुद्दीन सिद्दीकी के साथ कुब्रा सेट

लाइमलाइट में रहने वाले भारतीय फिल्म निर्माता लंबे समय से इसका इंतजार कर रहे थे। शक्तिशाली सेंसर बोर्ड, जो कैंची चलाने वाले अपने दिशानिर्देशों के अनुरूप न होकर किसी भी रचनात्मक फिल्मांकन पर मुहर लगाने के लिए कुख्यात हो चुका है, आज अपने अस्तित्व के संकट का सामना कर रहा है। स्क्रीन पर कुछ भी ‘अप्रिय’ काटने के आदी होने और अपने अस्तित्व को बचाने की इसी भावना के कारण नेटफ्लिक्स जैसे ओवर-द-टॉप  (ओटीटी) प्लेटफॉर्म के आगमन से अब यह स्कैनर की निगरानी में आ गया है, जिसने भारतीय सिनेमा की लंबे समय तक निगरानी करने वाले केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) से बिना किसी प्रमाणीकरण की जरूरत के मूल सामग्री को सहमति प्रदान करना शुरू कर दिया है। इसके लिए कुछ भी अवैध नहीं है। यह एक ऐसा ‘स्वतंत्र’ डिजिटल संसार है जो फिल्म निर्माताओं को किसी भी पुरातन मानदंडों का पालन किए बिना और वे जो कुछ भी चाहते हैं, उसे दिखाने में सक्षम बनाता है। यह असीमित आजादी का एक युग है, जिसने 100 साल पहले सिनेमैटोग्राफ अधिनियम लागू होने के बाद से अग्रिम पीढ़ी के फिल्म निर्माताओं को वंचित कर रखा था।

भारतीय बाजार में इस आजादी का अधिकतर हिस्सा नेटफ्लिक्स के पास है, जिसने छह जुलाई को अपनी पहली ओरिजनल भारतीय वेब सीरीज सेक्रेड गेम्स को इस तथ्य के सा‌थ रेखांकित करते हुए जारी किया कि सेंसर बोर्ड हद दर्जे का मध्यस्‍थ बन गया है कि स्क्रीन पर क्या दिखाना चाहिए और क्या नहीं। विक्रम चंद्रा के 2006 के बेस्टसेलर सेक्रेड गेम्स पर आधारित और इसी नाम से शुरू हुई वेब सीरीज वर्जित सेक्स दृश्यों से भरी है, जिसमें नग्नता, हिंसा का अवांछित उपयोग, गालियों और सबसे बढ़कर अतीत की विभिन्न अस्थिर राजनीतिक घटनाओं के विवादास्पद संदर्भ शामिल हैं, जिन्हें केवल इन्हीं दृश्यों के कारण सेंसर बोर्ड ने हमेशा खुशी से काटा।

जैसी कि उम्मीद थी, आठ भाग वाली नेटफ्लिक्स पर जारी सीरीज ने तूफान उठाने, मुकदमों को आमंत्रित करने और सीबीएफसी जैसे नियामक प्राधिकरणों के अंतर्गत सारी डिजिटल सामग्री लाने की मांगों को बढ़ावा दिया है। लेकिन क्या किसी भी एजेंसी के लिए ऐसी सामग्री रोकने के लिए यह संभव या व्यावहारिक है, जो इस तरह के ओटीटी प्लेटफार्म के जरिए वैश्विक दर्शकों के लिए आपत्तिजनक और आकर्षित करने वाली हो? सीबीएफसी की सदस्य वाणी त्रिपाठी कहती हैं कि सेंसर बोर्ड इंटरनेट पर ऐसी किसी भी सामग्री को नियंत्रित नहीं कर सकता, जो निजी उपयोग के लिए है। त्रिपाठी ने आउटलुक को बताया, “हमें सार्वजनिक और निजी तौर पर देखने के बीच के अंतर को समझना है। इसके प्रमाणीकरण के दायरे में केवल सिनेमा हॉल में प्रदर्शित फिल्में या उसी तरह के सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शन वाले अन्य रूप आते हैं। यह इंटरनेट पर किसी भी सामग्री के लिए नियामक नहीं है। निजी स्‍थान में अपने सेलफोन पर व्यक्तिगत रूप से कोई भी कुछ भी देख सकता है।” त्रिपाठी मानती हैं कि सेक्रेड गेम्स वैश्विक दर्शकों तक अपनी निरी पहुंच के कारण एक गेम चेंजर है। यह सशक्त है, लेकिन डरावना भी।

सेक्रेड गेम्स आज 190 से अधिक देशों में उपलब्ध है और अनुराग कश्यप और विक्रमादित्य मोटवानी जैसे निर्देशकों का संयुक्त उपक्रम है। अतीत में दोनों के ही सेंसर बोर्ड के साथ मतभेद रहे हैं। सीरीज ने अपने मनोरंजक विषय, मसालेदार पटकथा, स्पष्ट फिल्मांकन और बेहतरीन निर्देशन के लिए खूब तारीफें बटोरी हैं। हालांकि, इसमें अपशब्दों और प्रेम-दृश्यों के अत्यधिक उपयोग की खुली आलोचना भी की गई है। लेकिन इस तथ्य से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि सेक्रेड गेम्स ने मनोरंजन को फिर से परिभाषित किया है और इसकी सफलता इसी तरह के ऑनलाइन उद्यमों के लिए मार्ग प्रशस्त कर सकती है।

मुंबई स्थित ऑल इंडिया सिने वर्कर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेश श्यामलाल गुप्ता फूहड़ नग्नता और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर कुछ अभद्र टिप्पणियों से इतने आहत हैं कि उन्होंने इसके खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है। गुप्ता कहते हैं, सरकार को सेक्रेड गेम्स पर फौरन रोक लगा देनी चाहिए। यह वेब सीरीज न केवल ज्यादा से ज्यादा नग्नता परोसती है, बल्कि स्व. राजीव गांधी का अपमान भी करती है। अभिव्यक्ति की आजादी आपको किसी को आहत और अपमानित करने का लाइसेंस नहीं देती। हम इस सीरीज के माध्यम से भारत के बारे में दुनिया को क्या दिखा रहे हैं? कांग्रेस के व्यापार प्रकोष्ठ से जुड़े गुप्ता का मानना है कि इस सीरीज की सामग्री भड़काऊ है। वह आरोप लगाते हैं, “इसके कुछ दृश्यों ने पहले ही अश्लील साइटों और व्हाट्सऐप को अपना रास्ता बना लिया है। इसके निर्माताओं को अच्छी तरह पता था कि सेंसर बोर्ड ऐसी सामग्री को कभी पास नहीं करेगा, इसीलिए उन्होंने इसे रिलीज करने के लिए नेटफ्लिक्स जैसा माध्यम चुना। फिल्म निर्माता अविनाश दास का विचार है कि एक वेब सीरीज पर प्रतिबंध लगाने से कोई उद्देश्य हासिल नहीं होगा। सेंसरशिप केवल वहीं लगाया जाता है, जहां यह संभव है।

पिछले साल अपनी फिल्म अनारकली ऑफ आरा की रिलीज से पहले सेंसर की बाधाओं से घिरने से परेशान दास का कहना है कि भारतीय सिनेमा को सेंसरशिप के जरिए हमेशा कुचला गया है, जो जबरन थोपा हुआ है। वह कहते हैं, भारतीय फिल्मों की तुलना में विश्व सिनेमा में अधिक नग्नता है। लेकिन यह अक्सर हमारे सिनेमा में अप्राकृतिक दिखता है, क्योंकि हमें ऐसे दृश्यों का उपयोग नहीं करने दिया जाता। सेक्रेड गेम्स में भी मुझे लगा कि कहानी कुछ जगहों पर नग्नता के बिना आगे ले जाई जा सकती थी। दास का कहना है कि डिजिटल संसार में किसी भी सामग्री को दिखाने की आजादी अब खत्म नहीं हो सकती। डिजिटल स्ट्रीमिंग और बॉक्स ऑफिस मौजूदा सेंसरशिप पॉलिसी में किसी भी बदलाव को लागू किए बिना एक-दूसरे के समानांतर चलेंगे।

पुरस्कृत फिल्म लेखक विनोद अनुपम कहते हैं, सिनेमाघर और डिजिटल संसार के दर्शक अलग-अलग हैं। कोई भी अपने मोबाइल फोन पर दंगल (2016) या संजय लीला भंसाली का एपिक नहीं देखना चाहता। हालांकि, अनुपम डरते हैं कि कई फिल्म निर्माता जो पहले से इससे पीड़ित हैं वे इंटरनेट पर यथार्थवाद के नाम पर कुछ भी दिखाने की मिली इस नई आजादी का लाभ उठा सकते हैं। वह निष्कर्ष निकालते हैं, लेकिन जब अश्लीलता ने सेंसर बोर्ड को अनावश्यक या अप्रासंगिक नहीं बनाया, तो वेब सीरीज ऐसा कैसे कर सकती है?

वास्तव में, सिनेमा में भारतीय संस्कृति को सर्वोत्तम दिखाने के लिए सामग्री को नियंत्रित करने की आवश्यकता हमेशा बनी रहेगी। हम सेक्स और नग्नता के साथ डिजिटल स्पेस का फैलाव करके हॉलीवुड को अपनाने की दिशा में नहीं बढ़ सकते। एक बड़े मध्यम वर्ग के दर्शक अब भी मौजूद हैं और वे सेंसर बोर्ड से विधिवत स्वीकृत एक पारिवारिक फिल्म देखना पसंद करते हैं।

सवाल उठाना बदलाव की शुरुआत का पहला पड़ाव है

मॉडल से अभिनेत्री बनीं कुब्रा सेट को ‘सेक्रेड गेम्स’ में अपनी ट्रांसजेंडर भूमिका के लिए आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है, तो वहीं नवाजुद्दीन सिद्दीकी के साथ उनके प्रेम-पूर्ण दृश्यों और खासकर एक नग्न दृश्य ने उनके सामने मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। अर्शिया धर से बातचीत में उन्होंने बताया कि क्यों नेटफ्लिक्स की पहली वेब सीरीज ने भारतीय सिनेमा में एक अलग तरह की सामग्री को प्रस्तुत किया। प्रस्तुत हैं बातचीत के मुख्य अंश :

क्या आप इस तरह की प्रतिक्रिया की उम्मीद करती थीं, जैसी कि आपको सेक्रेड गेम्स के लिए मिल रही हैं?

मुझे पता था कि हम कुछ सुंदर और भव्य बना रहे है। यह विशेष है। मुझे बहुत प्यारा लगता है।

आपने इस तरह के किरदार के लिए किस तरह की तैयारी की। इसमें भारतीय सिनेमा में रूढ़िवाद से बाहर के संदर्भ बिंदु हैं?

यह उनका साहस था, जिन्होंने इस चरित्र को ज्यादा महत्व दिया। ऐसे चरित्र को हमसे सम्मान के साथ पेश आने की अपेक्षा रहती है।

कुछ आलोचकों ने आपके किरदार के कुछ दृश्यों पर सवाल उठाए हैं?

सवाल उठाना बदलाव की शुरुआत का पहला पड़ाव है। हमारा समाज सही सवाल पूछ रहा है। हमें थर्ड जेंडर को प्रभावी मान्यता देनी चाहिए, ताकि वे भी अपनी भूमिकाओं को खुद निभा सकें। यदि किसी थर्ड जेंडर ने इस किरदार को निभाया होता, तब भी मैं इतनी ही खुश होती।

नवाजुद्दीन जैसे अभिनेता के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?

वह सबसे शर्मीले व्यक्ति हैं, जिनसे मैं मिली। मैंने शूट के दौरान उन्हें सहज करने की कोशिश की। पहली बार जब उनसे मिली तो अपने परिवार के बारे में गपशप शुरू की। हमने जल्द ही संकोच को दूर कर लिया। काम का हमारा पहला दिन सेक्स दृश्यों को शूट करने का था। हम अपने दृश्यों पर खुलकर हंसे। कुक्कू के किरदार को इतना प्यार करने के लिए मैंने निजी तौर पर उनका धन्यवाद किया।

अभिनेता और दर्शकों के संबंध में भारत जैसे देश में एक प्लेटफॉर्म के रूप में नेटफ्लिक्स कितना प्रासंगिक है, जबकि सेंसरशिप इस देश में एक बड़ा मुद्दा है?

इस तरह के प्लेटफॉर्म रचनात्मक आजादी की अनुमति देते हैं। वे बिना किसी अवरोध के अभिव्यक्ति की इजाजत भी देते हैं। लेकिन किसी को भी यह हमेशा याद रखना चाहिए कि यह एक बड़ी ‌जिम्मेदारी के साथ आती है। इसको हमेशा महत्व देना चाहिए। सेक्रेड गेम्स भारतीय दृश्य सामग्री को एक अलग स्तर पर ले जाएगा। 

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