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हर दिल अजीज अंदाजे-बयां

हिंदी फिल्मों को अनोखे और दिलकश गीत देने वाले राजा मेहदी अली खान और भी विधाओं में थे माहिर
राजा मेहदी अली खान

कभी बांस और सुरमे के लिए मशहूर बरेली को ‘झुमका गिरा रे बरेली के बाजार में’ गीत से पहचान देने वाले गीतकार राजा मे‌हदी अली खान के गीतों में दर्द भी लज्जत से लबरेज लगता है, इश्क मासूम नजर आता है, तो जुदाई के जज्बात चाश्नी में तर महसूस होते हैं। यही उनका अंदाज है और उनके गीतों की खासियत भी। गीतों में पिरोए उनके लफ्जों का ही सुरूर है कि आज भी उनकी शख्सियत अनजानी मालूम नहीं होती और कानों में घुलते उनके गीतों के मधुर बोलों में उनका अक्स नजर आता है।

पंजाब के गुजरांवाला में पले-बढ़े राजा मेहदी अली खान के अंदर पनप रहे शायर ने उन्हें बागी बना दिया। उनके पिता चाहते थे कि वह जमींदारी संभालें या व्यापार करें, लेकिन इसके उलट उन्होंने शायरी के मैदान में कदम रखा। कलम से उनका रिश्ता एक सहाफी (पत्रकार) के तौर पर शुरू हुआ और फूल, तहजीब और निस्वां जैसे रिसालों से अपने कॅरिअर की शुरुआत ‌की। उन्होंने जमींदार अखबार में भी बतौर पत्रकार काम किया। वहीं, उन्होंने कई मशहूर लेखकों की कहानियों का अनुवाद भी किया, जो उस समय के नामी रिसालों में प्रकाशित हुईं। उनका उर्दू में अनूदित उपन्यास कमला काफी मशहूर है। 1942 में दिल्ली में ऑल इंडिया रेडियो से वह स्टाफ आर्टिस्ट के तौर पर जुड़े। 1946 में सआदत हसन मंटो के बुलावे पर दिल्ली से बंबई (अब मुंबई) गए।

वहां उनके अंदर छुपे शायर ने उन्हें‌ फिल्मी गीतों की तरफ मोड़ दिया। इस तरह बतौर गीतकार वह फिल्मों से जुड़ गए।

फिल्म वो कौन थी का गीत, ‘जो हमने दास्तां अपनी सुनाई आप क्यों रोए’, अपने दर्द के एहसास की बिना पर ही बेहद लोकप्रिय हुआ। वहीं, उनके गीतों की कुछ और खासियतें भी हैं। यह उनकी काबि‌लियत ही है‌ कि महज एक शब्द ‘आप’ से उन्होंने जज्बातों के जुदा-जुदा परिंदों को परवाज दी। इसे ‘आपके पहलू में आकर रो दिए’, ‘आपको प्यार छुपाने की बुरी आदत है’, ‘आपकी नजरों ने समझा प्यार के काबिल मुझे’, और ‘आप यूं ही अगर हमसे मिलते रहे’, जैसे गीतों को सुन कर समझा जा सकता है।

फिल्म शहीद में उन्होंने चार गीत लिखे थे, जिसका गीत ‘वतन की राह में वतन के नौजवां शहीद हो’ न सिर्फ पसंद ही किया गया, ‌बल्कि युवाओं में जोश जगाने में भी कामयाब रहा। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने तो न सिर्फ उसे सराहा, बल्कि रिकॉर्ड तक ‌खरीद कर रख लिया था। एक शायर, संवाद लेखक से होते हुए अभिनय तक का सफर भी राजा मेहदी अली खान ने तय किया। फिल्म आठ दिन की कहानी सआदत हसन मंटो ने लिखी थी और इसमें मंटो, उपेंद्रनाथ अश्क, अख्तर-उल-ईमान के अलावा राजा मेहदी अली खान ने भी अभिनय किया था।

शब्द जब गम की तपिश में झुलस कर मंजरे-आम पर आते हैं, तो असर करते ही हैं। उनके लिखे गीत, ‘लग जा गले कि ‌फिर यह हसीं रात हो कि न हो’, को फिल्माते वक्त भी कुछ ऐसा ही हुआ। फिल्म की नायिका साधना उसे सुन कर इतना जज्बाती हुईं कि फूट-फूट कर रो पड़ी थीं और शूटिंग कुछ देर के लिए रोकनी पड़ी। अक्सर होता यह है कि गीत लिखने के लिए किसी लेखक को एक खास वक्त, मूड की दरकार होती है, लेकिन वह चलते-फिरते, उठते-बैठते किसी भी वक्त ‌गीत लिख लिया करते थे, मानो शब्द उनकी कलम से ‌निखरने को ‌बेचैन हों। संगीतकार मदन मोहन ने कहा था, “राजा मेहदी अली खान ने कागज का पुर्जा उठा कर ‘तू जहां-जहां चलेगा, मेरा साया साथ होगा’, गीत को उसी पर लिख दिया।” इसी तरह ‘आपकी नजरों ने समझा प्यार के काबिल मुझे’, गीत वजूद में आया, जो बेहद लोकप्रिय हुआ। ‘है इसी में प्यार की आबरू वह जफा करें मैं वफा करूं, ‘अगर मुझसे मुहब्बत है मुझे सब अपने गम दे दो’, ‘नैनो में बदरा छाए बिजली-सी चमकी हाय’, ‘तेरे पास आके मेरा वक्त गुजर जाता है’, ‘आखिरी गीत मुहब्बत का सुना लूं तो चलूं’, उनके ये गीत बेहद मशहूर हुए। 

अपनी संजीदा तबीयत से अलग वे बचपन में बेहद शरीर और नटखट थे और शरारतों की वजह से उनकी पिटाई तक होती थी, उसे नज्म के रूप में उन्होंने कुछ इस अंदाज में बयान किया था-‘बच्चों पे जुल्म कर लो, कयामत करीब है, अब हद से तुम गुजर लो, कयामत करीब है।’ चार दशक तक करीब 72 फिल्मों के लिए उन्होंने 300 से ज्यादा गीत लिखे। बतौर शायर उनकी मिजराब, अंदाजे-बयां और तथा चांद का गुनाह जैसी कई किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं।

शायर के तौर पर उन्होंने कोई उपनाम इस्तेमाल नहीं किया, मगर इस बारे में उन्होंने कुछ अलग ही कहानी बयान की थी, “कौन कहता है कि मैंने अपने लिए कोई तखल्लुस नहीं चुना। बचपन में रुसवा उपनाम रखा था, लेकिन इसकी वजह से घर के बुजुर्ग मुझे गुंडा कहने लगे। उनकी बातों से जब दिल जख्मी हो गया, तो मैंने घायल उपनाम रख लिया, लेकिन फिर दोस्तों ने मजाक बनाना शुरू कर दिया, तब से बेतखल्लुस ही चला आ रहा हूं।” 29 जुलाई, 1966 को वे अपने आखिरी सफर पर निकल गए। यूं तो आज वे हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके गीतों की कशिश जब दिलों को खींचती है, तो उनकी याद भी ताजा हो जाती है।

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