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सबको चाहिए मुफ्त बिजली

संकट बढ़ा मगर कांग्रेस, अकाली दल, आम आदमी पार्टी के रसूखदार नेताओं को भी मिल रही है मुफ्त बिजली
किसानों के ट्यूबवेल पर लगेंगे मीटर

खेती के लिए मुफ्त बिजली का बोझ साल दर साल न केवल सरकारी खजाने पर बढ़ रहा है बल्कि भूजल स्तर भी गिरता जा रहा है। पंजाब के 148 में से 110 ब्लॉक भूजल स्तर के लिहाज से खतरे में हैं। कई इलाकों में यह स्तर 300 फुट से भी नीचे पहुंच चुका है। इस मामले में स्वेच्छा से खेती के लिए मुफ्त बिजली छोड़ने की मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिदंर सिंह की अपील भी बेअसर रही है। इसलिए पंजाब सरकार ने मुफ्त की बिजली से भूजल दोहन पर अंकुश लगाने और सरकारी खजाने पर पड़ने वाले सालाना 6000 करोड़ रुपये के सब्सिडी बोझ को कम करने की कवायद तेज कर दी है। रेटिंग एजेंसी इक्रा के ग्रुप हेड सब्यसाची मजूमदार का कहना है कि बिजली सब्सिडी का राज्यों पर करीब 81 हजार करोड़ रुपये का बोझ डायरेक्ट बेनिफट ट्रांसफर (डीबीटी) लागू कर घटाया जा सकता है। बिहार ने इसकी पहल की है। पूरी तरह मुफ्त बिजली के बजाय सब्सिडी की रकम खातों में डालना बेहतर उपाय है।

पंजाब सरकार की प्रस्तावित कृषि नीति में आयकर के दायरे में आने वाले किसानों को मुफ्त बिजली बंद करने का प्रस्ताव है, जबकि छोटे किसानों को खेती ट्यूबवेल के लिए मुफ्त बिजली के बजाय सब्सिडी की रकम उनके बैंक खातों में ट्रांसफर करने पर विचार चल रहा है। वित्त मंत्री मनप्रीत बादल का कहना है कि वे खुद मुफ्त बिजली छोड़ने के लिए पावरकॉम को लिख रहे हैं। इसके पीछे सरकार का मकसद किसानों को खेती के लिए मुफ्त बिजली बंद करना नहीं है, बल्कि सब्सिडी सही जरूरतमंदों तक पहुंचाना और भूजल की बर्बादी रोकना है। उधर, पावरकॉम ने भी पांच एकड़ से बड़े किसानों को मुफ्त बिजली देने के बजाय ट्यूबवेल मोटर पर प्रति बीएचपी प्रति महीना 150 से 200 रुपये फिक्स चार्ज वसूलने की सिफारिश की है। सब्सिडी रकम बैंक खातों में ट्रांसफर करने के लिए जे-पाल नाम की एजेंसी ने सरहिंद व मुकेरियां के छह रूरल फीडर्स से जुड़े किसानों के ट्यूबवेल पर मीटर लगाने का पायलट प्रोजेक्ट शुरू कर दिया है। इस साल एक हजार किसानों के ट्यूबवेल पर मीटर लगाने का लक्ष्य है। ट्यूबवेल कनेक्शनों के साथ किसानों की जमीन की जानकारी भी जुटाई जा रही है।

मुख्यमंत्री को भी मुफ्त बिजली

मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने रसूखदार लोगों से मुफ्त बिजली छोड़ने की अपील करते हुए खुद भी अपने खेतों के लिए फ्री बिजली नहीं लेने का ऐलान किया था। लेकिन ताज्जुब की बात है कि मुख्यमंत्री ने खुद ही अपनी इस घोषणा पर अमल नहीं किया। इसकी पुष्टि करते हुए पंजाब पावरकॉम के आला अधिकारियों ने बताया कि मुख्यमंत्री ने अभी तक पावरकॉम को लिखित में मुफ्त बिजली छोड़ने की जानकारी नहीं दी है, इसलिए उन्हें अभी भी मुफ्त बिजली दी जा रही है। इस बारे में मुख्यमंत्री का पक्ष जानने के लिए उनके मीडिया सलाहकार रवीन ठुकराल से संपर्क किया गया पर मुख्यमंत्री की ओर से कोई जवाब नहीं मिला।

मुख्यमंत्री के अलावा मुफ्त की बिजली से खेत सींचने वालों में पंजाब विधानसभा के स्पीकर केपी राणा और मौजूदा सरकार के आठ कैबिनेट मंत्रियों समेत 42 विधायक, 9 सांसद और उनके परिवारों के अलावा केंद्र व राज्य सरकार के पहले दर्जे के अफसर भी शामिल हैं। इन 42 विधायकों में पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का भी परिवार है। पांच बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे बादल की गिनती सूबे के बड़े किसानों में होती है। सीएम की अपील पर मुफ्त बिजली छोड़ने की पहल करने वाले रसूखदारों में सिर्फ सांसद और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ और उनके भतीजे अजयवीर जाखड़ का नाम गिनाया जा सकता है। विपक्ष के नेता सुखपाल खैहरा और उनके परिवार ने भी अपने आठ ट्यूबवेल कनेक्शन की मुफ्त बिजली छोड़ने की लिखित जानकारी जरूर दी थी पर पावरकॉम द्वारा जारी किए बिजली बिल अदा नहीं किए हैं।

मुफ्त बिजली ले रहे पंजाब सरकार के कैबिनेट मंत्रियों में वित्त मंत्री मनप्रीत बादल, आवास व शहरी विकास और ग्रामीण विकास मंत्री राजेंद्र बाजवा, जेल एवं सहकारिता मंत्री सुखजिंदर रंधावा, शिक्षा मंत्री ओपी सोनी, खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री भारत भूषण आशु, उद्योग मंत्री सुंदरश्याम अरोड़ा, परिवहन मंत्री अरुणा चौधरी, उच्च शिक्षा एवं जलापूर्ति मंत्री रजिया सुल्ताना शामिल हैं। पावरकॉम के रिकॉर्ड के मुताबिक, बादल गांव में वित्त मंत्री मनप्रीत बादल के नाम दो ट्यूबवेल कनेक्शन में हरेक पर 7.5 बीएचपी की मोटर है। आवास एवं शहरी विकास और ग्रामीण विकास मंत्री राजेंद्र बाजवा के बेटे के नाम कादियां के राजोआ-बहादुरपुर में, परिवहन मंत्री अरुणा चौधरी के ससुर जयमुनि के नाम दीनानगर के अदनखा में और उच्च शिक्षा एवं जलापूर्ति मंत्री रजिया सुल्ताना के परिवार का मलेरकोटला के हथोआ में ट्यूबवेल कनेक्शन है। बादल गांव में पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के नाम दो ट्यूबवेलों में हरेक पर 3.70 बीएचपी की मोटर लगी है। वहीं इतने ही हॉर्स पावर की मोटर के दो कनेक्शन बादल की दिवंगत पत्नी सुरिंदर कौर के नाम पर अभी तक चल रहे हैं। पावरकॉम के रिकॉर्ड में 27 साल पहले लगी बादल परिवार के ट्यूबवेलों पर लगी मोटरों में भी कोई बदलाव नहीं हुआ है। पूर्व बिजली मंत्री राणा गुरजीत सिंह ने खुद को पंजाब में लैंडलेस बताते हुए कहा कि उनके पास कोई ट्यूबवेल कनेक्शन नहीं है। जबकि इन लैंडलेस पूर्व मंत्री एवं विधायक की चंडीगढ़ के निकट में 8.72 करोड़ रुपये की कृषि भूमि है (जनवरी 2017 में चुनाव आयोग में दाखिल शपथ-पत्र के मुताबिक) 

छोटे किसान पानी खरीदकर सींच रहे खेत

सालाना 11800 मिलियन यूनिट मुफ्त बिजली पाने वाले पंजाब के 13.51 लाख खेती ट्यूबवेल कनेक्शनों में से 7.05 लाख कनेक्शन 10 एकड़ से ज्यादा जमीन वाले किसानों के हैं। 5 से 15 बीएचपी का सबमर्सिबल पंप लगाने का खर्च दो से ढाई लाख रुपये बैठता है इसलिए ढाई एकड़ तक की जमीन वाले 1.64 लाख किसानों में से 81,867 और ढाई से पांच एकड़ वाले 1.95 लाख किसानों में 46,340 के पास ट्यूबवेल कनेक्शन नहीं हैं। ये छोटे किसान नहर, डीजल इंजन और बड़े किसानों से पानी खरीद खेत सींच रहे हैं। लुधियाना से आप विधायक बलविंदर सिंह बैंस का कहना है कि मुफ्त बिजली से बगैर जरूरत चल रहे ट्यूबवेलों के कारण पानी की बबार्दी बढ़ी है। तीन एकड़ तक की जमीन वाले किसानों को ही मुफ्त बिजली मिले।

जाहिर है पिछले 21 साल से मुफ्त बिजली का ज्यादातर फायदा रसूखदार लोगों और बड़े किसानों को मिल रहा है। सरकारों ने कभी आकलन नहीं किया कि मुफ्त बिजली का फायदा छोटे किसानों को मिल रहा है या नहीं। राज्य के 13.51 लाख ट्यूबवेल में से 9.78 लाख सबमर्सिबल पंप हैं। भूजल बोर्ड के मुताबिक, पिछले 10 साल में 54 फीसदी किसानों ने सबमर्सिबल पंप लगाए हैं और 46 फीसदी ने अधिक क्षमता की मोटरें लगाई हैं। यानी बड़े किसान मुफ्त बिजली के साथ-साथ भूजल दोहन में भी आगे हैं। खेती के लिए मुफ्त बिजली छोड़ने के सवाल पर बलाचौर से कांग्रेसी विधायक दर्शन लाल ने कहा कि कई विधायक तो पांच से सात एकड़ जमीन वाले हैं वे मुफ्त बिजली क्यों छोड़ें। 25 एकड़ से ज्यादा जमीन वाले किसान बिजली छोड़ें या फिर उनकी मुफ्त बिजली बंद कर देनी चाहिए।

सिंचाई पर सियासत भारी

1997 में सात एकड़ तक के किसानों को मुफ्त बिजली की पहल कांग्रेस सरकार ने ही की थी। हालांकि, इस रियायत के बावजूद कांग्रेस 1997 का चुनाव हार गई। उसके बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार ने अक्टूबर 2002 से अगस्त 2005 तक ट्यूबवेलों की मुफ्त बिजली बंद कर दी थी। इससे सरकार को सालाना 2800 करोड़ रुपये की बचत हुई। मगर 2007 के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर 2005 से किसानों को मुफ्त बिजली बहाल कर दी गई। विडंबना देखिए, कांग्रेस फिर भी चुनाव नहीं जीत पाई। उसके बाद वोट की सियासत के लिए मुफ्त बिजली जारी रखने वाले अकाली-भाजपा गठबंधन को भी हार का सामना करना पड़ा।

मुफ्त बिजली लेने वाले कांग्रेसी मंत्रीः मनप्रीत बादल, तृप्त राजेंद्र बाजवा, सुखजिंदर रंधावा, अरुणा चौधरी, रजिया सुल्ताना, ओपी सोनी, सुंदरश्याम अरोड़ा, भारत भूषण आशु

शिरोमणि अकाली दल के विधायकः प्रकाश सिंह बादल, सुखबीर बादल, कंवरजीत सिंह, रोजी बरकंदी, प्रीतम सिंह कोटभाई, लखबीर सिंह, शरणजीत ढिल्लों

आप विधायक और उनके परिवारः गुरमीत सिंह मीत, जगदेव सिंह कमालू, नाजर सिंह, अमरजीत संदोआ 

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