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‘जंगलराज’ की बदस्तूर आहट

दुष्कर्म, हत्या के बढ़ते सिलसिले से सुशासन की साख पर बट्टा, कानून-व्यवस्था बनी सिरदर्द, शराबबंदी के बोझ तले दबा पुलिस महकमा
पानी ‌सिर से ऊपरः अपराध और यौन शोषण के खिलाफ पटना में महिलाओं का प्रदर्शन

बनगांव, बिहार की राजधानी पटना से करीब 250 किलोमीटर दूर है। सहरसा जिले के इस गांव का हर कोना सीसीटीवी कैमरे की जद में है। यह किसी सरकारी योजना का कमाल नहीं है, बल्कि कानून-व्यवस्‍था की लगातार बिगड़ती स्थिति से डरे ग्रामीणों द्वारा चंदा इकट्ठा कर तैयार की गई निगरानी व्यवस्‍था है।

हाल में राज्य में कुछ ऐसी घटनाएं हुई हैं जो न केवल सिहरन पैदा करती हैं, बल्कि लोगों में फिर से जंगलराज का डर गहराने लगा है। 13 जून को गया जिले में एक डॉक्टर को अपराधियों ने पेड़ से बांध कर उनके सामने उनकी पत्नी और नाबालिग बेटी से दुष्कर्म किया। 20 जून को पटना से सटे नौबतपुर में एक व्यवसायी को हमलावरों ने गोलियों से भून डाला। 22 जून को बेतिया में एक शिक्षक के सामने उसके बेटे की हत्या कर दी गई। 23 जून को बाढ़ में दिन-दहाड़े पूर्व मुखिया की बाइक सवार अपराधियों ने गोली मारकर हत्या कर दी। 

ये घटनाएं सुशासन में अपराधियों के बढ़े मनोबल की महज बानगी हैं। नेशनल क्राइम ब्यूरो की 2017 की रिपोर्ट बताती है कि महिलाओं के लिए पटना देश का चौथा सबसे असुरक्षित शहर है। जब राजधानी में आधी आबादी महफूज न हो तो राज्य के अन्य हिस्सों की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। बिहार पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि पिछले साल राज्य में 2803 हत्याएं, 1198 दुष्कर्म और 9014 अपहरण-फिरौती की वारदातें हुईं। इस साल के शुरुआती तीन महीनों में ही हत्या की 667, दुष्कर्म की 289 और अपहरण-फिरौती की 2171 घटनाएं हो चुकी हैं। हाल में राज्य में छह ऐसे वीडियो वायरल हुए हैं जिनमें लड़कियों के साथ जबर्दस्ती, मारपीट और गाली-गलौज करते लड़के नजर आए थे। इसके बाद राज्यपाल सत्यपाल मलिक को सार्वजनिक तौर पर कहना पड़ा कि छात्राएं अब सीधे राजभवन में शिकायत करें। इसके लिए बाकायदा राजभवन में कुछ अधिकारी नियुक्त किए गए हैं।

बनगांव के ब्रह्मानंद झा ने आउटलुक को बताया, “मैं 50 साल का हूं और गांवों में आपराधिक गतिविधियां बीते चार-पांच साल में जिस तरह बढ़ी हैं वैसा मैंने पहले कभी नहीं देखा था। पुलिस से निराशा हाथ लगने के बाद मेरे गांव के लोगों ने इस साल जनवरी में खुद से सीसीटीवी लगाने का निश्चय किया।” आंकड़े भी बताते हैं कि राज्य में 2013 से ही सुशासन की लय लड़खड़ाने लगी थी, जब महिलाओं के खिलाफ अपराध, खासकर बलात्कार की घटनाओं में 21 फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया था। 2012 में दुष्कर्म के 927 मामले दर्ज हुए थे, जो 2013 में बढ़कर 1128 पर पहुंच गया था। इसी तरह 2012 में अपहरण-फिरौती की 3,789 घटनाएं सामने आई थीं जो अगले साल यानी 2013 में बढ़कर 4,419 तक पहुंच गई थीं।

अब हालात इस कदर बिगड़ चुके हैं कि 2005 में बिहार की कमान संभालने के बाद कानून-व्यवस्‍था और सड़कें दुरुस्त करके मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ‘सुशासन बाबू’ का जो आभामंडल बनाया था उसकी चमक फीकी पड़ने लगी है। हालांकि, नीतीश कुमार अब भी दावा करते हैं कि कानून-व्यवस्‍था उनकी प्राथमिकता है। 18 जून को पटना में एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा, “हम कभी भी अपराध, भ्रष्टाचार और सांप्रदायिकता से समझौता नहीं करेंगे।” लेकिन इसके अगले ही दिन पटना से सटे फतुहा और दानापुर से हत्या की घटनाओं की खबरें आईं।

राज्य में सत्ता की साझेदार भाजपा के नेता कानून-व्यवस्‍था की इस स्थिति के लिए नीतीश के नेतृत्व वाली महागठबंधन की सरकार को जिम्मेदार मानते हैं, जिसमें लालू प्रसाद की राजद और कांग्रेस शामिल थी। गया की घटना के बाद केंद्रीय राज्यमंत्री गिरिराज सिंह ने कहा था, “नीतीश कुमार कुछ दिनों के लिए राजद के साथ चले गए थे, जिसके कारण राज्य में अपराध बढ़े हैं।” लेकिन, बिहार पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि एनडीए सरकार बनने के बाद भी हालात जस के तस हैं। राज्य में महागठबंधन की सरकार फरवरी 2015 से जुलाई 2017 तक चली। इस दौरान हर महीने औसतन 245 हत्याएं, 91 दुष्कर्म और 663 अपहरण-फिरौती की घटनाएं सामने आईं। एनडीए सरकार के शुरुआती नौ महीनों में हर महीने औसतन 207 हत्याएं, 87 दुष्कर्म और 647 अपहरण-फिरौती की घटनाएं हुई हैं।

वैसे भी अब राजद शासनकाल का जंगलराज बीते कल की बात हो चुकी है। अब कसौटी पर नीतीश का शासनकाल है। इसलिए, विपक्ष कानून-व्यवस्‍था को सबसे बड़ा राजनैतिक मुद्दा बनाने में जुटा है। राजद नेता और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने राज्य में बढ़ती अपराध की घटनाओं पर तंज कसते हुए कहा, “राज्य में हर महीने 98 बलात्कार, 233 हत्या, 725 अपहरण की घटनाएं हो रही हैं। लेकिन बेसुरा सुशासनी राग अब भी अलापा जा रहा है। नीतीश जी और सुशील मोदी के जंगलराज देखने व गाने वाले सभी चक्षु, नसें, नाड़ी और धमनियां बंद हैं।” कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कौकब कादरी ने आउटलुक को बताया, “भाजपा और जदयू के आपसी मतभेद से कानून-व्यवस्‍था की स्थिति बदतर हो चुकी है। दोनों दलों में सामंजस्य नहीं होने से अधिकारियों के अलग-अलग गुट हैं, इससे अपराधियों का मनोबल बढ़ा हुआ है।” उन्होंने बताया कि बिहार में कानून-व्यवस्‍था और सांप्रदायिकता सबसे बड़ा मुद्दा है।

बिहार पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि राज्य में बीते साल 11, 698 और इस साल के शुरुआती तीन महीनों में 2,288 दंगे हो चुके हैं। इस साल रामनवमी पर राज्य के कई हिस्सों में भड़के दंगे और उसमें सत्ताधारी भाजपा से जुड़े लोगों की भूमिका भी सामने आई थी।

हालांकि, राज्य के लोक स्वास्‍थ्य अभियंत्रण (पीएचईडी) मंत्री और भाजपा नेता विनोद नारायण झा इससे इत्तेफाक नहीं रखते। उन्होंने आउटलुक को बताया कि तेजस्वी यादव और उनकी पार्टी राजद में कानून-व्यवस्‍था की स्थिति या भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाने की ताकत नहीं है। उनके मुताबिक राज्य में कानून का राज है और हाल में अपराध की ‘छिटपुट’ घटनाएं सामने आई हैं। उन्होंने बताया, “कानून-व्यवस्‍था पूरी तरह नियंत्रण में है। लालू के राज में सत्ता के संरक्षण में जो संगठित अपराध चल रहा था वह अब नहीं है। अपराधियों के खिलाफ कठोर से कठोर कार्रवाई की जा रही है और उन्हें शासन से मदद नहीं मिलती। छिटपुट अपराध रोककर आदर्श स्थिति लाना किसी भी सरकार के लिए संभव नहीं है।”

उन्होंने बताया कि अब पुलिस एफआइआर दर्ज करने में आनाकानी नहीं करती इसलिए आंकड़ाें में तस्वीर भयावह लगती है। माना जा रहा है कि पहले से ही संसाधनों और कर्मचारियों की कमी से जूझ रही पुलिस पर शराबबंदी लागू होने के बाद से दबाव काफी बढ़ गया है जिसका फायदा अपराधी उठा रहे हैं। इस संबंध में पुलिस के आला अधिकारियों से उनका पक्ष जानने के लिए हमने कई बार संपर्क किया, लेकिन जवाब नहीं मिल पाया। वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेश्वर वात्स्यायन ने बताया कि पुलिस का प्राथमिक काम कानून-व्यवस्‍था दुरुस्त करना है, लेकिन उसके ऊपर अन्य कामों का इतना दबाव है कि पूरी व्यवस्‍था ठप हो चुकी है।

शराबबंदी और बालू उत्‍खनन बंद होने को भी बढ़ते अपराध से जोड़ा जाता है। ज्ञानेश्वर ने बताया, “शराबबंदी से कई फायदे हुए हैं, लेकिन इस धंधे से जुड़े लोगों को दूसरा रोजगार नहीं मिल पाया। इसी तरह बालू उत्खनन बंद होने से भी बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हुए। लेकिन, सरकार इनके लिए रोजगार की वैकल्पिक व्यवस्‍था करने में नाकाम रही है।”

ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि शराबबंदी से राज्य में आपराधिक वारदातें कम होने और पूरे प्रदेश में ‘अमन-चैन’ कायम होने के नीतीश कुमार के दावे में दम भी है या यह महज छलावा है।

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