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पैकेजिंग ज्यादा, राहत थोड़ी

उपचुनावों के बाद जिस पैकेज का ऐलान किया गया उसके दावों और हकीकत में अंतर कुछ ज्यादा ही है
गन्ना किसानों का बकाया रिकॉर्ड स्तर पर

उपचुनावों की हार-जीत सरकारी नीतियों पर असर डाल दे, ऐसा कम ही होता है। लेकिन उत्तर प्रदेश के कैराना और नूरपुर उपचुनावों में भाजपा की हार ने एक बड़ा काम किया। केंद्र की मोदी सरकार को गन्ना किसानों की तकलीफ और नाराजगी का एहसास करा दिया। चुनाव परिणाम के हफ्ते भर के अंदर चीनी मिलों के लिए एक राहत पैकेज तैयार था। दावा है कि चीनी मिलों को दी जा रही करीब 7,000 करोड़ रुपये की यह राहत किसानों तक पहुंचेगी। हालांकि, असलियत कुछ और ही है।

देश में चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का बकाया भुगतान रिकॉर्ड 22 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है। इसमें करीब 13 हजार करोड़ रुपया यूपी की चीनी मिलों पर बाकी है। इस साल यूपी और महाराष्ट्र में गन्ने की रिकॉर्ड उपज हुई। गन्ने से चीनी की रिकवरी भी अच्छी रही। मगर घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी के दाम गिरावट की ओर हैं। ऐसे में चीनी मिलों ने किसानों का भुगतान टाल दिए। इस तरह भाव के भंवर में फंस गया किसान!

बहरहाल, छह जून को मोदी कैबिनेट ने चीनी मिलों के लिए राहत पैकेज का ऐलान किया। किसानों के नाम पर चीनी मिलों को पहले भी सरकारी मदद मिलती रही है। लेकिन इस बार पैकेज के दावों और हकीकत में अंतर कुछ ज्यादा ही दिख रहा है। जिस पैकेज को सरकार 7,000 करोड़ रुपये का बता रही है, असल में वह करीब 4,000 करोड़ रुपये का है।

शुगर पैकेज के तहत 30 लाख टन चीनी का बफर स्टॉक बनाया जाएगा, जिसके लिए 1,175 करोड़ रुपये खर्च होंगे। यह पैकेज का सबसे कारगर कदम है और चीनी मिलों को सीधे मिलेगा। यह पैसा सीधे किसानों के खातों में पहुंच सकता है। लेकिन जब देश की 550 चीनी मिलों के बीच 30 लाख टन का बफर स्टॉक बंटेगा तो एक मिल के हिस्से में औसतन दो-तीन करोड़ रुपये की राहत आएगी। जबकि कई मिलों पर सैकड़ों करोड़ रुपये का बकाया। गन्ना किसानों के बकाया 22,000 करोड़ रुपये के मुकाबले 1,175 करोड़ रुपये की यह मदद करीब पांच फीसदी बैठती है। यह रकम भी चीनी मिलों को मिलने में दो से तीन महीने लग जाएंगे।

शुगर पैकेज के तहत एथेनॉल उत्पादन की क्षमता विकसित करने के लिए चीनी मिलों को बैंकों से 4,440 करोड़ रुपये सस्ता कर्ज दिलाया जाएगा। इस पर सरकार पांच साल के लिए अधिकतम 1,332 करोड़ रुपये की ब्याज सब्सिडी देगी। लेकिन यह दूर की कौड़ी है। सरकार खुद पांच साल की बात कर रही है। यानी इससे बकाया भुगतान की मौजूदा समस्या फिलहाल हल होने वाली नहीं है। 

गन्ना किसानों के लिए पैकेज के एक हिस्से के रूप में सरकार चीनी मिलों को निर्यात प्रोत्साहन के तहत गन्ने के फेयर ऐंड रिम्यूनरेटिव प्राइस (एफआरपी) के भुगतान के लिए 5.50 रुपये प्रति क्विंटल की मदद का फैसला कुछ दिन पहले ले चुकी है। इससे मिलों को करीब 1,500 करोड़ रुपये की मदद मिल सकती है। सरकार इस रियायत के जरिए करीब 20 लाख टन चीनी का निर्यात कराना चाहती है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी का भाव फिलहाल करीब 2,200 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास है। यानी 5.50 रुपये प्रति क्विंटल की राहत पाने के लिए चीनी मिलों को घाटा उठाकर चीनी का निर्यात करना होगा।

सही मायने में किसानों को गन्ना मूल्य का भुगतान करने के लिए सरकारी मदद का आकार 2,675 करोड़ रुपये बैठता है, और वह भी तब जब चीनी मिलें 20 लाख टन चीनी का निर्यात करें। इसमें एथेनॉल उत्पादन क्षमता के लिए ब्याज छूट को जोड़ दें तो भी यह 4,000 करोड़ रुपये पर अटक जाता है। जबकि इस ब्याज छूट का किसानों के भुगतान से फिलहाल कोई नाता नहीं है। लेकिन सरकार राजनीतिक फायदे के लिए पैकेज का आकार 7,000 करोड़ रुपये से ज्यादा बता रही है। लेकिन जब यह पूरा भुगतान किसान को नहीं मिलेगा तो वह खुद को ठगा हुआ महसूस करेगा जिससे फायदे के बजाय राजनीतिक नुकसान हो सकता है।

शुगर पैकेज के एक हिस्से के तहत सरकार ने चीनी की न्यूनतम कीमत 29 रुपये प्रति किलोग्राम तय कर दी है। इसे सबसे कारगर उपाय माना जा सकता है क्योंकि इससे चीनी की कीमत बढ़ेगी। जो पैकेज घोषित होने के चार दिन बाद ही करीब 200 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ चुकी है। अगर चीनी महंगी होगी तो मिलों को गन्ना मूल्य का भुगतान करने के लिए सरकारी मदद की दरकार नहीं होगी। वैसे चीनी उद्योग 29 रुपये प्रति किलो की कीमत को नाकाफी बता रहा है। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के डायरेक्टर जनरल अबिनाश वर्मा कहते हैं कि इस दाम पर भी चीनी की लागत निकलनी मुश्किल है जो फिलहाल 35 रुपये प्रति किलोग्राम के आसपास बैठती है। इससे गन्ने के बकाया भुगतान की उम्मीद करना बेमानी है। 

न्यूनतम कीमत व्यवस्था लागू करने के लिए चीनी मिलों के लिए चीनी बिक्री की मासिक कोटा व्यवस्था लागू की गई है, जो पहले भी थी। लेकिन उद्योग को नियंत्रण मुक्त करने के लिए इसे हटाया गया था।

पैकेज के बारे में अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के संयोजक वीएम सिंह कहते हैं कि यह पैकेज ऊंट के मुंह में जीरा भी नहीं है। सरकार अपनी नाकामियां छिपाने और कैराना की हार के बाद राहत पैकेज देने का नाटक कर रही है।

सवाल यह भी है कि इस पैकेज के लिए पैसा कहां से आएगा। फिलहाल शुगर डेवलपमेंट फंड में सिर्फ एक हजार करोड़ रुपये हैं। सूत्रों की मानें तो चीनी पर तीन रुपये सेस लगाने का भी विचार किया जा रहा है। इस मामले में अटार्नी जनरल की राय का इंतजार है क्योंकि केरल और पश्चिम बंगाल शुगर पर सेस का जीएसटी काउंसिल में विरोध कर चुके हैं।

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