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एक आत्मीय विशेषांक

अप्रतिम साहित्यकार, संपादक श्रीपत राय पर एकाग्र अंक
लमही का अप्रैल-सितंबर (संयुक्तांक)

पिछले एक दशक से, साहित्यिक परिदृश्य पर अपनी दमदार मौजूदगी बनाए हुए लघु पत्रिका लमही का अप्रैल-सितंबर (संयुक्तांक) 2018 का विशेषांक, अप्रतिम साहित्यकार, संपादक श्रीपत राय पर एकाग्र है। कथा जगत की शाश्वत व शीर्ष वि‌भूति प्रेमचंद के बड़े सुपुत्र श्रीपत जी ने अपना सक्रिय जीवन साहित्य, चित्रकला और संपादन की साधना में बिता दिया। प्रेमचंद के निधन के समय उनकी उम्र मुश्किल से बीस साल थी लेकिन उन्होंने बड़ी सूझ-बूझ से न केवल अपने पिता की रचनाओं को बाहरी प्रकाशकों से मुक्त करवाया, वरन‍ स्वयं पहले हंस और तदनंतर कहानी पत्रिका का लंबे समय तक संपादन किया।

प्रस्तुत अंक में श्रीपत जी पर त्रिलोचन, नामवर सिंह, भीष्म साहनी, विष्‍णु प्रभाकर, कमलेश्वर, पुष्पेश पंत और नासिरा शर्मा सरीखी हस्तियों के संस्मरण हैं। श्रीपत जी स्वयं कहानीकार थे। वे ‘अकलंक मेहता’ के उपनाम से लिखते थे। उनकी तीन कहानियां यहां दी गई हैं। श्रीपत राय कुशल प्रबंधक भी थे। श्रीपत जी को इलाहाबाद से बहुत लगाव था। यहां के सरस्वती प्रेस में ही कहानी पत्रिका का संपादन और प्रकाशन होता रहा। प्रतिवर्ष वे बारह अंकों में छपी कहानियों में से एक विशिष्ट कहानी चुनकर उसे श्रेष्ठ कहानी का पुरस्कार देते। मुझे भी वर्ष 1976 में कहानी ‘उपलब्धि’ पर यह सम्मान मिला था।

संपादक विजय राय लिखते हैं, “गत वर्ष (2017) पूरी खामोशी से हिंदी के अमर कथाकार प्रेमचंद के ज्येष्ठ पुत्र श्रीपत राय की जन्मशती बीत गई। हिंदी समाज ने उन्हें याद तक नहीं किया।”

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