Advertisement

भारत के लिए अब भी दूर के ढोल

बार-बार वही सवाल हमारे सामने हैः भारत विश्वकप में कब खेलेगा? टैलेंट का टोटा नहीं, राजनैतिक इच्छाशक्ति का अभाव ही बड़ी बाधा
छेत्री की अपील पर उमड़ी भीड़ः मुंबई में केन्या बनाम भारत मैच के दौरान फुटबॉल दीवाने

एक अरब 35 करोड़ की आबादी वाला भारत फुटबॉल विश्वकप मुकाबले के 88 साल के इतिहास में वहां तक कभी नहीं पहुंच पाया। कुछ लोग कह सकते हैं: क्या बात करते हैं, भारत ने ब्राजील में 1950 के विश्वकप में तो जगह बनाई थी? मगर वे यह न भूलें कि कई एशियाई देशों ने क्वालिफाइ करने के बावजूद अपना नाम वापस ले लिया था तो भारत को मौका मिल गया था। यही नहीं, भारतीय फुटबॉल संघ तब भी अपनी टीम भेजने का साहस नहीं जुटा पाया। तो, फोकट में मिले मौके का भी लाभ न उठा पाने वाले के लिए भला कैसे कहा जा सकता है कि वह विश्वकप के लिए क्वालिफाई कर गया था।

यह किसी सदमे से कम नहीं है कि अदूरदर्शी भारतीय फुटबॉल प्रशासकों ने 68 साल पहले खिलाड़ियों को विश्वकप के रोमांच और तनाव को अनुभव करने से वंचित कर दिया। यह और भी हैरान करने वाला है कि यह फैसला 1948 और 1964 के बीच भारतीय फुटबॉल के ‘स्वर्णिम दौर’ के दौरान लिया गया।

अब, रूस में 2018 का विश्वकप शुरू होने जा रहा है, तो एक बार फिर वही सवाल हमारे सामने है कि आखिर भारत विश्वकप में कब खेलेगा? इसके बजाय, हमें यह पूछना चाहिएः क्या भारत कभी विश्वकप में खेल पाएगा? यह लाख टके का सवाल है। जब यह कुछ शीर्ष खिलाड़ियों, पूर्व भारतीय कप्तानों, कोचों और विशेषज्ञों से पूछा गया, तो उनकी प्रतिक्रिया गहरी निराशा और अनिश्चितता से भरी थी। उन्होंने भारतीय फुटबॉल के विभिन्न क्षेत्रों में सुधार की बात कही, उसके बाद ही भारत विश्वकप में न खेल पाने की बदकिस्मती से निजात पा सकता है। वे कहते हैं कि हमारे देश को सबसे पहले एशियाई ताकत बनने के बारे में सोचना चाहिए और तब आगे के लिए सोचना चाहिए।

पूर्व भारतीय कप्तान बाइचुंग भूटिया ने आउटलुक को बताया, “भारत कभी विश्वकप नहीं खेलेगा, यह कहना सही नहीं है। लेकिन यह बहुत मुश्किल है। विश्वकप पर ध्यान केंद्रित करने से पहले हमें एशिया की टॉप 10 टीम बनने पर फोकस करना चाहिए। इसके लिए हमें एक के बाद एक कदम उठाना चाहिए।” 

फीफा की मौजूदा विश्व रैंकिंग में भारत अभी 97वें पायदान पर है। हालांकि, पिछले कुछ महीनों में उसकी रैंकिंग में सुधार हुआ है, लेकिन रैंकिंग ही सबकुछ नहीं है। तकनीकी रूप से देखें तो भारत 2022 के विश्वकप के लिए क्वालिफाई कर सकता है। रूस में 15 जुलाई को विश्वकप 2018 के खत्म होने के बाद 2022 के लिए क्वालिफाइंग राउंड की शुरुआत होगी। क्वालिफाइ करने के लिए मजबूत दावा पेश करने के लिए भारत को 2019 एएफसी एशियाई कप में दमदार प्रदर्शन करना होगा और आगे भी वैसा ही प्रदर्शन करना होगा। एशियाई एएफसी कप पांच जनवरी से एक फरवरी तक चलेगा।

पूर्व भारतीय खिलाड़ी तथा राष्ट्रीय कोच सुखविंदर सिंह और ओलंपियन सैयद शाहिद हकीम भूटिया की बातों से इत्तेफाक रखते हैं। वह कहते हैं, “जब तक हम एशिया में टॉप 3 या टॉप 5 या टॉप 7 नंबर की टीम नहीं बन जाते, तब तक विश्वकप में खेलने के बारे में सोचना नहीं चाहिए। मैं कड़वी बात नहीं कर रहा हूं, लेकिन अभी विश्वकप के बारे में सोचना बहुत जल्दबाजी होगी।”

लीजेंडरी कोच सैयद अब्दुर रहीम के बेटे हकीम का कहना है कि भारत को घरेलू टूर्नामेंट के मानकों को ऊपर उठाने की जरूरत है। वे कहते हैं, “देखा जाए तो भारत में कोई (शीर्ष श्रेणी वाले) घरेलू प्रतिस्पर्धा ही नहीं है। आइ-लीग और इंडियन सुपर लीग (आइएसएल) पर्याप्त नहीं हैं। खिलाड़ियों के प्रशिक्षण के बाद मैच में नहीं खेलने से कोई फायदा नहीं होने वाला है। हमें एक मजबूत राष्ट्रीय टीम बनाने के लिए 16 लाख खिलाड़ियों की जरूरत है, क्योंकि संख्या से ही गुणवत्ता आती है।”

विश्वकप 2017 में भाग लेने वाली भारतीय अंडर-17 टीम के असिस्टेंट कोच ह्यूगो मार्टिन्स कई मुद्दों पर हकीम की बातों से सहमत हैं। फिलहाल आइ-लीग के सेकेंड डिवीजन क्लब दिल्ली यूनाइटेड एफसी के चीफ कोच मार्टिन्स का अनुमान है कि भारत अगले 40 वर्षों में भी विश्वकप में नहीं खेल पाएगा। 40 वर्षीय पुर्तगाली मार्टिन्स कहते हैं, “मेरी राय में भारतीय फुटबॉल के विकास में काफी देरी मुझे विश्वास दिलाती है कि यह देश अगले 10 विश्वकप में भी नहीं खेल पाएगा। प्रतिभा को बनाए रखने और विकसित करने वाली परियोजना को चलाने के लिए बहुत सारे वित्तीय और मानव संसाधन की आवश्यकता होती है।  समस्या भारतीय खिलाड़ियों में नहीं है, बल्कि खेल संस्कृति और सामाजिक पहलू ज्यादा पचड़े वाले हैं।”

शाजी प्रभाकरण फीफा के पूर्व रीजनल हेड (दक्षिण-मध्य एशिया) और नेशनल टीम ऐंड यूथ डेवलपमेंट (अखिल भारतीय फुटबॉल संघ) के निदेशक हैं। भारतीय फुटबॉल पर उनका एकाधिकार है, क्योंकि उन्होंने हर मुमकिन एंगल से इसे देखा और जाना है। वह फिलहाल दिल्ली फुटबॉल के अध्यक्ष हैं। वह जोर देते हैं, “क्वालिफाइ करने के लिए भारत को प्रतिस्पर्धी घरेलू लीग विकसित करने पर ध्यान देना होगा। साथ ही, विशेष रूप से जमीनी और युवा स्तर के खेल को विकसित करने पर लगातार ध्यान देना चाहिए।”

पूर्व भारतीय कप्तान और कोच सैयद नईमुद्दीन कहते हैं, “अभी चीजें अच्छी तरह से नहीं चल रही हैं। यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि भारत कब खेलेगा। ताजमहल भी एक दिन में नहीं बनाया गया था। इसी तरह भारतीय खिलाड़ियों को विश्वकप में खेलने के अपने सपने को साकार करने के लिए वक्त की जरूरत है।”

हालांकि, युवा खिलाड़ियों की मौजूदा पीढ़ी में जबरदस्त उम्मीदें हैं। नई दिल्ली में पिछले साल अक्टूबर में आयोजित अंडर-17 फुटबॉल विश्वकप में भारत की तरफ से एकमात्र गोल करने वाला युवा मणिपुरी मिडफील्डर जैकसन सिंह थौनाओजम को उम्मीद है कि उनके बैच के कई खिलाड़ी सीनियर स्तर पर भी विश्वकप में खेलेंगे। वह आउटलुक से बताते हैं, “भारत निश्चित रूप से विश्वकप में खेलेगा। हालांकि, कब खेलेगा यह मैं सटीक नहीं बता सकता। हो सकता है 10 साल बाद या शायद 2026 के विश्वकप में खेले। लेकिन, इसके लिए हमें खेल के सभी क्षेत्रों- फॉरवर्ड, मिडफील्ड और डिफेंस में सुधार करना होगा।”

एआइएफएफ ने खेल मंत्रालय और भारतीय खेल प्राधिकरण की मदद से आई-लीग में अंडर-17 के विश्वकप खिलाड़ियों को मौका दिया है। एआइएफएफ के महासचिव कुशल दास कहते हैं, “ये खिलाड़ी तीन-चार वर्षों में बेहद प्रतिस्पर्धी भारतीय बनेंगे और मेरा मानना है कि वे एशिया में सर्वश्रेष्ठ टीमों के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। लेकिन युवा विकास की पहल जितनी जल्दी हो क्लबों को शुरू कर देनी चाहिए, तभी भारतीय फुटबॉल एशियाई कप और विश्वकप के लिए तैयार हो पाएगा।”

भारतीय खेलों में यह अक्सर देखा जाता है कि विभिन्न टीमें या व्यक्ति टूर्नामेंट या अपने पूरे कॅरिअर में पिछले दरवाजे से आगे बढ़ना चाहते हैं। वे दूसरी टीमों के नतीजे, प्रतिस्पर्धा में ‘कठिन ड्रॉ’ और मौसम की स्थिति में ध्यान भटकाने वाले एयर कंडीशनर आदि का अपनी असफलता के बहाने के रूप में जिक्र करते हैं। एक स्पोर्टिंग देश पहले और अब भी अपनी क्षमता के बजाय उम्मीदों पर भरोसा करता है। विश्वकप की बाधा को तोड़ने के लिए भारतीय फुटबॉल के लिए शुभ संकेत आ रहा है।

फीफा 2026 से विश्वकप का विस्तार करने जा रहा है और उसमें मौजूदा 32 टीमों की जगह 48 टीमें हिस्सा लेंगी। यहां तक कि 2022 विश्वकप में भी 48 टीमें हो सकती हैं। इस प्रक्रिया को इस महीने ही अंतिम रूप दिया जा सकता है। इसका मतलब है कि सभी महाद्वीपों- एशिया, अफ्रीका, यूरोप, उत्तर-मध्य अमेरिका और कैरीबियाई, ओसिनिया और दक्षिण अमेरिका- के और देश इसमें भाग ले सकेंगे। भारत के नजरिए से देखें तो एशिया को विश्वकप में चार अतिरिक्त स्लॉट मिलेंगे। फिलहाल, एशिया के हिस्से 4.5 देशों का बर्थ है। यूरोप को तीन बर्थ का लाभ मिलेगा, जिससे उसके देशों की संख्या 16 हो जाएगी। अफ्रीका को चार बर्थ का फायदा मिलेगा और देशों की संख्या नौ तक हो जाएगी। दक्षिण अमेरिका का बर्थ 2.5 तक बढ़ जाएगा और उसके देशों की संख्या छह हो जाएगी।  कोंनाकाफ (कंफेडरेशन ऑफ नॉर्थ व सेंट्रल अमेरिका और कैरेबियन एसोसिएशन फुटबॉल) का प्रतिनिधित्व 3.5 से बढ़कर 6.5 हो जाएगा, ओशिनिया के पास 0.5 और एक बर्थ मेजबान देश के पास रहेगा।

ये सभी बातें चंद भारतीय फुटबॉल प्रशंसकों को कुछ पल के लिए उत्साहित कर सकती हैं। हालांकि, भारत के संदर्भ में बात करें तो अतिरिक्त बर्थ बढ़ने से खिलाड़ियों को प्रेरणा नहीं मिलेगी। उनके लिए अहम सवाल है कि खेल के मानकों को तेजी से बढ़ाया जाए और उसका लाभ उठाया जाए। भाग्य के आसरे रहने के बदले भारतीय फुटबॉल की सभी संबंधित संस्‍थाओं और लोगों को वर्षों पुराने सपने को साकार करने के लिए पूरी लगन से जुटना ही होगा, तभी भारत विश्वकप में खेल पाएगा।

Advertisement
Advertisement
Advertisement