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अफ्रीकी चुनौती कितनी दमदार

अफ्रीकी देश अभी तक अंतिम आठ यानी विश्वकप के सेमीफाइनल में जगह बनाने में नाकाम रहे हैं
किसमें कितना दमः इंटरनेशनल फ्रेंडली मैच के दौरान गेंद पर नियंत्रण की जद्दोजहद में सेनेगल के सैडियो माने और आइवरी कोस्ट के एरिक बेली

ब्राजील के महान खिलाड़ी पेले ने एक बार भविष्यवाणी की थी कि 20वीं सदी के अंत से पहले कोई अफ्रीकी देश विश्वकप जीतने में जरूर कामयाब होगा। हालांकि, उनका यह अंदाजा पूरी तरह गलत साबित हुआ, क्योंकि अफ्रीकी महाद्वीप के तमाम देश न सिर्फ दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित खिताब को जीतने में विफल रहे, बल्कि वे अभी तक अंतिम चार यानी सेमीफाइनल में भी अपनी जगह नहीं बना पाए हैं।

फीफा विश्वकप के क्वार्टर फाइनल मुकाबले अफ्रीकी देशों के लिए आज तक एक फिसलन भरी छत की तरह रहे हैं, जिसमें इस महाद्वीप के किसी देश ने पिछले आठ मौकों में तीन बार अपनी जगह बनाई। हालांकि, इसके बावजूद उनसे उम्मीद की अपनी वजहें हैं और अफ्रीकी महाद्वीप का एक देश रूस में हो रहे टूर्नामेंट में बेहतर प्रदर्शन कर सकता है। संभवतः चौंकाने वाला नतीजा भी दे सकता है।

अभी तक अफ्रीकी देशों के खराब प्रदर्शन की कई वजहें हैं। इनमें उनकी अंदरूनी राजनीति, बोनस विवाद, यूरोपीय देशों में प्रतिभा का पलायन, पहले चरण में मुश्किल ग्रुप मिलना और घरेलू आधारभूत ढांचा शामिल हैं। और जब बात खेल प्रबंधन की आती है तो निश्चित तौर पर इन बाधाओं ने कई अच्छी टीमों की तरक्की पर लगाम लगा दिया है।

उदाहरण के लिए, अपने स्वर्णिम दिनों में आइवरी कोस्ट को 2006 और 2010 दोनों ही बार मुश्किल ड्रॉ मिले। इसके बाद डिडिएर ड्रोगबा की चोट ने उनका खेल और भी कठिन बना दिया और फिर टीम 2014 में ग्रुप ऑफ डेथ यानी आखिरी 16 से आगे नहीं बढ़ पाई।

हालांकि, यह मिस्र की अपनी स्वर्णिम पीढ़ी की तुलना में बेहतर है, जिसने अफ्रीकी कप ऑफ नेशंस की हैट-ट्रिक जीत के साथ खुद को साबित किया कि उनके पास अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में बने रहने की गुणवत्ता है...लेकिन वह भी अपने प्रभुत्व वाले दौर में क्वालिफाइ करने में विफल रहा। नाइजीरिया, कैमरून और घाना में वर्षों तक पेमेंट को लेकर अंदरूनी विवाद और असहमति ने टीमों को प्रभावित किया। और, इससे पता चलता है कि अंतिम आठ में पहुंचे तीन अफ्रीकी देशों में से कम से कम दो से किसी तरह की उम्मीद नहीं की गई थी।

पिछले टूर्नामेंटों से उलट, कोई भी अफ्रीकी देश सिर्फ औपचारिकता के लिए नहीं खेलेगा, बल्कि अपने ग्रुप में आगे बढ़ने के लिए विपक्षी टीमों को चुनौती पेश करेगा। यहां हर टीम के लिए उम्मीद की एक किरण है। शायद ट्यूनीशिया ही एकमात्र अपवाद है। इस उत्तरी अफ्रीकी देश ने तीन बार फीफा विश्वकप में भाग लिया, लेकिन अपनी छाप छोड़ने में विफल रहा। इसने अभी तक विश्वकप में एक भी मैच नहीं जीता है। हालांकि, इस बार ग्रुप जी में पनामा के साथ होने से यह अपनी पहली जीत हासिल करने की सोच रही होगी। लेकिन उससे आगे की उम्मीद नहीं की जा सकती, क्योंकि इस ग्रुप में इंगलैंड और बेल्जियम भी हैं। ऐसे में ट्यूनीशिया अपने ग्रुप से बाहर होने वाला पहला देश हो सकता है।

उम्मीद की किरण भी

ट्यूनीशिया आपस में बेहतरीन तालमेल वाली टीम है। हालांकि, उनमें साहस, दृढ़ता और चपलता की कमी हो सकती है, जो अतीत में ट्यूनीशियाई टीम की खासियत हुआ करती थी। इसके बावजूद इस टीम ने किंशासा में डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो के खिलाफ क्वालिफाइंग के लिए जीत दर्ज कर शानदार प्रदर्शन किया।

द ईगल्स ऑफ कार्थेज (ट्यूनीशियाई फुटबॉल टीम) अपने पहले मुकाबले में इंगलैंड को चकमा देने की उम्मीद कर रहे होंगे, जैसा आइसलैंड ने यूरो-2016 में किया था। वैसे, फॉरवर्ड प्लेयर यूसुफ मस्कनी के चोटिल होने से टीम को बड़ा झटका लगा है। इसके अलावा ताहा यासीन खेनीसी भी विश्वकप से बाहर हो चुके हैं,  लेकिन वाहिबी खजरी, नईम स्लिटी और एक कुशल मिडफील्ड का मतलब है कि उन्हें कम करके नहीं आंका जाना चाहिए।

अफ्रीका की अन्य चार टीमों ने चौंकाने वाला नजीर पेश की है, जिसमें मोरक्को और नाइजीरिया अपेक्षाकृत मजबूत टीमें हैं। उन्हें मुश्किल ड्रॉ मिला है। वहीं, दो कमजोर टीमें सेनेगल और मिस्र को उनकी जैसी टीम वाले ग्रुप में रखा गया है। द सुपर ईगल्स (नाइजीरियाई फुटबॉल टीम) क्वालिफाइंग के दौरान निश्चित रूप से अफ्रीका की सबसे प्रभावशाली टीम होने का दावा कर सकती है। उसने जाम्बिया, अल्जीरिया और महाद्वीपीय चैंपियन कैमरून को हराकर ‘ग्रुप ऑफ डेथ’ में अपनी जगह बनाई है। इस टीम ने तकनीकी सलाहकार गर्नोट रोर के निर्देशन में अपने प्रदर्शन में गजब का सुधार किया है। इससे पहले संडे ओलीसेह के समय में टीम का प्रदर्शन लगातार नीचे जा रहा था और एक अस्थिरता-सी आ गई थी। लेकिन अब जर्मन कोच गर्नोट रोर ने टीम को स्थिरता दी है। उन्होंने टीम में नए चेहरों को भी शामिल किया है, जिनमें से कई ने यूरोपीय टीमों की तरफ से खेलने की जगह सुपर ईगल्स का विकल्प चुना है।

एलेक्स इवोबी आर्सेनल और ओला एना चेल्सी के लिए खेलते हैं और पश्चिमी अफ्रीकी देश का प्रतिनिधित्व करने से पहले यूथ लेवल पर इंगलैंड के लिए खेल चुके हैं। वहीं, टायरोन एबुई और विलियम ट्रूस्ट-एकोंग नीदरलैंड में पले-बढ़े हैं। पिछले साल नवंबर में अर्जेंटीना के खिलाफ फ्रेंडली मुकाबले में 4-2 से जीत के बाद उनका आत्मविश्वास बढ़ा है। हालांकि, उन्हें फिर से ग्रुप डी में अर्जेंटीना के साथ रखा गया है। इससे पहले दोनों टीमें 1994, 2002, 2010 और 2014 में भी मुश्किल ग्रुप डी में आपस में भिड़ चुकी हैं।

2012 में चैंपियंस लीग की विजेता टीम के सदस्य जॉन ओबी मिकेल मिडफील्ड की कमान संभालेंगे। उनका साथ देने के लिए इस सीजन में प्रीमियर लीग में सबसे प्रभावशाली टैकलर विल्फ्रेड नडिडी भी हैं। दूसरी तरफ, पिछले दो सत्र में चेल्सी के लिए प्रीमियर लीग और एफए कप जीतने वाले विक्टर मूसा भी और अधिक सक्रिय भूमिका में दिखेंगे।

यदि युवा गोलकीपर फ्रांसिस उजोहो बिना किसी खौफ के फुटबॉल पर नियंत्रण रखते हैं तो नाइजीरिया अपने ग्रुप में आगे बढ़ सकता है। आखिरकार, मोमेंटम, एक जबरदस्त टीम भावना और संतुलित टीम ही उन्हें प्रतियोगिता में आगे बढ़ने के लिए असली दावेदार बना सकती है। क्वालिफाइंग दौर के बाद मोरक्को भी कम-से-कम कागज पर अधिक आशावादी हो सकता है, क्योंकि उसने बिना एक भी गोल खाए अपनी जगह पक्की की है। यह एक शानदार रिकॉर्ड है और साथ ही फ्रांसीसी कोच हर्वे रेनार्ड के बेहतरीन संगठनात्मक कौशल का सबूत भी है। इस 49 वर्षीय कोच ने जाम्बिया और आइवरी कोस्ट को नेशंस कप जिताने में मदद की। हालांकि, अपनी मातृभूमि पर उनकी किस्मत मिलीजुली रही। वह टीम को एकजुट करने के मामले में महारथी हैं और अपने दर्शन के हिसाब से खिलाड़ियों को खरीदते हैं।

रेनार्ड की रक्षात्मक यूनिट अच्छी तरह से प्रशिक्षित है और इटालियन क्लब जुवेंतुस की तरफ से खेलने वाले मेधी बेनातिया अच्छी तालमेल बिठाते हैं। वहीं, उम्र के अगले पड़ाव में होने के बावजूद करीम अल अहमदी और म्बार्क बोसौफा मिडफील्ड में अपने अनुशासन, दृढ़ता और रचनात्मकता का एक अच्छा तालमेल बिठाते हैं।

अजैक्स एम्सटर्डम क्लब के हाकिम जियाच अपनी पीढ़ी के उत्कृष्ट अफ्रीकी खिलाड़ी बन सकते हैं। उन्होंने ईरेडिविसी टूर्नामेंट में टीम के लिए सभी 24 निर्णायक गोलों में अहम भूमिका निभाई। ऐसे में उनके खिलाफ शर्त लगाना चुनौतीपूर्ण फैसला हो सकता है। हालांकि, जो बात मोरक्को के खिलाफ जाती है, वह यह कि पहले दौर की ड्रॉ में उसे स्पेन और यूरोपीय चैंपियन पुर्तगाल के साथ रखा गया है।

2026 में विश्वकप की संयुक्त मेजबानी मिलने के बाद मोरक्को सेंट पीट्‍सबर्ग में ईरान के खिलाफ शुरुआती जीत के इरादे से मैदान में उतरेगा। मेजबानी मिलने से मोरक्को इस साल उलटफेर करने वाला बड़ा देश बन सकता है। सबसे बड़ी बात कि यूरोपीय दिग्गज टीमों को रोकने के लिए अगर किसी टीम के पास मजबूत डिफेंस है तो वह मोरक्को है अगर टीम शुरुआती उलटफेर करने में सफल रहती है और पुर्तगाल एवं स्पेन दोनों को धीमी शुरुआत वाली टीम मानी जाती है, तो ऐसे में रेनार्ड की प्रतिभाशाली टीम एटलस लायंस (मोरक्को की फुटबॉल टीम) खतरनाक प्रतिस्पर्धी बन जाएगी।

अफ्रीका के दो अन्य प्रतिनिधि देशों-सेनेगल और मिस्र में कमियां हैं, लेकिन नाइजीरिया और मोरक्को की तुलना में इन्हें थोड़ा आसान ड्रॉ मिला है, जिससे नॉकआउट राउंड तक पहुंचने के लिए इन्हें पसंदीदा टीम माना जा रहा है। ब्रिटिश क्लब लिवरपूल को चैंपियंस लीग के फाइनल में पहुंचाने में दोनों टीमों के खिलाड़ी सैडियो माने और मोहम्मद सालाह की अहम भूमिका थी। उम्मीद है कि दोनों रूस में अपनी-अपनी टीमों के लिए बेहतर प्रदर्शन करेंगे। जाहिर तौर पर सालाह प्रीमियर लीग की खोज हैं, जिसमें उन्होंने 38 मैच में 32 गोल किए और 10 गोल में दूसरे खिलाड़ियों को मदद पहुंचाई।  मिस्र का यह 25 वर्षीय खिलाड़ी किसी भी प्रतिस्पर्धा के लिए एक जादूगर की तरह है, लेकिन मिस्र को उन पर पूरी तरह निर्भर रहने की जगह बाकी खिलाड़ियों को भी जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी। अगर विरोधी टीमें सालाह पर नियंत्रण पा लेती हैं, उनका खराब दिन होता है या टीम से तालमेल नहीं बैठ पाता है तो फेरो (मिस्र के राजा के लिए उपाधि) के पास दूसरा विकल्प शायद ही होगा। ऐसा क्वालिफाइंग राउंड के दौरान देखा भी गया, जब मिस्र को युगांडा के खिलाफ 1-0 की हार का सामना करना पड़ा। जब वे पिछड़ रहे होते हैं तो प्लान बी की कमी की वजह से यह टीम कमजोर बन जाती है।

हालांकि, इस बार उनके ग्रुप में कम रैंकिंग वाली दो टीमें मेजबान रूस और सऊदी अरब हैं। साथ ही, उरुग्वे भी बदलाव के दौर से गुजर रहा है। ऐसे में मिस्र का अंतिम 16 में पहुंचना अधिक मुश्किल नहीं होगा। अगर ऐसा नहीं होता है तो माना जाएगा कि उन्होंने औसत प्रदर्शन किया। सेनेगल की टीम अधिक टैलेंटेड है और इसके खिलाड़ी दुनिया के बड़े लीग और यूरोप के कुछ बड़े क्लबों के लिए खेल रहे हैं। हालांकि, उनकी तकदीर ज्यादातर माने के प्रदर्शन पर ही निर्भर करता है। टूर्नामेंट में आगे की संभावनाओं को बरकरार रखने के लिए उनके पास मूवमेंट और गति है, जो विश्वकप के उनके कुछ विरोधियों में नहीं है। प्रीमियर लीग में सेनेगल का यह खिलाड़ी भले ही सालाह की छाया में रहा हो, लेकिन माने ने भी लीग में 10 गोल दागे और सात में असिस्ट की भूमिका निभाई। इतना ही नहीं, चैंपियंस लीग फाइनल में नौ गोल किए। वह दुनिया में सबसे टॉप अफ्रीकी खिलाड़ियों में भी एक हैं। दरअसल, जनवरी और अप्रैल में लिवरपूल की मैनचेस्टर सिटी पर जीत में माने का प्रदर्शन शानदार रहा था। रूस में उनका ऐसा एक या दो प्रदर्शन टीम के लिए सोने पर सुहागा साबित हो सकता है। इस टीम का लक्ष्य सेनेगल की 2002 की स्वर्णिम पीढ़ी की सफलता को दोहराना है। उस वक्त सेनेगल ने जापान और दक्षिण कोरिया में आयोजित विश्वकप में वर्ल्ड चैंपियन फ्रांस को हराकर चकित कर दिया था।

फ्रेंच क्लब रेनेस की तरफ से खेलने वाले सेनेगल के खिलाड़ी इस्माइल सार टीम के लिए आकर्षक विकल्प हो सकते हैं। हालांकि, सेनेगल का असली एमवीपी इद्रिसा गुएई हैं, जिनकी मिडफील्ड में अथक मेहनत डिफेंस की रक्षा करती है और टीम को एक साथ जोड़ती है। फिर भी कोच अलीउ सिस की दृष्टि और संगठनात्मक क्षमताओं पर संदेह बना हुआ है, लेकिन कोलंबिया, जापान और पोलैंड के ग्रुप में होने के बावजूद सेनेगल को अगले दौर में पहुंचना चाहिए।

शायद सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस सामूहिक प्रयास के पीछे एक उदाहरण और भावना है कि वे 2002 की पीढ़ी के खिलाड़ियों का अनुसरण कर रहे हैं। उनमें अपने ग्रुप में टॉप पर बने रहने से अधिक की क्षमता है। आखिरकार उनके पास शानदार डिफेंस और माने के रूप में ऐसा सुपरस्टार खिलाड़ी है, जो बड़ी टीमों को परेशान कर सकता है। हर विश्वकप में अफ्रीकी देश बड़े और छोटे, व्यक्तिगत और सामूहिक बाधाओं का सामना करते हैं, जो उनके और टूर्नामेंट के अगले चरण में पहुंचने के बीच खड़ी हो जाती हैं। हालांकि, शायद अब इनके पास पहले से कहीं अधिक संगठन, प्रतिभा, गति या तीनों का होना इन्हें रूस में लंबी दूरी तक ले जाएगा।

कुछ टीमों की सीमाओं और दुनिया की शीर्ष टीमों के प्रदर्शन को देखते हुए सेमीफाइनल में पहुंचना अभी भी उम्मीद से अधिक की बात होगी, लेकिन अफ्रीकी देश यह उम्मीद कर सकते हैं कि कम से कम एक टीम अंतिम आठ में अपना स्थान पक्का करेगी।

क्या कांच की फिसलन भरी यह छत टूट सकती है?

शायद इस बार नहीं...

(लेखक अफ्रीकी फुटबॉल के विशेषज्ञ हैं)

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