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जुनून और जोश का महासंगम

ब्राजील, जर्मनी, फ्रांस और स्पेन को माना जा रहा फेवरेट, इंगलैंड को भी कम नहीं आंका जा सकता
नन्हा फैनः ब्राजील में अपनी टीम को लेकर दीवानगी चरम पर

अब भी मैं याद कर पाता हूं कि तरोताजा चेहरे और फुर्तीले पांवों वाले माइकल ओवन ने गेंद को नचाते हुए अर्जेंटीना के डिफेंडरों को छकाया और गोल कर दिया था। ओवन के सामने अर्जेंटीना के डिफेंडर ऐसे लग रहे थे मानो अभ्यास के लिए खड़े किए पुतले हों। महज सात साल की उम्र में ओल्ड ईस्ट लंदन के एक पब में सिगरेट के धुंए के छल्ले उड़ाते हुए (यह जानकर मेरी मां शायद बुरा मान जातीं) सबसे बड़े टूर्नामेंट में ओवन की वह जादूगरी बचपन की मेरी सबसे जहीन यादों में एक है। अब मुड़कर देखता हूं तो ठीक वही वह लम्हा था, जब इस खूबसूरत खेल ने मुझे अपना दीवाना बना लिया था।

विश्वकप के इतिहास में 18 वर्षीय माइकल ओवन ने सबसे बेहतरीन इंडिविजुअल गोल में से एक दागा था, लेकिन इससे पहले ही फुटबॉल मेरे मन-मस्तिष्क में बैठ गया था। हालांकि, यह फ्रांस का विश्वकप (1998) था, जिसने स्थायी तौर पर इस खेल को दिमाग पर दर्ज करा दिया। मुझे नहीं लगता कि यह मानना अतिशयोक्ति होगी कि कई फुटबॉल प्रशंसकों को भी विश्वकप के ऐसे ही यादगार पलों ने खेल का दीवाना बना दिया होगा। जैसे, 2002 में अर्जेंटीना के खिलाफ डेविड बेकहम का जीवन दान देने वाला पेनाल्टी किक, इसी विश्वकप में रोनाल्डो की शानदार वापसी, 2006 में इटली को फाइनल में पहुंचाने वाले गोल के बाद फैबियो ग्रोसो के सेलिब्रेशन का अंदाज, 2010 में दक्षिण अफ्रीका के पहले मैच में सिफिवे शबालाला का चमत्कारी गोल, विश्वकप में जिताऊ गोल करने के बाद आंद्रे इनिएस्टा का अपने दोस्त डानी जार्क को दी गई मार्मिक श्रद्धांजलि, 2014 में जेम्स रॉड्रिग्ज का विश्व-स्तरीय खिलाड़ी के रूप में उभरना, ये सभी जादुई लमहे हैं, जिन्हें मैं साफ तौर पर याद कर सकता हूं। बेशक सैकड़ों और ऐसे पल होंगे। जैसे, एक विश्वकप में जस्ट फोंटेन के 13 गोल, रूसी लाइनमैन की मदद से जियोफ हर्स्ट के हैट-ट्रिक गोल, पेले के हेडर पर गोलकीपर गॉर्डन बैंको का शानदार बचाव, कार्लोस अल्बर्टो का गोल, गाजा के आंसू, जिदान का विश्वकप फाइनल में किया गया गोल, मार्को मैतराजी के सीने पर जिदान का सिर मारना!

विश्वकप का इतिहास

विश्वकप के बिना फुटबॉल की कल्पना करना मुश्किल है। इसके बावजूद कि इस प्रतियोगिता को शुरू हुए एक सदी से भी कम वक्त हुआ है। अभी से 12 साल बाद यानी 2030 में इसके सौ साल हो जाएंगे। फीफा (फुटबॉल की वैश्विक प्रशासनिक संस्था) का गठन 1904 में हो गया था, मगर आश्चर्य है कि विश्वकप शुरू होने में इतना लंबा समय लग गया जबकि फुटबॉल 1930 के काफी पहले ही ओलंपिक के आठ खेलों में शुमार हो गया था।

आखिरकार, फीफा ने 1928 में अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल टूर्नामेंट शुरू करने की योजना बनाई। उसके दो साल बाद पहला विश्वकप हुआ और उरुग्वे आयोजक देश बना। किसी भी बड़ी योजना के पीछे हमेशा किसी-न-किसी का हाथ होता है और विश्वकप शुरू करने में तत्कालीन फीफा अध्यक्ष जुल्स रिमेट की भूमिका काफी महत्वपूर्ण थी।

लेकिन तब से लेकर अभी तक दुनिया भर के अलग-अलग लोगों ने इस प्रतियोगिता पर एक अमिट छाप छोड़ी है। किसी भी खिलाड़ी ने ब्राजील के पेले से ज्यादा विश्वकप नहीं जीता है, उन्होंने 1958, 1962 और 1970 में जुल्स रिमेट ट्रॉफी जीती। जर्मन खिलाड़ी लोथर मैथॉस के नाम सबसे अधिक पांच बार विश्वकप फाइनल खेलने का रिकॉर्ड है और वे 1990 में इटली में हुए विश्वकप जीतने में सफल भी हुए थे।

एक और जर्मन खिलाड़ी मिरोस्लाव क्लोज के नाम सबसे अधिक 16 गोल करने का रिकॉर्ड है, जो दो बार के विश्वकप विजेता ब्राजीलियाई खिलाड़ी रोनाल्डो से एक गोल अधिक है। फ्रांसीसी खिलाड़ी जस्ट फोंटेन के नाम एक विश्वकप में सर्वाधिक गोल करने का कीर्तिमान दर्ज है। उन्होंने एक विश्वकप में 13 गोल दागे थे। वहीं, एक इंगलिश खिलाड़ी ज्यॉफ हर्स्ट के नाम फाइनल मुकाबले में सबसे ज्यादा गोल करने का रिकॉर्ड है, उन्होंने 1966 में हैट-ट्रिक गोल दागे थे। अर्जेंटीना के डिएगो माराडोना के नाम कप्तान के रूप में सबसे ज्यादा फाइनल खेलने का रिकॉर्ड है।

प्रतियोगिता में सबसे अधिक गोल करने वाले खिलाड़ी को गोल्डन बूट पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है और अभी तक 16 देशों के खिलाड़ियों ने यह खिताब जीता है, जिसमें क्रोएशिया, बुल्गारिया, पोलैंड, चिली और हंगरी जैसे देश के खिलाड़ी भी शामिल हैं। फिलहाल, कोलंबिया के जेम्स रोड्रिग्ज के पास गोल्डन बूट का खिताब है, जिन्होंने चार साल पहले ब्राजील में सर्वाधिक छह गोल दागे थे।

यह वास्तव में वैश्विक खेल है।

कौन-कौन हैं मुख्य दावेदार?

पांच बार के विजेता ब्राजील से अधिक बार किसी भी देश ने विश्वकप खिताब नहीं जीता है। दक्षिण अमेरिकी क्वालिफाइंग ग्रुप में अपना दबदबा बनाने और ग्रुप में शीर्ष पर रहने के कारण उन्हें इस बार भी खिताब का प्रबल दावेदार माना जा रहा है। क्वालिफाइंग ग्रुप में दूसरे पायदान पर रहे उरुग्वे से ब्राजील के 10 अंक अधिक थे और पिछले 18 मैचों में इसे एक में ही हार मिली है।

ब्राजील के पास हर पोजीशन के लिए विश्व-स्तरीय खिलाड़ी हैं। डिफेंस में एलिसन आधुनिक खेल के सर्वश्रेष्ठ गोलकीपरों के रूप में तेजी से उभर रहे हैं। एलिसन के आगे लेफ्ट बैक में मार्सिलो तो थियागो सिल्वा के रूप में सेंट्रल डिफेंडर हैं। फिलिप कॉटिन्हो, नेमार और गैब्रिएल जीसस के तौर पर एक मजबूत अटैक उपलब्ध है। वहीं, रिजर्व खिलाड़ियों के रूप में एडर्सन, फिलिप लुइस और रॉबर्टो फिरमिनो का विकल्प भी बुरा नहीं है, क्योंकि ये ऐसे खिलाड़ी हैं जो टीम में जगह बनाने की पूरी क्षमता रखते हैं।

स्टार नामों और विश्व-स्तरीय प्रतिभा अपने आप में काफी नहीं है। ब्राजील की हालिया अधिकांश सफलता के पीछे टेटे (एडेनॉर लियोनार्डो बाच्ची) की कोचिंग दक्षता का भी हाथ है। पूर्व-कोरिंथियंस मैनेजर ने अभी तक पाया है कि ब्राजील को डिफेंस में सशक्त और अॅफेंस में खतरनाक बनाकर ही सफलता का छिपा नुस्खा हासिल किया जा सकता है। सबसे महत्वपूर्ण यह कि उन्होंने एक टीम को इस तरह ढाला है, जिस पर ब्राजील की जनता एक बार फिर गर्व कर सकती है।

2014 के विश्वकप में घरेलू दर्शकों के सामने बेहद खराब प्रदर्शन के बाद इस बार ब्राजील में भी पिछली गलतियों को दुरुस्त करने की प्रबल लालसा होगी। सेमीफाइनल में जर्मनी के हाथों ब्राजील की 7-1 से हार विश्वकप के इतिहास में सबसे चौंकाने वाला नतीजा था और उस मैच के बाद कई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों का कॅरिअर प्रभावी ढंग से खत्म हो गया। उस वक्त के सिर्फ छह खिलाड़ी ही इस बार टीम में अपनी जगह पक्की कर पाए।

जर्मनी खुद अपने ताज को बरकरार रखने के इरादे से उतरेगा और फीफा की ताजा वर्ल्ड रैंकिंग में सिर्फ ब्राजील ही जोकिम लो (जर्मनी के कोच) की टीम से आगे है। इटली की गैर-मौजूदगी से जर्मनी विश्वकप के इतिहास में दूसरा सबसे सफल देश बन गया है और वह लगातार दूसरी बार विश्वकप जीतने वाला तीसरा देश बनने की कोशिश करेगा। ब्राजील ने पहली बार 1958 और 1962 में यह कारनामा किया था।

पिछले चार साल में काफी कुछ बदल गया है, लेकिन अब भी बहुत कुछ पहले जैसा ही है। 2014 की जीत के नायक-मैट्स हमल्स, जेरोम बोएटेंग, टोनी क्रूस, सामी खेदिरा, मेसुट ओजिल और थॉमस मुलर-  सभी रूस में फिर से अहम भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं। इस सूची में मैनुअल न्यूर का नाम भी शामिल हो सकता है। हालांकि, चोटिल होने के बाद उन्होंने पिछले साल सितंबर से ही किसी क्लब या अपने देश के लिए नहीं खेला है, फिर भी लो की टीम में उनका नाम शामिल किया गया है।

2014 विश्वकप के बाद फिलिप लैम, बैस्टियन श्वेइन्स्टिगर और मिरोस्लाव क्लोस ने अंतरराष्ट्रीय मैचों से संन्यास ले लिया, लेकिन उनकी जगह लेने वाले जोशुआ किम्मिच, लेरोय सेन, लियोन गोरेत्जका और टिमो वेर्नर की उम्र 23 या उससे कम है। सबसे महत्वपूर्ण कि ये सभी बेहद प्रतिभाशाली हैं। आरबी लीपजिग वर्नर को नौ नंबर की जर्सी दी गई है और वह क्लोस (2006) और मुलर (2010) के बाद गोल्डन बूट जीतने वाले तीसरे जर्मन खिलाड़ी बनने की कोशिश करेंगे।

फ्रांस (1998 विजेता) और स्पेन (2010 विजेता) की दावेदारी भी मजबूत मानी जा रही है। फ्रांस के कोच डिडिएर डेस्चैम्प और स्पेन के कोच जूलन लोपेतेगुई अपनी टीमों को कई प्रतिभाशाली सितारों से भरने में सफल रहे हैं। असल में दोनों देशों में अभी प्रतिभा की कमी नहीं है और इनमें से कई ने संन्यास ले चुके दिग्गज खिलाड़ियों की सही जगह ले ली है।

ब्राजील की ही तरह फ्रांस घरेलू जमीन पर एक बड़ा टूर्नामेंट जीतने से चूक गया था। (उसे ब्राजील की तरह शर्मनाक हार का सामना नहीं करना पड़ा) तब पुर्तगाल ने यूरो 2016 के फाइनल में फ्रांस को हराया था। अब दो साल गुजर चुके हैं और लेस ब्लीस (फ्रेंच फुटबॉल टीम) एक संपूर्ण और खतरनाक टीम बन चुकी है। पिछले दो सीजन में शानदार प्रदर्शन करने वाले कैलियन बाप्पे और ओसमैन डेबेले के उभार को इसका श्रेय जाता है। कायलां बाप्पे और ओसमैन डेबेले दोनों महज 19 और 21 साल के होने के बावजूद सर्वकालिक दूसरे और चौथे सबसे महंगे फुटबॉल खिलाड़ी हैं। दोनों अटैकिंग स्टार एंटोनी ग्रिजमैन के साथ टीम में खेलेंगे, जो गर्मियों में एटलेटिको मैड्रिड से बार्सिलोना में शामिल हो सकते हैं।

जहां तक स्पेन की बात है तो आज भी उनका मिडफील्ड सबसे अच्छा है। यह प्रतियोगिता निश्चित रूप से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आंद्रे इनिएस्टा का विदाई मंच होगा, लेकिन जैसा उन्होंने बार्सिलोना के लिए प्रदर्शन किया है, उससे लगता है कि उनके जादुई पैरों में अब भी जान बाकी है। सर्जीओ बुस्केट्स, थियागो अलकांतारा, डेविड सिल्वा, कोक और इस्को सभी दूसरे या तीसरे स्थान के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे होंगे। यह इस बात पर निर्भर करता है कि कोच लोपेटेगुई खेल की किस प्रणाली को चुनते हैं। इतना ही नहीं, अल्वारो मोराटा से कड़ी टक्कर के बाद डिएगो कोस्टा ने टीम में जगह बना ली है।

2014 की उपविजेता टीम अर्जेंटीना इस बार मजबूत नहीं दिख रही है। हालांकि, उनके पास सर्वकालिक महान खिलाड़ियों में एक लियोनेल मेस्‍सी हैं। मेस्‍सी यूरोप के पांच टॉप लीग में एक ला लीगा में अकेले 34 गोल दाग चुके हैं और वह इस प्रतियोगिता में भी अपने शानदार फॉर्म में रहेंगे। सीरीज ए में संयुक्त रूप से टॉप गोल स्कोरर मौरो इकार्डी के टीम में जगह बनाने में नाकाम रहने के बाद गोंसालो हिगुएन, पाउलो डायाबाला और सर्जीओ एगुएरो के बीच मेस्‍सी के साथ खेलने के लिए प्रतिस्पर्धा होगी। बेल्जियम अभी तक अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों में अधिक सफलता हासिल नहीं कर पाया है। एक दशक या उससे पहले इंगलैंड की ही तरह उनके खिलाड़ियों ने ‘गोल्डन पीढ़ी’ के टैग को बरकरार रखने में संघर्ष ही किया है। हालांकि, गोलकीपर के रूप में थिबॉट कर्टोइस, डिफेंस में टोबी एल्डरवेयरल्ड, विंसेंट कॉम्पनी और जेन वर्टोंगेन, मिडफील्ड में केविन डी ब्रुयने और अटैक में ईडन हैजर, ड्रॉज मेर्टेंस और रोमेलु लुकाकू जैसे खिलाड़ियों वाली टीम का सम्मान किया जाना चाहिए।

यूरो कप जीतने से पहले पुर्तगाल ब्राजील में आयोजित विश्वकप में ग्रुप चरण में ही प्रतियोगिता से बाहर हो गया था। क्रिस्टियानो रोनाल्डो से लैस उम्रदराज खिलाड़ियों वाली डिफेंस उनकी सबसे बड़ी कमजोरी हो सकती है। क्रोएशिया और उरुग्वे भी लोगों को चकित कर सकते हैं, जबकि सेनेगल और मोहम्मद सालेह वाली मिस्र पर भी लोगों की नजर होगी।

इंगलैंड

जहां तक इंगलैंड का सवाल है तो आश्चर्यजनक रूप से उससे इस प्रतियोगिता के लिए पहली बार सबसे कम उम्मीदें हैं। इसके बावजूद उनके समर्थकों में उम्मीद की किरण बाकी है। आखिरकार ऐसा लगता है कि इंगलैंड ने गैरेथ साउथगेट के रूप में एक ऐसा मैनेजर पा लिया है, जो खेल की फिलॉसफी को समझा सकते हैं और उसके मुताबिक अपनी टीम का निर्माण कर सकते हैं। साउथगेट ने औसत प्रदर्शन वाले वरिष्ठ खिलाड़ियों जो हार्ट और वेन रुनी को टीम में नहीं चुनकर खुद को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया है और उनकी जगह युवा खिलाड़ियों को बढ़ावा दिया जा रहा है। 24 वर्षीय हैरी केन विश्वकप में इंगलैंड के सबसे युवा कप्तान होंगे और प्रतियोगिता के अगले चरण में पहुंचने की देश की उम्मीदें काफी हद तक उनके कंधों पर ही होंगी।

अब चर्चा के केंद्र में खेल और खिलाड़ी हैं, लेकिन साल की शुरुआत में इससे इतर चीजें बहस के केंद्र में थीं। मार्च में पूर्व रूसी जासूस सर्गेई स्क्रिपल और उनकी बेटी यूलिया को जहर देने की घटना के बाद से दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंधों में खटास आ गई थी। ब्रिटिश नेताओं ने इस रासायनिक हमले के लिए रूस को दोषी ठहराया, जिसे नोविचोक नामक नर्व एजेंट से जहर दिया गया। जबकि रूस ने इस दावे को खारिज किया कि उसका इससे कुछ लेना-देना है। यूलिया को उसके पिता के बाद अप्रैल में अस्पताल से छुट्टी मिली। शुरुआत में दोनों की हालत बेहद गंभीर थी।

ब्रिटेन-रूस के संबंधों को प्रभावित करने वाली यही एकमात्र घटना नहीं है। दूसरी घटना फुटबॉल से संबंधित थी। यूरो-2016 के शुरुआती दिनों में दक्षिणी फ्रांस के शहर मार्सेल के स्टेड वेलोड्रोम स्टेडियम के अंदर और बाहर दोनों देशों के फुटबॉल प्रशंसकों के बीच हिंसक झड़प देखने को मिली थी। उसके बाद से ऐसी कई रिपोर्ट्स आ चुकी हैं कि रूस में संगठित गिरोह इंगलैंड के प्रशंसकों को निशाना बनाएंगे। वह भी विशेष रूप से विश्वकप के दौरान। शायद यही वजह है कि इंगलैंड की तरफ से टिकट बिक्री की संख्या 30 हजार से भी कम है, जो पहले से अनुमानित संख्या से काफी कम है।

प्रतियोगिता की मेजबानी करने की रूस की योग्यता पर तर्कसंगत प्रश्नचिह्न खड़ा होता है और कहीं ज्यादा देर न हो जाए, उससे पहले फीफा को इनमें तत्काल सुधार करने की जरूरत है। फीफा के नए अध्यक्ष गियानी इन्फैंटिनो के आने से उम्मीद बढ़ी है कि भविष्य में यह खूबसूरत खेल भ्रष्टाचार से मुक्त रहेगा।

इस बीच, प्रतिस्पर्धा की रूमानियत (रोमांटिसिज्म) में बहने से खुद को रोक पाना लगभग मुश्किल-सा हो रहा है। कम-से-कम मैं इसके शुरू होने का इंतजार नहीं कर सकता।

(लेखक फ्रीलांस पत्रकार और फुटबॉल विशेषज्ञ हैं। वह स्काइ स्पोर्ट्स के लिए काम करते हैं) 

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