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...ताकि किसान बनें आत्मनिर्भर

मोदी सरकार ने चार साल में की फार्मर को रिफॉर्मर बनाने की कवायद, वह किया जो 48 साल में नहीं हुआ
उपज का उ‌च‌ित मूल्‍य ‌द‌िलाने की चुनौती

किसान हमारे अन्नदाता हैं, वे हमारी सभ्यता और जनजीवन की धुरी हैं। हर जनोन्मुखी और संवेदनशील सरकार का नैतिक कर्तव्य है कि उसका किसान खुशहाल रहे। अटल जी से लेकर मोदी जी तक, भाजपा-नीत एनडीए सरकारों ने सदैव किसान, कृषि और उसके कल्याण को लेकर दूरगामी नीतियां बनाई हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जबसे देश की सत्ता संभाली है, उनकी प्राथमिकता में देश के गांव, गरीब और किसान ही रहे हैं। 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने के उनके लक्ष्य के अनुरूप कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने कृषि सुधार के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।

फरवरी 2004 में गठित राष्ट्रीय किसान आयोग की सिफारिशों के आधार पर किसानों के लिए राष्ट्रीय नीति मंजूर की गई थी, लेकिन कांग्रेस नीत यूपीए की मनमोहन सरकार के दौरान अधिकतर सिफारिशें ठंडे बस्ते  में डाल दी गईं। किसानों के प्रति कांग्रेस सरकारों का भाव हमेशा से  उदासीनता और अनदेखी का रहा है। मोदी सरकार ने 2016 में किसानों की आय बढ़ाने के लिए एक अंतर मंत्रालय समिति का गठन किया। इस समिति ने उसका अध्ययन करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देशन में इस कार्य को तेज करने का काम प्रारंभ किया।

केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने एक जून, 2018 से 31 जुलाई, 2018 के बीच कृषि कल्याण अभियान की शुरुआत की है। इसके तहत किसानों को उत्तम तकनीक मुहैया कराने और आय बढ़ाने के लिए सहायता और सलाह दी जा रही है। इसके अलावा सिंचाई और एकीकृत फसल के तौर-तरीकों के बारे में भी जानकारी दी जा रही है।

मोदी सरकार ने केंद्रीय बजट में कृषि को दिए जाने वाले फंड को भी दोगुना किया है। कांग्रेस की यूपीए सरकार ने जहां 2009 से 2014 के दौरान मात्र 1,21,082 करोड़ रुपये दिए थे। वहीं, नरेंद्र मोदी ने चार साल में ही 2,11,694 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। हर खेत को पानी पहुंचाने के लिए 50,000 करोड़ रुपये के निवेश के साथ नहरों और बांधों पर काम चल रहा है। खेती के कामों में पानी का उचित उपयोग हो, इसके लिए ड्रिप सिंचाई की तकनीक को चार साल के अंदर ही 26.87 लाख हेक्टेयर खेतों तक पहुंचा दिया गया है। सॉयल हेल्थ कार्ड खेतों की उर्वरता मापने का किसानों के हाथ में जबरदस्त हथियार है। सॉयल हेल्थ कार्ड किसान को यह बताता है कि उसके खेत में किस तरह के उर्वरक की जरूरत है।

किसानों को फसल बुआई में मदद के लिए सरकार ने वित्त वर्ष 2017-18 में 10 लाख करोड़ रुपये का ऋण बांटा है। ऋण बांटने का लक्ष्य इस वित्त वर्ष में बढ़ाकर 11 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है।

आज किसानों को खरीफ फसलों के लिए दो फीसदी और रबी फसलों के लिए 1.5 फीसदी के प्रीमियम पर फसल बीमा मिल रहा है। फसल बीमा के माध्यम से खेत से लेकर खलिहान तक फसल को सुरक्षित करने का बीड़ा मोदी सरकार ने उठाया है। इतना ही नहीं, अब 33 फीसदी या इससे अधिक फसल नष्ट होने पर भी किसानों को फसल नुकसान का मुआवजा मिल पा रहा है। इससे पहले किसानों को मुआवजा तभी मिलता था जब 50 फीसदी या इससे अधिक फसल का नुकसान हुआ हो।

देश में सभी अनाज और फल-सब्जी मंडियों को आपस में जोड़ा जा रहा है। 2022 तक यह पूरी तरह से व्यवस्थित होकर एक हो जाने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। अब तक ई-नैम पर 164.5 लाख टन कृषि उपज की बिक्री हुई है जिससे 41, 591करोड़ रुपये का कारोबार हुआ है।

सरकार ने ग्रामीणों के जीवन को बेहतर बनाने के अपने प्रयासों के तहत बजट 2018-19 में गोबर-धन यानी गैलवनाइजिंग ऑर्गेनिक बायो-एग्रो रिसोर्स योजना की शुरुआत की है। सरकार ने कृषि प्रगति की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री कृषि कौशल योजना शुरू की है। कृषि एप के द्वारा मौसम से जुड़ी सही-सही जानकारी को समय पर किसानों को उपलब्ध कराया जा रहा है। इससे किसान समय से पूर्व कदम उठा कर अपनी फसल की सुरक्षा कर सकते हैं। 

परंपरागत कृषि विकास योजना के तहत देश में जैविक खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है। पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए जैविक मूल्य शृंखला विकास मिशन की शुरुआत की गई है। पूर्वोत्तर को भारत के जैविक केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है। राष्ट्रीय बांस मिशन के द्वारा बांस को घास की श्रेणी से निकाले जाने से आदिवासी भाइयों-बहनों को काफी लाभ पहुंचा है। 500 करोड़ रुपये के कॉर्पस वाले मूल्य स्थिरीकरण कोष की स्थापना की गई है। यह जल्द खराब होने वाली कृषि और बागवानी फसलों की कीमतों को नियंत्रित करने में मददगार साबित होगा।

प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों की आय को दोगुना करने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का जो संकल्प लिया है, उससे देश के किसान उस शोषण के तंत्र से स्वतः ही मुक्त हो जाएंगे, जिसे पिछले 48 साल में कांग्रेस की सरकारों ने तैयार किया था। विपक्ष किसानों की समस्याओं का समाधान नहीं चाहती है, बल्कि उसके बल पर देश की सत्ता पर काबिज होने का प्रयास करना चाहती है जैसा कि पिछले 48 साल में कांग्रेस और उसके जैसी सोच रखने वाले क्षेत्रीय दल करते रहे हैं, जिन्होंने किसानों को महज वोट बैंक समझा और झूठे वादे, आधे-अधूरे मुआवजे, अव्यावहारिक ऋण, अदूरदर्शी नीतियों से उनके स्वाभिमान और स्वावलंबन के साथ खिलवाड़ किया।

(लेखक भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख और राज्यसभा सांसद हैं)

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