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‘संजू’ वह नहीं जिसे आपने देखा-जाना है

29 जून को रिलीज हो रही ‘संजू’ शत-प्रतिशत सफलता की गारंटी माने जाने वाले फिल्म निर्देशक राजकुमार हीरानी की अग्निपरीक्षा सरीखी भी
राजकुमार हीरानी

मुख्यधारा की मनोरंजक फिल्मों और सार्थक सिनेमा की दीवार तो पहले ही ढहा दी गई और फिर उत्तर-उन्मुक्त दौर के अहम पड़ावों पर आम जन और अभिजन दोनों को ही खुशनुमा एहसास दिलाने वाली फिल्में रिलीज हुईं, जो 21वीं सदी में राष्ट्रीय सिनेमा की करीब-करीब नई व्याख्या लेकर आईं। महज चार फिल्मों ‘मुन्ना भाई एमबीबीएस’ (2003), ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ (2006), ‘थ्री इडियट्स’ (2009) और  ‘पीके’ (2014) ने नागपुर में जन्मे निर्देशक राजकुमार हीरानी को अपनी पीढ़ी के बेहतरीन फिल्मकारों में जगह दिला दी। अब यह 55 वर्षीय फिल्मकार अपनी नई पेशकश ‘संजू’ के साथ नमूदार है। यह बॉलीवुड के बिगडै़ल लड़के संजय दत्त की जिंदगी पर बॉयोपिक है। रणबीर कपूर के लीड रोल वाली यह फिल्म 29 जून को रिलीज हो रही है और शायद इस माहिर फिल्मकार की अग्निपरीक्षा भी साबित हो, क्योंकि उन्होंने ऐसे इनसान की जिंदगी को फिल्माने के लिए कुछ अनजान-से और फिसलन भरे बॉयोपिक के क्षेत्र में उतरने की कोशिश की है, जिससे वे प्रोफेशनल और निजी तौर पर वर्षों से वाकिफ हैं। गिरिधर झा के साथ बातचीत में हीरानी ने बॉयोपिक बनाने की वजहों को साझा किया और इन आरोपों को खारिज किया कि इसका मकसद अपने अभिनेता दोस्त का महिमामंडन करना है, जो अपनी ऊबड़-खाबड़ जिंदगी के लिए जाने जाते हैं। कुछ अंशः

आपने चार ब्लॉकबस्टर फिल्में दी हैं। ऐसे में उम्मीद है कि अगली पेशकश के रिलीज होने के मौके पर आपके पेट में बल नहीं पड़ रहे होंगे?

इसके उलट, हर रिलीज के वक्त मेरे पेट में बल पड़ने लगता है। मुझे याद है और बोमन ईरानी आज भी उसके लिए मेरा मजाक उड़ाते हैं कि मैंने थ्री इडियट्स के रिलीज होने के हफ्ते भर बाद उनसे पूछा कि क्या फिल्म वाकई बॉक्स ऑफिस पर हलचल मचा रही है या सिर्फ आमिर खान की वजह से ही भीड़ जुट रही है।

इसलिए हां, मुझे हर रिलीज के पहले घबराहट होने लगती है। दरअसल, घबराहट सिर्फ तभी नहीं होती है, जब आप अपनी पहली फिल्म बना रहे होते हैं, तब फिल्म बनाने की खुशी इतनी ज्यादा होती है कि आप बाकी किसी चीज की परवाह नहीं करते। फिल्म पूरी कर लेने की खुशी ही सबसे बड़ी होती है। उसके बाद आप चाहते हैं कि आपकी फिल्म को लोग देखें, आपके काम की सराहना करें। इसलिए अब भी एक तरह की घबराहट है, लेकिन उत्साहित भी हूं कि मैंने एक अलग तरह की फिल्म बनाई है। मैं बेसब्री से लोगों की प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहा हूं।

खासकर यह फिल्म चुनौतीपूर्ण तो रही होगी। बॉयोपिक में किसी के जीवन की वस्तुपरक और निर्मम छानबीन की उम्मीद की जाती है। आपने तो ऐसे व्यक्ति पर फिल्म बनाने की हिम्मत जुटाई है, जिसके साथ लंबे समय से आपके व्यक्तिगत और पेशेवर संबंध रहे हैं। क्या आपको डर नहीं लगा था कि कहीं आप संजय दत्त का महिमामंडन न कर बैठें?

संजय दत्त के महिमामंडन के लिए फिल्म बनाने की कोई वजह तो नहीं है। हमारे पास बेहद अच्छा मौका है और जैसी चाहें फिल्म बना सकते हैं। मैं संजू के बजाय मुन्ना भाई शृंखला की अगली कड़ी भी बना सकता था। अगर मुन्ना भाई खराब भी होती, तब भी लोग उसे देखते। इस फिल्म को बनाने का एकमात्र कारण यह है कि मुझे कहानी बेहद दिलचस्प और प्रभावी लगी। मैंने इसके कई पक्ष खोज निकाले, जिससे लोग वाकिफ नहीं हैं।

आपको कब लगा कि संजय दत्त की जिंदगी की कहानी एक धांसू फिल्म का विषय है?

मैंने पीके की शूटिंग खत्म की और एडिटिंग चल रही थी। उसी समय संजू जेल से बाहर आए थे और मैं उनसे मिलने गया। वे निपट अकेले थे। हम जेल में उनके अनुभवों के बारे में बात करने लगे। थोड़ी ही देर में वे उस बंदूक कांड (एके-56 प्रकरण, जिसके लिए उन्हें सजा हुई) को विस्तार से बताने लगे। हालांकि, मैंने संजय के साथ तीन फिल्में की थीं, लेकिन मैं कभी भी महेश मांजरेकर, संजय गुप्ता जैसे उनके करीबी दोस्तों में शामिल नहीं था। वे मेरे लिए सिर्फ एक एक्टर थे और मैं निर्देशक। हां, हमारे एक-दूसरे से अच्छे संबंध थे, लेकिन उस दिन पहली बार वे मेरे सामने खुले और अपनी जिंदगी के बारे में बताने लगे। असल में उस दिन मैं उनसे मुन्ना भाई शृंखला की अगली फिल्म पर चर्चा करने गया था, लेकिन उनकी कहानी सुनने के बाद मैं हैरान रह गया कि किसी की जिंदगी ऐसी भी हो सकती है। मैंने अपने साथी लेखक अभिजात जोशी को बुलाया और मैंने जो अजीबोगरीब कहानी सुनी थी, उन्हें बताया। उसके बाद हम अगले 25 दिनों तक उनके साथ घंटों बैठे, हर रोज शाम ढलने से लेकर रात के आखिरी पहर तक। उसके बाद मैं मुंबई पुलिस के पूर्व आयुक्त राकेश मारिया से मिला जो उनके मामले से जुड़े थे, ता‌कि कहानी का दूसरा पक्ष जान सकूं। फिर, मैं संजू के वकीलों, परिवारवालों, दोस्तों और दूसरों से भी मिला, जो उनकी जिंदगी से जुड़े थे।

लेकिन इस बॉयोपिक को बनाने से पहले मेरी एक शर्त थी। मैंने संजू से पूछा कि क्या वे अपनी जिंदगी पर ऐसी फिल्म देखने की हिम्मत जुटा पाएंगे, जिसे मैं उनके सुनाए अनुभवों के मुताबिक ही फिल्माऊंगा। मैंने यह भी साफ कर दिया कि अगर वे कभी मुझसे वह लाइन बदल देने या वह दृश्य हटा देने को कहेंगे, तो मैं नहीं बनाऊंगा। मगर जवाब आया, “यार, तेरे को जो करना है, कर।” आप फिल्म देखोगे तो आपको पता चलेगा कि मैंने उनकी तारीफ बिलकुल नहीं की है। सच्चाई यह है कि एक फिल्म निर्माता के तौर पर मैं कंटेंट की खोज में रहता हूं और उनके जीवन की कहानी में वह सब कुछ है जो एक फिल्म के लिए चाहिए होता है।

उनके जीवन के किस हिस्से ने अधिक आकर्षित किया, उनकी नशे की लत, एके-56 प्रकरण, उसके बाद की गिरफ्तारी या फिल्म इंडस्ट्री में रुक-रुक कर उनका उतार-चढ़ाव?

लोग इन कहानियों में से ज्यादातर को पहले से ही जानते हैं। मैं उनके जीवन के उस अध्याय को दिखाने जा रहा हूं, जो लोगों की जानकारी में नहीं है। मिसाल के तौर पर पिता-पुत्र के बीच क्या हुआ? संजय की कहानी सुनने के बाद एक दिन मैं उनसे इसी बात पर मजाक कर रहा था कि वे पिछले 50 साल से हमारे लिए एक स्क्रिप्ट लिख रहे थे। यह ऐसे आदमी की कहानी है, जिसने जीवन में खराब विकल्प चुने।

क्‍या संजय आपके साथ इसलिए खुल गए थे, क्योंकि आप दोनों ने कई फिल्में साथ की थीं। क्‍या इसी वजह से बॉयोपिक के लिए उन्होंने आप पर भरोसा किया?

मैं मान रहा हूं कि उन्हें मुझ पर थोड़ा तो भरोसा होना चाहिए, लेकिन वह विश्वास निश्चित रूप से इस वजह से नहीं था कि हम उनके किरदार को अच्छी तरह पेश करेंगे और खुद उन्हें भी कभी इसका डर नहीं था। इसीलिए उनकी तरफ से कोई पूर्व शर्त नहीं थी। उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा था कि उनका जीवन एक खुली किताब है। असल में उन्हें सिर्फ गूगल पर सर्च करने से आपको सबकुछ मिल जाएगा। उनके ड्रग्स एडिक्ट का दौर, एके-56 प्रकरण वगैरह।

क्या आप आज के दौर के एक लोकप्रिय फिल्म स्टार पर बॉयोपिक बनाने के परिणामों के बारे में चिंतित थे, जिनका अतीत में एक प्रसिद्ध अभिनेत्री के साथ प्रेम संबंध रहा है?

देखिए, इसमें हमने उनके जीवन के ड्रग्स के दौर और एके-56 प्रकरण को अधिक छुआ है। हालांकि, फिल्म की पृष्ठभूमि में कई अन्य कहानियां हैं, कई किरदार हैं, लेकिन हमने किसी को चोट पहुंचाने के बजाय सावधानीपूर्वक उनको फिल्माया है। दरअसल, इसको बनाने के पीछे मकसद था, उनके जीवन पर फोकस करके एक फिल्म बनाना, दर्शकों को कुछ सनसनीखेज परोसना नहीं।

क्या संजय दत्त ने बॉयोपिक देखी है? अगर हां, तो उनकी पहली प्रतिक्रिया क्या थी?

संजू ने फिल्म के केवल कुछ दृश्य ही देखे हैं। खासकर अपने पिता सुनील दत्त (परेश रावल द्वारा निभाई भूमिका) की भूमिका वाले कुछ दृश्य, जिन्हें देखने के दौरान हमने उनकी नम आंखों के साथ उन्हें तन्हा छोड़ दिया था। हालांकि, मैं उन्हें पूरी फिल्म देखने के लिए कहता रहता हूं, लेकिन वे कहते हैं कि वे फिल्म का केवल अंतिम प्रिंट देखेंगे। मैंने निश्चित रूप से उन्हें पहले स्क्रिप्ट सुनाई थी। इसकी वजह यह थी कि मैं चाहता था कि वे जान सकें कि हम क्या कर रहे हैं। जब मैंने पूरी कहानी सुनाई, तो उनका कहना था कि तीन घंटे में उनकी आंखों के सामने उनका पूरा जीवन उतर आया है। मैंने उनसे पूछा कि क्या उन्हें किसी भी हिस्से पर कोई आपत्ति है? उन्होंने कहा, “नहीं यार, जाओ और जो भी आप चाहते हो उसे बनाओ।” मेरा मानना है कि उनके पिता के साथ उनका रिश्ता कहानी का एक जरूरी हिस्सा है। इसमें दो संबंध कहानी के अभिन्न अंग हैं, एक पिता-पुत्र के बीच का और दूसरे दोस्त (विकी कौशल द्वारा निभाई भूमिका) का किरदार, जो उनके असली जिंदगी के कई दोस्तों का प्रतिनिधित्व करता है।

शुरुआत में कुछ रिपोर्ट आईं कि आपने आमिर खान से सुनील दत्त की भूमिका निभाने की पेशकश की थी?

आमिर दोस्त हैं। मैं कोई भी स्क्रिप्ट लिखता हूं, तो उन्हें दिखाता हूं। जब मैंने उन्हें संजू की स्क्रिप्ट सुनाई, तो उन्होंने उसे बेहद पसंद किया और कहा, “मैं भी इसमें कुछ करता हूं।” तब मैंने कहा,  बिलकुल करो, मगर वे पहले से ही दंगल में एक बुजुर्ग आदमी की भूमिका निभा रहे थे।

एक जरूरी सवाल और यह आपसे कई बार पूछा भी जा चुका होगा, वह यह कि संजय दत्त के रूप में रणबीर कपूर ही क्यों?

जब हमने स्क्रिप्ट लिखनी शुरू की, हम इस बारे में सोच रहे थे कि ‘संजू’ कौन कर सकता है। फिर मैंने सोचा और मुझे लगा कि रणबीर सही विकल्प होंगे। हमें किसी ऐसे व्यक्ति की जरूरत थी जो उनके जीवन के विभिन्न चरणों के दौरान ‘संजू’ के किरदार में आसानी से फिट हो सके। रणबीर खुद एक फिल्मी परिवार से हैं और इस तरह के जीवन से पूरी तरह वाकिफ भी। मैंने इस भूमिका के लिए किसी और के बारे में कभी सोचा ही नहीं, लेकिन बड़ी चुनौती यह थी कि रणबीर संजय की तरह कैसे दिखेंगे। हमने इस पर काम करने में बहुत समय बिताया। यही कारण है कि हमने फिल्म को अलग-अलग चरणों में शूट किया, जिससे शूटिंग के दौरान उन्हें कैरेक्टर के मुताबिक खुद को ढालने के लिए वजन घटाने-बढ़ाने को पर्याप्त समय मिल गया। असल में रणबीर ने शानदार काम किया है। या यह कह सकते हैं कि वह मेरी अपेक्षाओं पर खरे उतरे हैं।

संजू बनाने से पहले आप ‘मुन्ना भाई चले अमेरिका’ बनाने की सोच रहे थे?

हम मुन्ना भाई शृंखला की तीसरी फिल्म करना चाहते थे लेकिन पहली दोनों फिल्मों के साथ स्क्रिप्ट का मिलान नहीं कर पाए, अब मुझे कुछ मिला है। वैसे, हमें अभी भी इस फिल्म को लिखना है।

बतौर फिल्म निर्माता आप किन फिल्म निर्देशकों से प्रभावित हैं?

ऋषिकेश मुखर्जी का मुझ पर बड़ा प्रभाव रहा। फिर गुरुदत्त, मेहबूब खान, के. आसिफ, मनमोहन देसाई और विजय आनंद थे, जिनकी तकनीक मुझे पसंद थी, लेकिन ऋषिदा की कहानी कहने की सादगी ने मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया।

15 साल में यह आपकी पांचवीं फिल्म है। बॉक्स ऑफिस पर कामयाबी के बावजूद आप कम ही फिल्में बनाते हैं?

किसी भी फिल्म को पूरा करने के बाद ही मैं दूसरी की तरफ जाता हूं। उसे लिखने में लगभग एक साल लगता है और छह महीने प्री-प्रोडक्शन के अलावा अन्य चीजों के लिए होते हैं। नई फिल्म की शूटिंग के लिए आपको कम से कम ढाई महीने की जरूरत होती है। फिर मैं अपनी खुद की फिल्म संपादित भी करता हूं। ईमानदारी से कहूं तो मुझे और फिल्में बनाना अच्छा लगेगा, लेकिन मुझे पर्याप्त अच्छी स्क्रिप्ट नहीं मिलती। मैं अपनी स्क्रिप्ट खुद लिखता हूं।

मुन्ना भाई एमबीबीएस के रोल के लिए पहले शाहरुख खान से बात की गई थी। अगर ऐसा होता तो संजू कैसे बनती?

मैंने कभी ऐसा सोचा नहीं। मैंने संजय के साथ फिल्में न की होतीं, तो भी मैं उनकी कहानी से मोहित हो जाता और उनके जीवन पर फिल्म बनाता। एक फिल्म निर्माता के नाते मैं हमेशा कंटेंट की तलाश्‍ा में रहता हूं और कहीं भी जा सकता हूं। 

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