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बुलंद इरादों से बढ़ा टेबल टेनिस में दबदबा

राष्ट्रमंडल खेलों में असाधारण प्रदर्शन के बाद देश में टेबल टेनिस को लेकर सोच में आया व्यापक बदलाव
नई पहचानः भारतीय टेबल टेनिस का नया चेहरा, मनिका बत्रा

दिग्गज खिलाड़ी मनजीत सिंह दुआ ने 1973 में राष्ट्रीय टेबल टेनिस चैंपियनशिप में भाग लेने के लिए दिल्ली से मद्रास तक ट्रेन में लगभग तीन दिनों तक का सफर तय किया। लेकिन इस लंबे और थकाऊ सफर से उनका संकल्प जरा भी नहीं डिगा और अपना पहला एकल खिताब जीता। वे कुल तीन राष्ट्रीय एकल पदक जीत चुके हैं। पहले हमारे स्पोर्ट्स स्टार अक्सर ऐसी चुनौतियों से रू-ब-रू हुआ करते थे। अगर दुआ आज खेल रहे होते तो वे बड़े  आराम से हवाईजहाज से तीन घंटे से कम समय में चैंपियनशिप के लिए पहुंच जाते। जाहिर है, 1973 और 1979 के बीच खिताबी जीत हासिल करने वाले दुआ ने आज के खिलाड़ियों के लिए चीजों को आसान बनाने में अहम भूमिका निभाई।

उनके प्रयासों ने अच्छे नतीजे दिए और भारतीय टेबल टेनिस के स्टैंडर्ड में काफी सुधार हुआ। आज अंतरराष्ट्रीय टेबल टेनिस फेडरेशन (आइटीटीएफ) की शीर्ष 50 पुरुषों की रैंकिंग में दो भारतीय खिलाड़ी हैं। अचंता शरत कमल 43वें और ज्ञानशेखरन साथियां 46वें पायदान पर हैं, जबकि पुरुषों की टीम 11वें स्थान पर है। महिलाओं के वर्ग में मनिका बत्रा अपने सर्वश्रेष्ठ 69वें और मौमा दास 117वें पायदान पर हैं, जबकि महिलाओं की टीम 24वें स्थान पर काबिज है।

 गोल्ड कोस्ट में राष्ट्रमंडल खेलों (सीडब्ल्यूजी) में टेबल टेनिस टीम के असाधारण प्रदर्शन के बाद देश में इस खेल की छवि में व्यापक बदलाव आया है। राष्ट्रमंडल खेलों में भारत ने टेबल टेनिस में कुल आठ पदक जीते, जिसमें महिलाओं के एकल वर्ग में मनिका बत्रा का गोल्ड के साथ मिक्स्ड और महिला युगल में दो और पदक शामिल हैं। पुरुषों की टीम ने राष्ट्रमंडल खेल के अपने सुनहरे प्रदर्शन को जारी रखा और अप्रैल में आयोजित विश्व टीम चैंपियनशिप में 13वें पायदान पर आ गई। विश्व टीम चैंपियनशिप में 2016 में यह 25वें स्थान पर थी।

मनिका आउटलुक को बताती हैं, “उन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों से पहले सोचा नहीं था कि टीटी में इतनी गुंजाइश थी। लेकिन, सीडब्ल्यूजी, विशेषरूप से मेरा गोल्ड मेडल जीतना बड़ी बात थी, क्योंकि इससे पहले ऐसा नहीं हुआ था। 2006 के राष्ट्रमंडल खेलों में शरत कमल भैया ने पुरुषों के एकल और टीम वर्ग में गोल्ड मेडल जीता था। अब लोगों की धारणा बदल गई है। वे क्रिकेट और बैडमिंटन की तरह टेबल टेनिस को भी पसंद कर रहे हैं।” भारत की हालिया सफलताओं के लिए क्रेडिट का एक बड़ा हिस्सा मनिका, आठ बार के राष्ट्रीय चैंपियन शरत कमल, साथियां, सौम्यजीत घोष, मौमा और पुलोमी घटक को जाता है। अगर सीनियर खिलाड़ियों की तरह जूनियर भी अपने खेल में सुधार कर रहे हैं तो समझिए कि टेबल टेनिस अपने स्वर्णिम काल में है। इसका नेतृत्व अंडर-18 वर्ल्ड नंबर दो मानव विकास ठक्कर ने किया है, जो फरवरी में नंबर एक पर काबिज होने वाले पहले भारतीय पैडलर बने। जूनियर वर्ग में उनके अलावा विश्व के शीर्ष 50 खिलाड़ियों में जगह बनाने वाले खिलाड़ियों में मानुष उत्पलभाई शाह (25वें), स्नेहित सुरावज्जुला (26वें), जीत चंद्र (36वें) और पार्थ विरमनी (42वें) हैं।

35 वर्षीय कमल में उल्लेखनीय बदलाव आया है। अमेरिका में छुट्टी मना रहे कमल बताते हैं, “ओलंपिक के लिए क्वालिफाइ करने के बाद टेबल टेनिस खिलाड़ी सरकार की टारगेट ओलंपिक पोडियम योजना का हिस्सा बन गए और उन्हें अपनी तैयारियों के लिए फंड मिलना शुरू हो गया है। बजट बढ़ने के बाद हम दुनिया में चीन, जर्मनी कहीं भी प्रशिक्षण ले सकते हैं। वहीं, दूसरी तरफ टेबल टेनिस फेडरेशन ऑफ इंडिया (टीटीएफआइ) और भारतीय खेल प्राधिकरण (एसएआइ) की भी बेहतर योजना है। फिर, इटली के मासिमो कोस्टेंटिनी छह साल बाद फिर टीम के मुख्य कोच बने हैं।” भारतीय टेबल टेनिस में यह व्यापक बदलाव चार खिलाड़ियों कमल, सौम्यजीत, मनिका और मौमा की वजह से आया है।  टीटीएफआइ ने कोस्टेंटिनी को दोबारा कोच बनाया है। इससे पहले उनका कार्यकाल 2009-10 तक का ही था और उस दौरान भारत ने 2010 के दिल्ली राष्ट्रमंडल खेल में पांच पदक जीते थे।

कोस्टेंटिनी की नियुक्ति ने टेबल टेनिस में क्रांतिकारी बदलाव लाने में मदद पहुंचाई। आज इसकी सफलता के पीछे कई वजहें हैं-जैसे, फंड की कमी का न होना, खिलाड़ियों को नियमित विदेश भेजा जाता है, वे शीर्ष अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, नियमित रूप से  प्रशिक्षण शिविर आयोजित हो रहे हैं, सरकार/संघ का संरक्षण सशर्त नहीं है और ओलंपिक गोल्ड क्वेस्ट जैसी निजी संस्थाएं खिलाड़ियों को तैयार कर रही हैं। पूर्व राष्ट्रीय कोच भवानी मुखर्जी ने टेबल टेनिस में बदलाव को देखा है। वे कहती हैं, “भारत का प्रदर्शन सुधर रहा है...लेकिन मनिका और अन्य महिला खिलाड़ियों को भी पुरुषों की तरह एक्सपोजर पाने के लिए यूरोप जाना चाहिए।” 

पिछले साल एक निजी संगठन 11स्पोर्ट्स ने इस खेल को विकसित करने के लिए टीटीएफआइ के साथ 10 साल का करार किया। कंपनी ने फ्रेंचाइजी आधारित अल्टीमेट टेबल टेनिस (यूटीटी) लीग का आयोजन किया। इस लीग में कुछ प्रमुख विदेशी खिलाड़ियों को शामिल किया गया, जिससे घरेलू खिलाड़ियों को अच्छे-खासे अनुभव का फायदा हुआ। इसने आइटीटीएफ वर्ल्ड टूर-इंडिया ओपन का भी आयोजन किया। आठ बार के राष्ट्रीय एकल चैंपियन और 11 स्पोर्ट्स के निदेशक कमलेश मेहता खिलाड़ियों के लिए विदेशों में एक्सपोजर को एक महत्वपूर्ण पहलू मानते हैं। मौजूदा पीढ़ी में शरत 14 साल पहले किसी विदेशी लीग में खेलने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी हैं। जर्मन बुंडेस्लिगा में 1981 में प्रो लीग खेलने वाले भारतीय खिलाड़ी मनजीत सिंह दुआ स्पाट्‍‍र्स अॅथारिटी ऑफ इंडिया (साई) के योगदान की तारीफ करते हैं। वे कहते हैं, “यह प्रशिक्षकों और फिजियोथेरेपिस्ट और मालिश करने वाले की सुविधा मुहैया कर खिलाड़ियों की मदद कर रहा है। मैं कोस्टेंटिनी को भी पूरा श्रेय देता हूं, जिसके खिलाफ मैंने अपने खेल के सबसे सफल दिनों में खेला था।” टीटीएफआइ की कार्यकारी समिति में दुआ के साथ दो बार की राष्ट्रीय महिला चैंपियन मंटू घोष जैसी पूर्व खिलाड़ी भी हैं। मंटू सिलीगुड़ी में कोच हैं। वह कहती हैं कि खिलाड़ियों की सोच में बदलाव आया है। वह कहती हैं, “आज हमारे बच्चे निडरता से खेलते हैं। उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि वे चीनी या जापानी खिलाड़ी के खिलाफ खेल रहे हैं। यह बदलाव विदेशों में लगातार एक्सपोजर मिलने की वजह से आया है।” मीडिया में इन्हें बतौर रोल मॉडल पेश किए जाने से दूरी घटी है और टेबल टेनिस मुंबई, दिल्ली, कोलकाता और चेन्नै जैसे महानगरों से निकलकर देश के पूरे नक्शे पर फैल रहा है। कमल बताते हैं, “इससे पहले यह धारणा थी कि आप 'किसी खास राज्य' से हैं, तभी आप अच्छा खेलते होंगे। ज्ञान और परंपरा किसी विशेष शहर या क्लब की धरोहर हुआ करती थी। अब वैश्वीकरण, सुधार और जागरूकता के कारण पूरे देश में विकास हुआ है।” लेकिन इन खुशियों के साथ-साथ हमें अपनी खामियों पर भी ध्यान देने की जरूरत है। जैसे, स्टेडियमों तक पहुंचने में परेशानी। दुआ दिल्ली में स्टेडियम के बढ़ते किराए पर भी अपनी नाराजगी जाहिर करते हैं। वह कहते हैं, “हाल के वर्षों में इंदिरा गांधी स्टेडियम, तालकटोरा स्टेडियम या त्यागराज स्टेडियम में टूर्नामेंट आयोजित करना बहुत महंगा हो गया है। तीन दिनों के लिए 50 हजार रुपये से बढ़कर अब इनका किराया तीन लाख से चार लाख रुपये तक हो गया है।”

राष्ट्रमंडल खेलों में सफलता के बीच एक और सवाल हैः चीनी और जापानी खिलाड़ियों के दबदबे के बीच भारत एशियाई खेलों में पदकों का खाता कब खोलेगा? मनिका कहती हैं, “मैं वादा नहीं करूंगी, लेकिन एशियाई खेलों में पदक जीतने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करूंगी।” और, उन्हें कब लगता है कि भारत ओलंपिक में पदक जीत पाएगा? चेल्सी फुटबॉल क्लब की प्रशंसक बताती हैं, “ओलंपिक में पदक जीतना हर किसी का सपना होता है। यह मेरा सपना भी है। मैं निश्चित रूप से नहीं कह सकती, लेकिन 2024 में हम अपनी पूरी कोशिश करेंगे।” कमल भी आशावान हैं। वे कहते हैं, “ओलंपिक में पदक जीतने की एक प्रक्रिया है। इसमें समय लगेगा, लेकिन यह संभव है। टीम इवेंट में 2024 या 2028 तक यह संभव है।” अब यह कमल, मनिका, मौमा का दायित्व है, ...क्योंकि सशक्त सपनों से ही जिम्मेदारियां शुरू होती हैं।

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