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शिक्षा में दूरगामी सोच अपनाने की जरूरत, सिर्फ रोजगार ही न हो लक्ष्य

खेल-खेल में सीखने की प्रक्रिया हो जाती है मनोरंजक, लेकिन इसका मूल्यांकन भी जरूरी
शिक्षा का मकसदः सीखने की प्रक्रिया में उत्सुकता पर बनाया गया अभिजित भादुड़ी का इलस्ट्रेशन

शिक्षा का मकसद लोगों की तरक्की है, ताकि वे सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से समाज के नजरिए और आदर्शों को आगे ले जाने में अहम योगदान दे सकें। इस तरह किसी मिलिट्री शासन वाले देश में शिक्षा का मकसद और रुझान किसी लोकतांत्रिक देश से अलग हो जाता है। अगर बाजार-केंद्रित मॉडल के नजरिए से शिक्षा को देखें तो इसका असर रोजगार तक ही सीमित है। यहां सीखने और समझने की अपेक्षा प्रमाणपत्र और मार्कशीट को अधिक मूल्यवान माना जाता है।

जैसे-जैसे समाज विकसित होता है, उसी तरह शिक्षा का भी विकास होना चाहिए। सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण बदलाव की वजह से दुनिया के अधिकांश हिस्सों में शिक्षा आज के मुताबिक नहीं रह गई है। इस समस्या के हल के लिए पाठ्यक्रम की रूपरेखा, अध्यापन और प्रशासन संबंधी मानकों को फिर से तय करना चाहिए। कई एम्प्लॉयर स्नातक या इंजीनियर या एमबीए छात्रों की कम रोजगार दर पर इन्हीं बातों का जिक्र करते हैं। रोजगार जरूरी है, लेकिन शिक्षा का यही एकमात्र मकसद नहीं है।

सिर्फ जानकारी न दें, जज्बा भी भरें

जब हम सिर्फ रोजगार के लिए शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो शिक्षा का एक लेन-देन वाला पहलू दिखता है। यह किसी को भी प्रेरित नहीं करता है। जब शिक्षक “परीक्षा के लिए पढ़ाते हैं”, तो वे छात्रों में ज्ञान के प्रति प्रेम जगाने की जगह उन्हें परीक्षा के लिए तैयार करने की रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। ऐसे कई छात्र हैं, जो परीक्षा "क्रैक" करना जानते हैं और उन्हें अच्छे-खासे नंबर मिलते हैं, लेकिन वे सीखना पसंद नहीं करते हैं। छात्रों के माता-पिता अंकों को उनकी सफलता का सबूत मानते हैं। इससे शिक्षा एक बेहद लाभदायक व्यवसाय बन जाती है, लेकिन यह सीखने की प्रवृत्ति विकसित करने में विफल रहती है।

कोचिंगः नाकाम शिक्षा व्यवस्‍था का सबूत

ओपन स्कूल और कॉलेज चलाने वाले गैर-जिम्मेदार संचालक केवल डिग्री ही छाप सकते हैं। वे छात्रों में उत्सुकता पैदा नहीं कर सकते हैं। हमारे देश में कोचिंग संस्थानों की भरमार है। उदाहरण के लिए, राजस्थान में कोटा जैसे शहर ने शिक्षा में एक समानांतर अर्थव्यवस्था खड़ी कर ली है।

माता-पिता हर साल कोटा में अपने बच्चों को 40 कोचिंग संस्थानों में से किसी में दाखिला लेने के लिए प्रोत्साहित करते हैं और ऐसे छात्रों की संख्या सालाना 1.2 लाख है। वे सफल छात्रों का विज्ञापन जारी कर कोचिंग फैक्ट्री को चलाते हैं। विज्ञापनों में छात्र कसम खाते हैं कि अगर उन्होंने कोचिंग क्लास में दाखिला नहीं लिया होता तो कभी जेईई या एनईईटी परीक्षाओं में सफल नहीं हो पाते। हालांकि, कोचिंग में दाखिला लेने वाले लाखों असफल छात्रों का कोई जिक्र नहीं होता है। उन पर सफल होने का इतना अधिक दबाव होता है कि हर साल कई आत्महत्या कर लेते हैं, क्योंकि वे खुद का सामना नहीं कर पाते।

यहां तक कि सफल उम्मीदवार भी प्रोफेशन के प्रति लगाव विकसित नहीं कर पाते। अगर किसी विषय में रुचि नहीं है तो उसमें विशेषज्ञता और महारथ हासिल करना बेहद मुश्किल है।

भावनाएं उतनी ही अहम जितनी विषयवस्तु

इस बात का जवाब देना महत्वपूर्ण है कि “हम किस समस्या का हल करने की कोशिश कर रहे हैं?” इस सवाल के जवाब पर ही निर्भर करेगा कि हम शिक्षा को ठीक करने के लिए किस दृष्टिकोण को अपनाते हैं। जब हम कहते हैं कि अच्छी विषयवस्तु और किसी काम को खेल जैसा बनाने से सीखने में मदद मिलती है, तो इसका मतलब है कि हम भारत में सीखने के सांस्कृतिक पहलू को भूल रहे हैं। हमने विशेषज्ञों (गुरु) से सीखने की प्रक्रिया के महत्व को जाना है। लेकिन स्कूल में विशेषज्ञों (या शिक्षकों) से सवाल-जवाब को प्रोत्साहित नहीं किया जाता है।

दूसरों पर निर्भर रहने की आदत हमेशा बनी रहती है। कर्मचारियों को खुद चीजों को सीखना मुश्किल लगता है। वे ई-लर्निंग कोर्स को अक्सर छूते भी नहीं हैं।

कुशल शिक्षकों से ही व्यापक ज्ञान का अनुभव हासिल किया जा सकता है। वे ही विषयवस्तु को समझा सकते हैं और उसके बारे में जानकारी के लिए छात्रों में जिज्ञासा उत्पन्न कर सकते हैं। इसी से ज्ञान का अनुभव मिलता है। कुशल शिक्षक पाठ्यक्रमों तक ही सीमित नहीं रहता है और गहरी जानकारी हासिल करने के लिए उत्सुकता पैदा करता है। यह खोज एक शिक्षार्थी को चीजों को समझने में सक्षम बनाती है।

एडटेक उद्यमी बताते हैं कि वीडियो गेम बेहद दिलचस्प हैं। उन्हें सीखना अक्सर मुश्किल होता है। फिर भी लोग अपना स्कोर बेहतर करने के लिए उस पर घंटों खर्च करते हैं। उन्हें यह बताया जाना चाहिए कि शिक्षा एक व्यक्तिगत प्रक्रिया नहीं है। हमें हितधारकों की भूमिका और शिक्षक, छात्र और माता-पिता के बीच संबंधों के बारे में फिर से सोचने की जरूरत है।

किसी फ्रेंचाइजी का गुणवत्ता नियंत्रण

अमेरिका में मैकडॉनल्ड्स के 14 हजार से अधिक आउटलेट्स हैं। इनमें से हर आउटलेट को गुणवत्ता के वैश्विक मानकों का सख्ती से पालन करना पड़ता है। उपभोक्ता भले ही किसी आउटलेट में जाए, लेकिन खाने का स्वाद एक समान ही होना चाहिए।

आज भारत में 16 आइआइटी और 20 आइआइएम हैं। यहां की प्लेसमेंट के पैटर्न पर नजर डालने से पता चलता है कि जब प्रतिभा की बात आती है तो शीर्ष नियोक्ता (एम्प्लॉयर) एक हाइरारकी का पालन करते हैं। एम्प्लॉयर की नजरों में हर आइआइटी और आइआइएम को बराबर नहीं माना जाता है। हमारे शीर्ष संस्थानों को कुशल प्रोफेसरों की कमी का सामना करना पड़ता है। कुशल और गुणी शिक्षक छात्रों को नियमित दिनचर्या से आगे सोचने के लिए प्रेरित करते हैं। आश्चर्य और जिज्ञासा उत्पन्न करने से शिक्षार्थियों को प्रेरणा मिलती है। यह कौशल सभी शिक्षकों में नहीं होता है। शिक्षण संबंधी सिद्धातों के साथ रचनात्मकता से हर पाठ को यादगार बनाया जा सकता है। गेमिफिकेशन (खेल-खेल में सीखना) सीखने के अनुभव को मजेदार और मनोरंजक बना सकता है, लेकिन इसके साथ आकलन भी होना चाहिए।

जब बच्चों को स्कूल में प्रोजेक्ट दिए जाते हैं, तो उन्हें उसे डिजाइन करने और अपने सहपाठियों के साथ स्कूल में ही पूरा करने के लिए कहना चाहिए। (बच्चों की जगह उनके माता-पिता को उनके प्रोजेक्ट नहीं करने चाहिए)। इससे तीन प्रमुख कौशल का निर्माण होगा ः रचनात्मकता, समस्या समाधान और आपसी सहयोग।

सरकार की भूमिका

सरकार को ‘ईज ऑफ अपस्किलिंग’ का पता लगाने के लिए (ईज ऑफ डुइंग बिजनेस की तरह) सूचकांक बनाना चाहिए, ताकि वह देख सके कि कौशल और दृष्टिकोण को अपग्रेड करने के लिए यह कितना आसान है। शिक्षक किस तरह अपने विषयों को रचनात्मक तरीकों से छात्रों को पढ़ाते हैं, उसे छपवाने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए। किसी विचार की शक्ति उसे दूसरों द्वारा अपनाए जाने में ही निहित है। अंततः सरकार को ऐसे कायदे-कानून बनाने चाहिए, जिससे गैर-जिम्मेदार संचालक बच्चे और उसके माता-पिता को ठग न सकें, क्योंकि वे कोचिंग क्लास और अकुशल शिक्षकों पर पैसे खर्च करने के लिए सबकुछ का त्याग कर देते हैं। हर शिक्षक के पास पढ़ाने का लाइसेंस होना चाहिए और री-फ्रेशर कोर्स की अंडरटेकिंग के बाद ही उसे रीन्यू करना चाहिए।

समाज की भूमिका

कहावत है कि किसी प्रोफेशन में सबसे तेज दिमाग वाले लोगों की कद्र होती है और उनकी ही वाहवाही होती है। यूनानियों ने अपने दार्शनिकों का जश्न मनाया और  वे सबसे तेज दिमाग वाले दार्शनिक बनना चाहते थे। भारत ने आजादी के बाद कुछ वर्षों तक अपने स्वतंत्रता सेनानियों का जश्न मनाया। सरकारी नौकरियों, फिल्मी सितारों और एमएनसी का भी अपना वक्त था। हाल में हमने विचारों और जोखिम लेने की क्षमता का जश्न मनाया है। इससे उद्यमियों का उभार हुआ।

किसी के विचार का उपहास उड़ाने या घटिया बताने का सरल तरीका यह है कि उसे “अकादमिक” या सैद्धांतिक बता दिया जाए। “यह बहुत ही अधिक सैद्धांतिक है,” किसी वक्ता द्वारा यह कहना उसका सबसे दुखद फैसला होता है। जब तक नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने चंद्रमा पर पहुंचकर अपना कदम नहीं रखा, तब तक चांद पर किसी व्यक्ति का पहुंचना एक सैद्धांतिक विचार ही था।

आजीवन शिक्षार्थी बनने के लिए विचारों की तलाश की जिज्ञासा होनी चाहिए और जिन चीजों को नहीं जानते हों, उसे स्वीकार करने की विनम्रता होनी चाहिए। शिक्षक हमारे दिल और दिमाग में विचार और सपनों का बीज बोते हैं। अब उनका जश्न मनाने और उन्हें फिर से कुशल बनाने का समय है।

कुल मिलाकर, शिक्षा को फिर से ठीक करने के लिए हमें यह जानना होगा कि इसकी जरूरत क्यों है। स्वाभाविक है, इसमें क्या और यह कैसे होगा, यह सवाल बाद में आएगा।

(लेखक, स्तंभकार और टैलेंट डेवलपमेंट विशेषज्ञ हैं, लिंक्डइन पर उनके साढ़े छह लाख से अधिक फॉलोअर हैं और वे सोशल मीडिया पर सबसे असरदार लोगों में एक हैं)

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