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अच्छी और महफूज जिंदगी की तलाश में बाहर का रुख

घाटी के छात्रों के बीच पढ़ाई के लिए देश के विभिन्न राज्यों और बांग्लादेश तथा मध्य-पूर्व के देशों में जाने का बढ़ा चलन
भविष्य की फिक्रः हिंसा और बंद से जूझती घाटी के हालात में बदलाव चाहते हैं छात्र

घाटी में कोचिंग सेंटरों के लिए चर्चित श्रीनगर के पॉश इलाके पर्रेपोरा में पीठ पर बैग लटकाए हजारों छात्र-छात्राओं की चहलपहल हर वक्त नजर आ जाती है। यहां चल रहे कोचिंग सेंटरों में ताजा जानकारी के मुताबिक करीब 12 हजार छात्रों ने दाखिला ले रखा है, जहां वे विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए कोचिंग लेते हैं। इनमें ज्यादातर छात्र कश्मीर घाटी के विभिन्न जिलों से आते हैं क्योंकि जम्मू-कश्मीर राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी का यह इलाका दूरदराज के क्षेत्रों से अपेक्षाकृत महफूज है और बंद वगैरह से कम प्रभावित होता है। दक्षिणी जिलों खासकर शोपियां और पुलवामा में अलगाववादी आए दिन आम लोगों और आतंकवादियों के मारे जाने पर बंद का आह्वान करते रहते हैं। नतीजतन, सर्दियों की दो महीने की छुट्टियों के बाद मार्च में खुले स्कूल और कॉलेजों में अभी तक बमुश्किल 15 दिन ही पढ़ाई हो पाई है।

कोचिंग सेंटर्स यूनियन ऑफ द वैली के लतीफ मसूदी ने बताया कि करीब सात हजार छात्र शहर के दूसरे हिस्सों में पढ़ते हैं और करीब छह से आठ हजार कश्मीरी छात्र जम्मू और दिल्ली में कोचिंग ले रहे हैं क्योंकि अपेक्षाकृत शांत श्रीनगर भी झड़पों और बंद से अछूता नहीं है। पर्रेपोरा में भी एक कोचिंग सेंटर से कुछ ही मीटर की दूरी पर केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) का कैंप है। सीआरपीएफ ने फुटपाथ पर कंटीले तार की बाड़ लगा रखी है और संगीन लिए जवान तैनात दिखते हैं। यह इस अशांत इलाके में सुरक्षा की स्थिति और जवानों की मौजूदगी के बारे में बताता है।

पर्रेपोरा में कोचिंग सेंटरों के अलावा निजी शैक्षणिक परामर्शदाताओं का भी जमघट है, जो सरकार के नियंत्रण और नियमों से परे हैं। 25 वर्षीय आरिफ अहमद इसी तरह की एक कंसल्टेंसी फर्म चलाते हैं। हरियाणा की कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी से एमटेक की डिग्री लेने वाले आरिफ 2015 में घाटी लौट आए। दो कारणों से उन्होंने कसल्टेंसी की शुरुआत की- यह कमाई वाला धंधा है और इसे वे सामुदायिक सेवा के तौर पर भी देखते हैं। दो कमरों के अपने दफ्तर में बैठे आरिफ ऐसे छात्रों के बारे में कोई जानकारी न देने का एहतियात बरतते हैं जिनको देश के दूसरे हिस्सों और बाहर विभिन्न पाठ्यक्रमों में दाखिला करवाने का दावा करते हैं। वे कहते हैं, “कश्मीर में कोई भी कंसल्टेंसी अपने कैंडिडेट की जानकारी आपसे साझा नहीं करेगी। ज्यादातर कश्मीरी बोर्ड की परीक्षाओं के बाद दक्षिण भारत, पंजाब और यूपी के नोएडा से इंजीनियरिंग करना पसंद करते हैं। कंसल्टेंसी फर्म्स पिछले कुछ साल से उत्तरी भारत के राज्यों हरियाणा, राजस्‍थान और यूपी के अंदरूनी इलाकों में दाखिला लेने की सलाह नहीं दे रहे, क्योंकि इन जगहों पर छात्रों को बदसलूकी का सामना करना पड़ता है।”

आरिफ के कार्यालय से कुछ मीटर की दूरी पर 45 साल के बशीर अहमद बट अपनी कंसल्टेंसी चलाते हैं। बट ने 2010 में इशफाक अहमद के साथ इसकी शुरुआत की। वे बताते हैं, “मैंने 500 से ज्यादा छात्रों की देश के विभिन्न राज्यों के कॉलेजों और बांग्लादेश तथा मध्य एशियाई देशों में दाखिले में मदद की है।” कंसल्टेंसी फर्म शुरू करने से पहले बट फार्मेसी व्यवसाय से जुड़े थे। वे ऑल कश्मीर एजुकेशन कंसल्टेंसी यूनियन के कोषाध्यक्ष हैं। उन्होंने बताया कि उच्च मध्य वर्ग के कश्मीरी इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट और कंप्यूटर पाठ्यक्रमों के लिए अपने बच्चों को बेंगलूरू और पुणे में पढ़ाना पसंद करते हैं। हालांकि, एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए बांग्लादेश पसंदीदा जगह है। इसका कारण बट बताते हैं, “बांग्लादेश नजदीक है, उसे सुरक्षित जगह माना जाता है, सस्ता है और मुस्लिम देश होने के कारण सांस्कृतिक तौर पर यह घर जैसा लगता है।” कश्मीरी छात्रों को मुफ्त में शैक्षणिक सलाह देने वाले हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में पोस्टडॉक्टोरल साइंटिस्ट शब्बीर हुसैन ने बताया ढाका के मेडिकल कॉलेजों में अंग्रेजी में पढ़ाई होती है, खान-पान ज्यादा अलग नहीं है और उर्दू तथा हिंदी में बातचीत की जा सकती है। सस्ती उड़ान सेवा ने भी बांग्लादेश को कश्मीरियों की पसंद बनाने का काम किया है।

देश और विदेश में पढ़ाई कर रहे राज्य के छात्रों का कोई रिकॉर्ड सरकार के पास नहीं है। शिक्षा सचिव फारूक अहमद शाह ने बताया, “हर साल हजारों छात्र देश के विभिन्न कॉलेजों में दाखिला लेते हैं। यह एक अच्छी बात है, लेकिन हम इसका कोई रिकॉर्ड नहीं रखते।” सरकार के प्रवक्ता नईम अख्तर ने बताया, “हजारों छात्र देश के सर्वश्रेष्ठ संस्‍थानों में अपनी जिम्मेदारी पर दाखिला लेते हैं और बहुत से विदेश जाते हैं, यहां तक कि यूरोप में भी।” एमबीबीएस और बीडीएस के लिए कश्मीरी बांग्लादेश, मध्य एशियाई देशों, पाकिस्तान, ईरान, चीन और तुर्की को भी तरजीह देते हैं।

घाटी में कोचिंग सेंटर्स एसोसिएशन के प्रमुख जी.एन. वर ने बताया कि बोर्ड परीक्षाएं पास करने के बाद सालाना पांच हजार छात्र बेहतर शैक्षणिक संभावनाओं के लिए अपनी जिम्मेदारी पर या कंसल्टेंसी की मदद से बाहर जाते हैं। वर ने बताया, “कश्मीरी सालाना 1,400 करोड़ रुपये से ज्यादा अपने बच्चों की शिक्षा पर देश के विभिन्न संस्‍थानों और बाहर खासकर बांग्लादेश में खर्च कर रहे हैं।” प्रधानमंत्री विशेष छात्रवृत्ति योजना (पीएमएसएस) के तहत राज्य के पांच हजार छात्रों को देश के विभिन्न राज्यों में दाखिला लेने में भी मदद मिलती है।

2011 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश भर के कॉलेजों में मेडिकल, इंजीनियरिंग और अन्य पाठ्यक्रमों की पढ़ाई के लिए जम्मू-कश्मीर के छात्रों के लिए 1,200 करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की थी। नरेंद्र मोदी की सरकार ने इस योजना को बढ़ाते हुए छात्रवृत्ति की संख्या एक हजार से पांच हजार सालाना कर दी है। छात्रवृत्ति पाने के लिए छात्र की सालाना आय छह लाख रुपये या उससे कम होनी चाहिए। पीएमएसएस के तहत 2,070 छात्रों को डिग्री कोर्स, 2,830 को प्रोफेशनल टेक्निकल कोर्स और सौ छात्रों को एमबीबीएस या बीडीएस की पढ़ाई के लिए वजीफा मिलता है। एक अधिकारी ने बताया कि यह योजना कश्मीरियों तक पहुंचने के भारत सरकार के इरादे को दिखाती है।

नब्बे के दशक की शुरुआत में जब घाटी में हिंसा भड़क उठी थी, कश्मीरियों ने अपने बच्चों को मेडिकल शिक्षा के लिए मध्य एशियाई देशों में भेजना शुरू किया। इनमें से कई अब स्वास्‍थ्य विभाग और कश्मीर और जम्मू के मेडिकल कॉलेजों में काम कर रहे हैं। आमतौर पर उन्हें ‘रूसी डॉक्टर’ के नाम से जाना जाता है। इन लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा था, क्योंकि इनके कॉलेजों को मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआइ) की मान्यता हासिल नहीं थी। बट ने बताया, “बांग्लादेश के एमबीबीएस पाठ्यक्रमों को एमसीआइ की मान्यता हासिल है।” श्रीनगर के सरकारी मेडिकल कॉलेज के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि बांग्लादेश से एमबीबीएस की डिग्री लेकर करीब 100-130 लोग इंटर्न या सर्जन के तौर पर काम कर रहे हैं और श्रीनगर के सरकारी मेडिकल कॉलेज से स्नातकोत्तर कर रहे हैं।

बट ने बताया, “पाकिस्तान के विभिन्न विश्वविद्यालयों में अच्छी-खासी संख्या में कश्मीरी छात्र मेडिसिन की पढ़ाई कर रहे हैं, लेकिन इसमें कोई कंसल्टेंसी शामिल होना पसंद नहीं करती। इसमें काफी जोखिम होता है।” मेडिकल की पढ़ाई के लिए कश्मीरी छात्रों को पाकिस्तान छात्रवृत्ति देता है, जिनकी ज्यादातर सिफारिश अलगाववादियों द्वारा की जाती है। इस साल की शुरुआत में राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने दावा किया था कि ऐसे छात्रों के वीजा आवेदन की सिफारिश हु‌र्रियत नेताओं द्वारा नई दिल्ली स्थित पाकिस्तानी उच्चायोग को की जाती है। पाकिस्तान सरकार विभिन्न योजनाओं के तहत एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति देती है। 1990 की शुरुआत से पाकिस्तान सरकार ने एमबीबीएस और इससे जुड़े पाठ्यक्रमों के संस्‍थान में कश्मीरी छात्रों के लिए सीट आरक्षित कर रखी हैं।

देश के भीतर उत्पीड़न के मामलों के बावजूद पढ़ाई के लिए घाटी से विभिन्न राज्यों में छात्रों का पलायन हो रहा है। 2016 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कश्मीरी छात्रों के लिए चौबीस घंटे की शिकायत निवारण हेल्पलाइन की शुरुआत की। मंत्रालय ने एक नोडल अफसर भी तैनात किया है जिसकी जिम्मेदारी कश्मीरी छात्रों से शिकायत मिलने पर उनके जल्द निपटारे के लिए विभिन्न राज्यों से समन्वय स्‍थापित करना है।

2016 में घाटी में अशांति के बाद कश्मीरी युवाओं के उत्पीड़न की खबरें मध्य प्रदेश, राजस्‍थान और उत्तर प्रदेश सहित विभिन्न राज्यों से आई थीं। इस साल फरवरी में दो कश्मीरी छात्रों का हरियाणा में तब उत्पीड़न किया गया जब वे सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ हरियाणा जा रहे थे। जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती द्वारा नाराजगी जताने के बाद इस मामले में तीन लोग गिरफ्तार किए गए थे।

मई 2014 में नोएडा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी (एनआइयू) में कश्मीरी छात्रों को नशे में धुत कुछ छात्रों ने पाकिस्तान विरोधी नारे लगाने के लिए मजबूर किया। तत्कालीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की कड़ी प्रतिक्रिया के बाद एनआइयू ने छात्रावास में रहने वाले सौ से ज्यादा कश्मीरी छात्रों को एक सुरक्षित घर में शिफ्ट कर दिया था। उसी साल मार्च में जम्मू-कश्मीर के 54 छात्रों को एक क्रिकेट मैच देखने के दौरान पाकिस्तान का समर्थन करने पर मेरठ की स्वामी विवेकानंद सुभारती यूनिवर्सिटी (एसवीएसयू) ने निष्कासित कर दिया था। नई दिल्ली को चिढ़ाने के लिए पाकिस्तान की सरकार ने इन छात्रों को वजीफे की पेशकश की थी। इन छात्रों को पीएमएसएस के तहत एसवीएसयू में दाखिला मिला था।

अख्तर कहते हैं, “सरकार ने एक तंत्र स्‍थापित किया है और यह कश्मीरी छात्रों के उत्पीड़न को लेकर संवेदनशील है। जहां भी इस तरह की दुर्भाग्यपूर्ण घटना होती है वहां के मुख्यमंत्री के सामने इस मामले को उठाने में हम देरी नहीं करते।”

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