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उम्रदराज खिलाड़ियों की बल्ले-बल्ले

धोनी और 30 वर्ष से अधिक उम्र के खिलाड़ियों ने 'टी-20 युवाओं का खेल' वाले मिथक को तोड़ा
हरभ्‍ाजन स‌िंह

मार्च 2016 में महेंद्र सिंह धोनी की उम्र 35 साल से महज तीन महीने ही कम थी, लेकिन वे भारतीय एकदिवसीय और टी-20 टीम के कप्तान थे। उस वक्त उन्होंने एक ऑस्ट्रेलियाई पत्रकार के रिटायरमेंट से जुड़े सवाल का बेहद ‘चुटीले’ अंदाज में जवाब दिया था। भारत मुंबई में आइसीसी टी-20 वर्ल्डकप के सेमीफाइनल में वेस्टइंडीज से हार गया था और कयास लगाया जा रहा था कि टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कह चुके महेंद्र सिंह धोनी अब क्रिकेट के छोटे ओवरों के खेल से भी संन्यास ले लेंगे।

महेंद्र सिंह धोनी ने मुस्कराते हुए ऑस्ट्रेलियाई पत्रकार को पोडियम पर बुलाया और बगल में बैठाया। फिर उसके कंधे पर हाथ डालते हुए उससे बतौर भारतीय खिलाड़ी अपने भविष्य के बारे में पूछा। धोनी ने काफी देर तक ऑस्ट्रेलियाई पत्रकार से बातचीत की। धोनी ने सबसे मजेदार यह सवाल पूछा, “क्या आपको लगता है कि मैं 2019 विश्वकप तक खेल पाऊंगा?” इस सवाल में चयनकर्ताओं के साथ-साथ मीडिया के लिए भी एक स्पष्ट संदेश था कि “मैं अपने फैसले का खुद मालिक हूं। मैं 2019 में एकदिवसीय विश्वकप खेलने पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहा हूं और अब किसी को भी मुझसे यह सवाल नहीं पूछना चाहिए।”

अब धोनी दो महीने बाद 37 साल के हो जाएंगे, लेकिन उनके बल्ले की हनक जरा भी कम नहीं हुई है, जो साबित करता है कि कुछ समय पहले उनका खराब फॉर्म अब अतीत का मामला हो चुका है।

लंबे-लंबे छक्के जड़कर, बड़ी पारियां खेल और आसानी से मैच जिताकर चेन्नै सुपर किंग्स (सीएसके)  के कप्तान के रूप में वे एक नजीर पेश कर रहे हैं। आइपीएल में खेलने वाले धोनी और 30 साल से अधिक उम्र के बाकी खिलाड़ी इस धारणा को पूरी तरह नकार रहे हैं कि टी-20 क्रिकेट मजबूत, बाजू पर टैटू लगाने वाले और चपल युवा खिलाड़ियों का खेल है। जिस तरह धोनी ने विकेटकीपिंग में बिजली-सी चपलता दिखाई है, उसी तरह इनमें से अधिकांश दिग्गज अपनी फील्डिंग से अभी भी किसी युवा खिलाड़ी को मात दे सकते हैं।

आइपीएल में सीएसके के 10 मैच खेलने के बाद धोनी सर्वाधिक रन बनाने वाले खिलाड़ियों की सूची में पांचवें पायदान पर हैं। उन्होंने 165.9 की शानदार स्ट्राइक रेट के साथ 360 रन बनाए हैं, जिसे देखकर युवा खिलाड़ी भी भौचक हो जाते हैं। वे अपने मौजूदा फॉर्म की अहमियत समझते हैं। साथ ही, इससे सीएसके को सातवीं बार आइपीएल के फाइनल में पहुंचाकर तीसरी खिताबी जीत दिलाना चाहते हैं। वे पिछले छह फाइनलों में सीएसके के कप्तान रहे।

धोनी 30 साल से अधिक उम्र के उन खिलाड़ियों में एक हैं, जिन्होंने आइपीएल के 11वें संस्करण में उम्र को चुनौती देने के साथ आलोचकों का भी मुंह बंद किया है। वेस्टइंडीज के विस्फोटक बल्लेबाज क्रिस गेल (38 साल, किंग्स इलेवन पंजाब), शेन वाटसन (36 साल, सीएसके), यूसुफ पठान (35 साल, सनराइजर्स हैदराबाद), एबी डीविलियर्स (34 साल, रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर), दिनेश कार्तिक (32 साल, कोलकाता नाइट राइडर्स), रॉबिन उथप्पा (32 साल, केकेआर) और रोहित शर्मा (31 साल, मुंबई इंडियंस) जैसे बाकी अनुभवी बल्लेबाज भी इसी श्रेणी में हैं। वहीं, 30 साल से अधिक उम्र के गेंदबाजों में उमेश यादव (30, आरसीबी), न्यूजीलैंड के बाएं हाथ के तेज गेंदबाज मिचेल मैक्कलेघन (31, मुंबई इंडियंस), बांग्लादेशी बाएं हाथ के स्पिनर शाकिब उल हसन (31, सनराइजर्स हैदराबाद) और आंद्रे रसेल (30, केकेआर) अपनी टीमों के लिए अहम या उपयोगी साबित हो रहे हैं।

गेल की महज 64 गेंदों पर 104 रनों की तूफानी पारी ने सनराइजर्स हैदराबाद के गेंदबाजों को धराशायी कर दिया। उनकी इस पारी में एक चौका और 11 छक्के शामिल थे। कोई भी यह कह सकता है कि अकेले उनकी इस पारी ने किंग्स इलेवन पंजाब को मैच जिता दिया। 2008 में आइपीएल शुरू होने के बाद इन खिलाड़ियों के अलावा 30 साल से अधिक उम्र के खिलाड़ियों जैसे जैक्स कैलिस (केकेआर), शेन वॉर्न (राजस्थान रॉयल्स), राहुल द्रविड़ (राजस्थान), एडम गिलक्रिस्ट (किंग्स इलेवन पंजाब और डेक्कन चार्जर्स) और मैथ्यू हेडन (सीएसके) ने भी अपनी चमक बिखेरी थी।

भारतीय क्रिकेट टीम के चयन समिति के पूर्व अध्यक्ष संदीप पाटिल जोर देकर कहते हैं कि इन सभी की सफलता का राज उनका अनुभव है। पाटिल आउटलुक को बताते हैं, “क्रिकेट में अनुभव सबसे महत्वपूर्ण है। लेकिन इसका इस्तेमाल कैसे करना है, अगर यह आपको पता नहीं है तो अनुभव का ज्यादा फायदा नहीं है। लगभग छह महीने पहले सभी धोनी को एकदिवसीय और टी-20 से निकालने की मांग कर रहे थे। भारतीय कोच रवि शास्‍त्री और मैं इस बात पर कायम रहा कि धोनी में अभी बहुत क्रिकेट बचा है।”

ऑलराउंडर इरफान पठान भी पाटिल की बातों से सहमत हैं। वे बताते हैं, “यह सिर्फ कुछ लोगों का ही मानना था कि 30 साल से अधिक उम्र के खिलाड़ी अधिक उपयोगी नहीं हैं। किसी का अनुभव बहुत मायने रखता है और अनुभव बाजार में नहीं खरीदा जा सकता। जब तक आप खेलेंगे नहीं तो अनुभव कैसे आएगा। इसलिए मुझे आश्चर्य नहीं है कि 30 साल से अधिक उम्र के ये खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। आइपीएल के इतिहास में सबसे ज्यादा मैच जीतने के मामले में सीएसके दूसरे पायदान पर है और उसने कुछ अनुभवी खिलाड़ियों की मदद से ऐसी जीत दर्ज की है।”

पठान बिलकुल सही हैं। जब फिक्सिंग मामले में दो साल के प्रतिबंध के बाद सीएसके ने वापसी की तो उसने नीलामी में इमरान ताहिर (38), हरभजन सिंह (37), वाटसन, ड्वेन ब्रावो (34), फैफ डु प्लेसि (33), केदार जाधव (32), रायडू और सुरेश रैना (31) को खरीदा। इस पर लोगों ने फ्रेंचाइजी का मजाक उड़ाया कि उसने ‘बूढ़े लोगों की टीम’ चुनी है। अब इन आलोचकों के पास कहने के लिए कुछ नहीं है, क्योंकि धोनी और अधिकांश खिलाड़ियों ने न सिर्फ व्यक्तिगत रूप से शानदार प्रदर्शन किया, बल्कि टीम ने भी अच्छा प्रदर्शन किया और इस समय वह अंक तालिका में शीर्ष पर है।

भारत के पूर्व टेस्ट बल्लेबाज गुरशरण सिंह भी क्रिकेट के सबसे छोटे प्रारूप में 30 साल से अधिक उम्र के खिलाड़ियों के अच्छे प्रदर्शन से ज्यादा आश्चर्यचकित नहीं हैं। वे कहते हैं, “आइपीएल का एक अनूठा पहलू यह रहा है कि पिछले कुछ वर्षों में 30 साल से अधिक उम्र के अधिकांश ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी इसमें खेले हैं। ऐसा इसलिए है कि खुद ऑस्ट्रेलिया में लेहमन जैसे कई खिलाड़ियों ने अपना अंतरराष्ट्रीय कॅरिअर उस वक्त शुरू किया, जब वे 30 साल के होने वाले थे। लेहमन ने 28 साल की उम्र में अपना पहला टेस्ट मैच खेला। और इन सभी ने ऑस्ट्रेलिया के लिए शानदार प्रदर्शन किया।” दरअसल, टी-20 क्रिकेट सिर्फ चौके-छक्कों का खेल नहीं है। इसमें भी रणनी‌ति की जरूरत होती है।

आइपीएल के इस सीजन में लक्ष्य का पीछा करते हुए पांच सर्वश्रेष्ठ फिनिशर में चार धोनी, ब्रावो, कार्तिक और यूसुफ 30 साल से अधिक उम्र के हैं। यह दिखाता है कि टी-20 क्रिकेट में हमेशा आंख मूंदकर ताकतवर शॉट लगाना ही सबसे अच्छी रणनीति नहीं है।

पाटिल धोनी की समझ और निर्णय लेने की क्षमता पर बहुत भरोसा करते हैं। वे कहते हैं, “लोगों को धोनी की न सिर्फ बल्लेबाजी, बल्कि उनकी शख्सियत से भी सबक लेना चाहिए। कोई उनकी (शानदार) विकेटकीपिंग के बारे में बात नहीं कर रहा है, जो आसान नहीं है, क्योंकि हर गेंद पर उठना और बैठना पड़ता है। धोनी ने अपने अनुभव के साथ-साथ जिस तरह फिटनेस के स्तर को बनाए रखा, खेल के प्रति जो उनकी भूख है और जिस तरह उन्होंने विभिन्न टीमों में युवाओं को गाइड किया है, वह बेहद उल्लेखनीय है।”

आइए अब उस पहलू पर लौटते हैं कि धोनी ने 31 मार्च, 2016 को ऑस्ट्रेलियाई पत्रकार से बातचीत के दौरान बड़ी चतुराई से दुनिया को क्या संदेश दिया। उन्होंने संकेत दिया था कि वे 2019 विश्व कप खेलने के इच्छुक हैं और 2018 के आइपीएल में प्रदर्शन ने उनके दावे और विश्वास को मजबूत किया है कि उनका ध्यान अगले साल इंग्लैंड में होने वाले विश्पकप पर केंद्रित था। पाटिल कहते हैं, “मैं उन्हें विश्व कप में 101 प्रतिशत खेलते हुए देख सकता हूं। मैं चाहता हूं कि वे खेलें। मुझे फिक्र इस बात की है कि क्या वे फिटनेस बरकरार रख पाते हैं।” उनका कहना है कि धोनी में इतनी पर्याप्त समझ है कि कब उन्हें संन्यास लेना है।

पठान बताते हैं कि कोई खिलाड़ी अलग-अलग पिच पर खेलकर भी अनुभव हासिल करता है। बड़ौदा के इस ऑलराउंडर का कहना है, “क्रिकेट के अलावा बाकी सभी खेल चाहे वह फुटबॉल हो या बास्केटबॉल, सब में फील्ड एक जैसा ही होता है। लेकिन, क्रिकेट में हर पिच हर जगह पर अलग-अलग व्यवहार करता है और इससे क्रिकेटरों का अनुभव बढ़ता है। सिर्फ अच्छे प्रदर्शन ही नहीं, बल्कि खराब प्रदर्शन से भी आपको अनुभव मिलता है। टी-20 क्रिकेट में आपको तुरंत फैसले लेने होते हैं और यहां भी अनुभव काफी मददगार साबित होता है।”

गुरशरण भी शारीरिक और मानसिक विशेषताओं के महत्व पर जोर देते हैं। पंजाब को रणजी ट्रॉफी जिताने वाले कप्तान गुरशरण कहते हैं, “सचिन तेंदुलकर ने लगभग 40 साल की उम्र तक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेला। लंबे वक्त तक खेलना किसी के शारीरिक और मानसिक फिटनेस पर निर्भर करता है। उदाहरण के तौर पर, धोनी मैच की स्थिति पढ़ता है और फिर गेंदबाजों की धुनाई करता है। इसमें कम आश्‍चर्य की बात नहीं कि 30 साल से अधिक उम्र के खिलाड़ी आइपीएल में अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं और अच्छा पैसा भी कमा रहे हैं। टी-20 क्रिकेट खिलाड़ियों के कॅरिअर को भी बढ़ाता है, क्योंकि इस प्रारूप में पांच दिनों वाले टेस्ट मैच की अपेक्षा आपको सिर्फ चार घंटे (प्रति मैच) के लिए फिट रहने की जरूरत होती है।”

आइपीएल के तीन-चौथाई मैच हो चुके हैं और यह टूर्नामेंट खत्म होने की ओर बढ़ रहा है। और अब नॉकआउट दौर के लिए क्वालिफाई करने वाली विभिन्न टीमों को अपने 30 साल से अधिक उम्र के खिलाड़ियों के बेहतर प्रदर्शन की जरूरत होगी, ताकि टीम को और आगे ले जाया जा सके। अगर वे अच्छा प्रदर्शन जारी रखते हैं तो पुरानी धारणा को तोड़ देंगे कि 30 साल की उम्र में क्रिकेटर उपयोगी नहीं रह जाते हैं। इस तरह यह सिद्धांत भी खारिज हो जाएगा कि टी-20 सिर्फ युवाओं का खेल है।

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