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पत्थलगड़ी भाजपा के लिए खतरे की घंटी

जशपुर जिले में पनपे पत्थलगड़ी आंदोलन से भाजपा नेताओं के माथे पर बल पड़ने लगा, तो कांग्रेस में उत्साह का संचार
सियासी सेंधमारीः पत्थलगड़ी आंदोलन के बाद प्रशासन की कार्रवाई से आदिवासी समुदाय में आक्रोश का माहौल

छत्तीसगढ़ में पत्थलगड़ी आंदोलन भले ही सिर उठा नहीं पाया, लेकिन विधानसभा चुनाव में इसका असर दिखाई पड़ेगा। इसके बहाने एक समुदाय एकजुट हो गया है और यह पढ़ा-लिखा होने के साथ जागरूकता फैलाने में भी माहिर है। ऐसे में यह समुदाय अपने साथ राज्य के आदिवासियों खासकर सरगुजा और जशपुर के लोगों को किस तरफ मोड़ता है, यह देखने वाली बात होगी। झारखंड से सटे जशपुर जिले में पनपे पत्थलगड़ी आंदोलन से भाजपा नेताओं के माथे पर बल पड़ने लगा है, तो कांग्रेस में उत्साह का संचार हुआ है।

जशपुर जिले की तीनों विधानसभा सीटों पर अभी भाजपा का कब्जा है, ऐसे में पत्थलगड़ी से पासा पलटता है, तो नुकसान भाजपा को हो सकता है। जशपुर जिले में भाजपा के भीतर गुटबाजी भी दिखती है। केंद्रीय राज्य मंत्री विष्णुदेव साय और दिलीप सिंह जूदेव परिवार का अलग गुट है, तो अनुसूचित जनजाति के राष्ट्रीय अध्यक्ष नंदकुमार साय का अलग खेमा है। राज्य बनने से पहले भी वहां नेताओं में एकजुटता नहीं थी। लखीराम अग्रवाल और जूदेव अलग-अलग चलते थे। अग्रवाल ने नंदकुमार साय को आगे बढ़ाया तो विष्णुदेव साय को जूदेव ने। लेकिन पत्थलगड़ी के मुद्दे पर जशपुर के बड़े भाजपा नेताओं के सुर एक जैसे नहीं रहे।

जशपुर जिले में हिंदुत्ववादी संगठनों और ईसाई मिशनरियों में अंतर्द्वंद्व कोई नया नहीं है। जशपुर राजघराने के हिंदुत्ववादी भाजपा नेता स्व. दिलीपसिंह जूदेव ने धर्म परिवर्तन कर चुके आदिवासियों को फिर से हिंदू धर्म में शामिल करने के लिए घर वापसी अभियान चलाया था। इसमें वे आदिवासियों के पैर धोते थे। इस अभियान से जूदेव की आदिवासियों में गहरी पैठ हो गई। जूदेव ने यह अभियान जशपुर के साथ सरगुजा और ओडिशा में भी चलाया। जूदेव के निधन के बाद अभियान कमजोर पड़ गया। उनके बेटे  युद्धवीर सिंह ने इस अभियान को चला रखा है, लेकिन वैसा प्रभाव नहीं है जैसा दिलीपसिंह जूदेव के समय था। वहीं, राजनीतिक तौर पर जूदेव परिवार की पहले जैसी धाक भी नहीं रह गई है।

कभी दिलीपसिंह की छत्र-छाया में राजनीति करने वाले अलग राह पर चलने लगे हैं। जूदेव खानदान के रणविजय प्रताप सिंह जूदेव भाजपा के राज्यसभा सांसद और दिलीपसिंह जूदेव के बेटे युद्धवीर जांजगीर-चांपा जिले के चंद्रपुर सीट से विधायक हैं। जशपुर जिले की तीनों विधानसभा सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं, लेकिन यहां हार-जीत में आदिवासियों के साथ ईसाई समुदाय की भी बड़ी भूमिका होती है। जशपुर जिले के कुनकुरी में एशिया का सबसे बड़ा चर्च है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस इलाके में ईसाई समुदाय का दखल कितना हो सकता है। ईसाई समुदाय की आबादी सरगुजा और रायगढ़ जिलों में भी है। इन जिलों की कुछ विधानसभा सीटों पर भी इस समुदाय के झुकाव का असर हो सकता है।

पत्थलगड़ी का नेतृत्व करने के आरोप में प्रशासन ने रिटायर्ड आइएएस अधिकारी एच. किंडो, जोसफ तिग्गा सहित आठ लोगों को देशद्रोह समेत अलग-अलग धाराओं में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। प्रशासन की कार्रवाई से पत्थलगड़ी आंदोलन ठंडा हो गया और इससे जुड़े अन्य नेता दुबक गए। पत्थलगड़ी के खिलाफ भाजपा नेताओं ने सद्‍भावना यात्रा निकाली। इसमें केंद्रीय राज्य मंत्री विष्णुदेव साय, रणविजय प्रताप सिंह और विधायकों के साथ दूसरे भाजपा नेता शामिल हुए। वैसे तो पत्थलगड़ी आंदोलन जशपुर जिले के तीन गांवों में केंद्रित था, लेकिन जिला प्रशासन ने लोगों को समझाने की जगह सीधे कार्रवाई कर दी। एक गांव में पत्थर तोड़ने की घटना सामने आई। इस घटना से आदिवासियों में आक्रोश की बात कही जा रही है। कहा जा रहा है कि एक नेता ने पत्थर की पूजा की, तो दूसरे ने उखाड़ दिया। पत्थलगड़ी आंदोलन से जुड़े एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि हम तो जल, जंगल, जमीन और गांव की सीमा की बात कर रहे थे। संविधान और पांचवीं अनुसूची में आदिवासियों के लिए उल्लिखित अधिकार की बात कर रहे थे। ग्राम सभा को सर्वोपरि बता रहे थे, लेकिन अधिकारियों और कर्मचारियों को बंधक बनाने की अफवाह फैलाकर प्रशासन ने कार्रवाई कर दी। हथियारों से लैस जवानों के सामने ग्रामीण विरोध करने की हिम्मत कैसे कर सकते हैं? कहा जाता है कि गांव की सीमा पर पत्थर गाड़ने की पुरानी परंपरा है। इससे गांव की सीमा तय होती है। इसी आधार पर राजस्व रिकॉर्ड भी बनते रहे हैं, लेकिन कुछ वर्षों से यह सिस्टम चलन में नहीं था।

राज्य के कृषि और सिंचाई मंत्री बृजमोहन अग्रवाल का कहना है कि कुछ लोग आदिवासियों को भ्रमित कर रहे हैं। पत्थलगड़ी में गांव-समाज की गौरवगाथा को दुनिया जान सकती थी, लेकिन आज पत्थलगड़ी को गलत रूप में पेश करने का कुत्सित प्रयास हो रहा है। यह एक राजनीतिक आंदोलन है। आने वाले समय में इसका खुलासा हो जाएगा। नेता प्रतिपक्ष टी.एस. सिंहदेव का कहना है कि आदिवासियों की मूलभूत जरूरतें पूरी होनी चाहिए। पांचवीं अनुसूची के तहत अधिकार मिलने चाहिए, जिससे भोले-भाले आदिवासियों को कोई बरगला न सके। सिंहदेव ने कहा कि कांग्रेस ने टीम भेजकर हालात का पता लगाया। आदिवासियों की समस्याओं के बहाने कुछ लोगों ने उन्हें गुमराह करने का काम किया। 

प्रशासन को आदिवासियों के हित में सही कदम उठाना होगा। जोगी कांग्रेस ने भी राजनीतिक लाभ लेने के लिए एक टीम भेजी थी, लेकिन इस मुद्दे पर पार्टी का स्पष्ट रुख सामने नहीं आया है। जशपुर जिला आदिवासी होने के साथ काफी पिछड़ा हुआ भी है। जिले के पत्थलगांव, बगीचा और कुनकुरी में काफी मात्रा में टमाटर की पैदावार होती है। आदिवासी किसान खपत न होने और अच्छे भाव न मिलने से हर साल सड़कों पर टमाटर फेंकने के लिए मजबूर होते हैं। यहां के लोग सरकार से टमाटर के समर्थन मूल्य के साथ प्रोसेसिंग यूनिट की मांग वर्षों से करते आ रहे हैं। इस दिशा में न संयुक्त मध्य प्रदेश के समय और न ही अलग राज्य छत्तीसगढ़ बनने के बाद कोई प्रयास नजर आया है। जब लोगों की मांगें पूरी नहीं होंगी और उनकी समस्याओं का समाधान नहीं होगा, तो स्वाभाविक है कि लोग बहकावे में आएंगे। शासन-प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को जमीनी हकीकत जानकर कदम उठाने होंगे, वहीं राजनीतिक दलों को आदिवासियों के कंधे का इस्तेमाल कर अपनी रोटी सेंकने वालों का पर्दाफाश करने के लिए राज्य हित में एकजुट होकर कदम उठाना होगा।

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