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वादी में दहकते चिनारों की तपन

पत्थरबाजी की घटनाओं और आतंकरोधी अभियानों में बेकसूरों की मौत से कश्मीर के हालात सबसे बुरे दौर में, क्या संघर्ष-विराम की अपील सुनेगा केंद्र?
बच्चे बने निशानाः स्कूल बस पर पत्थरबाजी में जख्मी हुआ दूसरी कक्षा का छात्र

हाल में पत्‍थरबाजी की दो घटनाओं ने राजनैतिक बहस को कुछ मोड़ने का काम किया है। एक में, एक स्कूल बस के दो बच्चे घायल हुए जिनमें एक की हालत नाजुक है। दूसरी घटना में तमिलनाडु के एक पर्यटक के सिर में चोट लगने से मौत हो गई। इन घटनाओं की निंदा अलगाववादी माने जाने वाले हुर्रियत के नेताओं ने भी की। मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने तो सर्वदलीय बैठक बुलाकर केंद्र सरकार से कम से कम रमजान के महीने के लिए संघर्ष-विराम का ऐलान करने की मांग की। यानी 17 मई से शुरू होने वाले रमजान महीने में आतंकरोधी मुठभेड़ अभियानों को रोक दिया जाए, ताकि आम लोगों को मारे जाने का सिलसिला रुके। केंद्र की ओर से गृह मंत्री राजनाथ सिंह का बयान है कि इस पर विचार किया जाएगा। मगर पीडीपी-भाजपा सरकार में भाजपा नेता तथा उप-मुख्यमंत्री कवींद्र गुप्ता ने कहा कि भाजपा इसके पक्ष में नहीं है, संघर्ष-विराम का ऐलान पहले आतंकियों की ओर से होना चाहिए।

स्कूली बस पर पत्‍थरबाजी दो मई को नारपोरा गांव के पास हुई। फिर सात मई को पर्यटक आर. थिरुमानी की श्रीनगर-गुलमर्ग रोड पर नारबल गांव में पत्‍थर लगने से मौत हो गई। हुर्रियत नेता मीरवाइज उमर फारूक ने तत्काल इसकी निंदा की। वहीं, सैयद अली गिलानी ने कहा कि अपने प्रियजनों के लिए हर रोज ताबूत खरीदने की मजबूरी के बावजूद कश्मीरी ‘कुछ मूर्ख युवाओं’ की ‘बदतमीजी और गुंडई’ पर चुप नहीं रह सकते। महबूबा मुफ्ती ने अस्पताल में थिरुमानी के परिजनों से मुलाकात के बाद कहा कि यह घटना मेहमाननवाजी की कश्मीरी भावना पर चोट है। इससे पर्यटन का उद्योग भी प्रभावित हो सकता है जिसने अरसे बाद फिर से उठना शुरू किया है। बारामुला के एसएसपी इम्तियाज हुसैन ने कहा, “पत्‍थरबाजी प्रदर्शन का तरीका नहीं, बल्कि किसी को मारने का तरीका जरूर हो सकता है।”

लेकिन दूसरी ओर उस तरीके पर भी गंभीर सवाल उठ रहे हैं, जो सेना और पुलिस मुठभेड़ाें और पत्‍थरबाजों से निबटने के लिए अपना रही है। इसी वजह से मुख्यधारा की कश्मीरी पार्टियां संघर्ष-विराम की गुहार लगा रही हैं जिससे भड़की भावनाएं कुछ शांत हो पाएं और नई सोच-विचार शुरू हो। नेशनल कांफ्रेंस के वरिष्ठ नेता मोहम्मद सगर पूछते हैं, “किसके आदेश से ये अभियान चलाए जा रहे हैं? किसके आदेश पर आम लोगों की हत्या हो रही है?” वे कहते हैं, “ये हालात तो नब्बे के दशक से भी खौफनाक हैं। हर मुठभेड़ में आम आदमी भी क्यों मारे जाते हैं? ये ऑपरेशन क्यों नहीं बंद किए जा रहे हैं?” अप्रैल में पंद्रह आम लोग मारे गए थे। इनमें से दस की मौत दक्षिण कश्मीर में मुठभेड़ की जगहों के नजदीक हुई। मई में नौ आम लोग मारे गए, जिनमें छह की मौत मुठभेड़ की जगहों के करीब हुई। असल में आम लोग ऐसी जगहों से एक किलोमीटर दूर मारे गए, जहां जवानों और आतंकियों के बीच मुठभेड़ हुई थी।

सूत्रों के अनुसार पुलिस ने सेना के सामने इस मामले को उठाते हुए अभियानों के संचालन की प्रक्रिया पर फिर से गौर करने को कहा है। सूत्रों के अनुसार ‘आतंकरोधी अभियानों’ के दौरान हताहत होने वाले आम लोगों की बढ़ती संख्या से महबूबा मुफ्ती सरकार दबाव में है। उसने सुरक्षा बलों से इस तरह की घटनाओं से बचने को कहा है।

श्रीनगर के महाराज हरि सिंह अस्पताल के बाहर पांच मई की सुबह करीब सवा दस बजे जम्मू-कश्मीर पुलिस के विशेष अभियान समूह (एसओजी) के जवानों के कब्जे में एक युवक का शव था। चट्टबल में तीन आतंकियों को ढेर कर लौट रहे पुलिस के बख्तरबंद वाहन ने इस युवक को कुचल दिया था। चिकित्सकों ने 18 साल के आदिल अहमद यटू को “मृत लाया गया” घोषित किया। पुलिस का कहना था कि नूरबाग इलाके में सड़क दुर्घटना में आदिल की मौत हुई थी। लेकिन, मोबाइल इंटरनेट पर प्रतिबंध के बावजूद सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक वीडियो क्लिप ने खुलासा किया कि कैसे उसे वाहन से कुचला गया था। इसके बाद बड़े पैमाने पर प्रदर्शनों की आशंका से पुलिस अस्पताल परिसर में जमा हो गई और आदिल का शव उसके रिश्तेदारों से ले लिया। अब पुलिस का कहना है कि वाहन चालक के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा रही है।

अस्‍पताल में पुलिसिया छर्रे से जख्मी 14 साल के एक लड़के ने बताया, “मैं दूर खड़ा था और जब देखा कि उसे कुचलते हुए गाड़ी निकल रही है तो खुद पर काबू नहीं रख पाया और पत्‍थर फेंकने लगा।” श्रीनगर और दक्षिणी कश्मीर में छह मई तक दस दिनों में चार आतंकरोधी अभियानों में नौ आम आदमी और दस आतंकी मारे गए। इनमें हिज्बुल मुजाहिदीन का शीर्ष कमांडर समीर टाइगर और सद्दाम पड्डार भी शामिल है, जबकि सौ से ज्यादा आम आदमी घायल हुए। बीते चार महीनों में आतंकवाद से जुड़ी घटनाओं में आतंकियों और पत्‍थरबाजों समेत 65 लोग मारे गए हैं। बीते दस साल में यह सर्वाधिक है। इससे आने वाले महीनों में हिंसा में इजाफे के संकेत मिलते हैं। सुरक्षा बलों के लिए यह चुनौती बनती जा रही है कि आतंकरोधी अभियानों के दौरान आम लोगों और पत्‍थरबाजों के हताहत होने के सिलसिले पर कैसे काबू पाया जाए? सुरक्षा बल हर बार दावा करते हैं कि क्रासफायरिंग की चपेट में आने से आम लोग मारे जाते हैं। लेकिन, वीडियो रिकॉर्डिंग और चश्मदीद ऐसे दावों को झुठला देते हैं।

30 अप्रैल को सेना और पुलिस के आतंकरोधी अभियान के दौरान हिज्बुल का शीर्ष आतंकी समीर टाइगर पुलवामा जिले के अपने पैतृक गांव दब्रगाम में अपने साथी आकिब खान के साथ मारा गया। वह हिज्बुल कमांडर रियाज नाइकू का करीबी सहयोगी था। दब्रगाम मुठभेड़ का सेना का वीडियो बताता है कि घटनास्‍थल के पास कोई पत्‍थरबाज नहीं था। लेकिन करीब एक किलोमीटर दूर जब सेना ने पत्‍थर फेंक रहे स्‍थानीय लोगों पर गोली चलाई तो चौदह साल का शाहिद अहमद मारा गया और बीस अन्य जख्मी हो गए।

चश्मदीदों के अनुसार इसी तरह दो मई को शोपियां के तुर्कवांगाम में सेना के एक गश्ती दल पर हमला हुआ। थोड़ी देर तक चली फायरिंग के बाद आतंकी भाग गए। बाद में पिंजुरा गवर्नमेंट हाईस्कूल का नौवीं कक्षा का छात्र दराजपोरा गांव में मारा गया। पुलिस और सेना का दावा है कि 14 साल का मुहम्मद उमर क्रास फायरिंग में मारा गया और वह स्‍थानीय लोगों के उस झुंड में शा‌मिल था जिसने आतंकियों को भागने में मदद की। हालांकि, उमर के परिवारवालों का दावा है कि उसे करीब से गोली मारी गई, उसके दोस्त भी उसके साथ थे। उनका कहना है कि उसे मुठभेड़ स्‍थल से आधा किलोमीटर दूर गोली मारी गई थी।

उमर के बड़े भाई मुहम्मद अशरफ ने बताया कि तुर्कवांगाम में कुछ आतंकियों के मारे जाने की खबर फैलने के बाद शाम को उमर दोस्तों के साथ घर से निकला था। दक्षिणी कश्मीर में खासकर शोपियां में आतंकियों के जनाजे में लोगों का शामिल होना सामान्य बात है। उमर और उसके दोस्त भी उसमें शामिल होने के लिए घर से निकले थे। अशरफ के मुताबिक, लड़के जब दराजपोरा गांव पहुंचे तो सेब बागान में पोजीशन लिए सैनिकों ने उन पर गोली चला दी। उमर की छाती और गले में गोली लगी और उसकी मौके पर ही मौत हो गई। उमर को अस्पताल ले जाने वाले एक स्‍थानीय शौकत अहमद कहते हैं, “वह मुठभेड़ स्‍थल से आधा किलोमीटर दूर मारा गया। अगर वह मुठभेड़ की जगह के करीब मारा गया होता तो मैं वही बताता। हम झूठ क्यों बोलेंगे?”

छह मई की सुबह पुलिस और सेना ने दक्षिण कश्मीर के शोपियां जिले के बडगाम में इस महीने के सबसे बड़े सर्च अभियानों में से एक शुरू किया। पाचं आतंकी इस दौरान मारे गए। इनमें हिज्ब का 32 वर्षीय कमांडर पड्डार भी शामिल था। वह चार साल से सक्रिय था और जुलाई 2016 में मारे गए बुरहान वानी का करीबी था। वानी की मौत के बाद घाटी में कई महीनों तक प्रदर्शन हुए थे। बुरहान के 11 सदस्यीय कोर ग्रुप का पड्डार आखिरी सदस्य था। इस ग्रुप का एकमात्र जीवित सदस्य तारिक पंडित जेल में बंद है। बुरहान कोर ग्रुप के अन्य सदस्य आदिल खंडे, नसीर अहमद पंडित, अफ्फाक बट, सबजार अहमद बट, अनीस अहमद, इशफाक अहमद डार, वसीम अहमद मल्ला और वसीम अहमद शाह थे।

कश्मीर विश्वविद्यालय के समाजशास्‍त्र विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. मोहम्मद रफी बट भी बडगाम ऑपरेशन में मारा गया। उसने बीते साल पीएचडी पूरी की थी। चार मई को विश्वविद्यालय में कक्षाएं लेने और छात्रों को हैदराबाद जाने की बात कहने के बाद से बट गायब था। पांच मई को पुलिस ने श्रीनगर में तीन आतंकियों को मार गिराया और इसे ‘बड़ी सफलता’ बताया। इससे चार महीने पहले भी श्रीनगर में आतंकी मारे गए थे, जो बताता है कि आतंकी दक्षिण कश्मीर या बांदीपोरा के हाजीन बेल्ट तक ही सीमित नहीं हैं। कुछ साल पहले तक श्रीनगर में आतंकियों की गतिविधियां नजर नहीं आती थीं। मारे गए आतंकियों में से एक की पहचान जम्मू-कश्मीर की ग्रीष्मकालीन राजधानी के खानकाह-ए-मौला के फयाज अहमद हमाल के तौर पर की गई। वह अप्रैल 2017 में आतंकी बना था। दूसरा दक्षिण कश्मीर के अवंतीपुरा के पंजगाम का शौकत अहमद टाक था। वह आठ साल से लश्कर-ए-तैयबा के अबू रहमान, अबू कासिम और अबू दुजाना जैसे अलग-अलग कमांडरों के अधीन सक्रिय था।

दोनों अभियान में आम लोग भी मारे गए। पांच लोग शोपियां में मारे गए। इनमें चार मुठभेड़ स्‍थल से दूर मारे गए थे। चश्मदीदों के अनुसार बडगाम से 12‌ किलोमीटर दूर चिरतागाम में सेना ने प्रदर्शन कर रहे लोगों पर गोली चलाई। मारे गए आतंकियों को पुलिस स्टेशन लेकर जा रहे सैन्य वाहन पर जब पथराव किया गया तो बडगाम से एक किलोमीटर दूर आदिल अहमद गनई को नागबल के पास गोली मारी गई। वे शोपियां अस्पताल में मृत लाए गए थे। एक अन्य आसिफ मीर ब‌डगाम के नजदीक नुली पोशवारी गांव में मारे गए। उनके सिर में गोली लगी थी। पुलिस के एक प्रवक्ता ने बताया, “मुठभेड़ स्‍थल प्रतिबंधित और क्रास फायरिंग के लिहाज से अति संवेदनशील क्षेत्र होता है। लोगों को ऐसी जगहों से दूर रहना चाहिए।”

शोपियां पुलिस के सीनियर सुपरिंटेंडेंट शैलेंद्र कुमार मिश्र ने आउटलुक को बताया कि छह मई को शोपियां में आम लोगों के मारे जाने की जांच की जा रही है। मुठभेड़ स्‍थल से दूर लोगों के मारे जाने की बात कबूल करते हुए उन्होंने कहा, “हम काफी संयम दिखाते हैं। यह आश्वस्ति करते हैं कि मुठभेड़ स्‍थल के एक किलोमीटर के दायरे में आम लोग न आ पाएं। उन्हें गोली लग सकती है। एक व्यक्ति की मौत आतंकियों की गोली लगने से हुई। निशाना चूकने पर गोली एक किलोमीटर से ज्यादा दूर तक जाती है।”

26/11 की नौवीं बरसी पर मुंबई में आयोजित एक कार्यक्रम में मिश्र ने स्‍थानीय कश्मीरी चरमपंथियों को ‘भटके हुए लड़के’ बताते हुए उनके मारे जाने को ‘सामूहिक असफलता’ बताया था। वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने बताया कि युवा और स्‍थानीय लोग दक्षिण कश्मीर में आतंकरोधी अभियानों के दौरान जवानों पर पत्‍थर फेंकते हैं। एक अधिकारी ने बताया, “कभी-कभी घोषणा की जाती है कि  अभियान वाले इलाके से आम लोग हट जाएं।” हालांकि, जम्मू-कश्मीर कॉलिएशन ऑफ सिविल सोसायटी के खुर्रम परवेज का दावा है कि मुठभेड़ स्‍थल के निकट लोगों के मारे जाने को लेकर हर बार पुलिस का बयान गलत साबित हुआ है। खुर्रम ने बताया, “चश्मदीदों के अनुसार अमूमन आम लोग मुठभेड़ स्‍थल से दूर मारे गए। मारे गए सभी प्रदर्शनकारियों के कमर से ऊपर गोली के निशान मिले हैं जो बताता है कि मारने की नीयत से गोलीबारी की जाती है।”

कथित तौर पर लोगों के मारे जाने से दुखी मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने बताया, “जो नौजवान जम्मू-कश्मीर के विकास में सकारात्मक योगदान दे सकते हैं, वे हिंसा के अंतहीन सिलसिले में खोते जा रहे हैं। आतंकियों और सेना की बंदूकों से इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता। राजनैतिक मसलों को सुलझाने के लिए राजनैतिक हस्तक्षेप की जरूरत है।”

सभी पक्षों के बीच लगातार बातचीत की अपील करते हुए मुख्यमंत्री मुफ्ती ने कहा कि क्षमा और आपसी सम्मान की भावना से प्रेरित सुलह प्रक्रिया के अलावा और कोई समाधान नहीं हो सकता। लेकिन क्या नई दिल्ली में कोई यह सुनने को तैयार है?

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