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सबसे ठगी, सबकी ठगी

उनका भी डूबा, हमारा अकेले थोड़े डूबा, यह स्वर अब राष्ट्रीय स्वर है
ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको हमने ठगा नहीं

महेंद्र सिंह धोनी द क्रिकेटर ने एक बिल्डर पर दावा ठोका है, सौ करोड़ रुपये से ऊपर का। इस बिल्डर के फ्लैटों को चकाचक बताया करते थे धोनी, कुछ समय पहले तक। तब धोनी अपनी विश्वसनीयता को इस बिल्डर के फ्लैटों की विश्वसनीयता के बराबर बताते थे।

बिल्डर ने बाद में सबकी रकम खा ली, फ्लैट वगैरह नहीं बनाए। निवेशकों को फ्लैट नहीं दिए, धोनी को उनकी फीस नहीं दी, जो उन्हें फ्लैटों को, बिल्डर को विश्वसनीय बनाने के लिए देने थे। निवेशकों की भी रकम मार दी, धोनी की रकम भी मार दी। ठगी लोकतांत्रिक टाइप हो गई, ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको हमने ठगा नहीं। सबसे ठगी, सबकी ठगी। थोड़ा दुख कम हुआ मेरा। मुझे उस बिल्डर ने ठगा, धोनी को भी ठगा। धोनी और मैं एक लेवल पर आ गए। सबसे ठगी, सबकी ठगी।

कई बिल्डर इस मुल्क में ठगाधिराज हैं। बिल्डर की एक जेब में नेता होता है, दूसरी जेब में महंगा वकील होता है। तीसरी जेब में मीडिया होता है। बिल्डर निर्माता शब्द में ही कुछ खोट है। राष्ट्र निर्माता राष्ट्र लूट लेते हैं। फ्लैट बिल्डर निवेशकों को लूट लेते हैं। लूट लेने की भूमिका धोनी जैसे स्टार बनाते हैं। आओ, आओ, इस महान बिल्डर से फ्लैट लो। अरे भई, जब तुम्हें पता नहीं है कि बंदा कैसा है, तो काहे उसकी विश्वसनीयता की गारंटी ले रहे थे। तुम्हारी फीस ही न दी उसने टाइम पर तो निवेशकों को फ्लैट कैसे देगा। पर स्टार सोचता नहीं है। दे दनादन बताए जाता है। यह परम ज्ञानी के लक्षण हैं। पता वता कुछ न होता, पर बताता पूरा है। धोनी पर तो कई फ्लैट हैं। आम निवेशक तो एक ही फ्लैट में जिंदगी की कमाई झोंक देता है। वह कहां जाएगा। आम निवेशक आम आदमी कहां जाएगा यह टेक्निकल सवाल है, जिसका जवाब न नेता देता, न क्रिकेट स्टार देता है।

विराट कोहली पंजाब नेशनल बैंक को भरोसे का प्रतीक बता रहे थे। नीरव मोदी ने इस पर भरोसा किया और मामला चकाचक हो गया। वैसे, बैंकों का हाल कुछ अलग-सा चल रहा है। विराट कोहली अगर आइसीआइसीआइ बैंक को भरोसे का प्रतीक बता रहे होते, तो भी कमोबेश मामला कुछ ऐसा ही होता। वहां भी वीडियोकॉन समूह को भरपूर लोन दिया गया। लोन डूब गया। अब आइसीआइसीआइ बैंक बता रहा है कि अकेले हमारा थोड़े डूबा, उस बैंक का भी डूबा, उस बैंक का भी डूबा। जो डूबा वह नार्मल तरीके से डूबा, इसमें किसी रिश्तेदारी, नातेदारी का कोई रोल नहीं है। डूबने की भी विधियां हैं। पति-देवर मिलकर डुबा सकते हैं या स्वतःस्फूर्त निकम्मेपन में डूब सकता है। यह पता लगाना मुश्किल काम है कि निकम्मेपन के चक्कर में डूबा है या सेटिंग के चक्कर में डूबा। निकम्मेपन के चक्कर में डूबा है, तो नॉर्मल डूबना मान लो। ऐसे ही सब जगह डूबते हैं। इसमें कोई भ्रष्टाचार-सेटिंग वगैरह नहीं है। स्वतःस्फूर्त ऑटोमेटिक डूबना कहते हैं इसे।

उनका भी डूबा, हमारा अकेले थोड़े डूबा, यह स्वर अब राष्ट्रीय स्वर है। उनका 12,000 करोड़ डूबा हमारा तो सिर्फ चार हजार करोड़ डूबा, तो हम तो उनके मुकाबले तीन गुना ज्यादा कुशल कामयाब हैं ना। टीवी पर तमाम पॉलिटिकल डिबेट भी ऐसी ही आ रही हैं इन दिनों। उनकी सरकार के दौर में दलितों पर तीन सौ अत्याचार हुए, हमारे दौर में सिर्फ 100 अत्याचार हुए। यानी हम तो उनकी सरकार के मुकाबले तीन गुना ज्यादा कुशल हुए।

धोनी वाला बिल्डर कहीं यह बयान जारी न कर दे कि विजय माल्या 8000 करोड़ रुपये मारकर विदेश भाग गए, हम तो 2000 करोड़ रुपये मारकर भी इंडिया में हैं। हम तो माल्या के मुकाबले चार गुने ज्यादा आदरणीय हैं। हैं, बिलकुल हैं। धोनी की सूरत दिखाकर आप दस हजार करोड़ रुपये भी मार लेते तो कौन रोक लेता। धोनी के ही आपने सौ करोड़ रुपये से ज्यादा मार लिए कौन रोक पाया। लुच्चत्व और टुच्चत्व में कंपटीशन है। जो कम कर पा रहा है, वह आदरणीय है। परम आदरणीय है। अभी एक बैंक के ठीक बाहर मेरी जेब कट गई, जेबकट को मैंने पकड़ भी लिया। जेबकट बोलता-सा दिखा, “आप भी छोटे आदमी को पीटोगे। वह बिल्डर धोनी का चेहरा दिखाकर आपसे लाखों ले गया, आप कुछ न कर पाए। धोनी खुद कुछ न कर पाए, मैंने दो हजार की जेब काटी, उसी पर आप रोना-धोना मचा रहे हो।” मैंने जेबकट को गले लगाकर छोड़ दिया, भाई छोटी जेबकटी ही कर रहा है वरना तो यह धोनी या विराट कोहली वाला बिल्डर भी हो सकता था।

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