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विरोधाभासों का महज प्रबंधन

भाजपा और पीडीपी को पता है कि जम्मू-कश्मीर के हालात बदतर होने के बावजूद दोनों का एक साथ रहना ही बेहतर विकल्प
मोर्चाः आसिफा के लिए न्याय की मांग करते छात्राओं का श्रीनगर में प्रदर्शन

पिछले हफ्ते से पूरे कश्मीर में बड़ी संख्या में महिलाओं सहित सैकड़ों छात्र आठ साल की बकरवाल बच्ची के लिए न्याय मांगने की खातिर सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं। इस बच्ची की जनवरी में जम्मू के कठुआ जिले में दुष्कर्म के बाद हत्या कर दी गई थी। चिंता की बात है कि बड़े पैमाने पर होने वाला यह प्रदर्शन कहीं 2016 और 2017 की तरह आजादी-समर्थक उभार का कारण न बन जाए। उस वक्त अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रहे छात्रों ने पत्थरबाजी का सहारा लिया था। तब सुरक्षा बलों ने प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले और पैलेट गन दागे थे। इससे आंखों में छर्रे लगने की वजह से कई प्रदर्शनकारी घायल हो गए।

जम्मू-कश्मीर सरकार के प्रवक्ता और पीडीपी नेता नईम अख्तर यह समझ नहीं पा रहे हैं कि छात्र आखिर क्यों प्रदर्शन कर रहे हैं। वे पूछते हैं, “जब आरोपियों की गिरफ्तारी और केस की सुनवाई के साथ मामला सुलझ चुका है तो फिर प्रदर्शन और पत्थरबाजी का क्या तुक है? क्या छात्रों को प्रदर्शन करने की जगह अपनी कक्षाओं में नहीं जाना चाहिए?” छात्रों के प्रदर्शन बंद नहीं करने पर शिक्षा मंत्री अल्ताफ बुखारी ने तो घाटी में शैक्षिक संस्थानों को बंद करने की धमकी तक दे दी।

जब कश्मीर में बच्ची के दुष्कर्म और उसकी हत्या के विरोध में प्रदर्शन हो रहा था, तो जम्मू में भाजपा नेता और जम्मू-कश्मीर सरकार से बर्खास्त वन एवं पर्यावरण मंत्री चौधरी लाल सिंह की अगुआई में 19 अप्रैल को एक जुलूस निकला। वे केस को जम्मू-कश्मीर पुलिस से सीबीआइ को ट्रांसफर करने की मांग कर रहे थे। घाटी में होने वाले प्रदर्शनों के विपरीत जम्मू में मार्च को रोकने का कोई प्रयास नहीं किया गया या इसी तरह की मांग को लेकर अगले दिन कठुआ में जम्मू-कश्मीर नेशनल पैंथर्स पार्टी के प्रदर्शन को भी रोकने की कोशिश नहीं की गई। मामले में गिरफ्तार आरोपियों के पक्ष में हिंदू एकता मंच की एक मार्च की रैली में शामिल होने पर लोगों की बढ़ती नाराजगी के बाद लाल सिंह ने तत्कालीन उद्योग मंत्री चंदर प्रकाश गंगा के साथ इस्तीफा दे दिया था।

कश्मीर और जम्मू में एक ही मुद्दे पर विरोधाभासी प्रदर्शनों और राज्य की ध्रुवीकरण वाली राजनीति के बावजूद सत्तारूढ़ गठबंधन की सहयोगी-पीडीपी और भाजपा का दावा है कि दोनों क्षेत्रों को करीब लाने के लिए उनका गठबंधन जारी रहेगा। जाहिर है कि यह आसान नहीं होगा। पहली बात तो यह कि कठुआ मामले की जांच कैसे होनी चाहिए, इस पर ही दोनों दलों में मतभेद है। भाजपा अपनी ही सरकार की पुलिस में अविश्वास दिखा रही है। हालांकि, जिस तरह दोनों दल अभी तक लगभग तमाम मुद्दों पर मतभेदों के तूफान को झेलते आए हैं, उससे गठबंधन को उम्मीद है कि ताजा विवाद को भी झेल लेगा और उनकी सरकार 2020 तक अपना कार्यकाल पूरा करेगी। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि सत्ता में बने रहने की जरूरत की वजह से ही दोनों पार्टियां एक साथ हैं, नहीं तो कई लोग दोनों दलों को दो ध्रुव की तरह मानते हैं। कश्मीर में पीडीपी पर “व्यापारिक हितों के संघ” में बदलने का आरोप है, जो गठबंधन में बने रहने के लिए रोज समझौता करने के लिए तैयार है, जबकि जम्मू में भाजपा को “भ्रमित नौसिखियों की भीड़” के तौर पर देखा जाता है, जिसने सरकार चलाने के अपने कर्तव्य के प्रति पूरी उदासीनता दिखाई और प्रोटोकॉल के लिए आपस में ही लड़ती नजर आई। जम्मू-कठुआ-उधमपुर इलाके में पैठ वाले दल जैसे पैंथर्स पार्टी ने भाजपा पर आरोप लगाया है कि कठुआ मामले की जांच जम्मू-कश्मीर की क्राइम ब्रांच से कराने की मंजूरी देकर उसने जम्मू के हितों को त्याग दिया और “डोगरा गर्व को चोट पहुंचाई” है। दूसरी तरफ कश्मीर में पीडीपी को भाजपा और केंद्र की सभी मांगों को पूरा करने वाली पार्टी के रूप में देखा जाता है।

विश्लेषकों का कहना है कि लाल सिंह और जम्मू में पैंथर्स पार्टी की अगुआई में “भाजपा विरोधी प्रदर्शन” भाजपा को दूरदर्शिता दिखाने और सत्तारूढ़ गठबंधन से बाहर नहीं निकलने के लिए मजबूर करेगा, क्योंकि इससे दोनों को नुकसान पहुंचेगा। नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रांतीय अध्यक्ष दविंदर सिंह राणा ने आउटलुक को बताया कि भाजपा और पीडीपी इस समय विधानसभा चुनाव नहीं चाहेंगी, क्योंकि दोनों उन लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने में नाकाम रही हैं, जिन्होंने उनके लिए वोट दिया था। राणा कहते हैं, “दोनों ने 2014 में मिले जनादेश को धोखा दिया है।”

इसी बीच भाजपा ने उप-मुख्यमंत्री निर्मल सिंह से इस्तीफा दिलवा दिया है, जो कठुआ मामले में मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के साथ खड़े थे और क्राइम ब्रांच की जांच के ही पक्ष में थे। इससे पहले उनको छोड़कर सभी के इस्तीफे ले लिए थे। 30 अप्रैल को मंत्रिमंडल के पुनर्गठन में निर्मल सिंह की जगह कवींद्र गुप्ता को उप-मुख्यमंत्री बनाने के साथ ही पांच मंत्रियों को कैबिनेट रैंक दिया गया। उधर, पार्टी के राज्य प्रवक्ता अरुण गुप्ता का दावा है कि सरकार ने पिछले तीन वर्षों में गठबंधन के एजेंडा (एओए) का पालन किया है। साथ ही, विकास के मोर्चे पर अभूतपूर्व काम किया है। हालांकि, वे इस मुद्दे पर चुप्पी साध लेते हैं कि क्या केंद्र सरकार नियंत्रण रेखा के दोनों ओर सड़क खोलने, अलगाववादियों और पाकिस्तान से बातचीत जैसे एओए के राजनीतिक एजेंडा पर पहल करेगी। मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने आउटलुक को बताया कि खुफिया ब्यूरो के पूर्व प्रमुख दिनेश्वर शर्मा की कश्मीर के वार्ताकार के रूप में नियुक्ति राजनीतिक प्रक्रिया की शुरुआत थी। उनकी पार्टी चाहती है कि और कदम उठाए जाएं।

भाजपा के महासचिव और जम्म-कश्मीर प्रभारी राम माधव और पीडीपी नेता हसीब द्रबू के बीच आपसी सहयोग से गठबंधन का एजेंडा अस्तित्व में आया था। द्रबू को मार्च में वित्त मंत्री के पद से हटा दिया गया। दोनों दल एओए के तहत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के इंसानियत, कश्मीरियत और जम्हूरियत के विचार को मानने पर सहमत हुए थे। पीडीपी नेताओं का दावा है कि गठबंधन सरकार इसी एजेंडे पर चल रही है। अख्तर का कहना है कि वह किसी तरह की भविष्यवाणी नहीं कर सकते हैं, लेकिन राज्य और देश के हितों की सेवा के लिए पीडीपी-भाजपा गठबंधन का कोई विकल्प नहीं है। वे कहते हैं, अगर यह सरकार गिर जाती है,तो इससे और समस्याएं पैदा हो सकती हैं। दोनों भागीदारों के अलग-अलग जनादेश के बावजूद यह गठबंधन ही है, जो राज्य को एकजुट किए हुए है। 

अख्तर बताते हैं कि पीडीपी कश्मीर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से अधिक निर्णायक और सक्रिय हस्तक्षेप का इंतजार कर रही है। वे कहते हैं, “यह (गठबंधन) प्रयोग विफल रहता है, तो हमें एक और विश्वसनीय लोकतांत्रिक विकल्प के लिए लंबे समय तक इंतजार करना पड़ेगा। इसलिए भरोसा बनाए रखना गठबंधन के दोनों दलों की ज़िम्मेदारी है। केंद्र को भी अधिक योगदान देने की जरूरत है। न सिर्फ आर्थिक, बल्कि राजनीतिक स्तर पर भी।”

यह राहत की बात है कि उनके जोर देने पर भाजपा ने दो मंत्रियों को हटा दिया। पीडीपी को उम्मीद है कि इससे गठबंधन और मजबूत होगा। मुख्यमंत्री के करीबी माने जाने वाले वहीद-उर-रहमान परारा कहते हैं, “कठुआ एक क्षेत्रीय मुद्दा नहीं था, लेकिन पीड़ित को न्याय दिलाने के लिए दोनों पार्टियां पहले दिन से सरकार के साथ थीं। यह गठबंधन कश्मीर और जम्मू को एक साथ लाने के साथ ही कश्मीर और बाकी देश के लोगों को एक-दूसरे से जोड़ने के बड़े मकसद से बना है। इसमें थोड़ा वक्त तो लगेगा।”

विपक्ष का भी मानना है कि सत्तारूढ़ गठबंधन चलता रहेगा। नेशनल कॉन्फ्रेंस के राज्य प्रवक्ता जुनैद अजीम मट्टू कहते हैं, “हम इस बात से अधिक चिंतित हैं कि क्या राज्य सही-सलामत रहेगा। कश्मीर में स्थिति बदतर होती जा रही है। यहां तक कि जम्मू का बड़ा हिस्सा सांप्रदायिक तनाव के मुहाने पर है। पीडीपी-भाजपा गठबंधन की प्रकृति ऐसी है कि यह दो क्षेत्रों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करके ही प्रासंगिक बन पाती है।”

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