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अब बढ़ा दलित-पिछड़ों पर दांव

समाजवादी पार्टी और बसपा के साथ आने के बाद भाजपा की दलितों-पिछड़ों को सरकार और संगठन में अहम पद देकर प्रदेश के नए सियासी समीकरण को साधने की कोशिश
दांवः राज्यसभा और एमएलसी चुनाव में भी सोशल इंजीनियरिंग का ध्यान रखा गया

उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन से उपजे नए सियासी समीकरण को साधने के लिए भाजपा ने पत्ते खोलने शुरू कर दिए हैं। गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव में हार के बाद पार्टी ने दलितों और पिछड़ों को सरकार और संगठन में अहम पदों पर बैठाकर सामाजिक समीकरण साधने की कोशिश की है। पिछड़ी जातियों के आरक्षण में बंटवारे को लेकर भी रणनीति बनाई जा रही है। भाजपा की यह कोशिश सपा-बसपा के वोट बैंक में कितना सेंध लगा पाएगी, फिलहाल यह आकलन तो मुश्किल है, लेकिन यूपी में वोट बैंक में जोड़-तोड़ की राजनीति शुरू हो गई है।

यूपी के पूर्व डीजीपी बृजलाल को अनुसूचित जाति-जनजाति आयोग का अध्यक्ष, लालजी प्रसाद निर्मल को अनुसूचित जाति वित्त विकास निगम का अध्यक्ष और वरिष्ठ भाजपा नेता बाबूराम निषाद को प्रदेश पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष बनाया गया है। इन्हें राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया है। इसके अलावा भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा के अध्यक्ष और मोहनलालगंज के सांसद कौशल किशोर ने करीब डेढ़ साल बाद हाल में नई कार्यसमिति की घोषणा की है। कार्यसमिति में आठ उपाध्यक्ष, चार महामंत्री, आठ मंत्री, एक कोषाध्यक्ष और प्रदेश मीडिया प्रभारी सहित छह क्षेत्रों के अध्यक्ष बनाए गए हैं। मोर्चा अध्यक्ष कौशल किशोर का कहना है कि प्रदेश स्तर पर 51 कार्य समिति सदस्यों की घोषणा भी जल्द होगी। कार्य समिति में पूर्वांचल और पश्चिम से लेकर प्रदेश के सभी क्षेत्र के दलित नेताओं को तरजीह दी गई है। जाटवों के साथ ही खटिक, वाल्मिकी, पासी, धोबी समेत सभी दलित जातियों को प्रतिनिधित्व दिया गया है। कार्यकारिणी में बहराइच की सांसद साध्वी सावित्री बाई फुले के बजाय संभल की साध्वी गीता को लिया गया है। भाजपा की ओर से राज्यसभा चुनाव और एमएलसी चुनाव में भी सोशल इंजीनियरिंग का ध्यान रखा गया। यूपी से दलित नेता कांता कर्दम, पिछड़े वर्ग से हरिनाथ यादव और सकलदीप राजभर को राज्यसभा भेजा गया है। एमएलसी चुनाव में भी दलित विद्यासागर सोनकर और पश्चिमी यूपी से पिछड़ी गुर्जर जाति के अशोक कटारिया विधान परिषद के निर्विरोध सदस्य बने हैं। सपा-बसपा ने भी एमएलसी चुनाव में दलित और पिछड़ा कार्ड खेला। सपा ने पिछड़ा और बसपा ने दलित प्रत्याशी उतारा। विधानसभा में 22 मार्च को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अति दलितों और अति पिछड़ों को अलग आरक्षण कोटा देने की घोषणा कर वोट बैंक की सियासत में गर्मी ला दी। यूपी में करीब 19 प्रतिशत अगड़ी आबादी, 46 प्रतिशत ओबीसी, 21 प्रतिशत दलित और 14 प्रतिशत अल्पसंख्यक हैं। अगड़ी जातियों को भाजपा का वोट बैंक माना जाता है। इसी प्रकार पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक वोटरों का एक बड़ा धड़ा सपा और बसपा के पक्ष में दिखाई देता है। पिछड़े और दलित वोटरों की वजह से ही 2014 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को शानदार जीत मिली। इसलिए अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले उसकी कोशिश दलितों और ओबीसी में सेंध लगाने की है। 46 प्रतिशत ओबीसी में करीब 27 प्रतिशत आबादी गैर यादवों की है। दलितों की 21 प्रतिशत आबादी में करीब 55 प्रतिशत आबादी जाटव की है, जो बसपा के कोर वोटर हैं। बाकी 45 प्रतिशत अति दलित की श्रेणी में आते हैं, जो कभी बसपा का कोर वोटर नहीं माना गया।

कांग्रेस के शासनकाल में 1976 में बने डॉ. छेदीलाल साथी आयोग ने भी अति पिछड़ों के आरक्षण की वकालत की थी। संविधान के अनुसार अति पिछड़ों को आरक्षण संवैधानिक दृष्टि से संभव है, लेकिन इस पर सुप्रीम कोर्ट रोक लगा चुका है। पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में भी ऐसी कोशिश पर कोर्ट का कहना था कि दलितों में जातियों का वर्गीकरण नहीं हो सकता। इसके बाद 2001 में तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने दलितों और पिछड़ों में हर जाति को उसकी संख्या के अनुपात में आरक्षण देने के लिए हुकुम सिंह की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई थी। कमेटी की रिपोर्ट को विधानसभा में पारित भी किया गया था, लेकिन उनकी ही सरकार में मंत्री अशोक यादव इसके खिलाफ कोर्ट चले गए और कोर्ट ने रिपोर्ट पर रोक लगा दी।

सपा सरकार ने भी 2016 में अति पिछड़ी जातियों को एससी में शामिल करने के प्रस्ताव पर कैबिनेट में मुहर लगाकर केंद्र को भेजा था और अधिसूचना जारी की थी, लेकिन इस फैसले को भी हाइकोर्ट में चुनौती दी गई थी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ओर से 17 साल बाद यह कोशिश दोबारा शुरू की गई है। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के मुखिया और कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से पिछड़ी जातियों को अलग से आरक्षण देने की मांग की थी। उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी पिछड़ा वर्ग के आरक्षण को तीन हिस्से में बांटने का फॉर्मूला दिया है। 12 प्रदेशों में इसी तरह आरक्षण दिया जा रहा है। यूपी में किसी ने विभाजन कराने के लिए पहल नहीं की। इसलिए अब पहल की जा रही है। लंबे समय तक 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल कराने के बहाने सपा-बसपा के लोग वोट लेते रहे, लेकिन काम नहीं करते थे। यह जातियां सपा-बसपा से ही भाजपा गठबंधन की ओर आई हैं। पिछड़ा, अति पिछड़ा, सर्वाधिक पिछड़ा और इसी तर्ज पर दलित, अति दलित और महादलित के आधार पर आरक्षण का प्रस्ताव दिया गया है।

इसके अलावा केंद्र और प्रदेश सरकार की उपलब्धियां बताने और लोगों का फीडबैक लेने के लिए भाजपा की ओर से विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से ग्राम-स्वराज अभियान की शुरुआत 18 अप्रैल से की गई है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्रनाथ पांडेय का कहना है कि रात्रि चौपाल के परिणाम अच्छे आए हैं। इसमें पिछड़े, अति पिछड़े और दलित, अति दलित आ रहे हैं। अति पिछड़ों और अति दलितों को आरक्षण देने पर सरकार चिंतन कर रही है।

उधर, प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता जीशान हैदर ने कहा कि मुख्यमंत्री आदित्यनाथ का दलितों के प्रति प्रेम एक ढकोसला है और यह उस समय खुलकर सामने आ गया, जब वह अमरोहा जिले में दलित प्रधान के घर भोजन करने पहुंचे। पहले उनकी गायों को शैम्पू से नहलाया जाता है, जो लोग भोजन करने पहुंचे, उनके लिए मेन्यू पहले से तय होता है। जिस घर में पीने के लिए स्वच्छ पेयजल नहीं होता, वहां मिनरल वाटर के ढेर लगाए जाते हैं। घर के छप्पर में प्लास्टिक की नई शीटें लगाई जाती हैं। यह सब साबित करता है कि मुख्यमंत्री को दलितों से प्रेम नहीं, बल्कि सिर्फ चुनावी साल नजदीक होने के कारण यह प्रेम का दिखावा है।

उनका आरोप है कि मुख्यमंत्री पिछले दो दशकों से अधिक समय से सार्वजनिक जीवन में हैं। वे कोई ऐसा उदाहरण नहीं बता सकते, जहां उन्होंने एक भी दिन किसी दलित के घर जाकर भोजन या रात्रि विश्राम किया हो। बल्कि मुख्यमंत्री बनने के बाद बस्ती जिले के दलित इलाके में जाने से पहले प्रशासन द्वारा दलितों के लिए साबुन और शैम्पू भिजवाकर उनका अपमान जरूर किया गया था। 

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