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रसूख से नहीं दबा अपराध

देर से जगी योगी सरकार के फैसले पर भाजपा के भीतर भी उठे कई सवाल
फिर शर्मसारः उन्नाव और कठुआ में रेप की घटनाओं के खिलाफ कई शहरों में प्रदर्शन

उन्नाव गैंग रेप कांड ने सरकार की साख पर बट्टा लगा दिया है। प्रदेश में साल भर से अपराध नियंत्रण के लिए किए जा रहे तमाम प्रयासों पर उन्नाव गैंग रेप कांड ने पानी फेर दिया। चौतरफा दबाव के बीच मामला सीबीआइ को सौंपने के बाद आरोपी विधायक की भले ही गिरफ्तारी हुई हो, लेकिन विपक्ष सरकार की नीयत और नीति पर सवालिया निशान लगा रहा है। सत्तारूढ़ भाजपा में भी इस पर बेचैनी है।

मामला पिछले साल जून महीने का है। आरोप है कि उन्नाव जिले के बांगरमऊ विधानसभा क्षेत्र के विधायक कुलदीप सिंह सेंगर ने अपने एक साथी की मदद से किशोरी के साथ रेप किया और पीड़िता को मुकदमा वापस लेने के लिए प्रताड़ित कर रहे थे। इसी बीच बीते तीन अप्रैल को हथियारों से लैस विधायक के भाई ने परिवार के लोगों को जमकर पीटा और पीड़िता के पिता के खिलाफ ही मुकदमा दर्ज कर जेल भी भेज दिया गया।

आठ अप्रैल को मुख्यमंत्री आवास पर पीड़िता ने परिवार सहित आत्मदाह का प्रयास किया। इसके बाद सरकार ने कार्रवाई शुरू की। एक ही दिन बाद नौ अप्रैल को पीड़िता के पिता की न्यायिक हिरासत में मौत हो गई। इससे मामला और तूल पकड़ गया और आनन-फानन सरकार ने मामले की जांच के लिए एसआइटी गठित कर 24 घंटे में रिपोर्ट तलब की। साथ ही डीआइजी जेल ने पीड़िता के पिता की मौत पर और डीएम उन्नाव ने जिला अस्पताल उन्नाव में इलाज में लापरवाही की रिपोर्ट शासन को सौंपी। मामले में थाना प्रभारी समेत छह पुलिसवालों को सस्पेंड किया गया और पिटाई के मामले में उन्नाव के आरोपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के भाई सहित चार लोगों को गिरफ्तार किया गया। सरकार ने एसआइटी की रिपोर्ट के बाद मामला सीबीआइ को सौंपने का निर्णय लिया। पूरे मामले में 12 अप्रैल को इलाहाबाद हाइकोर्ट की तल्ख टिप्पणी और देश भर में सरकार की किरकिरी होने के बाद सीबीआइ ने पांच घंटे के भीतर ही जांच शुरू कर दी और आरोपी विधायक को 13 अप्रैल की सुबह हिरासत में ले लिया और देर शाम पूछताछ के बाद गिरफ्तार कर लिया। पीड़िता को आरोपी विधायक से मिलवाने वाली शशि सिंह को भी गिरफ्तार किया गया है।

मामले में आरोपी विधायक की गिरफ्तारी को लेकर जिस प्रकार से हीलाहवाली की गई, उससे सोशल मीडिया से लेकर हर जगह सरकार के विरोध में स्वर मुखर होने लगे। इस बीच आरोपी विधायक की गिरफ्तारी को लेकर पार्टी के भीतर से भी सरकार की ओर से देर से लिए गए फैसले पर सवाल उठने लगे हैं और इसके नतीजे को लेकर बेचैनी बनी हुई है।

प्रदेश में भाजपा ने विधानसभा चुनाव के पूर्व परिवर्तन यात्रा निकाली थी, जिसमें पार्टी अध्यक्ष अमित शाह से लेकर तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य सहित सभी नेता परिवर्तन की बात कर रहे थे। उनका कहना था कि हमें सरकार का परिवर्तन नहीं, व्यवस्था में परिवर्तन करना है, लेकिन सरकार के एक साल बीतने के बाद भी आरोपी विधायक के सामने पूरा सिस्टम लाचार दिखा। पीड़ित परिवार की ओर से मामले में थाने के मुंशी से लेकर मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री तक को पत्र भेजा गया। इतना ही नहीं, पीड़िता के चाचा ने मुख्यमंत्री को सौ से ज्यादा बार ट्वीट कर घटनाओं की जानकारी दी, लेकिन सिस्टम के आगे उनकी कहीं सुनी नहीं गई। आरोपी विधायक और थाने के मुंशी से मामला रफा-दफा करने की बातचीत का ऑडियो भी वायरल हुआ।

इलाके में कुलदीप सिंह सेंगर की हैसियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रदेश में सरकार किसी की हो, जिले में उनकी ही चलती थी। सेंगर उन्नाव सदर सीट से 2002 में पहली बार बसपा के टिकट पर विधायक चुने गए। 2007 में बसपा ने उन्हें पार्टी से निकाला तो वह सपा में चले गए। सपा ने बांगरमऊ से टिकट दिया और वे फिर विधायक बने। सपा ने 2012 में भगवंत नगर सीट से टिकट दिया और कुलदीप ने जीत हासिल की। जिला पंचायत अध्यक्ष के टिकट को लेकर कुलदीप का सपा से मनमुटाव हुआ और कुलदीप भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा ने बांगरमऊ से टिकट दिया और वे फिर विधायक बने।

आजादी के बाद से माखी गांव की राजनीति पर कुलदीप परिवार का कब्जा रहा है। पीड़ित परिवार भी उनका मोहरा था। आरोपी विधायक कुलदीप का प्रधानी चुनाव में शशि की पैरवी करने से मामला बिगड़ गया। 2015 के पंचायत चुनाव में गांव की सीट सामान्य थी। कुलदीप ने छोटे भाई अतुल सिंह की पत्नी अर्चना सिंह को मैदान में उतारा। उधर, पीड़िता की मां भी चुनाव मैदान में थी, लेकिन पीड़िता के चाचा ने पर्चा वापस करवा दिया। उसी समय से कुलदीप के परिवार से मनमुटाव शुरू हो गया। जून 2017 में पीड़िता की मां ने बेटी के साथ रेप की रिपोर्ट दर्ज कराई। दो लोगों को इस मामले में जेल भी हुई। पीड़िता ने 164 के बयान में शशि सिंह और उसकी बेटी को भी आरोपी बनाया था। विवेचना के दौरान शशि और उसकी बेटी का नाम निकाल दिया गया। पीड़ित पक्ष का आरोप था कि विधायक ने पैरवी करके नाम निकलवा दिया। पीड़िता के चाचा के नाम से गांव में विधायक को रावण बताकर पोस्टर बांटा गया। सोशल मीडिया पर पीड़िता के चाचा ने इसे अपने एकाउंट से शेयर किया।

मामले में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष किरनमय नंदा ने उत्तर प्रदेश में अनुच्छेद 356 लागू करने और प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने तक की मांग की है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का उन्नाव कांड पर कहना है कि ऐसे अपराधियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। अगर कोई संरक्षण दे रहा है तो उसके खिलाफ भी कार्रवाई हो। कम से कम सरकार उदाहरण पेश करे। यूपी में जहां हजारों एनकाउंटर हुए हों और सरकार दावा करती हो कि एनकाउंटर से कानून-व्यवस्था दुरुस्त होगी। वहीं, उन्नाव की घटना से सरकार का असली चेहरा उजागर हो गया है कि किस तरह से पुलिस और राजनीतिक लोग न्याय नहीं होने दे रहे थे। हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा। अगर कोई दोषी है तो सरकार दोषी है। यूपी में जबसे भाजपा सरकार आई है, घटनाएं बढ़ी हैं। डीजीपी और प्रमुख सचिव गृह का रोल क्या है, ये दोनों अधिकारी आरोपी को बचा रहे थे।

डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा ने कहा कि कुछ लोगों का गलत तथ्यों के आधार पर कहना है कि प्रदेश में कानून-व्यवस्था कमजोर हुई है। “हत्या और रेप की बड़ी-बड़ी घटनाओं पर जिन मामलों में फौरन कार्रवाई की गई है, उन पर ये लोग प्रश्नचिह्न लगाना चाहते हैं। ऐसे लोग पुराने मामलों को भुला देते हैं। सपा सरकार में पूर्व मंत्री गायत्री प्रजापति का बहुत पुराना मामला नहीं है, उसमें सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आने के बाद मामला दर्ज हुआ था और जब चुनाव के परिणाम आने लगे तब गिरफ्तारी की गई। सात अक्तूबर को घटना हुई और गिरफ्तारी 15 मार्च को हुई। वर्तमान सरकार ने किसी का भी पक्ष लेकर कार्य नहीं किया।” इस मामले में कांग्रेस ने भी सरकार के खिलाफ राजधानी में पुरजोर विरोध प्रदर्शन किया। साथ ही पीड़िता को 50 लाख रुपये की आर्थिक मदद की भी मांग की। इसके अलावा पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने भी घटना के विरोध में कैंडिल मार्च निकाला।

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