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“विरोधाभासी नियमों से संकट”

फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री के विकास के लिए काम करने वाली ऑल इंडिया फूड प्रोसेसर्स एसोसिएशन (एआइएफपीए) देश की पुरानी संस्था है। बड़ी इकाइयों के अलावा एमएसएमई (कुटीर, लघु, और मझोले उद्योग) भी इससे जुड़े हैं। फूड सेफ्टी के विभिन्न पहलुओं को लेकर एआइएफपीए के अध्यक्ष डॉ. सुबोध जिंदल से अजीत झा ने बातचीत की। कुछ अंशः
एआइएफपीए के अध्यक्ष डॉ. सुबोध जिंदल

-खाद्य पदार्थों में मिलावट रोकने को लेकर फूड सेफ्टी ऐंड स्टैंडड्‍‍र्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआइ) के प्रयास कितने कारगर रहे हैं?

एफएसएसएआइ के पास जो भी संसाधन हैं उसके अनुसार वह उपभोक्ताओं का भला करने की कोशिश कर रही है। लेकिन, कई ऐसी चीजें हैं जिनके ऊपर अभी सरकार का ध्यान नहीं गया है। मसलन, पैकेट बंद वस्तुएं बनाने वाली कंपनियों पर एफएसएसएआइ की नजर रहती है, क्योंकि उस पर उत्पादक का नाम होता है। लेकिन, लोग ऐसी बहुत सारी चीजें खाते हैं जो पैकेटबंद नहीं होतीं। उन्हें बनाने वालों की निगरानी के लिए एफएसएसएआइ के पास न तो पर्याप्त व्यवस्‍था है और न ही ठोस नीति।

-फूड प्रोसेसिंग सेक्टर को सरकार से किस तरह की मदद की जरूरत है?

बेहतर प्रोडक्ट तभी मिलेगा जब उत्पादक सक्षम होंगे। उत्पादकों के हितों की रक्षा करना भी एफएसएसएआइ की प्राथमिकता होनी चाहिए। खाद्य कानून में इसका ख्याल नहीं रखा गया है। मसलन, दिल्ली के किसी उत्पादक के प्रोडक्ट की जांच देश के किसी सुदूर इलाके में की जाती है, तो उसकी सुनवाई भी वहीं की अदालत में होती है। ऐसे में उत्पादक की पूरी ऊर्जा इस मुकदमेबाजी में खर्च हो जाती है। छोटे उत्पादकों को इससे काफी नुकसान होता है। सरकार को ऐसा तंत्र विकसित करना चाहिए जिसमें उत्पादक के खिलाफ सुनवाई की व्यवस्‍था भी वहीं हो जहां वह पंजीकृत है। इसके बिना मेक इन इंडिया, ईज ऑफ डूइंग बिजनेस और सभी लोगों को खाना उपलब्‍ध कराने की अभिलाषाएं पूरी नहीं होंगी।

-कानून होने के बावजूद मिलावट की समस्या दिनोदिन गंभीर क्यों होती जा रही है?

ऐसा नहीं है कि सभी उत्पादक मिलावट कर रहे हैं। मुश्किल से इंडस्ट्री के एक फीसदी लोग ही ऐसा करते होंगे। मिलावट अमूमन उन वस्तुओं में की जाती है जिनकी खुली बिक्री होती है। इसका एक बड़ा कारण कानूनों में विरोधाभास है। एफएसएसएआइ कहती है कि प्रोडक्ट में पेस्टिसाइड नहीं होनी चाहिए। लेकिन, कृषि मंत्रालय उपज बढ़ाने के नाम पर फर्टिलाइजर, पेस्टिसाइड के इस्तेमाल को लेकर किसानों को प्रोत्साहित करता है। इसके कारण पेस्टिसाइड जमीन, पानी, फूल-पत्ती, फल सभी चीजों में मिल चुके हैं। इसे अलग करना किसी मशीन से संभव नहीं है। इसी तरह फूड प्रोडक्ट के उत्पादन के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले पानी को लेकर भी मापदंड काफी कड़े हैं। लेकिन, पानी की आपूर्ति करने वाली एजेंसी मानकों का ख्याल नहीं रखती। पैकेजिंग के दौरान भी पदार्थ की गुणवत्ता प्रभावित होती है। इंडस्ट्री और सरकार नहीं चाहते कि प्लास्टिक पैकेजिंग हो। लेकिन, इसका कोई बेहतर विकल्प नहीं है। इसके लिए जिस पैमाने पर रिसर्च की जरूरत है उसके लिए इंडस्ट्री के पास संसाधन नहीं हैं। सरकार समझती है कि इंडस्ट्री खुद इसका विकल्प खोज लेगी तो यह नहीं हो सकता। इसके लिए सरकार को फोकस करना चाहिए। 

-मिलावट रोकने के लिए जिम्मेदार एजेंसियों में भ्रष्टाचार कितनी बड़ी समस्या है?

एफएसएसएआइ मिलावट रोकने की कोशिश कर रही है। इसमें सबसे बड़ी समस्या यह है कि कानून केंद्र सरकार बनाती है, लेकिन उसका अनुपालन राज्य की एजेंसियां करती हैं। केंद्रीय एजेंसी के लिए स्‍थानीय स्तर पर फूड इंस्पेक्टर की निगरानी कर पाना मुमकिन भी नहीं है। सैकड़ाें मामले ऐसे हैं कि लोकल इंस्पेक्टर जिसे सैंपल लेने का अधिकार है वो उसका  दुरुपयोग कर रहा है। 

-फूड क्वालिटी को लेकर इंडस्‍ट्री को एफएसएसएआइ ट्रेनिंग मुहैया करा रही है?

एफएसएसएआइ ने हाल में ट्रेनिंग प्रोग्राम बनाए हैं। इसके लिए कुछ न्यूनतम योग्ताएं भी तय की गई हैं। लेकिन, सुधार की जरूरत पूरे सेक्टर में है। तकनीक और फूड प्रोसेसिंग प्लांट के आसपास का वातावरण साफ-सुथरा रखना भी जरूरी है और यह काम एफएसएसएआइ नहीं कर सकती। औद्योगिक इलाकों की हालत आप देखिए। कचरे का ढेर लगा रहता है। सड़कें टूटी रहती हैं। जगह-जगह जल जमाव। इन इलाकों की सफाई की जिम्मेदारी नगर निगम की है। सरकार को चाहिए कि वह आवासीय इलाके की तरह औद्योगिक इलाके की सफाई को भी महत्वपूर्ण बनाए। ऐसा नहीं होने पर जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई होनी चाहिए, क्योंकि प्लांट कितना भी साफ-सुथरा हो आसपास गंदगी होगी तो प्रोडक्ट की क्वालिटी पर भी फर्क पड़ेगा।

-देश में फूड सेफ्टी की स्थिति बेहतर करने के लिए क्या करने की जरूरत है?

खानपान को लेकर दो मुख्य सवाल हैं। पहला सेफ्टी और दूसरा ऐसा तंत्र होना जिससे हर व्यक्ति तक खाद्य पदार्थ पहुंचे, क्योंकि हमारे देश में कुपोषण भी बड़ी समस्या है। गुणवत्ता के लिए जरूरी है कि उत्पादक को जो कच्चा माल मिले वो दूषित न हो। साथ ही आर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने की जरूरत है। प्रोडक्‍शन हाइजेनिक होना चा‌हिए। इसके लिए बाकायदा ट्रेनिंग देने की जरूरत है। खुले में बिकने वाले प्रोडक्ट और भोजन की निगरानी और नियंत्रण के लिए चुस्त तंत्र की जरूरत है। 

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