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जांच या लीपापोती में बीते बरसों

रसूखदारों से पूछताछ भी नहीं कर पाई सीबीआइ, तबादले ताबड़तोड़
उठते सवालः सीबीआइ जांच से निराश

मध्य प्रदेश के बहुचर्चित व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापम) घोटाले की जांच सुप्रीम कोर्ट ने स्पेशल टास्क फोर्स से छीनकर जुलाई 2015 में सीबीआइ को सौंपी थी। जांच के लिए सौ से ज्यादा अधिकारियों की स्पेशल जोन गठित की गई। इससे घोटाले में संलिप्त रसूखदार नेताओं, अधिकारियों और कारोबारियों पर शिकंजा कसने और मामले से जुड़े 40 से ज्यादा लोगों की संदिग्‍ध मौत की गुत्‍थी सुलझने की उम्मीद बंधी थी। लेकिन, अब जांच पर ही सवाल उठने लगे हैं।

करीब 32 महीने की जांच में सीबीआइ बड़े नामों से पूछताछ करने में नाकाम रही है। संदिग्‍ध मौत के ज्यादातर मामलों की जांच बंद की जा चुकी है। हाल में जिस तरीके से जांच से जुड़े अधिकारियों के बड़े पैमाने पर तबादले किए गए हैं उससे भी एजेंसी की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं।

जुलाई 2013 में डॉ. जगदीश सागर की गिरफ्तारी के बाद इस मामले में प्रदेश के तत्कालीन उच्च शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा के अलावा कई नेताओं, अधिकारी और कॉलेज संचालकों के नाम सामने आए थे। जिनकी भूमिका पर गंभीर सवाल उठे थे, उनमें एक प्रमुख नाम एक जनवरी 2010 से 30 जून 2012 तक व्यापम की चेयरमैन रही आइएएस अधिकारी रंजना चौधरी का है। इसी दौरान पीएमटी-2012 की परीक्षा आयोजित हुई थी, जिसमें सर्वाधिक गड़बड़ी और अयोग्य छात्रों को निजी मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन देने का मामला सामने आया था। चौधरी उस तीन सदस्यीय टीम की भी प्रमुख थीं जिसने मेडिकल प्री पीजी-2012 परीक्षा के प्रश्न-पत्रों को अंतिम रूप दिया था। एसटीएफ ने उनके खिलाफ एफआइआर दर्ज करने की सिफारिश भी की थी। लेकिन, उनसे अब तक पूछताछ भी नहीं हुई है। प्रश्न-पत्र को अंतिम रूप देने वाली टीम में आइपीएस अधिकारी एम. नटराजन और रिटायर्ड आइएफएस अधिकारी आर.पी. शुक्ला भी थे। इन तक भी जांच की आंच नहीं पहुंच पाई। हालांकि, सीबीआइ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया, “हमारी जांच सही दिशा में है। हमारे अधिकारी पूरी जिम्मेदारी के साथ जांच कर रहे हैं।”

कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता के.के. मिश्रा कहते हैं कि उनकी पार्टी को सीबीआइ जांच से काफी उम्मीद थी। लेकिन, जिस तरीके से घोटाले में संलिप्त लोगों को क्लीनचिट देकर मामला खत्म किया जा रहा उससे लगता है कि सीबीआइ को यह जोन ही बंद कर देनी चाहिए। व्यापम मामले के व्हिसिल ब्लोअर और पूर्व विधायक पारस सकलेचा ने बताया, “सीबीआइ दबाव में काम कर रही है और बड़े लोगों को बचा रही है। पीएमटी-2013 के मामले में एसटीएफ ने जिन 730 लोगों को आरोपी बनाया था, उनमें से मात्र 490 को ही सीबीआइ आरोपी बना पाई है। वहीं, पीएमटी-2012 में एसटीएफ ने 593 आरोपी बनाए थे, लेकिन सीबीआइ ने मात्र 347 को आरोपी बनाया है।” उन्होंने आउटलुक को बताया, “घोटाले के जरिए भर्ती हुए करीब एक हजार लोग नौकरी कर रहे हैं, लेकिन उन पर कार्रवाई नहीं हुई। व्यापम के नियंत्रक रहे पंकज त्रिवेदी को अब तक नौकरी से नहीं निकाला गया। सुधीर भदौरिया को संघ और भाजपा नेताओं से नजदीकी के चलते बख्श दिया गया।”

मध्य प्रदेश कांग्रेस के आरटीआइ विभाग के अध्यक्ष अजय दुबे ने बताया कि पूर्व आइएएस और आइपीएस अधिकारी व्यापम परीक्षाओं के ऑब्जर्वर नियुक्त किए जाते थे। लेकिन, सीबीआइ ने अपनी जांच में ऑब्जर्वर के ऊपर कोई जिम्मेदारी तय ही नहीं की है। उल्लेखनीय है कि घोटाले के दौरान पूर्व आइएएस अतुल सिन्हा, मलय राय, पूर्व आइपीएस नरेंद्र प्रसाद व्यापम परीक्षा के ऑब्जर्वर रह चुके हैं। कांग्रेस विधायक और नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह तो सीधे-सीधे इस घोटाले के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को ही जिम्मेदार बताते हैं। वे कहते हैं, “जिस वक्त पीएमटी परीक्षा घोटाला हुआ था उस समय चिकित्सा-शिक्षा विभाग का प्रभार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पास था। जब इस विभाग के कई अधिकारी घोटाले में शामिल हैं तो क्या शिवराज सिंह चौहान की जवाबदेही तय नहीं होनी चाहिए?” लेकिन, जब सीबीआइ जांच पर ही सवाल उठने लगे हैं तो क्या इन सवालों के जवाब मिल पाएंगे। 

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