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सियासत बदलने का हिंसक खेल

आसनसोल, रानीगंज में रामनवमी पर शुरू हुई हिंसा से राजनैतिक ध्रुवीकरण की कोशिशें, हर राजनैतिक पार्टी के अपने-अपने राग
जायजाः आसनसोल के हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में भाजपा की टीम

पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती जिले पुरुलिया से रामनवमी जुलूस के वक्त शुरू हुईं हिंसक वारदातें आधा दर्जन लोगों की जान लेने के बाद अब राजनीतिक जंग में बदल चुकी हैं। आसनसोल के भाजपाई सांसद बाबुल सुप्रियो से लेकर तृणमूल कांग्रेस और माकपा के नेता सभी हिंसा के लिए एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं और अपनी सियासत गरम करने की कोशिश में लगे हुए हैं।

हिंसा का यह खेल रामनवमी पर रानीगंज में शोभायात्रा से पहले बम फेंकने से शुरू हुआ, जिसके बाद पुलिस को यात्रा रोकनी पड़ी। इसके बाद यहां दो समुदाय के बीच हिंसक झड़प शुरू हुई। बम हमले में डीसीपी अरिंदम दत्त चौधरी का दायां हाथ बुरी तरह जख्मी हो गया। इसके बाद आसनसोल में भी हिंसा भड़क गई। यहां हिंसा रेलापार इलाके में शोभायात्रा पर पत्थरबाजी से शुरू हुई। फिर तोड़फोड़ होने लगी। पुलिस को हालात काबू में लाने के लिए लाठीचार्ज करना पड़ा और आंसूगैस के गोले दागने पड़े।

हालांकि, अब दोनों समुदाय के लोग अपने स्तर पर माहौल शांत करने की कोशिश कर रहे हैं। एक-दूसरे को राखियां बांध रहे हैं और गले मिल रहे हैं। 14 अप्रैल को बांग्ला नववर्ष आनेवाला है। ऐसी कोशिशें हो रही हैं कि उसे दोनों कौम मिलकर मनाएं। इन तमाम कोशिशों के बीच ही नूरानी मस्जिद के इमाम इमदात उल्लाह राशिद की अपील की चर्चा चहुंओर है, जिन्होंने आसनसोल में हुई हिंसा में अपने बेटे को खोने के बाद सार्वजनिक तौर पर कहा, “मैंने अपने बेटे को खोया है। इसे मुद्दा न बनाएं। अगर आप मुझसे प्यार करते हैं तो अमन बहाल करें।”

सामाजिक कोशिशें रंग ला रही हैं, लेकिन हर सियासी दल इसे अपने रंग में रंगने की कोशिश कर रहा है। भाजपा के नेता तो अपना राग अलाप ही रहे हैं, माकपा कार्यकर्ता अपने राज वाले दिनों को श्रेष्ठ बताने के लिए आंकड़ों का हवाला देते हैं। आंकड़ाें पर गौर करें तो 2012 में 45, 2013 में 49, 2014 में 40, 2015 में 65, 2016 में 69 और 2017 में 172 झड़पें हुईं।

आंकड़ों की बात अलग है, जुबानी जंग से भी इस आग को जिंदा रखने की कोशिशें जारी हैं। आसनसोल के भाजपा सांसद बाबुल सुप्रियो हिंसा के माहौल में ही वहां पहुंचे थे, पुलिस ने उन्हें जाने से रोक दिया था। बाद में एक आइपीएस अधिकारी के साथ अभद्रता के आरोप में उन पर दो केस दर्ज किए गए। सुप्रियो कहते हैं कि वे जनप्रतिनिधि हैं तो ऐसे मुश्किल समय में अपने इलाके में जाना उनका फर्ज है, लेकिन स्थानीय पुलिस उन्हें रोक रही है। लगे हाथ वे एक ही बात को बार-बार दुहरा रहे हैं कि 2019 के चुनाव के लिए ममता बनर्जी हिंसा भड़का रही हैं। बंगाल में भाजपा के दूसरे नेता भी बाबुल सुप्रियो की ही राह को आजमा और अपना रहे हैं। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने आसनसोल और रानीगंज के हिंसा प्रभावित इलाकों के हालात का जायजा लेने के लिए चार सदस्यीय समिति गठित की थी, जिसमें पार्टी उपाध्यक्ष ओम माथुर, पूर्व केंद्रीय मंत्री शहनवाज हुसैन, सांसद रूपा गांगुली और बी.डी. राम शामिल हैं। इस प्रतिनिधिमंडल ने एक अप्रैल को आसनसोल के तनावग्रस्त इलाकों का दौरा किया और राज्य सरकार पर हिंसा रोकने में पूर्ण रूप से विफल रहने का आरोप लगाया। भाजपा की प्रदेश इकाई के महासचिव सायंतन बसु ने भी बताया कि पार्टी नेताओं के एक दल ने रानीगंज और आसनसोल का दौरा किया, जहां हाल में रामनवमी के जुलूसों को लेकर दो गुटों में झड़प हुई थी।

भाजपा नेताओं के इस दौरे ने तृणमूल के नेताओं को नाराज कर दिया है। राज्य के संसदीय कार्य मंत्री पार्थ चटर्जी का कहना है कि भाजपा सूबे में सांप्रदायिक सद्भाव और शांति भंग करने की कोशिश कर रही है। वे पूछते हैं कि क्या वे पिछले दिनों की हिंसा से संतुष्ट नहीं हैं? तृणमूल नेता और आसनसोल नगर निगम के मेयर जितेंद्र तिवारी का कहना है कि भगवा दल ने धार्मिक आधार पर हिंसा भड़काने के लिए दौरा किया। इस दौरे का मकसद यही है। अगर सरकार को रिपोर्ट सौंपनी है तो उसके लिए तो राज्यपाल का दौरा हो ही रहा है।

जाहिर है, बंगाल में सियासी बदलाव के लिए दंगों को साधन बनाया जाने लगा है। लेकिन सकारात्मक यह है कि लोग खुद इस तनाव को दूर करने की कोशिशें कर रहे हैं। फिर भी देखना होगा कि सियासत क्या रंग लेती है।

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