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दलित नेता भी चौंके

दलित और आदिवासी समुदाय के लोग अपनी उपजातीय अस्मिताओं को दरकिनार कर साथ आए
हिंसा पर उतारू प्रदर्शनकारी

भारत बंद के दौरान दलित आक्रोश, बड़े पैमाने पर स्वतःफूर्त लामबंदी और हिंसा की घटनाओं ने बहुतों को चौंका दिया। यहां तक कि दलित नेता और कार्यकर्ता भी हैरान थे। तो, क्या यह नए राजनैतिक समीकरणों का आगाज है? आंबेडकर वेलफेयर सोसायटी के महासचिव अनिल गोठवाल कहते हैं कि लोगों में इतना आक्रोश था कि सोशल मीडिया से की गई अपील पर ही लाखों लोग राज्य में सडकों पर उतर आए। दलित चिंतक और लेखक डॉ. एम.एल परिहार के मुताबिक आजाद भारत के इतिहास में यह पहला मौका था जब दलित और आदिवासी समुदाय के लोग अपनी उपजातीय अस्मिताओं को दरकिनार कर साथ आए और अपने गुस्से को प्रकट किया। ऑल इंडिया दलित महिला अधिकार मंच राजस्थान की स्टेट कॉर्डिनेटर सुमन देवठिया ने बताया कि यह पहला मौका था जब बिना किसी बड़े नेता या बड़े संगठन के भी लोग सड़कों पर उतरे और अपने अधिकारों के लिए आवाज बुलंद की।

बाड़मेर के सुरेश जोगेश ने बताया कि वहां पुलिस की मदद से करनी सेना ने दलितों पर हमला किया। हालात जालोर, सांचोर और आहोर में भी प्रदर्शनकारियों पर करनी सेना से जुड़े लोगों के हमले से हालात बिगड़े। हालांकि करनी सेना के नेताओं ने ऐसी किसी हिंसा में अपने संगठन के लोगों के शामिल होने से इनकार किया है। जातीय हिंसा के चलते बीकानेर, भरतपुर, जोधपुर, सीकर, दौसा, भुसावर, करौली, हिंडौन, अलवर, जयपुर, अजमेर और गंगापुर सिटी में हालात काफी खराब हो गए।

केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान, थावरचंद गहलोत और भाजपा सांसद उदित राज के बयानों से तो लगता है कि उनका शायद अपने वर्ग के लोगों से सीधा संपर्क ही नहीं बचा है। उदित राज ने माना उन्होंने इतने बड़े पैमाने पर लोगों के सड़कों पर उतर की कल्पना भी नही की थी। साथ ही उन्होंने कहा था कि यह गुस्सा सिर्फ एससी/एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ही लेकर नहीं था। इसमें आरक्षण, बेरोजगारी जैसे मसले भी शामिल हैं।

समाजशास्त्री नवीन नारायण कहते हैं कि रोहित वेमुला की आत्महत्या, राजस्थान में डेल्टा मेघवाल की हत्या, डांगावास नरसंहार, ऊना में दलितों की पिटाई, उच्च शिक्षण संस्थानों में दलित आदिवासी वर्ग के युवाओं का दमन, बढ़ते अत्याचार और केंद्र सरकारी की खामोशी ने दलित आदिवासी समुदाय के भीतर असुरक्षा की भावना बलवती कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के ‌खिलाफ ‍रिव्यू पिटिशन दाखिल करने में देरी ने उनका गुस्सा और बढ़ा दिया। इसका नतीजा बंद के दौरान सड़कों पर उतरे सैलाब के रूप में दिखा।

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