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मोदी बनाम सिद्धरमैया

पूरब से पश्चिम तक झंडे गाड़ चुकी भाजपा के लिए दक्षिण साधने में कर्नाटक साबित हो रहा है बड़ी चुनौती
प्रचारः दावणगेरे में डोर-टु-डोर कैंपेन के दौरान भाजपा अध्यक्ष अमित शाह

कर्नाटक में विधानसभा चुनाव का मंच तैयार हो चुका है। 12 मई को वोट पड़ेंगे और तीन दिन बाद नतीजे सामने होंगे। इसलिए चुनावी माहौल में जितनी आक्रामकता दिख रही है, उससे अधिक दांवपेच पर्दे के पीछे चल रहे हैं। राज्य में चुनावी तारीख की घोषणा के पहले ही सत्तारूढ़ कांग्रेस और विपक्षी भाजपा अपनी तैयारियों को धारदार बनाने में जुट गई थीं। जहां कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी लगातार कर्नाटक के दौरे कर रहे हैं, वहीं भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी रैली कर चुके हैं। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह तो लगभग वहां ही डेरा डाले हुए हैं। ऐसे में आने वाले दिनों में यह तपिश बढ़ती ही जाएगी, क्योंकि दोनों दलों के लिए कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2019 के लोकसभा चुनाव की दिशा तय करेगा। हालांकि, लोकसभा चुनाव से पहले राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी चुनाव होने हैं, लेकिन कर्नाटक की अहमियत ज्यादा है, क्योंकि कर्नाटक के रास्ते भाजपा दक्षिण के राज्यों में अपनी उपस्थिति दर्ज कर रणनीतिक अहमियत हासिल करना चाहती है। वहीं, सिर्फ पांच राज्यों में सत्तारूढ़ रह गई कांग्रेस के लिए यहां अस्तित्व बचाने की लड़ाई है।

असल में कर्नाटक की राजनीतिक परिस्थितियां इस लिहाज से कुछ अलग हैं कि अक्सर किसी सरकार के खिलाफ जिस तरह से एंटी इंकंबेंसी का माहौल पांच साल में बनने लगता है, वह यहां कुछ कमजोर है। साथ ही मुख्यमंत्री सिद्धरमैया 1977 के बाद पांच साल पूरे करने वाले पहले मुख्यमंत्री हैं। अपनी सरकार को किसी बड़े घोटाले या विवाद से बचाए रखने वाले सिद्धरमैया ने एक ओर राज्य में कई ऐसी योजनाएं लागू कीं जो किसानों और गरीबों के लिए अहम थीं। उन्होंने कर्नाटक अस्मिता और क्षेत्रवाद को अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल किया। साथ ही वह कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व और खासतौर से राहुल गांधी को अपने पक्ष में करने में लगातार कामयाब रहे जबकि उनको कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी के दलित अध्यक्ष जी. परमेश्वर और मजबूत वोक्कालिगा नेता डीके शिवकुमार से चुनौती मिलती रही है।

आंकड़ों में देखें तो कर्नाटक में पिछले तीन चुनावों में भाजपा और कांग्रेस का ग्राफ चढ़ता उतरता रहा है। 2008 में कांग्रेस को विधानसभा में 80 सीटें मिली थीं और उसका वोट 34.8 फीसदी रहा था। जबकि भाजपा को 110 सीटें और 33.9 फीसदी वोट मिले थे। वहीं, जनता दल (एस) को 28 सीटें और 19 फीसदी वोट मिले थे। अन्य को छह सीटें और 12.3 फीसदी वोट मिले थे। 2013 में कांग्रेस को 122 सीटें और 36.6 फीसदी वोट मिले। भाजपा को 40 सीटें मिलीं और वोट 19.9 फीसदी मिले, जबकि जनता दल (एस) को भी 40 सीटें मिलीं और उसका वोट 20.2 फीसदी रहा। अन्य को 22 सीटें और 23.3 फीसदी वोट मिले। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों में मिले वोट देखें तो भाजपा सबसे मजबूत होकर उभरी। वह विधानसभा की 132 सीटों पर 43.4 फीसदी वोटों के साथ आगे रही, जबकि कांग्रेस 77 सीटों पर आगे रही और उसे 41.2 फीसदी वोट मिले। जनता दल (एस) केवल 15 विधानसभा सीटों पर आगे रही और उसके वोट 11.1 फीसदी रह गए।

पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी देवगौड़ा की पार्टी जनता दल (एस) राज्य के कुछ हिस्सों में काफी असर रखती है। उनके बेटे और पूर्व मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी की कोशिश है कि वह एक बार फिर दावेदारी पेश करें। उन्होंने मायावती की पार्टी बसपा के साथ गठजोड़ भी किया है।

भाजपा को मोदी और शहरी आबादी का भरोसा

भाजपा कांग्रेस सरकार की एंटी इंकंबेंसी का फायदा उठाना चाहती है, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को भी भुनाना चाहती है। राज्य की जनता दल (एस) सरकार में मंत्री रहे और पार्टी के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि युवाओं में नरेंद्र मोदी का क्रेज अभी बरकरार है जो हमारे जैसे नेताओं के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहा है। इसके साथ ही पार्टी ने परंपरागत रूप से उसका मजबूत वोट बैंक माने जाने वाले लिंगायत समुदाय पर दांव लगाते हुए पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया है। लेकिन भाजपा को दक्षिण भारत में पहली सरकार देने वाले येदियुरप्पा का कार्यकाल काफी विवादास्पद रहा था और उनको भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते जेल भी जाना पड़ा था। भाजपा के लिए एक बात जरूर फायदेमंद है, और वह है सिद्धरमैया सरकार पर शहरी आबादी को नजरअंदाज करने का आरोप लगना।

राज्य के लिंगायत समुदाय को अलग धर्म और अल्पसंख्यक का दर्जा देने का सिद्धरमैया सरकार का फैसला, भाजपा के इस परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगाने का प्रयास है। इसकी भाजपा ने काफी आलोचना की क्योंकि वह इसके खिलाफ रही है। पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार येदियुरप्पा भी इसके पक्ष में नहीं रहे हैं। दूसरी ओर, उगादी के मौके पर बेलगांव के एक बड़े मठ में लिंगायत समुदाय के साधुओं के जमावड़े में उनके गुरु कांग्रेस के इस कदम को बेहतर बताने के साथ ही उसके पक्ष में मत देने की बात कहते नजर आए।

सिद्धरमैया ने कन्नड़ भाषा को महत्व देने के लिए लगातार कदम उठाए हैं। बेंगलुरू मेट्रो में हिंदी के सूचना बोर्ड हटाने के फैसले से लेकर प्राथमिक स्कूलों में कन्नड़ भाषा के बढ़ावे के लिए वह कदम उठाते रहे हैं। राज्य का अलग झंडा भी उन्होंने जारी कर दिया। हालांकि, उनका यह कदम कांग्रेस को असहज कर रहा था, लेकिन राजनीतिक संवेदनशीलता को देखते हुए पार्टी ने इसे नजरअंदाज कर सिद्धरमैया के फैसले को स्वीकार किया।

चुनावी यात्राः मैसूर में जन-आशीर्वाद यात्रा के दौरान सिद्धरमैया के साथ चाय पीते राहुल गांधी

राज्य की नीतियां केंद्रीय योजनाओं पर भारी

किसानों को सीधे सब्सिडी देने और दूध की सरकारी खरीद पर सब्सिडी देने और किसानों को तालाब बनाने के लिए 80 फीसदी तक सरकारी सहायता जैसे फैसलों से उन्होंने सूखे से जूझ रहे किसानों की नाराजगी को कम करने की कोशिश की। 25 हजार रुपये तक के किसानों के कर्ज भी माफ किए। गरीबों के लिए अन्न भाग्य योजना के साथ ही प्रधानमंत्री उज्‍ज्‍वला योजना की काट के लिए मुख्यमंत्री अनिला भाग्य योजना भी उन्होंने फरवरी में ही लांच कर दी। इसमें राज्य के करीब 30 लाख गरीब परिवारों को मुफ्त एलपीजी कनेक्शन का लक्ष्य तय किया गया है।

एक दिलचस्प पहलू यह है कि कांग्रेस ने इस चुनाव को सिद्धरमैया बनाम नरेंद्र मोदी बना दिया है। पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी लगातार वहां दौरे कर रहे हैं। मंदिर-मठ भी घूम रहे हैं। लेकिन हर जगह सिद्धरमैया उनके साथ साये की तरह दिख रहे हैं। वहीं, भाजपा को स्टार प्रचारक के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ही सबसे अधिक भरोसा है। जबकि पार्टी अध्यक्ष अमित शाह भी लगातार बैठकें और रैलियां कर रहे हैं।

राज्य में नतीजा 15 मई को आएगा, लेकिन इतना तय है कि इसका परिणाम 2019 के लोकसभा चुनावों की दिशा जरूर तय कर देगा।

कर्नाटक की तीनों प्रमुख पार्टियों की ताकत

सिद्धरमैया

-अन्न भाग्य, आरोग्य भाग्य, क्षेत्र भाग्य और इंदिरा कैंटीन जैसी योजनाओं का फायदा मिल सकता है

-अहिंडा (पिछड़े), दलित और मुस्लिमों को साथ लाने से होगा लाभ। अलग धर्म के मुद्दे पर लिंगायत समुदाय को भी साधने की कोशिश 

बीएस येदियुरप्पा

-येदियुरप्पा को सीएम उम्मीदवार बनाने से कार्यकर्ता एकजुट, लिंगायत समुदाय के होने की वजह से इस वर्ग का भी समर्थन

-नरेंद्र मोदी की अपील, पांच साल पहले बगावत करने वाले बी श्रीरामुलु भी इस बार हैं पार्टी के साथ

एचडी कुमारस्वामी

-कामकाजी वर्ग के बीच खासे लोकप्रिय

-बसपा और वामदलों के साथ गठबंधन का लाभ मिलने की उम्मीद। सुपरस्टार पवन कल्याण कर सकते हैं प्रचार

-ओल्ड मैसूर क्षेत्र में पार्टी के लिए बन रहे समीकरण हक में जा सकते हैं

 

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