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पुस्तक समीक्षा: विज्ञान और वैज्ञानिकों की रोमांचक दुनिया से रूबरू कराती पुस्तक 'अतीत से आज तक'

विज्ञान: अतीत से आज तक प्रकाशक: श्वेतवर्णा प्रकाशन, नई दिल्ली लेखक: प्रदीप आईएसबीएन: 978-93-92617-28-7 पृष्ठ:...
पुस्तक समीक्षा: विज्ञान और वैज्ञानिकों की रोमांचक दुनिया से रूबरू कराती पुस्तक 'अतीत से आज तक'

विज्ञान: अतीत से आज तक

प्रकाशक: श्वेतवर्णा प्रकाशन, नई दिल्ली

लेखक: प्रदीप

आईएसबीएन: 978-93-92617-28-7

पृष्ठ: 344

मूल्य: रु 399

आज विज्ञान व प्रौद्योगिकी हमारे जीवन में एक अनिवार्य उपस्थिति बन चुका है। यहाँ तक कि वे लोग भी जो ख़ुद को विज्ञान का आलोचक कहते हैं, वे भी विज्ञान की सार्वभौमिकता और उसकी सर्वत्र मौजूदगी से इनकार नहीं कर सकते। आधुनिक भारत की बात करें तो भारत के राष्ट्रीय नेताओं ने भी विज्ञान और प्रौद्योगिकी के महत्त्व को बखूबी समझा था। राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान भी जगदीश चंद्र बसु, आचार्य प्रफुल्ल चन्द्र राय, चंद्रशेखर वेंकट रामन जैसे वैज्ञानिकों की एक पूरी जमात उठ खड़ी हुई, जो भारत में विज्ञान व प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहन देने के साथ ही आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत भी बनी। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के निरंतर प्रयासों से हम सभी वाक़िफ़ हैं।

भारतीय विज्ञान कांग्रेस के अधिवेशनों में दिए गए अपने अध्यक्षीय भाषणों में नेहरू वैज्ञानिकों और विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं से लगातार यह आह्वान करते कि वे विज्ञान की उपलब्धियों और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से आम जनता को परिचित कराएं और भारतीय भाषाओं में भी उत्कृष्ट वैज्ञानिक लेखन करें। पिछले कुछ वर्षों से प्रदीप हिंदी में विज्ञान संचारक की यह महत्त्वपूर्ण भूमिका पूरी प्रतिबद्धता के साथ निभा रहे हैं। उनकी हालिया पुस्तक ‘विज्ञान : अतीत से आज तक’ इसका एक प्रमाण है। प्रदीप ख़ुद भी समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रसार की अहमियत को भली-भाँति समझते हैं। अकारण नहीं कि वह लिखते हैं कि ‘लोकतांत्रिक देश के समुचित विकास के लिए यह बेहद ज़रूरी है कि विज्ञान और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का समुचित प्रचार-प्रसार हो। यह तभी संभव हो सकेगा जब विज्ञान और समाज के बीच की दूरियाँ मिट जाएँगी तथा विज्ञान और समाज के बीच विज्ञान संचारक एक सेतु बन जाएँगे।’

विज्ञान ने मनुष्य की अनंत जिज्ञासाओं के उत्तर ढूँढने, मानव-समुदाय के लिए नित नूतन संभावनाएं तलाशने का कार्य किया है। विज्ञान से जुड़ी ऐसी ही कुछ महत्त्वपूर्ण जिज्ञासाओं, सम्भावनाओं, आशंकाओं और उपलब्धियों की चर्चा प्रदीप ने इस पुस्तक में विस्तार से की है। ब्रह्मांड से जुड़ी प्राचीन और आधुनिक धारणाएँ हों, ब्लैक होल और अंतरिक्ष से जुड़े सवाल हों, पृथ्वी पर जैव विविधता पर मंडराता संकट हो या फिर ओजोन परत को नुकसान पहुँचाती हमारी जीवनशैली का मसला हो। प्रदीप इन सभी मुद्दों को प्रमुखता से इस पुस्तक में उठाते हैं और अपनी सहज भाषा में इन मुद्दों से जुड़ी तमाम बारीकियों से पाठक को परिचित कराते हैं।

इस पुस्तक के सबसे दिलचस्प अध्याय वे हैं, जहाँ लेखक विज्ञान और मनुष्यता के भविष्य की बात करता है और उन सवालों से वाबस्ता होता है, जो सीधे तौर पर हमारे भविष्य से जुड़े हैं। मसलन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का प्रश्न या फिर अंतरिक्ष में पर्यटन, जीन एडिटिंग, क्वांटम कम्यूनिकेशन और न्यूरालिंक जैसे विषय। प्रदीप जहाँ एक ओर मिथकों, अंधविश्वासों की ख़बर लेते हैं, वहीं वैज्ञानिकों के बीच भी पैठ बनाए हुए अवैज्ञानिक दृष्टिकोण और उनके नितांत अवैज्ञानिक व्यवहार के कारणों की भी सूक्ष्म पड़ताल करते हैं।

इसके साथ ही प्रदीप कुछ चुनिंदा भारतीय और विश्व वैज्ञानिकों के जीवन और उनके कार्यों से भी पाठकों को परिचित कराते हैं। इनमें आर्यभट से लेकर श्रीनिवास रामानुजन, उपेन्द्रनाथ ब्रह्मचारी, अल्बर्ट आइंस्टाइन, चार्ल्स डार्विन, होमी जहांगीर भाभा, एम्मी नोएथेर, ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, माइकल फैराडे जैसी शख़्सियतें शामिल हैं। वैज्ञानिकों पर लिखे ये लेख विशेष रूप से युवा पाठकों को प्रेरणा देने का कार्य करेंगे।

लेखक बलिया के सतीश चंद्र कॉलेज में इतिहास के शिक्षक हैं।  

 

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