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बनी-बनाई धारणाओं से अलहदा

रामकथा के न जाने कितने रूप हैं। आदिकवि वाल्मीकि की रामायण से लेकर तुलसीदास के रामचरितमानस तक।...
बनी-बनाई धारणाओं से अलहदा

रामकथा के न जाने कितने रूप हैं। आदिकवि वाल्मीकि की रामायण से लेकर तुलसीदास के रामचरितमानस तक। संस्कृत, प्राकृत, पालि और अन्य भाषाओं के महाकवियों के अलावा लोक परंपरा, बोलियों में भी रामकथा के बहुत रूप हैं। हर रामकथा में कथा और व्याख्या में फेरबदल मिलता है। अब फिल्म अभिनेता आशुतोष राना ने रामकथा की एक अलग तरह की व्याख्या करने की कोशिश की है। उन्होंने खलनायक के तौर पर चित्रित पात्रों के चरित्र को विस्तार देकर यह कहने की कोशिश की है कि खलनायक माने जाने वाले चरित्रों ने ही राम को राम बनाने में अहम भूमिका निभाई।

रामायण, रामचरित मानस और बाकी ग्रंथों में राम की सौतेली मां कैकेयी और रावण की बहन शूर्पणखा को निर्विवाद रूप से खलनायिका के तौर पर प्रस्तुत किया गया है। लेकिन इस पुस्तक में राम और कैकेयी के बीच हुए संवादों के जरिए बताया गया है कि राम की मां तो कौशल्या थीं लेकिन वास्तव में वह कैकेयी ही है जिसने राम को जीवन, सत्य, कर्तव्य, जिम्मेदारी के भावों से परिपूर्ण किया। राम को वनवास भेजने के लिए कैकेयी जिम्मेदार थीं, यह हर कथा में है लेकिन इस पुस्तक में बताया गया है कि राम को सिंहासन सौंपने के राजा दशरथ के फैसले से कैकेयी खुश नहीं थीं। पुस्तक में एक जगह कैकेयी अपनी सेविका मंथरा से कहती हैं, “जो स्वयं के गर्भ से जन्म लेते हैं क्या वही पुत्र कहलाते हैं? मातृत्व दैहिक नहीं, भावनात्मक अवस्था होती है। धारण, कारण और तारण, ये तीनों गुण जिसमें विद्यमान रहें, वह मां होती है। कौशल्या ने यदि राम को अपने गर्भ में धारण किया है, तो कैकेयी ने राम के अंतर्निहित गुणों को अपने चित्त में धारण किया है।”

राम और कैकेयी के बीच सवाल-जवाब के जरिए यह संदेश दिया गया है कि राम सिंहासन पर बैठने के इच्छुक नहीं थे, लेकिन कैकेयी लगातार इस पर बल देती रहीं कि सिंहासन पर राम को ही बैठना चाहिए। साथ ही राम ने ही कैकेयी को बाध्य किया कि वह राजा दशरथ से अपने दो वरदान मांग कर उनके वन जाने के मार्ग में सहायक बनें। यह घटना लिख कर आशुतोष कैकेयी के खलनायिका वाले मिथक को तोड़ते हैं। कैकेयी और राम के बीच हुए इस संवाद को कैकेयी के ग्रंथालय में हुआ बताया गया है। कैकेयी को इस बात का भान था कि ग्रंथालय में सरस्वती का वास है और जहां सरस्वती का वास हो वहां अकल्याणकारी कुछ हो ही नहीं सकता। वह कहती भी हैं, “आश्वस्त रहो पुत्र, तुम्हारे कल्याण के लिए कैकेयी को कलंक भी धारण करना पड़ा, तो भी कैकेयी पीछे नहीं हटेगी।” कैकेयी को कुमाता कहा जाता है लेकिन पुस्तक में वह राम से कहती हैं कि वह विमाता तो है, लेकिन कुमाता नहीं हैं। दोनों के संवादों में रोचकता है और मनुष्यों में उत्पन्न होने वाले प्रेम, मोह, ममता जैसे भावों, बाल्यावस्था-युवावस्था-वृद्धावस्था के कर्तव्यों, जिज्ञासा, धैर्य और जीवन के यथार्थ के अंतर को समझने की कोशिश है।

पुस्तक में सुपर्णा-शूर्पणखा के दोहरे चरित्र को भी कैकेयी के चरित्र की ही तरह खलनायिका की छवि से बाहर किया गया है। रामचरित मानस में राम और सीता को मारने के लिए शूर्पणखा के इस्तेमाल को दर्शाया गया है। पुस्तक में शूर्पणखा और उसके पिता विश्रवा के संवादों में यह बात सामने आती है कि रावण की नकारात्मक ऊर्जा को राम की सकारात्मक ऊर्जा के संपर्क में लाने की कारक शूर्पणखा बनी थी। शूर्पणखा कहती भी है कि वह राम के नर से नारायण में रूपांतरित होने का माध्यम और भाई रावण के मोक्ष का कारण बनेगी। उसके पिता ने ही उसमें इन विचारों का संचार किया था। विश्रवा ही उससे कहते हैं कि वह रावण और राम के बीच युद्ध की कोशिश करे, ताकि रावण की मृत्यु नहीं बल्कि उसका अंत हो। इससे शिव के हाथों मिला अमरत्व का वरदान तो पूरा न होगा लेकिन राम से शत्रुता की वजह से वह अमर रहेगा।

यही नहीं, रावण की पत्नी मंदोदरी की राम के प्रति सहानुभूति रखने वाली छवि भी तोड़ी गई है। शूर्पणखा के साथ हुए व्यवहार के बाद मंदोदरी के साथ हुए संवादों से रावण को यह संदेश मिला कि स्‍त्री, धर्म का ही रूप है और धर्म की रक्षा के लिए उसे किसी भी कीमत पर राम को मारना होगा। पुस्तक में रावण के भाई कुंभकर्ण की कई खासियतों का भी उल्लेख किया गया है। यूं तो कुंभकर्ण को बलशाली और शक्तिशाली बताया जाता है, लेकिन आशुतोष ने उसे वैज्ञानिक भी बताया है। उसके छह महीने तक सोने का प्रचार खुद रावण के दिमाग की उपज था, ताकि वह बिना किसी व्यवधान के अपने वैज्ञानिक प्रयोगों पर काम कर सके। यही वजह थी कि कुंभकर्ण की नींद में खलल डालने वाले के लिए मौत की सजा थी। पुस्तक में बताया गया है कि युद्ध के दौरान जिसे कुंभकर्ण कहा जा रहा था, वह वास्तव में एक विशाल लौहयंत्र था, जिसमें बैठकर कुंभकर्ण युद्ध करता था।

इस पुस्तक में हनुमान, विभीषण और रावण पर विजय के पर्व और सीता परित्याग पर भी अध्याय है। पहली बार हिंदी की किसी पुस्तक में कुछ कम प्रचलित या क्लिष्ट शब्दों के आसान हिंदी अर्थ भी उसी पृष्ठ पर दिए गए हैं। पूरी पुस्तक शुद्ध हिंदी में है। सिर्फ शूर्पणखा को उसके पति विद्युतजिह्व की ओर से भेजे गए पत्र में शमशीर शब्द का इस्तेमाल है, जो फारसी है। 

रामराज्य रामकथा को एक नए कोण से देखने की कोशिश है। कैकेयी और शूर्पणखा की छवि को लेकर जो कोशिश आशुतोष राना ने की है, उससे क्या वाकई छवि बदलेगी यह एक सवाल तो है और पुस्तक पढ़ने की यह वजह काफी रोचक भी है। अभी पुस्तक हार्डबाउंड में ही उपलब्ध है। इसके कम मूल्य का पेपरबैक संस्करण आए तो अच्छा रहेगा।

नीरज कुमार

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