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बीजेपी को हराने के लिए ममता ने खेला 13 साल पुराना दांव, जानें क्यों है उनको जीत का भरोसा

पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक सरगर्मी तेज हो चुकी है। सोमवार को उन्होंने मिदनापुर...
बीजेपी को हराने के लिए ममता ने खेला 13 साल पुराना दांव, जानें क्यों है उनको जीत का भरोसा

पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक सरगर्मी तेज हो चुकी है। सोमवार को उन्होंने मिदनापुर के नंदीग्राम से चुनाव का ऐलान किया है। उनके इस कदम को राजनीति में बड़ा दांव माना जा रहा है। इसके पीछे कई सियासी मायने भी निकाले जा रहे हैं। नंदीग्राम आंदोलन के जरिए ही ममता बनर्जी ने बंगाल की सत्ता पर तीस साल काबिज लेफ्ट के दुर्ग को ध्वस्त किया था और इसके बाद से ही टीएमसी का सियासी वर्चस्व कायम है। अब जब ममता बनर्जी 'अस्तित्व' की लड़ाई लड़ रही हैं तो उन्होंने नंदीग्राम के जरिए बीजेपी को भी चुनौती दे दी है। 

ममता बनर्जी ने नंदीग्राम से चुनाव लडने की घोषणा करके एक साथ कई समीकरण साधने की कोशिश की है। इससे केवल एक सीट या इलाका नहीं बल्कि टीएमसी के लिए खासकर दक्षिण बंगाल में खासा असर छोड़ सकता है। नंदीग्राम से शुभेंदु अधिकारी जीतते रहे हैं और अब ममता का साथ छोड़कर बीजेपी के पाले में चले गए हैं। इसके अलावा साल 2007 में जब तत्कालीन वाम मोर्चा की सरकार ने भूमि अधिग्रहण के लिए गांव वालों पर फायरिंग करवाई थी और 14 लोगों की मौत हुई थी उसके बाद यहां से बड़े आंदोलन की शुरुआत हुई थी।

ममता बनर्जी उस समय विपक्ष की नेता थीं, इसीलिए आंदोलन का नेतृत्व किया था, लेकिन लोगों के विरोध प्रदर्शन के आंदोलन में शुभेंदु अधिकारी और उनके परिवार की अहम भूमिका रही है। जिसके चलते शुभेंदु यहां से लगातार जीतते भी रहे हैं। हाल में शुभेंदु अधिकारी ने यहां सभा कर  ममता बनर्जी को चुनौती दी थी जिसका जवाब ममता बनर्जी ने चुनाव लड़ने का ऐलान करके दिया है। साथ ही इसके जरिए भवानात्मक तौर उन्होंने नंदीग्राम के लोगों से खुद को जोड़ने की कोशिश की है।

करीब दस साल तक शासन करने के बाद ममता बनर्जी भी आज बीजेपी के सामने 'अस्तित्व' की लड़ाई लड़ रही हैं।  बंगाल के कई राजनीतिज्ञ भी मान चुके हैं कि बीजेपी का प्रचार राज्य में बड़ी तेजी से प्रभाव डाल रहा है और इसका परिणाम 2019 लोकसभा चुनाव में दिख भी चुका है। ऐसे में ममता बनर्जी के सामने अपना किला बचाने की चुनौती है और यही ऐसे मौके पर वे फिर अपनी 'जड़' आंदोलन की ओर लौट रही हैं। सीधे तौर पर उनका यह सोचा समझा कदम माना जा रहा है। शुभेंदु अधिकारी परिवार का इस इलाके की कम से कम 40 से 45 विधानसभा सीटों पर प्रभाव है। अब उनके जाने के बाद खुद ममता इस इलाके में पार्टी के सियासी आधार को बचाने में जुट गई हैं।

जेपी नड्डा ने एक महीने पहले ही अपने दौरे के दौरान ममता बनर्जी की सीट भवानीपुर और अभिषेक बनर्जी के गढ़ डायमंड हार्बर में सभा की थी। ये बीजेपी की बड़ी रणनीति थी। अब जिस शुभेंदु अधिकारी के बल पर बीजेपी नंदीग्राम में बड़ा बदलाव देखने की उम्मीद लगाए हुए है, तो नंदीग्राम के सियासी रण से ममता ने बीजेपी से दो-दो हाथ करने की खुली चुनौती दे दी है।

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