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बिरले प्रशासक और राजनेता थे अजीत जोगी

अजीत जोगी जैसे प्रशासक और राजनेता अब मिलना मुश्किल है। मौत को चुनौती देते -देते आख़िरकार अजीत जोगी ने...
बिरले प्रशासक और राजनेता थे अजीत जोगी

अजीत जोगी जैसे प्रशासक और राजनेता अब मिलना मुश्किल है। मौत को चुनौती देते -देते आख़िरकार अजीत जोगी ने शुक्रवार को संसार को अलविदा कह दिया। 74 साल के जोगी पिछले 20 दिनों से एक निजी अस्पताल में भर्ती थे। आमतौर पर एक सामान्य व्यक्ति जब व्हील चेयर पर आ जाता है, तो वह संसार का माया-मोह त्याग देता है, लेकिन अजीत जोगी ऐसे व्यक्ति रहे, जो करीब 17 साल तक व्हील चेयर पर बैठकर भी छत्तीसगढ़ की जनता के दिलों पर राज किया।  अपने राजनीतिक दांवपेंच से विरोधियों के छक्के छुड़ाने में भी पीछे नहीं रहे। अजीत जोगी अफसर से राजनेता बने थे। आईएएस छोड़कर और भी कई अफसर राजनेता बने, लेकिन वे अजीत जोगी जैसा जमीनी नेता नहीं बन पाए।  इसका उदहारण 2018 का विधानसभा चुनाव है, जिसमें उन्होंने नई पार्टी बनाकर अपने बलबूते छत्तीसगढ़ में अपने पांच विधायक ले आये और बसपा को दो सीटें भी दिलवा दी। 

अजीत जोगी छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री बने। अजीत जोगी के मुख्यमंत्री बनने का कोई कयास भी नहीं लगा रहा था।  राज्य के नेता और प्रबुद्ध लोग  विद्याचरण शुक्ल के मुख्यमंत्री बनने की उम्मीद कर रहे थे। तब जोगी ने अपनी प्रशासनिक क्षमता और राजनीतिक कौशल से अपने तीन साल के कार्यकाल में छत्तीसगढ़ की मजबूत बुनियाद रख दी और साथ में जनता के दिल में छा भी गए।  सतनामी समाज के वोट बैंक पर उनकी पकड़ को कोई आखिर तक नकार न सका। छत्तीसगढ़ की राजनीति के धुरंधरों में गिने जाते रहे अजीत जोगी को सपनों का सौदागर भी कहा जाता रहा है। अजीत जोगी ने खुद अपने आप को 'सपनों का सौदागार' बताया था।  साल 2000 में जब अजीत जोगी ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो उन्होंने कहा था, ''हां, मैं सपनों का सौदागर हूं. मैं सपने बेचता हूं'', लेकिन 2003 में हुए विधानसभा चुनावों में अजीत जोगी को हार का सामना करना पड़ा। सत्ता का मोह बना रहा।  विधायकों के खरीद फरोख्त के चक्कर में उनकी किरकिरी भी हुई और कांग्रेस से निलंबित होना पड़ा, लेकिन जल्दी ही वे कांग्रेस में लौट भी आये। फिर 2008 में और 2013 में भी वो 'सपने' नहीं बेच पाए।

अजीत जोगी 1986 से 1998 के बीच दो बार राज्यसभा के सांसद चुने गए। 1998 में वे रायगढ़ से सांसद चुने गए। 1998 से 2000 के बीच वे कांग्रेस के प्रवक्ता भी रहे। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद वे 2000 से 2003 के बीच राज्य के पहले मुख्यमंत्री रहे।  2004 से 2008 के बीच वे 14वीं लोकसभा के सांसद रहे। 2008 में वे मरवाही विधानसभा सीट से चुन कर विधानसभा पहुंचे और 2009 के लोकसभा चुनावों में चुने जाने के बाद जोगी ने छत्तीसगढ़ के महासमुंद निर्वाचन क्षेत्र के लोकसभा सदस्य के रूप में काम किया हालांकि जोगी 2014 के लोकसभा चुनावों में अपनी सीट बरकरार रखने में असफल रहे और बीजेपी के चंदू लाल साहू से 133 मतों से हार गए।

2014 में छत्तीसगढ़ के अंतागढ़ में उपचुनाव होना था।  कांग्रेस की ओर से मंतूराम पंवार प्रत्याशी थे।  उन्होंने नामांकन दाखिल कर दिया था।  वापस लेने के आखिरी दिन मंतूराम ने पार्टी को बिना बताए नाम वापस ले लिया। 2015 के आखिर में एक ऑडियो टेप सामने आया जिसमें खरीद-फरोख्त की बातें थीं। आरोप लगे कि टेप में अजीत जोगी, उनके बेटे अमित जोगी और तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के दामाद पुनीत गुप्ता की आवाज थी, ये बातचीत मंतूराम पंवार के नाम वापस लेने के बारे में थी. इस टेपकांड के सामने आने के बाद छत्तीसगढ़ की प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने बेटे अमित जोगी को छह साल के लिए पार्टी से निकाल दिया। इसके साथ ही अजीत जोगी को भी पार्टी से निकालने की सिफारिश कर दी गई।

2016 में बनाई अपनी पार्टी

इस घटना के बाद  अजीत जोगी ने कांग्रेस को अलविदा कह दिया और साल 2016 में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ जोगी (JCCJ) के नाम से अपनी नई पार्टी बनाई। छत्तीसगढ़ की राजनीति में दो मुख्य खिलाड़ी ही रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस पार्टी किसी मजबूत और जमीनी पकड़ रखने वाले क्षेत्रीय दल की कमी की वजह से प्रदेश के लोगों के पास बस ये दो ही विकल्प थे अजीत जोगी ने जनता को वो विकल्प देने के लिए पार्टी का गठन किया वो भी विधानसभा चुनावों से ठीक पहले उन्होंने बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन करते हुए खुद के बारे में कहा कि इन चुनावों में वो 'किंगमेकर' की भूमिका निभाएंगे, यानी जिसे वो चाहेंगे उसके हाथों में छत्तीसगढ़ की सत्ता की बागडोर होगी. लेकिन अजीत जोगी की पार्टी को 5 सीटे ही मिल  पाई। अजीत जोगी मरवाही विधानसभा से चुने गए। 

इंदौर में 1985 में अजीत जोगी कलेक्टर थे। अपनी तेजतर्रार कार्यशैली और बेबाक बयानबाजी के कारण उस समय वह चर्चित रहते थे। एक दिन कलेक्टर बंगले में देर रात तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के पीए वी. जॉर्ज का फोन आया। उनसे बातचीत के बाद वे राजनीति में आ गए। 

राजनीति में आने के बाद जोगी को पहले  ऑल इंडिया कमेटी फॉर वेलफेयर ऑफ शेड्यूल्ड कास्ट एंड शेड्यूल्ड ट्राइब्स का सदस्य बनाया  गया। इसके कुछ ही महीनों वह राज्यसभा के सांसद बन गए। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे 1998 तक राज्यसभा सदस्य रहे। साल 1998 हुए लोकसभा चुनाव में रायगढ़ से सांसद चुने गए।

शुक्ला बंधुओं को चुनौती देने लाये गए थे जोगी

 पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निधन के बाद राजीव गांधी ने देश की कमान संभाली थी। राजीव देश के प्रधानमंत्री तो बन गए थे, लेकिन कांग्रेस में उनका प्रभुत्व नहीं था। हर क्षेत्र के अलग नेता थे और उनका अपना अलग वर्चस्व था। मध्यप्रदेश (तब छत्तीसगढ़ एमपी का ही हिस्सा था) की राजनीति में शुक्ला बंधुओं  (श्यामाचरण शुक्ल और विद्याचरण शुक्ल) का रुतबा था। इस ब्राह्मण परिवार का आदिवासियों में अच्छा वर्चस्व था। राजीव गांधी को दिग्विजय सिंह और अर्जुन सिंह (दोनों मध्यप्रदेश के सीएम रह चुके हैं) ने शुक्ला बंधुओं के मुकाबले किसी आदिवासी नेता को उतारने की सलाह दी।

अर्जुन सिंह को गॉडफादर मानते थे जोगी

अर्जुन सिंह सीधी के चुरहट के रहने वाले थे। अजीत जोगी सीधी और शहडोल में कलेक्टर रहे थे। वहां उनका अर्जुन सिंह से संपर्क हुआ। यह भी कहा जाता है कि जोगी अर्जुन सिंह को अपना गॉड फादर बताते थे। अर्जुन सिंह ने राजीव को अजीत का नाम सुझाया था। रायपुर कलेक्टर रहने के दौरान से ही अजीत जोगी राजीव गाँधी से मिला करते थे।  राजीव यहाँ पायलेट के रूप में आते थे।  राजीव की नजर अजीत जोगी पर टिकी थी। एक तेज तर्रार कलेक्टर, जो बोलता बहुत था, तो काम भी बहुत करता था।

दिग्विजय सिंह से हुआ था मतभेद

अजीत जोगी ने एक बार दिग्विजय के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया था। 1993 में दिग्विजय सिंह के सीएम बनने का नंबर आया तो जोगी ने भी अपनी दावेदारी पेश कर दी। उनकी दावेदारी चली नहीं, लेकिन अजीत जोगी ने दिग्विजय सिंह से दुश्मनी जरूर मोल ले ली। साल 1999 में केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी तो छोटे राज्यों की मांग तेज हो गई। इसके बाद 2000 में देश में छत्तीसगढ़ समेत तीन नए राज्य बने।

मध्य प्रदेश से अलग होकर बने इस राज्य के साथ 90 विधायक भी चले गए। इनमें श्यामाचरण शुक्ल, विद्याचरण शुक्ल, राजेंद्र शुक्ल और मोतीलाल वोरा जैसे चेहरे थे। झगड़ा खत्म करने के लिए कांग्रेस हाईकमान ने छत्तीसगढ़ की पुरानी मांग, "आदिवासी सीएम' को उठाया। इस खांचे में अजीत जोगी ही फिट होते थे।

कहते हैं न राजनीति में लंबे समय तक कोई दोस्त या दुश्मन नहीं होता है। अजीत जोगी और दिग्विजय के साथ भी यही हुआ। जोगी को विधायक दल का नेता बनाने के लिए दिग्विजय सिंह ने भरपूर समर्थन दिया। 31 अक्टूबर 2000 को अजीत जोगी छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री बन गए।

सबसे अधिक समय तक कलेक्टर रहने का रिकॉर्ड

अजीत जोगी 1970 बैच के आईएएस थे। मैकेनिकल इंजीनियरिंग में गोल्ड मेडलिस्ट अजीत जोगी बिना आरक्षण का लाभ लिए ही पीला अटेम्प्ट में आईपीएस बने, फिर आईएएस।  जोगी की पहली पोस्टिंग असिस्टेंट कलेक्टर के तौर पर जबलपुर में दी गई।  इसके बाद सिहोरा और कटनी के एसडीएम बनाये गए।  आईएएस बनने के चार साल बाद ही उन्हें सीधी का कलेक्टर बना दिया गया। सीधी के बाद शहडोल और फिर रायपुर के कलेक्टर बने। मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह उन्हें इंदौर ले गए।  वे 1981 से 1985 तक इंदौर के कलेक्टर रहे।  जोगी लगातार साढ़े 11 साल कलेक्टर रहे।  80 के दशक का रिकार्ड अभी तक नहीं टूटा है। .

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