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आरटीआई से ध्वस्त हुआ 80 हजार फर्जी शिक्षक पकड़ने का सरकारी दावा

विशिष्ट पहचान संख्या यानी आधार के औचित्य और वैधता पर छिड़ी बहस के बीच इससे जुड़े दावों पर भी सवाल खड़े...
आरटीआई से ध्वस्त हुआ 80 हजार फर्जी शिक्षक पकड़ने का सरकारी दावा

विशिष्ट पहचान संख्या यानी आधार के औचित्य और वैधता पर छिड़ी बहस के बीच इससे जुड़े दावों पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। इस साल जनवरी में उच्च शिक्षा सर्वेक्षण (एआईएसएचई) की रिपोर्ट जारी करते हुए केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने आधार के जरिए 80 हजार फर्जी शिक्षकों के पता चलने का दावा किया था। लेकिन इस बारे में सूचना के अधिकार कानून के तहत मिली जानकारी से यह दावा ही संदिग्ध नजर आने लगा है।  

केंद्रीय मंत्री का दावा था कि उच्च शिक्षा सर्वेक्षण में आधार अनिवार्य करने से 80 हजार ऐसे शिक्षकों का पता चला है जो तीन या इससे ज्यादा संस्थानों से जुडे़ हुए हैं। पांच और छह जनवरी को देश के विभिन्न अखबारों में आधार के बूते 80 हजार फर्जी शिक्षकों के पकड़ में आने की यह खबर प्रमुखता से प्रकाशित हुए थी।

आरटीआई कार्यकर्ता अंजली भारद्वाज और अमृता जौहरी ने जब आधार की मदद से पकड़े गए इन फर्जी शिक्षकों, उनके कॉलेजों, इस फर्जीवाड़े में लिप्त लोगों की जांच और उनके खिलाफ कार्रवाई के बारे में मानव संसाधन विकास मंत्रालय के उच्च शिक्षा विभाग से जानकारी मांगी तो सरकारी दावों की कलई खुलती नजर आई। आरटीआई के जवाब में उच्च शिक्षा विभाग ने माना कि उच्च शिक्षा सर्वेक्षण के तहत शिक्षकों के आधार नंबर की जानकारी मांगी गई थी। गुरुजन पोर्टल पर जुटाए गए इस डेटा के मुताबिक, 85708 आधार नंबर डुप्लिकेट अथवा अवैध पाए गए हैं। लेकिन फर्जी शिक्षकों की राज्यवार संख्या, इन शिक्षकों के नाम और इनके कॉलेज/ यूनिवर्सिटी के नाम की जानकारी होने से विभाग ने इंकार किया है।


 

हैरानी की बात है कि देश में करीब 80 हजार फर्जी शिक्षकों का पता चलने के बावजूद इस मामले की न तो कोई जांच हुई और न ही अभी तक किसी के खिलाफ कार्रवाई की गई है। इस बारे में आरटीआई के तहत पूछ जाने पर भी उच्च शिक्षा विभाग ने यही जवाब दिया कि उसके पास यह इसकी जानकारी नहीं है।

न कोई जांच, न कार्रवाई

आरटीआई के जरिए आधार से जुड़े दावे पर सवाल उठाने वाली अंजली भारद्वाज का कहना है कि फर्जी शिक्षकों का पता लगाने के केंद्रीय मंत्री के दावे के समर्थन में मानव संसाधन विकास मंत्रालय कोई पुख्ता सबूत या जानकारी नहीं दे पाया। यहां तक कि मंत्रालय को इन शिक्षकों और उनके संस्थानों के नाम तक मालूम नहीं हैं। अगर देश में 80 हजार फर्जी शिक्षक हैं तो कौन इन्हें वेतन दे रहा है? इस फर्जीवाडे के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ मंत्रालय ने कोई जांच या कार्रवाई क्यों नहीं की है? 

दावों पर उठते रहे सवाल

गौरतलब है कि 2010 में आधार की शुरुआत से ही दोहरी पहचान और फर्जीवाड़े पर अंकुश लगाने के नाम पर इसका समर्थन किया जा रहा है। लेकिन आधार से होने वाली बचत को लेकर सरकार के दावे पर सवाल उठते रहे हैं। खासतौर पर एलपीजी, फूड सब्सिडी और मनरेगा जैसी योजनाओं में आधार की मदद से फर्जीवाड़े पर अंकुश और फंड की बचत के दावे विवादित रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में आधार की वैधता को लेकर चली बहस के दौरान भी इन दावों पर सवाल उठे हैं।  

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