Advertisement

कर्नाटक बगावतः क्या 14 विधायकों के इस्तीफों के बाद बच पाएगी कांग्रेस-जेडीएस सरकार

कर्नाटक में कांग्रेस-जनता दल (सेक्यलर) गठबंधन के बीच की दरारें भरने की लगातार कोशिशें की गई लेकिन ये...
कर्नाटक बगावतः क्या 14 विधायकों के इस्तीफों के बाद बच पाएगी कांग्रेस-जेडीएस सरकार

कर्नाटक में कांग्रेस-जनता दल (सेक्यलर) गठबंधन के बीच की दरारें भरने की लगातार कोशिशें की गई लेकिन ये दरारें नाटकीय ढंग से और तेजी से और चौड़ी होती चली गई। इससे एच. डी. कुमारस्वामी की सरकार संकट में आ गई। 14 विधायकों द्वारा इस्तीफे भेजे जाने के बाद कांग्रेस-जेडीएस की गठबंधन सरकार मौजूदा घटनाक्रम को देखते हुए अनिश्चितता के भंवर में फंसी दिख रही है। लेकिन इस बात की संभावना बहुत ज्यादा है कि आने वाले समय में सरकार पर संकट और गंभीर होगा। राज्य सरकार के लिए अगला सप्ताह अत्यंत अहम साबित होने वाला है। कर्नाटर विधानसभा का सत्र 12 जुलाई को शुरू होगा। जबकि विधानसभा अध्यक्ष के. आर. रमेश कुमार जल्दी ही इस्तीफों पर फैसला करने के लिए विधायकों से मुलाकात करेंगे।

राज्य में राजनीतिक उठापटक का इतिहास एक दशक पुराना

कर्नाटक में इस तरह की उठापटक का अनुभव करीब एक दशक पुराना है जब राज्य चुनाव में त्रिशंकु विधानसभा गठित हुई थी। तब भाजपा की राज्य सरकार को अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ा, जब बागी विधायकों को बेंगलुरू से दूर रिजॉर्ट में भेज दिया गया। आज ये दृश्य दोबारा देखने को मिल रहे हैं। कांग्रेस और जेडीएस के कई विधायक मुंबई के होटल में टिके हैं और राज्य सरकार अनिश्चितता में झूल रही है। इस संकट का कोई समाधान निकलता भी नहीं दिख रहा है। कांग्रेस ने कुछ बागी विधायकों को मंत्री पद देने के लिए राज्य कैबिनेट के पुनर्गठन का प्रस्ताव किया और सभी मौजूदा मंत्रियों को इस्तीफा देने को कहा है। उसने कुछ विधायकों को दल-बदल विरोधी कानून लागू करने की धमकी भी दी है। संकट से सरकार को निकालने के लिए कांग्रेस ने वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद को बेंगलुरू और डी. के. शिवकुमार को मुंबई भेजा। पार्टी के संकटमोचन शिवकुमार मुंबई के होटल में नहीं पहुंच पाए क्योंकि बागियों न सिर्फ मिलने से इन्कार कर दिया बल्किन पुलिस सुरक्षा भी मंगा ली।

क्या होगा आगे

-कर्नाटक विधानसभा का सत्र शुक्रवार को शुरू होगा। सदन में इस जुलाई सत्र के दौरान वित्त विधेयक प्रस्तुत किया जाएगा। व्यावहारिक रूप से यह कांग्रेस-जेडीएस सरकार के लिए फ्लोर टेस्ट होगा। लेकिन स्थितियां इससे पहले ही बदल सकती है। राज्यपाल मुख्यमंत्री को विश्वास मत हासिल करने का निर्देश दे सकते हैं।

-मुख्यमंत्री का इस्तीफाः अगर कांग्रेस-जेडीएस गठंधन विधायकों को वापस जोड़ने में विफल रहता है तो मुख्यमंत्री कुमारस्वामी को फ्लोर टेस्ट के बिना ही इस्तीफा देना पड़ सकता है। यह वैसी ही स्थिति होगी, जैसी भाजपा के बी. एस. येदियुरप्पा के सामने मई 2018 में आई थी। तब उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था।

-राजनीतिक गणितः 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी लेकिन वह बहुमत से दूर रही। 224 सदस्यों के विधानसभा में बहुमत के लिए 113 विधायक होने चाहिए। जबकि भाजपा के पास 105 विधायक थे। इस समय कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन के 117 विधायक हैं। इसके अलावा बहुजन पार्टी के एक विधायक का समर्थन हासिल है। इस्तीफों के चलते उसके विधायकों की संख्या बहुमत से नीचे 106 पर रह सकती है। इससे भाजपा को फायदा मिल सकता है। दो स्वतंत्र विधायकों ने भी भाजपा को समर्थन दिया है।

कुमारस्वामी को इस्तीफा देना चाहिएः येदियुरप्पा  

भाजपा कुमारस्वामी के इस्तीफे की मांग कर रही है। उसका कहना है कि सरकार बहुमत खो चुकी है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बी. एस. येदियुरप्पा ने कहा कि अगर स्पीकर बिना देरी किए इस्तीफे स्वीकार कर लेते हैं तो विधानसभा सत्र बुलाने का कोई प्रश्न नहीं उठता है। मुख्यमंत्री को पद पर बने रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। उनके विधायकों की संख्या घटकर 103 रह गई जबकि भाजपा को 107-108 विधायकों का समर्थन हासिल है। इस वजह से हमने राज्यपाल से अनुरोध किया है कि वे स्पीकर को आवश्यक कदम तुरंत उठाने के लिए कहें।

भाजपा पर विधायकों की खरीद-फरोख के आरोप

लेकिन कांग्रेस मौजूदा संकट के लिए भाजपा पर आरोप लगा रही है। आरोप है कि भाजपा सरकार को अस्थिर करने के लिए विधायकों की खरीद-फरोख्त कर रही है। कांग्रेस के नेता सिद्धारमैया का कहना है कि राज्य चुनाव में भाजपा को जनादेश नहीं मिला था। लेकिन वह कर्नाटक सरकार को अस्थिर करने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। भाजपा के शीर्ष नेता जवाबी आरोप लगा रहे हैं कि गठबंधन खुद ही ठह रहा है। कर्नाटक संकट की गूंज संसद में सुनाई दी। कांग्रेस के सांसदों ने वहां विरोध प्रदर्शन किया।

हाल की राजनीतिक घटनाएं

बेल्लारी से कांग्रेस के विधायक आनंद सिंह ने एक जुलाई को अपना इस्तीफा स्पीकर के पास भेजकर मौजूदा संकट की शुरुआत की। मुख्यमंत्री कुमारस्वामी निजी यात्रा पर अमेरिका गए हुए थे और उन्हें सप्ताह के अंत तक लौटना था। छह जुलाई में घटनाओं को चक्कर तेजी से घूमा जब कांग्रेस के नौ और जेडीएस के तीन विधायकों का समूह इस्तीफा देने के लिए एक साथ सचिवालय पहुंचा और और सब को अचरज में डाल दिया। इसके तुरंत बाद कुछ विधायक राज भवन पहुंचे और ताजा घटनाक्रम की जानकारी राज्यपाल को दी। कुमारस्वामी सात जुलाई की शाम को वापस लौट आए लेकिन तब तक ज्यादातर विधायक मुंबई पहुंच गए। नौ जुलाई को कांग्रेस विधायक आर. रोशन बेग ने भी इस्तीफा दे दिया। उन्हें मिलाकर 14 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के निराशाजनक प्रदर्शन के लिए कर्नाटक के प्रभारी के. सी. वेणुगोपाल और कर्नाटक कांग्रेस के प्रमुख दिनेश गुंडु राव पर आरोप लगाने के लिए बेग को पिछले महीने निलंबित कर दिया गया था।

स्पीकर नहीं चाहते, फैसले में गलती हो

इसके बाद स्पीकर ने कहा कि सिर्फ पांच विधायकों के इस्तीफे वैध पाए गए। उन्होंने इन विधायकों को सुनवाई के लिए 12 और 15 जुलाई को समय दिया। बाकी विधायकों के बारे में उन्होंने कहा कि वे सही फॉर्मेट में दोबारा इस्तीफे भेज सकते हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें कानून सम्मत फैसला लेना होता है। वह जो भी कदम उठाएंगे, वह इतिहास बन जाएगा। इसलिए वह कोई त्रुटि नहीं छोड़ सकते हैं। इस कार्यवाही के बाद गठबंधन सरकार अधर में लटक गई।

भाजपा के लिए फिर अच्छी संभावनाएं

यह कोई रहस्य नहीं है कि 2018 में राज्य चुनाव के दौरान सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरने के बाद से ही भाजपा चतुराई से काम ले रही है। लेकिन वह बहुमत जुटाने में विफल रही। भाजपा के पास इस समय 105 विधायक हैं। कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन के पास 117 विधायक (बसपा के एक विधायक को मिलाकर) हैं। अगर इस्तीफे स्वीकार किए जाते हैं तो उसके विधायकों की संख्या 106 बचती है जो बहुमत से कम है। ऐसे में भाजपा के लिए सरकार बना का सबसे अच्छा अवसर है। दो स्वतंत्र विधायक लगातार अपना रुख बदलते रहे हैं। शुरू में उन्होंने कुमारस्वामी सरकार को समर्थन दिया। बाद में वे पाला बदल गए। लेकिन वे दोबारा सरकार के साथ आ गए और जून में मंत्री के रूप में शपथ ली। अब वे फिर से भाजपा का समर्थन कर रहे हैं।

लोकसभा चुनाव में गठबंधन की हार तात्कालिक वजह

लेकिन कर्नाटक की गठबंधन सरकार की उथल-पुथल बढ़ने की कोई और वजह नहीं बल्कि हाल में राज्य में लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा की जबर्दस्त सफलता रही है। लोकसभा चुनाव में गठबंधन को सिर्फ एक सीट मिल पाई। इस हार के लिए कांग्रेस और जेडीएस एक-दूसरे को जिम्मेदारी ठहरा रहे हैं। कुमारस्वामी को भी लोगों से न मिलने के कारण नाराजगी झेलनी पड़ रही है। उन्होंने सरकार को लोकसभा चुनाव के धक्के से उबारने के लिए गांव में ठहरने का कार्यक्रम दोबारा शुरू किया है ताकि लोगों से संपर्क बढ़ाया जा सके।

इनके इस्तीफे ने आश्चर्य में डाला

गठबंधन के कई नेता निजी बातचीत में अपनी पार्टियों की आलोचना कर रहे हैं लेकिन कुछ ही विधायक जैसे गोकक विधायक रमेश जरकीहोली गठबंधन सरकार को धमकी देते दिख रहे हैं। जरकीहोली ने पिछले एक साल में सबसे ज्यादा बागी रुख दिखाया है। लेकिन पिछले कुछ दिनों में राजनीतिक स्थितियां तेजी से बदलीं। कुछ ऐसे विधायक भी बागी हो गए जिनसे कतई उम्मीद नहीं थी। खासकर पूर्व गृह मंत्री बेंगलुरू से सात बार से विधायक रामलिंगा रेड्डी भी विरोधी बन गए। यहीं नहीं, जेडीएस के हाल तक राज्य अध्यक्ष रहे ए. एच. विश्वनाथ भी बागी हो गए। मंत्री पद देने के मामले में वरिष्ठता के बावजूद नजरंदाज किए जाने से रेड्डी नाराज थे जबकि पूर्व कांग्रेसी नेता के रूप में विश्वनाथ के यू-टर्न ने सभी को आश्चर्य में डाल दिया। सिद्धारमैया से पिछड़ने के कारण वे 2017 में जेडीएस में शामिल हो गए। पिछले सप्ताह वह पार्टी सुप्रीमो एच. डी. देवगौड़ा के साथ दिखे थे। लेकिन छह जुलाई को राज भवन जाने वाले बागी विधायकों का वह नेतृत्व कर रहे थे। बेंगलुरू के वे विधायक भी उनके साथ थे जो उनके विरोधी सिद्धारमैया के समर्थक माने जाते हैं।

सिद्धारमैया पर भी उठ रहे सवाल

इस राजनीतिक ड्रामे से सिद्धारमैया सवालों के घेरे में आ गए। उनके वफादार विधायक जैसे एस. टी. सोमशेखर, बी. ए. बासवराज और मुनिरत्न भी इस्तीफे देने वालों में शामिल हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बी. के. चंद्रशेखर ने कहा कि पहले दिन से ही कुछ शीर्ष नेताओं समेत कई कांग्रेसियों द्वारा तरह-तरह बातें की गईं। संयम बरतने की हाईकमान की सलाह के बावजूद ऐसी बातों से कांग्रेस आम लोगों के खिलाफ नजर आने लगीं। उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव में हार के बाद भी कर्नाटक कांग्रेस के भीतर ईमानदार आत्मचिंतन करने और जवाबदेही तय करने के लिए कोई प्रयास नहीं हुए। इसके बजाय राज्य कांग्रेस के कुछ नेताओं ने 300 पदाधिकारियों की राज्य कमेटी को ही भंग कर दिया। इनमें से कई 10-15 साल से सचिव थे और पार्टी की सेवा कर रहे थे।

बागी विधायक नहीं छोड़ेंगे अपनी पार्टी

कांग्रेस और जेडीएस के बागी दावा करते हैं कि उनकी मंशा पार्टी छोड़ने की नहीं है। वे सिर्फ विधायक के तौर पर इस्तीफा दे रहे हैं। वे गठबंधन सरकार पर उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों को नजरंदाज करने का आरोप लगाते हैं। के. सी. वेणुगोपाल ने कहा कि इन विधायकों में से कुछ की शिकायतें हैं। वे कैबिनेट के विस्तार की मांग कर रहे हैं। कांग्रेसी मंत्रियों ने अपने पद से इस्तीफे दे दिए हैं। उन्हें पुनर्गठन और मौजूदा संकट सुलझाने के लिए जरूरी फैसले लेने के बारे में पार्टी पर पूरा भरोसा है। इसी तरह जेडीएस ने भी तीन विधायकों को लुभाने के लिए इसी तरह के कदम उठाए हैं। लेकिन जानकारों का कहना है कि अब इस तरह प्रस्तावों के लिए देरी हो चुकी है।   

स्थिति और खराब 

बेंगलुरू में सचिवालय में चर्चाएं है कि कुछ और विधायक इस्तीफे दे सकते हैं। सवाल है कि क्या और विधायक ऐसा करेंगे। कुमारस्वामी सरकार को वित्त विधेयक पारित कराने की आवश्यकता है। जबकि विश्लेषकों का मानना है कि सरकार के बहुमत की परीक्षा इस समय सबसे बड़ी आवश्यकता है। स्थितियां इतनी तेजी से बदल रही है कि उनके लिए कुछ भी कह पाना मुश्किल है। सिर्फ एक ही बात निश्चित है कि कर्नाटक की भंगुर राजनीति बदले बदलाव लाने वाली है।

(बेंगलुरू से अजय सुकुमारन)

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad