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वायु प्रदूषण से जुड़ी अनैतिकताएं

एच1बी वीजा को प्रतिबंधित करने पर अमेरिकी कांग्रेस में एक सुनवाई के दौरान, बिल गेट्स से पूछा गया कि "क्या...
वायु प्रदूषण से जुड़ी अनैतिकताएं

एच1बी वीजा को प्रतिबंधित करने पर अमेरिकी कांग्रेस में एक सुनवाई के दौरान, बिल गेट्स से पूछा गया कि "क्या अमेरिका का भारतीयों के बिना काम चल सकता  है?" उन्होंने जवाब दिया, "हां, अगर हम हॉटमेल के बगैर रह सकें, तो हम भारतीयों के बिना भी काम चला सकते हैं।" गौरतलब है कि यह पहली मुफ्त ईमेल सेवा है, जो एक भारतीय अमेरिकी साबिर भाटिया द्वारा शुरू की गई थी। जब सही समय आया, तो गेट्स ने अपने प्रिय माइक्रोसॉफ्ट का नेतृत्व एक भारतीय सत्य नारायण नडेला को सौंप दिया। क्या बिल गेट्स से बेहतर भी कोई भारत का शुभचिंतक हो सकता है?

वर्ष 2018 में, भारत में फेफड़ों के रोगों के तेज प्रकोप से परेशान बिल गेट्स ने अपने गेट्स फाउंडेशन को 1.3 अरब भारतीयों पर वायु प्रदूषण के प्रभाव को निर्धारित करने के लिए एक वैज्ञानिक अध्ययन करने को कहा। भारतीयों को विदेशी दलों द्वारा भारत के बारे में किए गए अध्ययन पर संदेह हो सकता है। इसलिए गेट्स फाउंडेशन ने एक सरकारी निकाय भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के साथ भागीदारी की। इस अध्ययन के लिए चालीस फीसदी जांचकर्ता भारतीय नागरिक थे।

अध्ययन के निष्कर्ष  भारत सरकार के निगरानी स्टेशनों की वास्तविक रीडिंग पर आधारित थे और फिर इन्हें एक परिष्कृत कंप्यूटर मॉडल में दर्ज किया गया था। इन निष्कर्षों में यह पुष्टि की गई कि दुनिया के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में से 21 भारत में है । यह एक ऐसा तथ्य था, जो भारत सरकार द्वारा कभी स्वीकार नहीं किया गया था। ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि इस अध्ययन ने निष्कर्ष निकाला है कि प्रदूषित हवा में सांस लेने से हर साल लगभग 20 लाख भारतीयों की मौत हो जाती है और 50 से 70 लाख लोगों की जिंदगी को यह प्रतिवर्ष छोटा कर देता है।

निष्पक्ष ढंग से देखें तो, भारत ने निजी तौर पर इसकी खराब वायु गुणवत्ता को स्वीकार किया है और इससे निपटने के लिए कुछ ठोस कदम उठाए हैं। उदाहरण के लिए, उत्तरी राज्यों के कई हिस्सों को छोड़कर, जहां कोयले का उपयोग किया जाता है, कम आय वाले भारतीय परिवार पारंपरिक रूप से खाना पकाने के लिए लकड़ी जलाते हैं। ये आदिम, बगैर शोधित ईंधन स्रोत भारत में प्रदूषण के लगभग 30 प्रतिशत का योगदान करते हैं। खाना पकाने के लिए घर में इन ईंधनों का उपयोग करने वाले परिवार बहुत ही सूक्ष्म कणों की मौजूदगी वाली हवा में  सांस लेते हैं जो अस्थमा, फेफड़ों के कैंसर, हृदय रोग, स्ट्रोक और मृत्यु का कारण बनते हैं। इस समस्या को महसूस करने के बाद, प्रधान मंत्री मोदी ने अपनी सरकार को गरीबों को खाना पकाने के लिए 8 करोड़ एलपीजी सिलेंडर वितरित करने का आदेश दिया। इस कार्यक्रम ने खाना पकाने के लिए अपने घरों में लकड़ी और कोयला जलाने वाले परिवारों की संख्या में महत्वपूर्ण कमी की है और अनगिनत लोगों की जान बचाई है। लेकिन इस सराहनीय कदम के बावजूद, भारत का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 300-400 के बीच एयर क्वालिटी इंडेक्स रीडिंग के साथ "अस्वास्थ्यकर" और "खतरनाक" के बीच रहा है। सर्दियों के महीनों में यह संख्या अपेक्षाकृत ज्यादा हो गई है।

भारत में आउटडोर वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत ऑटो रिक्शा, कारों, ट्रकों, बसों और रेल इंजनों जैसे परिवहन वाहनों, से आता है, वे सभी जीवाश्म ईंधन खासकर डीजल का उपयोग करते हैं। इसके बाद गैसोलीन और संपीड़ित प्राकृतिक गैस (सीएनजी) का नंबर आता है। इसके अलावा, डीजल जनरेटर, जो डीजल कारों और ट्रकों के समान इंजन का उपयोग करते हैं, भारत के बाहरी वायु प्रदूषण में अतिरिक्त 10  फीसदी का योगदान करते हैं। इन जनरेटर का उपयोग बड़े पैमाने पर 80 प्रतिशत व्यवसायों और भारत में 10 प्रतिशत घरों में बिजली प्रदान करने के लिए किया जाता है।
इस साल की शुरुआत में, भारत ने सभी नए ऑटोमोबाइल के लिए "भारत स्टेज 6" प्रदूषण नियंत्रण मानक पेश किया। यह मानक यूरोप में उपयोग किए जा रहे मानक के समान है। इसे अगर सभी वाहनों पर लागू किया जाता है, तो भारत में कारों की भीड़ से उपजने वाला वायु प्रदूषण काफी कम हो जाएगा। यह एक सकारात्मक कदम है। लेकिन यह केवल महासागर में एक बूंद साबित होगा, जब तक कि पुराने ऑटोमोबाइल और ट्रकों को वापस नहीं ले लिया जाता।

लेकिन डीजल ट्रकों और रेल इंजनों के बारे में क्या, जो भारत  के 35 प्रतिशत बाहरी प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं और फेफड़ों के कैंसर सहित अकाल मृत्यु और दुर्बल करने वाली बीमारियों का एक प्रमुख कारण हैं? 2016 में, "डीजल लोकोमोटिव से अत्यधिक प्रदूषण" के बारे में एक नागरिक की शिकायत नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के समक्ष दायर की गई थी, जो एक न्यायिक निकाय है और पर्यावरणीय मुद्दों से तेजी से निपटाने का काम करता है। वर्तमान में भारत का अपने किसी भी डीजल रेल इंजन द्वारा फैलाए जा रहे प्रदूषण पर कोई नियंत्रण नहीं है। एक प्रारंभिक सुनवाई के बाद, ट्रिब्यूनल ने पर्यावरण मंत्रालय के भीतर एक वैधानिक निकाय केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को इस शिकायत की जांच और हमारे नागरिकों की सुरक्षा के लिए किस प्रकार के उपाय की आवश्यकता होगी, इस बारे में रिपोर्ट करने का आदेश दिया। इच्छुक पार्टियों और विशेषज्ञ गवाहों से सुनवाई और गवाही के एक वर्ष से ज्यादा समय के बाद, सीपीसीबी न केवल शिकायत से सहमत हुआ, बल्कि सभी डीजल रेल इंजनों, पुराने और नए के लिए मजबूत, विश्व स्तरीय प्रदूषण नियंत्रण मानकों की सिफारिश करने का भी फैसला किया।

वर्तमान में भारतीय रेलवे में 5,650 डीजल इंजन हैं। इसमें से 3000 पुरानी तकनीक वाले हैं और सेवा से बाहर किए जाने के लिए निर्धारित हैं। शेष 2,500 रेल इंजन अपेक्षाकृत नए हैं और 1999 के बाद EMD प्रौद्योगिकी के साथ निर्मित किए गए थे। ये रेल इंजन वर्तमान में भारतीय माल और यात्री गाड़ियों की रीढ़ हैं। भारत ने चार साल पहले नए डीजल इंजनों की खरीद भी शुरू की। आज तक, जनरल इलेक्ट्रिक (जीई) द्वारा विदेश में 150 नए इंजन बनाए गए हैं और भारत में भेज दिए गए हैं। दो साल पहले, जीई ने अपने लोकोमोटिव व्यवसाय को दूसरे अमेरिकी लोकोमोटिव असेम्बलर वाबटेक (Wabtech) को बेच दिया।

लगभग नब्बे फीसदी अमेरिकी ट्रेनें डीजल इंजनों का उपयोग करती हैं। अमेरिकी इंजन, हालांकि, केवल नगण्य वायु प्रदूषण का उत्सर्जन करते हैं क्योंकि वे वायु प्रदूषण नियंत्रण प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल करते हैं। भारत अमेरिकी दृष्टिकोण पर विचार करना चाह सकता है। इन लोकोमोटिव को संशोधित करना छोटा लेकिन बुद्धिमान निवेश होगा जो सुंदर लाभांश का भुगतान करेगा।

डीजल इंजनों द्वारा पैदा की गईं सबसे गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं नाइट्रस ऑक्साइड (एनओएक्स) और पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) का उत्सर्जन हैं। ये बहुत छोटे हवा के कण 2-10 माइक्रोन से कम या  व्यास में मनुष्य के बाल के  1/30 वें भाग से अधिक नहीं हैं। नाइट्रस ऑक्साइड मानव स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक विषैला है और पीएम फेफड़ों में बीमारी और विनाश का कारण बनता है और अंततः मृत्यु को दावत देता  है। अमेरिकी डीजल इंजनों को संयुक्त राज्य अमेरिका पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (ईपीए) द्वारा निर्धारित सख्त टियर -3 प्रदूषण नियंत्रण मानक को पूरा करना जरूरी होता है। टियर -3 मानक नाइट्रस ऑक्साइड को 60 और पीएम को 70 फीसदी तक कम करता है। अमेरिका ने हाल ही में टियर -4 मानक को पूरा करने के लिए एक नई तकनीक विकसित की है, जो उन्हें 98 प्रतिशत तक कम कर देगा। यू.एस. और वर्तमान में पूरे यूरोप और अन्य विकसित देशों में उपयोग किए जाने वाले टियर -3 उत्सर्जन मानक वही मानक हैं, जिन्हें सीपीसीबी ने वाबटेक द्वारा निर्मित किए जा रहे नए इंजनों के लिए ऑर्डर किया है। 2500 पुराने ईएमडी इंजनों के लिए, सीपीसीबी को टियर -2 उत्सर्जन प्रौद्योगिकी की स्थापना की आवश्यकता है, जो कि, जबकि  टीयर -3 से थोड़ा कमजोर है, फिर भी 60 प्रतिशत से अधिक एनओएक्स और 40 फीसदी पीएम को हटा देगा।

हमारी वायु प्रदूषण की समस्या का समाधान बनने के लिए भारत में इलेक्ट्रिक रेल इंजनों को काफी प्रशंसा मिली है। विद्युत परिवहन के समर्थकों का दावा है कि वे शून्य उत्सर्जन करते हैं। दुर्भाग्य से, विद्युत प्रस्तावक एक छोटे-से रहस्य को छिपाते हैं। दरअसल, जब रेल लाइनों को विद्युतीकृत करने के लिए आवश्यक बिजली का उत्पादन करने के लिए थर्मल पावर प्लांटों में कोयले को जलाने से पैदा होने वाले प्रदूषण की बात करें, तो इलेक्ट्रिक इंजन उन डीजल इंजनों की तुलना में अधिक प्रदूषण पैदा करते हैं जिन्हें अभी हाल में अपग्रेड किया गया है। भारत की अधिकांश बिजली का उत्पादन एक सार्वजनिक कंपनी, एनटीपीसी द्वारा किया गया है, जिसके उत्पादन केंद्र मुख्य रूप से बिहार, बंगाल और उत्तर प्रदेश, ओडिशा में स्थित हैं । ये वही  राज्य हैं जिन्हें गेट्स रिपोर्ट में, आउटडोर वायु प्रदूषण से सबसे ज्यादा मृत्यु और बीमारियों वाला राज्य  बताता है

पिछले एक साल से सीपीसीबी नए डीजल इंजनों के लिए मौजूदा डीजल बेड़े  के लिए टीयर-2 और नए डीजल इंजन के लिए टीयर -3 मानक लागू करने की कोशिश कर रहा है। इन मानकों को अनिवार्य किए जाने से नाइट्रोजन और और पार्टिकुलेटेड मैटर के कारण होने वाले स्मॉग में बहुत कमी आएगी, जिससे कई मानव जीवन बचेंगे। दुर्भाग्य से, रेल मंत्रालय के नौकरशाह अभी भी बिना उत्सर्जन नियंत्रण के यथास्थिति बनाए रखने के लिए लड़ रहे हैं। पर्यावरण विशेषज्ञों के महीनों के दबाव के बाद, उनकी "समझौते वाली" स्थिति है पर्यावरण मंत्रालय को इसके बजाय एक बीस साल पुराने मानक (टीयर वन) को स्वीकार करना चाहिए जो अब दुनिया के अधिकांश में उपयोग नहीं किया जाता है और हवा को साफ करने के लिए  बहुत कम  काम करेगा। विडंबना यह है कि टियर -1 तकनीक का उपयोग करने से नए मानकों से अधिक खर्च होंगे क्योंकि कोई भी उस पुरानी तकनीक का निर्माण नहीं करता है। भारत हमेशा से दुनिया की सर्वश्रेष्ठ तकनीक चाहता है। ऐसे में, एक पुरानी व परित्यक्त तकनीक को क्यों चुना जाए?

यह समस्या नई ऑटोमोबाइल के लिए बीएस 4 बनाम बीएस 5 उत्सर्जन नियंत्रण की आवश्यकता को लेकर नौकरशाहों की लंबी बहस से अलग नहीं है। यह बाहरी हितों की ओर से देरी के अलावा कुछ नहीं था जो बदलना नहीं चाहता था। भारत के सर्वोच्च न्यायालय, जिसका संवैधानिक कर्तव्य सभी नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना है, को दखल देना पड़ा, और जब ऐसा हुआ, तो अदालत ने बीएस 6, जो कि सबसे कठोर मानक है, उसको लागू करने का आदेश दिया।

इसी तरह, एक बड़ी व लंबी नौकरशाही पर अड़चन थी कि गरीब गृहिणियों को एलपीजी सिलेंडर के वितरण के लिए कौन भुगतान करेगा। तब तक कुछ नहीं हुआ जब तक प्रधान मंत्री मोदी ने मजबूत निर्णय लेते हुए सरकार को  लागत को कवर करने के लिए मजबूर किया। यह भारत के नागरिकों के लिए एक महत्वपूर्ण जीत थी, लेकिन बहुत कुछ किया जाना बाकी है। प्रमाण के रूप में, वर्तमान में बेंगलुरु में आधे बच्चे अस्थमा से पीड़ित हैं।

आज बिल गेट्स वाकई निराश होंगे। पांच साल पहले, उन्होंने चेतावनी दी थी कि दुनिया का सबसे बड़ा संभावित हत्यारा युद्ध नहीं बल्कि एक महामारी है। अब तक कोविड-19 से आठ मिलियन से अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं और साढ़े चार लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। भारत में 360,000 मामलों की पुष्टि हुई है और 12,500 लोगों की मौत हुई है। गेट्स के अनुसार " किसी घातक समस्या के बारे में बात करने का सबसे महत्वपूर्ण बिंदु है एक्शन लेना और नुकसान को कम करना।" डीजल उत्सर्जन के बारे में वैज्ञानिक रूप से सत्यापित इस चेतावनी पर कार्रवाई नहीं करना अनैतिक है, खासकर तब जब यह माना जाता है कि भारत में पिछले चार महीनों के दौरान कोविड- 19 से जो मौते हुई हैं, उन की तुलना में प्रदूषण से सालाना सौ गुना अधिक लोगों की मौत होती  है। हमें किसी महामारी से निपटने के लिए वैक्सीन के आने तक इंतजार करना पड़ सकता है। लेकिन डीजल उत्सर्जन से होने वाली मौतों को कम करने के लिए तकनीकी तैयार है। हमें अब कार्रवाई करनी ही होगी।

(शेखर तिवारी यूएस-इंडिया सिक्योरिटी फोरम के संस्थापक हैं। लेख में व्यक्त विचार उनके निजी हैं।)

 

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