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गन्ने के बकाए पर ब्याज की मांग को लेकर सोमवार को धरना देंगे यूपी के किसान

उत्तर प्रदेश में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के आदेशों के बावजूद चीनी मिलों द्वारा गन्ने के बकाए...
गन्ने के बकाए पर ब्याज की मांग को लेकर सोमवार को धरना देंगे यूपी के किसान

उत्तर प्रदेश में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के आदेशों के बावजूद चीनी मिलों द्वारा गन्ने के बकाए भुगतान में देरी की अवधि का ब्याज न दिए जाने के विरोध में गन्ना किसान 15 जुलाई को धरना देंगे और विरोध प्रदर्शन करेंगे। राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के संयोजक वी. एम. सिंह ने कहा है कि अदालती आदेश के बावजूद गन्ना किसान पिछले कई वर्षों के दौरान बकाए के भुगतान में देरी की अवधि के ब्याज के लिए इंतजार कर रहे हैं। किसानों को कम से कम सात फीसदी ब्याज देने की मांग को लेकर लखनऊ में प्रदेश मुख्यालय के अलावा जिला और तहसील स्तर पर भी धरना दिया जाएगा।

हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी नहीं दिया ब्याज

प्रदेश के गन्ना राज्य मंत्री को भेजे पत्र में वी. एम. सिंह ने कहा है कि गन्ना आयुक्त संजय भूसरेड्डी द्वारा किसानों को ब्याज भुगतान के फैसले की हाई कोर्ट में जानकारी दिए जाने के बाद भी अभी तक यह भुगतान नहीं किया गया है। दरअसल, हाईकोर्ट ने इस साल पांच फरवरी को गन्ना आयुक्त को अदालत में तलब किया और निर्देश दिया कि वे ब्याज भुगतान के उसके आदेश का तत्काल पालन करें अथवा पांच अप्रैल को अवमानना मामले में अदालत की कड़ी कार्रवाई का सामना करने के लिए पेश हो जाए।

25 साल पुराना है ब्याज का मुद्दा

सिंह के पत्र के अनुसार किसानों को बकाए भुगतान पर ब्याज के मामले पर वह पिछले 25 साल से केस लड़ रहे हैं और आंदोलन भी चला रहे हैं। सबसे पहले अदालत में अर्जी अगौती चीनी मिल के किसानों की ओर से प्रस्तुत की गई थी। जिसमें वर्ष 1995-96 और 1996-97 के दौरान गन्ने के भुगतान में देरी का मुद्दा उठाया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने एक मई 1997 को ब्याज समेत बकाए के भुगतान का आदेश दिया। इसके बाद बकाए का तो भुगतान कर दिया गया लेकिन ब्याज नहीं दिया गया। इस पर अवमानना का केस डालने पर मिल मालिक को गिरफ्तार किया गया। 12 साल तक सुनवाई के बाद नवंबर 2009 में केस तब समाप्त हुआ जब मिल मालिक ने किसानों को दो करोड़ 18 लाख रुपये का ब्याज भुगतान कर दिया।

हाई कोर्ट में डाली थीं दो याचिकाएं

सिंह अदालतों में और दूसरे मंचों पर इस पर जोर देते रहे हैं कि जब तक मिल मालिकों द्वारा बकाए पर ब्याज नहीं दिया जाएगा तब तक वे समय पर भुगतान के लिए बाध्य नहीं होंगे। सुप्रीम कोर्ट में 90 के दशक के दो वर्षों का ब्याज किसानों को दिलाने के बाद उन्होंने हाई कोर्ट में वर्ष 2011-12, 2012-13, 2013-14 और 2014-15 के दौरान भुगतान में देरी के लिए दो याचिकाएं पेश की गई। इन पर अदालत ने ब्याज देने के आदेश दिया। चीनी मिल मालिकों द्वारा वर्ष 2011-12 में न तो मिल मालिकों ने ब्याज माफी की कोई अर्जी गन्ना आयुक्त को दी और न ही ब्याज माफ किया गया। लेकिन इसका भुगतान भी नहीं किया गया।

सरकार ने ब्याज माफ किया तो कोर्ट में दी चुनौती

इसके विपरीत, आगे के तीन पेराई सीजनों में भुगतान में देरी का ब्याज अखिलेश सरकार ने माफ कर दिया। इससे मिलों को 2750 करोड़ रुपये की राहत दे दी गई। लेकिन उनके संगठन ने इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी। दलीलों को सुनने के बाद हाई कोर्ट ने ब्याज माफ करने के राज्य सरकार के फैसले को खारिज कर दिया। कोर्ट ने जुलाई 2017 में मौजूदा योगी सरकार को इसके बारे में फैसला करने का निर्देश दिया। इसी पर फैसला करने के बाद गन्ना आयुक्त संजय भूसरेड्डी ने अदालत को इसकी जानकारी दी। जिसके अनुसार घाटे वाली मिलों को सात फीसदी और मुनाफे वाली मिलों को 12 फीसदी ब्याज अदा करना होगा।

प्रति एकड़ दस हजार रुपये ब्याज मिल सकता है किसानों को

सिंह ने अपने पत्र में कहा है कि उन्होंने 15 फीसदी ब्याज की मांग की थी जबकि सरकार ने सात फीसदी देने का फैसला किया है। इस पर अदालत में आपत्ति जताई गई है। लेकिन सात फीसदी ब्याद देने के सरकार के फैसले को भी अभी तक लागू नहीं किया गया है। सरकार इस फैसले को तत्काल लागू करवाए। तीन सीजनों में भुगतान में देरी के लिए इतना ब्याज देने से ही किसानों को प्रति एकड़ 8000-10000 रुपये ब्याज मिल सकता है। इसके अलावा वर्ष 2011-12 और 2015-16 के लिए 15 फीसदी ब्याज दिलाया जाए।  

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