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हाथ से मैला हटाने पर सुप्रीम कोर्ट की केंद्र पर तीखी टिप्पणी, गैस चैंबर में मरने के लिए कहीं और नहीं भेजा जाता

सुप्रीम कोर्ट ने हाथों से मैला साफ करने और सीवेज की सफाई के दौरान देश के हर क्षेत्र में रोजाना होने...
हाथ से मैला हटाने पर सुप्रीम कोर्ट की केंद्र पर तीखी टिप्पणी, गैस चैंबर में मरने के लिए कहीं और नहीं भेजा जाता

सुप्रीम कोर्ट ने हाथों से मैला साफ करने और सीवेज की सफाई के दौरान देश के हर क्षेत्र में रोजाना होने वाली मौतों पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी नाराजगी जताई है। उसने सरकारी तंत्र पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि दुनिया में कहीं और लोगों को गैस चेंबर में मरने के लिए नहीं भेजा जाता है।

सुप्रीम कोर्ट ने सफाई कर्मियों का मुद्दा उठाया

सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला उठाकर बड़ी संख्या में रोजाना जहरीली गैसों से मरने वाले सफाई कर्मियों के परिजनों और इस काम में लगे लाखों लोगों की गंभीर समस्या को उजागर कर दिया है। गरीबी और रोजगार की कमी के चलते ये लोग यह अमानवीय कार्य करने और अपनी जान जोखिम में डालने को मजबूर हैं। सिस्टम ऐसा बना हुआ है कि ऐसी मौतें होने के बाद दिखावे के लिए मामूली कार्रवाई होती है लेकिन यह सिस्टम बदस्तूर जारी रहता है।

आजादी के 70 साल बाद भी जातिगत भेदभाव

सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर टिप्पणी की कि आजादी के बाद 70 साल से ज्यादा समय गुजर जाने के बावजूद देश में जाति के आधार पर भेदभाव बना हुआ है। जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने केंद्र सरकार के तरफ से उपस्थित अटॉर्नी जनरल के. के. वेनुगोपाल ने कहा कि मैला निकालने और सीवेज एवं मेनहोल की सफाई में लगे लोगों को सुरक्षा के लिए समुचित उपकरण जैसे मास्क और ऑक्सीजन सिलेंडर क्यों नहीं दिए जाते हैं।

मास्क और ऑक्सीजन सिलेंडर क्यों नहीं दिए जाते

पीठ में जस्टिस एम. आर. शाह और बी. आर. गवई भी शामिल थे। पीठ ने कहा कि अटॉर्नी जनरल से सवाल किया कि सफाईकर्मियों को मास्क और ऑक्सीजनल सिलेंडर क्यों नहीं दिए जाते हैं। दुनिया में कोई और देश नहीं होगा जहां लोगों को गैस चैंबर में मरने के लिए भेजा जाता है। कोर्ट ने कहा कि हर महीने चार से पांच लोग इसी वजह से मर जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठया कि जब सभी इंसान एक समान है तो फिर अधिकारियों द्वारा एक समान सुविधाएं क्यों नहीं दी जाती हैं।

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