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क्यों कहा जा रहा है कि ‘मोदी वाजपेयी नहीं है’? सोनिया से लेकर महबूबा ने जानिए क्या कहा

राजनीतिक दलों की ओर से अक्सर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के...
क्यों कहा जा रहा है कि ‘मोदी वाजपेयी नहीं है’? सोनिया से लेकर महबूबा ने जानिए क्या कहा

राजनीतिक दलों की ओर से अक्सर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के बीच अंतर की बात कही जाती रही है। मौजूदा प्रधानमंत्री मोदी ओर पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी के कामकाज और राजनीतिक आचरण को लेकर कई बड़े नेताओं के विचार आते रहते हैं। हाल ही में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) प्रमुख एम.के स्टालिन ने कहा है कि डीएमके अब कभी भाजपा के साथ गठबंधन नहीं करेगी और मोदी वाजपेयी नहीं है।  

भाजपा के इन दोनों बड़े नेताओं को लेकर सबके जहन में अमूमन गुजरात दंगों के बाद वाजपेयी का राजधर्म अपनाने का बयान छाया रहता है और इसी बयान के बिनाह पर इस फर्क को जामा पहनाया जाता है। जबकि कश्मीर नीति से लेकर सहयोगी दलों और विपक्ष के साथ संबंध को लेकर भी मोदी-वाजपेयी के बीच बड़ा अंतर देखा जा सकता है। समय समय पर हुई कई घटनाएं और इस मसले पर अलग-अलग दलों के विचारों से इन फासलों को समझा जा सकता है।

मोदी खुद को वाजपेयी ना समझें

एमके स्टालिन कह रहे हैं मोदी खुद की तुलना वाजपेयी से ना करें। कभी वाजपेयी सरकार के दौरान एनडीए की सहयोगी रही डीएमके के प्रमुख का कहना है कि पीएम के नेतृत्व में गठबंधन करना सही नहीं है। स्टालिन का यह भी दावा है कि डीएमके अब कभी भाजपा के साथ गठबंधन नहीं करेगी और मोदी वाजपेयी नहीं है। उनके नेतृत्व में गठबंधन अच्छा नहीं है और यह विडंबना है कि वह खुद अपनी तुलना पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी से कर रहे हैं। 

दरअसल स्टालिन का यह बयान प्रधानमंत्री मोदी पर पलटवार के तौर पर आया है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था, “भाजपा के दरवाजे हमेशा खुले हैं। अटलजी ने जो रास्ता हमें दिखाया था, भाजपा उसी पर चल रही है।” लेकिन गठबंधन पर मोदी के दिया गया बयान वाजपेयी सरकार की सहयोगी पार्टी को रास नहीं आया।

गठबंधन की गांठ कब मजबूत?

24 दलों की गठबंधन सरकार को चलाने में कामयाब वाजपेयी की तारीफ हमेशा उनके सहयोगी करते रहे हैं। वहीं मौजूदा सरकार में उनके सहयोगी दलों का रूख काफी जुदा है। शिवसेना की ओर से अक्सर गठबंधन को लेकर तल्खियां देखने को मिलती है। सरकार में रहते हुए सरकार पर अटैक की उनकी नीति लंबे वक्त से जारी है। 

वहीं भाजपा और सरकार के रवैये से नाराज तेलगुदेशम पार्टी (टीडीपी) एनडीए से अलग भी हो गई। समय-समय पर शिरोमणि अकाली दल भी बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर गठबंधन के सहयोगियों को उचित सम्मान नहीं देने का आरोप लगाते रहता है। पिछले साल  पार्टी की ओर से कहा गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रमुख नारे 'सबका साथ सबका विकास' का असर गठबंधन में भी नजर आना चाहिए।

इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में शिरोमणि अकाली दल के और राज्यसभा सांसद सुखदेव सिंह ढिंडसा ने कहा था, “भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन में शामिल सहयोगियों को पूरा सम्मान नहीं मिल रहा है। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनी एनडीए सरकार में शिरोमणि अकाली दल को बहुत सम्मान मिला था।”

मोदी-वाजपेयी में जमीन आसमान का फर्क

भारत-पाकिस्तान रिश्तों और कश्मीर मसले को लेकर वाजपेयी की प्रशंसा विरोधी भी करते रहे हैं। जबकि इन मुद्दों को लेकर मोदी विपक्ष के निशाने पर रहे हैं। जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती अक्सर इस विषय पर अपनी राय जाहिर करती हैं। पिछले दिनों एक टीवी कार्यक्रम में भी वे कहती दिखाई दीं कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में आसमान और जमीन का फर्क है।

उनके मुताबिक, “वाजपेयी जब कुछ करने का निर्णय लेते थें तब चुनाव के बारे में नहीं सोचते थे। लेकिन मोदी हमेशा चुनाव जीतने के बारे में सोचते हैं। इतना बड़ा जनादेश होने के बावजूद वो कुछ नहीं कर पाए।”

मुफ्ती के इस बयान के केन्द्र में कश्मीर का मसला है। कश्मीर मुद्दे के हल को लेकर वे मोदी और वाजपेयी में कई अंतर देखती हैं। महबूबा ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी कश्मीर का हल इंसानियत के आधार पर करना चाहते थे। पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की सरकार के समय ऐसा पहली बार हुआ जब राज्य सरकार और दिल्ली में वाजपेयी सरकार एक जैसा सोच रहे थे। उन्होंने कहा कि वाजपेयी ने पाकिस्तान के साथ बात की मुजफ्फराबाद का रास्ता खुला, उन्होंने अलगाववादियों के साथ बातचीत की।

सोनिया की नजर में मोदी-वाजपेयी

कांग्रेस नेता सोनिया गांधी भी मोदी और वाजपेयी सरकार के बीच अंतर देखती हैं। पिछले साल एक टीवी चैनल से बातचीत में उन्होंने इस अंतर को साफ किया था। सोनिया ने कहा था कि मोदी सरकार विपक्ष के साथ सामंजस्य की भावना नहीं रखती है। जबकि अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहने के दौरान संसद ने ज्यादा सकारात्मक तरीके से काम किया था।

सोनिया ने कहा था, "मौजूदा स्थिति ऐसी है कि कोई भी सामंजस्य की भावना नहीं है..यह हमारा अधिकार है, यह विपक्ष का अधिकार है। जब वाजपेयी प्रधानमंत्री थे, तो हमने काफी अच्छे तरीके से काम किया था। वाजपेयी में संसदीय प्रक्रिया के प्रति बहुत सम्मान का भाव था।"

खुद पीएम मोदी क्या कहते हैं?

अब पीएम मोदी के बयान पर भी गौर करें कि वे वाजपेयी को लेकर वे क्या सोचते हैं। पिछले दिनों तमिलनाडु में पांच जिलों के बूथ स्तरीय कार्यकर्ताओं के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए बातचीत में प्रधानमंत्री मोदी ने दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा शुरू की गई सफल गठबंधन राजनीति को याद किया और कहा कि भाजपा के दरवाजे हमेशा खुले हैं। 

मोदी ने कहा कि बीस साल पहले दूरदर्शी नेता अटलजी भारतीय राजनीति में नई संस्कृति लाए थे जो कि सफल गठबंधन राजनीति की संस्कृति थी। उन्होंने क्षेत्रीय आकांक्षाओं को सर्वाधिक महत्व दिया। अटलजी ने जो रास्ता हमें दिखाया था, भाजपा उसी पर चल रही है।

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