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26 अप्रैल की वो 'काली रात', ... 4 साल का बच्चा अपने संक्रमित दादा-दादी के क्षत-विक्षत शवों के साथ रहने को हुआ मजबूर

बीते 26 अप्रैल की रात को 35 साल के इरतिजा कुरैशी के कोविड हेल्प व्हाट्सएप ग्रुप पर एक मैसेज मिला। जिसमें...
26 अप्रैल की वो 'काली रात', ... 4 साल का बच्चा अपने संक्रमित दादा-दादी के क्षत-विक्षत शवों के साथ रहने को हुआ मजबूर

बीते 26 अप्रैल की रात को 35 साल के इरतिजा कुरैशी के कोविड हेल्प व्हाट्सएप ग्रुप पर एक मैसेज मिला। जिसमें लिखा हुआ था, “अर्जेंट, बुरारी में एक परिवार को मदद की जरूरत है। मृत माता-पिता के अंतिम संस्कार करने में उसके बेटे की कोई भी मदद नहीं कर रहा है।“ दिल्ली के बुरारी में रहने वाले लक्ष्मण तिवारी उस तारीख को कभी नहीं भूल पाएंगे। कोरोना संक्रमण ने पूरे परिवार को गहरी क्षति पहुंचाई है। कोरोना संक्रमण की वजह से उनकी पत्नी को अस्पताल में भर्ती कराया गया और उनके बूढ़े माता-पिता की हालत गंभीर थे। लक्ष्मण 4 साल के बेटे के साथ होम क्वारेंटाइन हैं। 26 अप्रैल की शाम 4 बजे के आसपास, उनकी माँ को सांस लेने में तकलीफ होनी शुरू हो गईं। क्योंकि उनकी मां को दिए जा रहा ऑक्सीजन खत्म हो चुका था। एक घंटे तक हांफने, तेजी से घरघराहट, छटपटाहट और बेटे द्वारा पम्पिंग के बाद भी उनके मां की मौत हो गी। ये ह्दय विदारक तस्वीरों का दौर शुरू ही हुआ था।

बमुश्किल कुछ घंटे बाद ही जब तक लक्ष्मण तिवारी इस दु:ख को संभाल पाते, उनके पिता भी ऑक्सीजन के लिए हांफने लगें। हताश बेटे ने अपने पिता की छाती को पंप करना शुरू किया। लेकिन सुबह करीब 1 बजे उनके पिता ने भी साथ छोड़ दिया। लक्ष्मण और उनके युवा बेटे, अपने माता-पिता के शवों के अंतिम संस्कार के लिए लगभग एक घंटे के बाद मदद के लिए पड़ोसियों के पास पहुँचे। लेकिन, अपनी जान के डर से कोई मदद को बाहर नहीं आया। शायद उन्हीं में से किसी ने इस मदद की गुहार व्हाट्सएप के जरिए लगाई।

कोरोना वॉरियर इरतिज़ा लक्ष्मण की मदद करने के लिए सुबह 4 बजे बुरारी पुलिस स्टेशन पहुंच गएं और मदद की गुहार करने लगें। लक्ष्मण के घर से श्मशान घाट की दूरी करीब 4 किमी से भी कम है। लेकिन, पुलिस की तरफ से कहा जाता है, “हमारे पास ऐसी कोई सुविधा नहीं है। 102 या 112 पर कॉल करें।“ वो 102 नंबर पर कॉल करता है तो उसे जवाब मिलता है, "हमारे पास कोविड मरीजों के शवों के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। हम केवल जीवित रोगियों के मामलों को हैंडल करते हैं।” 112 नंबर डायल करने पर उन्हें अजीबोगरीब चीजें बताई जाती है, "आप जस्टडायल के लिए प्रयास क्यों नहीं करते और नंबर क्यों नहीं लेते हैं?"

इरतिजा ने पुलिस स्टेशन से हीं कुछ करने का फैसला किया और एक-एक करके सूचीबद्ध संगठनों तक इस मदद को पहुँचने लगा। अंत में एक संगठन मदद करने पर राजी हुआ। लेकिन, इसके साथ हीं कई तरह के शर्तों को चस्पा कर दिया गया। पहले ये कहा गया कि शवों को श्मशान घाट के बाहर सड़क पर छोड़ देंगे। उसके बाद कहा कि शवों को एम्बुलेंस तक लाने में कोई सहायता नहीं दी जाएगी। ड्राइवर शवों को नहीं छूत सकता है और इसके लिए कंपनी 8,000 रुपये चार्ज करेगी। लेकिन वो परिवार इतने पैसों का भुगतान करने की स्थिति में नहीं था और ना ही उसके पास कुछ उस तरह की चीजें थी जिसमें शवों को रखकर लाया जा सके, जो गर्मी की वजह से और बिना मदद के खराब होना शुरू हो गया था।

जब कहीं से कोई मदद मिलती नहीं दिखाई दी तब कोरोना वॉरियर इरतिजा ने फिर से पुलिस से मदद की गुहार लगाई और उनसे कहा कि कोरोना पॉजिटिव व्यक्ति के साथ चार साल का बच्चा है। उसके माता-पिता की कोविड से मौत हो चुकी है। लेकिन, पुलिस ने भी निराशाजनक जवाब दिया और कहा कि हम मदद नहीं कर सकते हैं। सलाह देते हुए कहा गया कि उन्हें श्मशान घाट जाकर देखना चाहिए। शायद वो अपना एंबुलेंस भेजें। जब इरतिजा निगमबोध घाट पहुंचे तो वहां बुरी स्थिति थी। वो घंटो इंतजार नहीं कर सकते हैं। इरतिजा ने डीसीपी नॉर्थ दिल्ली को टैग कर हेल्प मांगी। इसके साथ ही हिंदुस्तान लाइव नाम के वेब पोर्टल चलाने वाले पत्रकार से भी उन्होंने मदद की अपील की।

करीब 22 घंटे की कड़ी मश्कत, पूर्ण दुख और निराशा के बाद लक्ष्मण के माता-पिता को आखिरकार 'सम्मानजनक' विदाई मिल गई। इरतिजा ने बताया कि जब एम्बुलेंस में शवों को रखा गया था तो वो बेहद खराब हालत में थे। लगभग चार साल का बच्चा करीब पूरे एक दिन अपने दादा-दादी की क्षत-विक्षत लाशों को देखता है और उसके पिता मदद की भीख माँगते हैं। पड़ोसियों और अजनबियों से गुहार लगाते हैं, ये मानवता के लिए कुछ नहीं है।

चार साल का बच्चा बचपन की उन कहानियों की यादें ताजा करते हैं जो दादी ने उन्हें नरक के बारे में बताई थीं, जहां मृत जीवित लोगों को पीछे छोड़ देता हैं। जहां हर दिन मौत हमसे मिलती है, जहां लाशों को एक दूसरे के ऊपर ढेर कर दिया जाता है, जहां दूर तक जलती हुई चिताएं दिखती हैं। जहां बच्चे ताबूतों में सोते हैं, और खेल के मैदान दफन के मैदान में बदल जाते हैं। जहां लोग हवा के लिए हांफते हुए मरते हैं। अब ये सिर्फ कथा नहीं है। दिल्ली में आपका स्वागत है। नरक में आपका स्वागत है।

 

 

 

 

 

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