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सब्सिडी पर रास्ता नहीं निकला तो निर्यात क्षेत्र के कामगारों के लिए पैदा हो सकता है संकट

पहले से ही घटते भारत के निर्यात को एक और झटका लग सकता है। अमेरिका की शिकायत पर विश्व व्यापार संगठन...
सब्सिडी पर रास्ता नहीं निकला तो निर्यात क्षेत्र के कामगारों के लिए पैदा हो सकता है संकट

पहले से ही घटते भारत के निर्यात को एक और झटका लग सकता है। अमेरिका की शिकायत पर विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) ने भारत की अधिकांश निर्यात प्रोत्साहन स्कीमों को नामंजूर करते हुए उन्हें वापस लेने को कहा है। वैसे तो भारत ने डब्ल्यूटीओ के फैसले को चुनौती देने के संकेत दिए हैं, लेकिन इसमें अगर राहत नहीं मिली तो आने वाले समय भारतीय निर्यात और निर्यातकों के लिए कठिनाई भरा हो सकता है। इससे देश की अर्थव्यवस्था और करोड़ों कामगारों और मजदूरों के लिए संकट पैदा हो सकता है।

इन निर्यात स्कीमों के लिए मुश्किल

डब्ल्यूटीओ ने मर्केंडाइज एक्सपोर्ट्स फ्रॉम इंडिया स्कीम (एमईआइएस), एक्सपोर्ट ऑरिएंटेड यूनिट्स स्कीम एवं सेक्टर संबंधित स्कीम (ईओयू), स्पेशल इकोनॉमिक जोन (एसईजेड), एक्सपोर्ट प्रमोशन कैपिटल गुड्स स्कीम (ईपीसीजी), इलेक्ट्रॉनिक्स हार्डवेयर पार्क्स स्कीम और ड्यूटी फ्री इंपोर्ट्स फॉर एक्सपोर्टर्स प्रोग्राम (डीएफआइएस) को खत्म करने की सिफारिश की है।

भारत देता है 7 अरब डॉलर निर्यात सब्सिडी

अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि का दावा है कि इन स्कीमों के तहत भारत हर साल 7 अरब डॉलर (50,0000 करोड़ रुपये) से ज्यादा सब्सिडी देता है। अमेरिका ने डब्ल्यूटीओ की विवाद निवारण समिति में दायर अपनी शिकायत में आरोप लगाया था कि भारत की निर्यात सब्सिडी डब्ल्यूटीओ के नियमों के खिलाफ है। उसका कहना है कि सब्सिडी पाने वालों को विश्व बाजार में अनुचित फायदा मिलता है।

इन उत्पादों पर असर संभव

अमेरिका की शिकायत में मुख्य तौर पर स्टील उत्पाद, फार्मास्युटिकल्स, केमिकल्स, आइटी प्रोडक्ट, टेक्सटाइल और अपैरल पर दी जा रही सब्सिडी पर सवाल उठाया गया है। यह प्रतिबंधित सब्सिडी दिए जाने से अमेरिकी कर्मचारियों और निर्माताओं को नुकसान हो रहा है।

2015 से भारत विकासशील देश नहीं

अमेरिका यह भी कहना है कि विशिष्ट विकासशील देशों को अपवादस्वरूप इस तरह की सब्सिडी अस्थाई रूप से देने की अनुमति है, जब तक वह परिभाषित आर्थिक स्तर पर नहीं पहुंच जाते हैं। भारत पहले इस तरह की छूट पाने वाले देशों में शामिल था। लेकिन 2015 में तय आर्थिक मानकों से बाहर निकल जाने की वजह से छूट पाने योग्य नहीं रह गया है।

ये हैं डब्ल्यूटीओ की आपत्तियां

विवाद निवारण समिति ने कहा है कि भारत की अधिकांश सब्सिडी योजनाएं नियमों के अनुकूल नहीं हैं। बायो-टेक्नोलॉजी पार्क्स स्कीम में निर्यातकों को आयात शुल्क में छूट देना अतिरिक्त सुविधा है जो नियम विरुद्ध है। एमईआइएस में ड्यूटी क्रेडिट स्क्रिप्स देना अनुचित लाभ है। भारत को 90 से 180 दिनों के भीतर स्कीम वापस लेनी चाहिए। हालांकि भारत इस फैसले को चुनौती दे सकता है। अभी विवाद निवारण समिति ने पहले स्तर पर विवाद सुलझाने के लिए विचार करने के बाद सिफारिशें दी है। अगर दोनों पक्षों के बीच विवाद फिर भी नहीं सुलझता है तो विवाद निस्तारण के लिए अपीलेट बॉडी में याचिका दायर की जा सकती है।

भारत फैसले को देगा चुनौती

डब्ल्यूटीओ की विवाद निवारण समिति की िरपोर्ट आने के बाद भारत ने संकेत दिए हैं कि वह इसे चुनौती देगा। एक अधिकारी ने कहा कि हम डब्ल्यूटीओ के फैसले के खिलाफ है हम अपीलेट बॉडी में इस फैसले को चुनौती देंगे।

नए सिरे से तैयार करनी होंगी सब्सिडी स्कीमें

लेकिन डब्ल्यूटीओ में फैसले को चुनौती दिए जाने पर भी अगर भारत को राहत नहीं मिली तो उसे अपनी सब्सिडी स्कीमें नए सिरे से बनानी होंगी ताकि डब्ल्यूटीओ के नियमों के मुताबिक उन पर आपत्ति न की जा सके।

आर्थिक सुस्ती से निर्यात पहले ही घट रहा

निर्यातकों के सामने दिक्कत यह है कि पहले ही विदेशी खरीदारों से ऑर्डर बहुत कम मिल रहे हैं। निर्यात बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। पिछले सितंबर में भारत का निर्यात 6.57 फीसदी कम रहा। पेट्रोलियम, इंजीनियरिंग, लेदर, केमिकल और जेम्स एंड ज्वैलरी का शिपमेंट कम रहने से सितंबर में निर्यात घटकर 26.03 अरब डॉलर रह गया। पिछले करीब एक-डेढ़ साल से निर्यात में लगातार गिरावट का रुख बना हुआ है। वैश्विक और घरेलू स्तर आर्थिक सुस्ती से निर्यात क्षेत्र पहले ही बहुत परेशान है।

निर्यातकों की आशंकाएं

दिल्ली के एक निर्यातक ने कहा कि डब्ल्यूटीओ के नए फैसले से निर्यातकों के समक्ष एक और अनिश्चितता और चुनौती पैदा हो गई है। अगर सरकार ने जल्द से जल्द कोई समाधान नहीं निकाला तो देश के निर्यात पर और बुरा असर पड़ेगा। मुरादाबाद के एक अन्य निर्यातक ने कहा कि निर्यात सुस्त होता है तो इसका सीधा असर बहुसंख्य कारीगरों और मजदूरों पर पड़ता है। अगर सब्सिडी वापस होती है तो करोड़ों कारीगरों और मजदूरों के सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा हो सकता है।

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