Advertisement

रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स का नियम खत्म करने का फैसला सही, इससे निवेश का वातावरण सुधरेगा

मान लीजिए आपने किसी बिजनेस में बिल्कुल वाजिब तरीके से पैसा लगाया। कुछ दिनों के बाद सरकार ने नियम बदल...
रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स का नियम खत्म करने का फैसला सही, इससे निवेश का वातावरण सुधरेगा

मान लीजिए आपने किसी बिजनेस में बिल्कुल वाजिब तरीके से पैसा लगाया। कुछ दिनों के बाद सरकार ने नियम बदल दिया और कहा कि आपका पैसा लगाना गलत है, उस पर जुर्माना लगेगा। तो आप क्या करेंगे। सामाजिक अपराध जैसे मामलों में बैक डेट से कोई नियम लागू करना चाहिए या नहीं, इस पर बहस हो सकती है लेकिन बैक डेट से इनकम टैक्स लगाना कतई उचित नहीं कहा जा सकता। क्योंकि इससे बिजनेस का वातावरण प्रभावित होता है और कोई भी निवेश बिजनेस के वातावरण पर ही निर्भर करता है।

यही स्थिति 2012 में यूपीए सरकार के समय हुई थी जब तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी बैक डेट से लागू होने वाला टैक्स कानून लेकर आए थे। उस रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स को खत्म करने का मौजूदा सरकार का फैसला बिल्कुल सही माना जाना चाहिए, क्योंकि उस नियम की वजह से विश्व में भारत की काफी किरकिरी हुई। बैक डेट से अमल में आने के कारण अनेक सौदों पर इसे लागू किया गया, नतीजा यह हुआ कि ज्यादातर मामले कोर्ट और अंतरराष्ट्रीय आर्बिट्रेशन में चले गए जहां भारत को हार का सामना करना पड़ा। यही नहीं, केयर्न मामले में तो कंपनी को 1.75 अरब डॉलर वसूलने के लिए विदेशों में भारत सरकार की संपत्ति अपने कब्जे में लेने की भी अनुमति मिल गई।

अब जब सरकार ने 2012 के कानून को बदलने का फैसला किया है, तो उम्मीद की जानी चाहिए कि वोडाफोन जैसी कंपनियों के साथ उसके झगड़े जल्दी सुलट जाएंगे। संशोधन के बाद भी कानून का मजमून कमोबेश वही रहेगा। यानी भारत में बिजनेस करने वाली किसी कंपनी का परोक्ष रूप से विदेश में विलय-अधिग्रहण होता है तो उस सौदे में कैपिटल गेन्स टैक्स का नियम लागू होगा। फर्क यह होगा कि 28 मई 2012 को जब यह नियम लागू हुआ, उससे पहले के सौदे इसके दायरे में नहीं आएंगे।

बैक डेट से इस कानून को लागू करने का मकसद वोडाफोन-हचिसन सौदे में टैक्स वसूलना था। वोडाफोन ने 2007 में भारत की हचिसन एस्सार लिमिटेड में 67 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी थी। बाद में उसी प्रावधान के तहत केयर मामले में भी कैपिटल गेन्स टैक्स की डिमांड की गई। केयर्न का मामला इस लिहाज से कुछ अलग था कि इसमें कई सब्सिडियरी को मिलाकर एक कंपनी बनाई गई थी और ओनरशिप में कोई बदलाव नहीं हुआ था और कोई पैसा देश से बाहर नहीं गया था। इसलिए इस मामले में टैक्स डिमांड की काफी किरकिरी हुई थी। नए संशोधन में सरकार ने कहा है कि वह ऐसे मामलों में वसूला गया कैपिटल गेन्स टैक्स लौटा देगी, लेकिन उस पर पेनल्टी या ब्याज नहीं देगी।

सरकार ने गुरुवार को संसद में जो संशोधन विधेयक पेश किया उसके मुताबिक पुराने कानून के तहत जो भी टैक्स की डिमांड की गई है उन मामलों को वापस लिया जाएगा। यानी 28 मई 2012 को नया कानून लागू होने के बाद जिन पुराने सौदों में टैक्स की मांग की गई थी उन्हें वापस लिया जाएगा। इस तरह के 17 मामलों में आयकर विभाग ने टैक्स का नोटिस भेजा था। कई मामले सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट में चल रहे हैं। सरकार उन्हें भी वापस लेगी। वोडाफोन और केयर्न दोनों बड़े मामलों में सरकार को अंतरराष्ट्रीय आर्बिट्रेशन में हार का सामना करना पड़ा था।

2012 में जब यह कानून बनाया गया तब यूपीए में भी अनेक नेता इसके खिलाफ थे। कहा जाता है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी ऐसे कानून के पक्ष में नहीं थे। लेकिन प्रणब मुखर्जी की जिद के कारण यह कानून बना था। नए संशोधन से भारत में निवेश का माहौल बेहतर होने की उम्मीद है। विदेशी निवेशकों में यहां पैसा लगाने को लेकर अनिश्चितता कम होगी।

दरअसल, उससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने वोडाफोन ग्रुप के पक्ष में फैसला दिया था जिसने सरकार के टैक्स डिमांड को चुनौती दी थी। वोडाफोन ग्रुप ने हचिसन एस्सार में 67 फ़ीसदी हिस्सेदारी 2007 में 11.2 अरब डॉलर में खरीदा था। वह सौदा देश के बाहर हुआ था क्योंकि दोनों कंपनियां विदेशी थीं। आयकर विभाग ने 30 अक्टूबर 2009 को वोडाफोन इंटरनेशनल होल्डिंग्स को टैक्स का नोटिस भेजा। सितंबर 2010 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने आयकर विभाग के नोटिस को सही ठहराया और अक्टूबर 2010 में आयकर विभाग ने वोडाफोन से 11,218 करोड़ रुपए का टैक्स चुकाने को कहा। अप्रैल 2011 में उसने इसमें 7900 करोड़ रुपए की पेनल्टी भी जोड़ दी। लेकिन जनवरी 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को दरकिनार करते हुए टैक्स और पेनल्टी की डिमांड को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दो विदेशी कंपनियों के बीच हुआ सौदा भारतीय टैक्स अधिकारियों के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। 2014 में आयकर विभाग ने इसी कानून के तहत केयर्न एनर्जी को 10,247 करोड़ रुपए का टैक्स नोटिस भेजा। केयर्न इंडिया में केयर्न कंपनी के शेयर बेचकर उसने 8000 करोड़ रुपए की रिकवरी भी की थी।

उस समय विपक्ष में रहे एनडीए ने प्रणब मुखर्जी के फैसले को ‘टैक्स टेरर’ की संज्ञा दी थी। फिर भी उसे यह संशोधन करने में 7 वर्ष लग गए। जुलाई 2014 में अपने बजट भाषण में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि 2012 के संशोधन के तहत कोई नया मामला दर्ज नहीं किया जाएगा। उन्होंने वोडाफोन से टैक्स डिमांड को भी गलत बताया था और कहा था कि इससे विदेशी निवेशकों के बीच भारत की छवि खराब होगी।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement