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सीएए के खिलाफ प्रस्ताव सिर्फ ‘राजनीतिक संदेश’, राज्य कुछ नहीं कर सकते: शशि थरूर

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने कहा है कि नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ राज्य विधानसभा के...
सीएए के खिलाफ प्रस्ताव सिर्फ ‘राजनीतिक संदेश’, राज्य कुछ नहीं कर सकते: शशि थरूर

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने कहा है कि नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ राज्य विधानसभा के पारित किए गए प्रस्ताव महज राजनीतिक उद्देश्य पूरा कर सकते हैं क्योंकि नागरिकता देने में राज्यों की कोई भूमिका नहीं है। केरल और पंजाब ने सीएए के खिलाफ प्रस्ताव किए हैं। पिछले सप्ताह कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने भी इसी तरह का बयान दिया था।

हालांकि थरूर ने एक इंटरव्यू में कहा कि राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) लागू करने और प्रस्तावित राज्यव्यापी राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) में राज्यों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी क्योंकि इनकी प्रक्रिया राज्यों के ही अधिकारियों को ही संचालित करनी होगी। केंद्र सरकार के पास इसके लिए पर्याप्त अधिकारी और कर्मचारी मौजूद नहीं हैं।

सीएए में नहीं एनपीआर-एनआरसी में राज्यों की भूमिका

थरूर ने कहा कि सीएए के खिलाफ राज्यों के प्रस्ताव राजनीतिक उद्देश्य को ही पूरा करते हैं। नागरिकता देने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार के पास है। राज्य किसी को नागरिकता नहीं दे सकते हैं, सीएए को लागू करने या न करने में उनके पास कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि राज्य प्रस्ताव पारित कर सकते हैं या फिर अदालत में जा सकते हैं लेकिन व्यावहारिक स्तर पर स्थिति अलग है। वे यह नहीं कह सकते हैं कि सीएए लागू नहीं सकेंगे। हालांकि एनपीआर-एनआरसी के बारे में वे इसे लागू करने से इन्कार कर सकते हैं क्योंकि इसकी प्रक्रिया में उनकी अहम भूमिका होगी।

सिब्बल ने कहा था- राज्य इन्कार नहीं कर सकते

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने यह कहकर तूफान ला दिया था कि संसद से पारित होने के बाद राज्य सीएए को लागू करने से इन्कार नहीं कर सकते हैं। बाद में उन्होंने इसे असंवैधानिक करार दिया और स्पष्ट किया कि उनका पिछला बयान वाजिब है और इसमें किसी बदलाव की गुंजाइश नहीं है।

पंजाब, केरल के बाद अन्य राज्यों में भी प्रस्ताव संभव

पंजाब में कांग्रेस की सरकार ने पिछले सप्ताह सीएए के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया था। पंाब ने केरल की वामपंथी सरकार के इसी तरह के प्रस्ताव का भी समर्थन किया था। कांग्रेस सीएए विरोध प्रस्ताव पारित करने की राज्यों से मांग कर रही है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार 27 जनवरी को इसी तरह का प्रस्ताव पारित कर सकती है। कांग्रेस ने संकेत दिए है कि राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में उसकी सरकारें भी इसी तरह का प्रस्ताव पारित कर सकती हैं।

सुप्रीम कोर्ट ही एक मात्र रास्ता

थरूर ने कहा कि सीएए पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से स्टे न लगाए जाने के बावजूद इसके विरोध में विरोध धीमा नहीं पड़ा है। उन्होंने सीएए के खिलाफ याचिकाओं की सुनवाई के लिए पांच जजों की संविधान पीठ बनाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसला का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि सीएए में धर्मों के नाम देना संविधान का उल्लंघन है। अब पांच जजों की संविधान पीठ सभी तर्कों को सुनेगी और मामले के तथ्यों को परखेगी। मौलिक मतभेद दूर करने के लिए हमारे पास यही रास्ता है।

कानून को रोकने के लिए दो विकल्प

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने कहा कि यह कानून सिर्फ दो तरीकों से निष्प्रभावी हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट इसे असंवैधानिक घोषित कर दे या फिर सरकार खुद ही इसे वापस ले ले। हालांकि इस बात की गुंजाइश नहीं है कि सरकार खुद ही इस कानून को वापस ले क्योंकि वह अपनी गलती स्वीकार नहीं करेगी।

विरोध थामने को केंद्र को कदम उठाने होंगे

थरूर के अनुसार देश भर में विरोध प्रदर्शन स्वतः स्फूर्त हैं। अगर सरकार स्पष्ट करती है कि किसी धर्म को निशाना नहीं बनाया जाएगा तो विरोध का कारण खत्म हो जाएगा। हालांकि सरकार को सीएए से धर्मों वाली उपधारा हटाने से कहीं ज्यादा उठाने की जरूरत है। सरकार को स्पष्ट करना होगा कि जन्म स्थान और नागरिकता के बारे में सवाल नहीं पूछे जाएंगे और एनआरसी लागू नहीं किया जाएगा।

कांग्रेस के भयभीत न हो दूसरे विपक्षी दल

देश में विपक्ष के सवाल पर उन्होंने कहा कि भारतीय राजनीतिक में विपक्ष की एकजुटता कभी आसान नहीं रही है क्योंकि कई पार्टियों का रुख केंद्रीय स्तर पर सरकार के अनुरूप और राज्यों में अलग हो सकता है। विपक्ष को बंटे रहने के बजाय संगठित होना चाहिए। यह बेहतर विकल्प होगा। पार्टियों को कांग्रेस के भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है।

कांग्रेस महज पार्टी नहीं, सशक्त विचार

गांधी परिवार और कांग्रेस को उबारने में मौजूदा नेतृत्व की भूमिका पर पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा कि कांग्रेस एक परिवार से कहीं ज्यादा है। यह सिर्फ बड़ा आंदोलन नहीं बल्कि सशक्त विचार है। उन्होंने कहा कि जब हम लोगों से वोट मांगते हैं तो कुछ वोट परिवार के नाम पर मिलते हैं जबकि कुछ वोट उस प्रत्याशी के नाम पर मिलते हैं। लेकिन लोग निश्चित ही वोट कुछ सिद्धांतों के लिए देते हैं।

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