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असली परिणाम तो 2024 के ओलंपिक में दिखेगाः राठौर

पिछले साल जब एक ओलंपिक पदक विजेता को खेल मंत्रालय की कमान सौंपी गई तो इस क्षेत्र में कुछ बेहतर होने की...
असली परिणाम तो 2024 के ओलंपिक में दिखेगाः राठौर

पिछले साल जब एक ओलंपिक पदक विजेता को खेल मंत्रालय की कमान सौंपी गई तो इस क्षेत्र में कुछ बेहतर होने की उम्मीद जगी थी। आज सात महीने बाद राष्ट्रमंडल खेलों में भारतीय खिलाड़ियों की स्वर्णिम सफलता उन उम्मीदों को परवान चढ़ा रही है। देश में खेलों के लिए माहौल तैयार करने से लेकर खिलाड़ियों के प्रशिक्षण, सुविधाओं और बुनियादी ढांचे के निर्माण से जुड़ी कई अहम कोशिशें की जा रही हैं। कई पुरानी योजनाओं को सुधारा जा रहा है तो कई नई पहल रंग ला रही हैं। केंद्र की एनडीए सरकार के चौथे साल में खेलों का वर्तमान और भविष्य कैसा नजर आ रहा है, इससे जुड़े मुद्दों पर युवा मामले एवं खेल राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौड़ से अजीत सिंह ने लंबी बातचीत की। प्रस्तुत हैं उसके मुख्य अंश: 

-राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के प्रदर्शन को आप किस तरह आंकते हैं?

इन खेलों में भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन काबिलेतारीफ रहा है। खास बात यह है कि इस बार स्वर्ण पदक ज्यादा आए हैं। यह उत्कृष्टता की ओर बढ़ने का संकेत है। बड़ी संख्या में महिलाएं चैंपियन बनकर उभरी हैं। इस बार कम खिलाड़ी भेजकर भी हमने अधिक स्वर्ण बटोरे। टेबिल टेनिस, एथलेटिक्स जैसे जिन खेलों में हमें पदक नहीं मिलते थे, उनमें भी हमारे खिलाड़ी पदक जीते हैं। बैडमिंटन, निशानेबाजी, भारोत्तोलन, कुश्ती, बॉक्सिंग की पूरी चैंपियनशिप पर भारतीय खिलाड़ियों ने अपनी छाप छोड़ी। अच्छी बात यह है कि अब हम पदकों के लिए गिने-चुने खेलों पर निर्भर नहीं हैं। जिन खेलों में हम अच्छा कर सकते हैं, उनकी तादाद बढ़ रही है। कुल मिलाकर नतीजे उत्साहजनक हैं, इससे आगे भी हमें बेहतर प्रदर्शन करने की ऊर्जा मिलेगी।

-आप खुद खिलाड़ी रहे हैं। आपके मंत्री बनने के बाद खेलों को लेकर सरकार के नजरिए में क्या कोई बदलाव आया है?

खेल किसी भी देश की “साफ्ट पॉवर” का प्रतीक होते हैं। खेलों के जरिए भी हम अंतरराष्ट्रीय फलक पर अपनी छवि गढ़ते हैं। कला, संस्कृति, फिल्म की तरह खेलों के माध्यम से भी दुनिया भर के लोगों का दिल जीतते हैं। खेलों में बेहतर प्रदर्शन करना हमारे अपने आत्मविश्वास के लिए भी जरूरी है। इन दोनों बातों को ध्यान में रखकर केंद्र सरकार खेलों को बढ़ावा दे रही है। हालांकि, खेल राज्यों का विषय है, फिर भी इस क्षेत्र को केंद्र सरकार बहुत गंभीरता से ले रही है।  आप देखिए, जिन राज्यों ने अपने युवाओं में निवेश किया और खेलों पर ध्यान दिया है, वहां से कितने  अच्छे नतीजे आ रहे हैं।

-केंद्र सरकार की ऐसी कौन-सी पहल या योजनाएं हैं, जिनके आधार पर भारत दुनिया में खेलों के नक्शे पर उभर सकता है? 

हम स्कूली स्तर से ही खेलों को बढ़ावा देने और अपने खिलाड़ियों को हर तरह की सुविधाएं, सहूलियत मुहैया कराने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन को आगे लेकर चल रहे हैं। दुनिया के सबसे युवा देश को सबसे ज्यादा फिट भी होना चाहिए। खेलों को बढ़ावा देने के बहुत से आयाम और पहलू हैं, जिन पर काम किया जा रहा है। ऐसा नहीं है कि पहले सरकारी योजनाएं नहीं थीं, लेकिन शायद उन पर उस तरह ध्यान नहीं दिया गया, जैसा पीएम मोदी के नेतृत्व में अब दिया जा रहा है। 'खेलो इंडिया' और टारगेट ओलंपिक पोडियम (टॉप) स्कीम इसी का नतीजा है। इसके पीछे सोच यह है कि स्कूली स्तर से ही खेल का माहौल और खिलाड़ियों को सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए तैयार किया जाए। अमेरिका के कॉलेज गेम्स का स्तर हमारे राष्ट्रीय खेलों से भी बेहतर है। स्कूल, कॉलेज ही वह पाइपलाइन हैं, जहां से अच्छे खिलाड़ी तैयार होकर राष्ट्रीय स्तर पर आएंगे। इसमें सिर्फ सरकार ही नहीं बल्कि समुदाय और निजी क्षेत्र की भागीदारी भी जरूरी है। 

-क्या आपको लगता है कि खेलोगे-कूदोगे होगे खराबवाली सोच बदल रही है?

बिलकुल बदल रही है। अब 15-16 साल के लड़के-लड़कियां राष्ट्रमंडल खेलों में पदक जीत रहे हैं। पुरानी सोच को बदलने के लिए ही हमने राष्ट्रीय स्तर पर स्कूल गेम्स का आयोजन कराया। ये गेम्स पहले भी होते थे, लेकिन इस बार जिन सुविधाओं और स्तर के साथ आयोजन हुआ उससे छात्रों का उत्साह बढ़ेगा। इन खिलाड़ियों के आने-जाने, ठहरने, खाने-पीने और स्पर्धाओं के आयोजन का स्तर राष्ट्रीय खेलों की तरह रखा गया। ताकि उन्हें महसूस हो कि वे राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी हैं। स्कूल गेम्स का 100 घंटे से ज्यादा का प्रसारण भी पहली बार हुआ। ये चीजें खेलों का माहौल बनाने के लिहाज से बहुत जरूरी हैं। मुझे उम्मीद है कि अगले 10 साल में स्कूल गेम्स का स्तर बहुत बेहतर हो जाएगा।

-2020 के ओलंपिक खेलों को लेकर कैसी तैयारियां हैं? कितने पदकों की उम्मीद की जाए?

हमारी पूरी कोशिश टैलेंट पूल का बढ़ाने की है। यह काम ‘खेलो इंडिया’ के जरिए किया जा रहा है। दूसरी तरफ, ओलंपिक के मद्देनजर ‘टॉप स्कीम’ के तहत खिलाड़ी तैयार हो रहे हैं। हमें इन दोनों स्तरों पर मेहनत करने की जरूरत है। इसलिए एक हजार खिलाड़ियों को आठ साल तक सालाना पांच लाख रुपये की स्कॉलरशिप दी जा रही है। भोजन, यात्रा और दैनिक भत्ते के अलावा खिलाड़ियों को 50 हजार रुपये प्रतिमाह का जेब खर्च दिया जा रहा है। यह इसलिए जरूरी है क्योंकि पदक मिलने के बाद तो खिलाड़ी को बहुत से स्पॉन्सर मिल जाते हैं, लेकिन उससे पहले मदद मिलनी मुश्किल होती है। हम आज जो कुछ कर रहे हैं, उसके असली परिणाम 2024 और 2028 ओलंपिक में दिखेंगे। जापान की यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर हम कम्युनिटी कोचिंग और प्रशिक्षकों की ग्रेडिंग शुरू कर रहे हैं। देश के 50 जिलों में अगले दो साल के अंदर एक-एक स्कूल को स्पोट्‍‍र्स स्कूल के तौर पर विकसित किया जाएगा। इसमें सरकारी और प्राइवेट दोनों तरह के स्कूल होंगे। स्कूल बोर्ड भी सिलेबस का बोझ कम करने और खेलों को बढ़ावा देने को तैयार हैं। कम उम्र से ही खिलाड़ियों को तैयार करने के लिए आठ से 12 साल के बच्चों का एक नेशनल टेलेंट हंट कराया जाएगा। एक मोबाइल एप्लीकेशन के जरिए हम बेसिक टेस्ट कर 20-25 लाख बच्चों का डेटा जुटाएंगे। प्रतिभा विकास के लिए इनमें से 10 हजार बच्चों को छांटा जाएगा। आईक्यू और डीएनए टेस्ट के आधार पर इन्हें सही खेलों में आगे बढ़ाएंगे।

-लेकिन खेल संघों की राजनीति से किस तरह पार पाएंगे?

हमारी पूरी कोशिश है कि खेलों का प्रबंधन पेशेवर हो। खिलाड़ियों के प्रशिक्षण और चयन में किसी प्रकार की गड़बड़ी न हो। इसके लिए हम स्पोट्‍‍र्स कोड को मजबूत कर रहे हैं। इंटरनेशनल ओलंपिक कमेटी के तौर-तरीकों से सीख लेंगे। लेकिन किसी एक समूह या समुदाय को खेल प्रशासन से बाहर नहीं किया जा सकता। समस्या किसी एक बिरादगी में नहीं बल्कि व्यक्तिगत सोच में होती है। खेल संघों से राजनेताओं को बाहर करना इसका समाधान नहीं है। खेल संघों के नियम-कायदों और संचालन में पारदर्शिता और प्रतिबद्धता होनी चाहिए। इसके लिए हमें मिल-जुलकर काम करना है। खेलों को जिन्होंने अपनी जागीर बना रखा है, उन्हें भी पारदर्शिता लानी होगी और नया सिस्टम अपनाना पड़ेगा।

-डोपिंग की समस्या से निपटने का सरकार के पास क्या उपाय है

इसके लिए स्कूल, परिवार और संस्थाओं को जागरूक करने की जरूरत है। हमने नेशनल स्कूल गेम्स में भी डोपिंग टेस्ट कराए, जो कभी नहीं होते थे। एक बात हमें साफ तौर पर माननी होगी कि किसी भी कीमत पर जीतना कतई स्वीकार्य नहीं है। हारने का मतलब जीवन से हारना नहीं होता। कुछ खिलाड़ी प्रदर्शन सुधारने के लिए डोपिंग का सहारा ले लेते हैं जो अपने शरीर को नष्ट करने के समान है। यह खेल भावना के भी खिलाफ है। 

-सेना, खेल और राजनीति इन तीनों क्षेत्रों में अपनी भूमिकाओं को कैसे देखते हैं?

इन तीनों भूमिकाओं की खास बात यह रही है कि देश के लिए कुछ करने का मौका मिला। ओलंपिक पोडियम पर तिरंगे को ऊपर जाते देखने से ज्यादा गौरवशाली क्षण क्या हो सकता है! मौजूदा भूमिका में भी मैं करोड़ों लोगों पर असर डाल सकता हूं।

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